
अनुष्का (बदला नाम) पूरी कक्षा में अकेली अपने बेंच पर बैठी हैं. वे बिहार की आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी में संचालित हो रहे अपनी तरह के अनूठे पाठ्यक्रम 'एमएससी इन रिवर साइंस एंड मैनेजमेंट' की इकलौती छात्रा हैं. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने अपनी सांसद निधि की बड़ी राशि इस पाठ्यक्रम के लिए दी थी, ताकि हर साल बाढ़ और सूखे से जूझने वाले बिहार में नदियों के व्यवहार के तकनीकी जानकारों की पीढ़ियां विकसित हों.
मगर 31 अक्टूबर, 2023 जो इस पाठ्यक्रम के एडमिशन का आखिरी दिन है, तक इस पाठ्यक्रम में सिर्फ दो छात्रों ने ही एडमिशन लिया है. सेंटर फॉर रिवर स्टडीज के एक अन्य पाठ्यक्रम 'सर्टिफिकेट इन रिवर मैनेजमेंट' में अब तक एक भी छात्र ने नामांकन नहीं लिया है, जबकि इन दोनों पाठ्यक्रमों में सीटों की संख्या 20-20 है.
यह कहानी सिर्फ सेंटर फॉर रिवर स्टडीज की नहीं है. आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी में संचालित हो रहे सेंटर फॉर एक्सीलेंस के चारों सेंटर, छात्रों का टोटा झेल रहे हैं. इस सेंटर में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, सेंटर फॉर ज्योग्राफिकल स्टडीज, सेंटर फॉर रिवर स्टडीज और पाटलीपुत्र स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स संचालित हो रहे हैं. इनमें इस साल जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन को चार और ज्योग्राफिकल स्टडीज को 16 छात्र मिले हैं. पाटलीपुत्र स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स के पाठ्यक्रमों की अब तक शुरुआत भी नहीं हो पाई है. विश्वविद्यालय में चल रहे एक अन्य पाठ्यक्रम नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी में भी बमुश्किल पांच छात्र ही मिले हैं.
2010 में शुरु हुए आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी की स्थापना बिहार सरकार ने राज्य में व्यावसायिक और शोधपरक पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए की थी. पटना शहर के मीठापुर में इस विश्वविद्यालय का भव्य कैंपस बना है. मगर पूरे कैंपस में ढूंढ लिया जाए तो दो दर्जन छात्र भी नजर नहीं आते. यहां नैनो साइंस की पढ़ाई पहले से चल रही है. 2017 में बिहार सरकार ने तय किया कि इस परिसर में एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोला जाएगा, जहां शोधपरक विषयों की पढ़ाई होगी.

पहले यह सेंटर ऑटोनोमस बॉडी की तरह शुरु हुआ. इसके लिए हरिवंश और पवन कुमार वर्मा जैसे राज्यसभा सांसदों ने अपने सांसद निधि से फंड दिया. कई और जगहों से पैसे आए. रिवर स्टडीज के अलावा एक अन्य महत्वाकांक्षी सेंटर पाटलीपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स खोला गया, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की तर्ज पर चलाने की योजना थी. शुरुआत में रिवर स्टडीज को छोड़कर बाकी तीन सेंटरों के लिए डायरेक्टर भी नियुक्त हुए. मगर इन सेंटरों में कभी फुलटाइम शिक्षक नियुक्त हुए ही नहीं.
जल्द ही समझ लिया गया कि इसे ऑटोनोमस तरीके से चलाना आसान नहीं है, इसलिए इसे आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी का हिस्सा बना दिया गया. तीन साल बाद तीनों निदेशकों का टर्म पूरा हो गया और उनके जाने के बाद यह पद भी खत्म हो गया. फिलहाल इस सेंटर फॉर एक्सीलेंस के चार में से तीन सेंटरों में एक-एक समन्वयक नियुक्त हैं. इनके अलावा कोई पूर्णकालिक शिक्षक यहां नहीं है. पाटलीपुत्र स्कूल ऑफ एक्सीलेंस पर ताला लगा हुआ है. वहां एक भी स्टाफ नहीं है.
यहां सबसे पहले 2021 में जर्नलिज्म का पाठ्यक्रम शुरु हुआ. सेंटर ऑफ जर्नलिज्म में पहले साल 14 छात्र आए. मगर यहां शिक्षकों की कमी की वजह से अगले साल यहां सिर्फ पांच छात्रों ने नामांकन लिया. इस साल संख्या घट कर चार रह गई है. भूगोल में 2022 में पाठ्यक्रम शुरू हुआ. पहले साल 12 छात्रों ने नामांकन लिया, मगर चार छात्रों ने कुछ वजहों से पाठ्यक्रम बीच में ही छोड़ दिया. इस साल 16 छात्रों ने नामांकन लिया है. सेंटर ऑफ रिवर स्टडीज में इस साल दो पाठ्यक्रमों में पढ़ाई की शुरुआत हुई है. एक पाठ्यक्रम में दो छात्र आए हैं, दूसरे में शून्य.
वैसे तो इस महत्वाकांक्षी शैक्षणिक संस्थान की दुर्दशा पर न कोई छात्र बोलने के लिए तैयार मिलता है, न कोई शिक्षक. मगर सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक यहां की दुर्दशा की वजह यहां पूर्णकालिक शिक्षकों का अभाव है. इस सेंटर की शुरुआत के इतने साल बाद फरवरी, 2023 में यहां के लिए स्थाई पदों का सृजन किया गया है. इसके तहत स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन में 12 शिक्षक समेत 33, स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में छह शिक्षक समेत 17, रिवर स्टडीज में 7 शिक्षक समेत 23, भूगोल में 7 शिक्षक समेत 19 पदों का सृजन किया गया है. हालांकि इन पदों पर नियुक्ति कब होगी, यह जानकारी किसी के पास नहीं है. इन पाठ्यक्रमों के अलावा एस्ट्रोनॉमी, स्टेम सेल टेक्नोलॉजी और फिलॉसफी के पाठ्यक्रमों के लिए भी शिक्षकों के पद स्वीकृत किए गए हैं. ऐसे में इनकी पढ़ाई भी शुरू होने की उम्मीद है.

यह भी बताया गया कि इन पाठ्यक्रमों का प्रचार प्रसार ठीक से नहीं होता, इसलिए भी छात्र नामांकन के लिए यहां नहीं आते. एडमिशन के लिए पूरे सत्र में एक दिन अखबार में छोटा-सा विज्ञापन दिया जाता है. ऐसे में किसी को पता चलता है, किसी को नहीं. आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी में लंबे समय से पूर्णकालिक कुलपति का ना होना भी एक बड़ी वजह बताई जाती है. कहा जाता है कि जिन्हें यहां कुलपति का प्रभार मिलता है, उनके पास कई और जिम्मेदारियां होती हैं. वे यहां कम आते हैं और फैसले अटके रहते हैं.
इस महत्वाकांक्षी सेंटर फॉर एक्सीलेंस के वर्तमान हाल पर आधिकारिक बात करने के लिए सिर्फ यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार उपलब्ध होते हैं. रजिस्ट्रार डॉ राजीव रंजन कहते हैं, "नए पाठ्यक्रमों के साथ ऐसा होता है, उसे पॉपुलर होने में थोड़ा वक्त लगता है. हमारे यहां शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी चल रही है. उम्मीद है कि अगले साल तक शिक्षक यहां होंगे. इसके बाद छात्रों का आकर्षण और झुकाव भी इस तरफ होगा."
पाटलीपुत्र स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शुरु न होने के मसले पर वे कहते हैं, "उस सेंटर के निदेशक ने कहा था कि जब तक हमारे पास फैकल्टी नहीं होगी तब तक हम कोर्स शुरू नहीं करेंगे. इसलिए वहां पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई है. अगले साल जब हमारे पास फैकल्टी होगी, तब हमलोग उसे भी शुरू करेंगे. जल्द हमारे यहां पूर्णकालिक कुलपति आ जाएंगे, फिर सारी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी."