
नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद 30 जनवरी को कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार के पूर्णिया में थे. सबको ऐसा लग रहा था कि वे अब बिहार के मुख्यमंत्री पर करारा हमला बोलेंगे. मगर उन्होंने अपने संबोधन में नीतीश कुमार के बारे में जो कहा, वह एक चुटकुला था.
राहुल गांधी ने कहा, "आपके चीफ मिनिस्टर गवर्नर के यहां शपथ लेने के लिए गए थे. बड़ी धूमधाम थी, वहां बीजेपी के नेता बैठे थे. गवर्नर साब बैठे थे, सब एमएलए बैठे. वे शपथ लेते हैं, चीफ मिनिस्टर पद की, उनके मंत्री भी शपथ लेते हैं. फिर नीतीश जी निकल जाते हैं."
कांग्रेस नेता चुटकुला आगे बढ़ाते हैं कि नीतीश को गाड़ी में पता लगता है, वे अपना शॉल गवर्नर के घर छोड़ आए. ड्राइवर से वे कहते हैं, वापस चलो. शॉल उठाना है. नीतीश जी गवर्नर के पास जाते हैं, दरवाजा खोलते हैं. गवर्नर कहते हैं, भाई, इतनी जल्दी वापस आ गए? तो यह हालत है बिहार की.थोड़ा सा दबाव पड़ता है और यू-टर्न ले लेते हैं.

नीतीश कुमार के ताजा पाला बदल के बाद उनके बारे में कहा गया यह इकलौता चुटकुला नहीं है. सोशल मीडिया पर उनके बारे में चुटकुलों और मीम की बाढ़ आ गई है. कोई उन्हें 'यू-टर्न कुमार' कह रहा है, तो कोई उनकी तुलना रंग बदलने वाले गिरगिट से कर रहा है. किसी ने बेवफाई का नाम ही नीतीश कुमार रख दिया है. उनके पलटने पर भोजपुरी गीत भी बन गए.

लालू यादव की पुत्री रोहिणी यादव ने ऐसे ही एक चुटकुले का पोस्टर शेयर किया, जिसमें लिखा था- बिहार का चोखा और पलटूराम का धोखा, राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है. उन्होंने लालू यादव का वह पुराना ट्वीट भी शेयर किया, जिसमें उन्होंने लिखा था, "नीतीश सांप है. जैसे सांप केंचुल छोड़ता है वैसे ही नीतीश भी केंचुल छोड़ता है और हर दो साल में नया चमड़ा धारण कर लेता है." दिलचस्प है कि ये वही रोहिणी हैं, जिनके विवादित ट्वीट 24 जनवरी को दोनों दलों के बीच दरार की तात्कालिक वजह बने थे.

हालांकि नीतीश कुमार का पाला बदलने का इतिहास नया नहीं है. 2013 में जब उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा था, तब से वे दो बार राजद के पास जा चुके हैं और दो बार भाजपा के साथ आ चुके हैं. हर बार उन्हें 'पलटू राम' और गिरगिट कहा गया. मगर पहले इन चुटकुलों के साथ-साथ नउके फैसलों को न्यायसंगत भी ठहराया जाता था. 2017 में जब उन्होंने राजद का साथ छोड़ा तो तेजस्वी पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी.
2022 में जब वे भाजपा से अलग हुए तो देश के प्रगतिशील तबके ने उनका यह कहते हुए स्वागत किया कि वे मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर एक गठजोड़ तैयार करेंगे. लेकिन इस बार के पाला बदल में उनका कोई स्वागत नहीं कर रहा. उनके अपने कार्यकर्ताओं में भी वह उत्साह नहीं है, जैसा उत्साह पहले हुआ करता था. 2022 में जब वे भाजपा से अलग हुए तो उनके स्वागत में कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया था, "देश का पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो". मगर इस बार इस्तीफा और शपथ ग्रहण के बाद भी कार्यकर्ता सुस्त ही रहे.

लंबे समय से बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "नीतीश ने बार-बार पाला बदला, मगर यह पहला ऐसा मौका था, जब उनके पास पाला बदलने के लिए कोई तार्किक बहाना नहीं था. देश नीतीश को लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान के प्रति समर्पित नेता मानता था, लेकिन लोगों को पहली बार ऐसा लगा कि उनकी प्रतिबद्धता सिर्फ अपने प्रति है. सत्ता के प्रति है. उनको सत्ता और ताकत किसी भी कीमत पर चाहिए." तिवारी के मुताबिक वे इस बार बुरी तरह एक्सपोज हुए हैं और इसलिए लोग उनकी तारीफ कम कर रहे, चुटकुले अधिक बना रहे.
राजेंद्र तिवारी की यह टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी उनकी छवि मानी जाती है. बेहतर काम, लोकतंत्र और संविधान के प्रति उनकी निष्ठा की वजह से उन्हें इसी बिहार की जनता ने 'सुशासन बाबू' का नाम दिया था. अपनी छवि की वजह से ही वे एनडीए और महागठबंधन दोनों धड़ों के लिए स्वीकार्य रहे. यह कहा जाता रहा कि बिहार में नीतीश जैसा नेता किसी दल के पास नहीं.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी सीटों के मामले में राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद भाजपा ने मुख्यमंत्री पद नीतीश को ही सौंपा और बाद में इस परंपरा का निर्वाह राजद ने भी अगस्त, 2022 में किया जब नीतीश महागठबंधन के साथ आए. इससे पहले 2015 के चुनाव में भी राजद को जदयू से अधिक सीटें मिली थीं, मगर सीएम नीतीश कुमार ही रहे. अब पॉलिटिकल कैंपेन चलाने वाले मानते हैं कि इस छवि का नीतीश कुमार ने बड़ा नुकसान कर लिया है.
राष्ट्रीय स्तर पर कई पॉलिटिकल कैंपेन के अगुआ रहे राजनारायण झा कहते हैं, "उन्होंने एक तरह से अपनी छवि का कबाड़ा कर लिया है. उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं बची. वोटर ने उन्हें वोट एनडीए सरकार के लिए दिया था. वे पहले महागठबंधन के पास गए, फिर वापस एनडीए के पास लौट आए. ऐसे में वोटर ठगा हुआ महसूस कर रहा है. वह समझ नहीं पा रहा कि इस तरह की राजनीतिक अवसरवादिता पर कैसे रिएक्ट करे. ऐसे में वह चुटकुले और मीम गढ़ रहा है. यह ठीक बात है कि जितनी दफा नीतीश पलटते हैं, उन्हें अपने साथ लाने वाली पार्टियां भी पलटती हैं. मगर लोग तो नीतीश को ही अवसरवादी मान रहे हैं. नीतीश कुमार को अभी लगता होगा कि इससे उनका काम बन रहा है, मगर इस छवि के साथ वे चुनाव में कैसे उतरेंगे यह बड़ा सवाल है."