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बिहार उपचुनाव : लालू के भरोसे इंडिया गठबंधन, कैसा रहेगा जनसुराज का पहला प्रदर्शन?

नवंबर की 13 तारीख को चार सीटों पर हो रहे बिहार विधानसभा उपचुनाव में इंडिया गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर है और प्रशांत किशोर के दो साल की मेहनत का भी पहला नतीजा सामने आने वाला है

राजद सुप्रीमो लालू यादव के साथ बेलागंज सीट से पार्टी के उम्मीदवार विश्वनाथ प्रसाद
राजद सुप्रीमो लालू यादव के साथ बेलागंज सीट से पार्टी के उम्मीदवार विश्वनाथ प्रसाद
अपडेटेड 12 नवंबर , 2024

वैसे तो यह महज उपचुनाव है, मगर इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को बीच चुनाव में सीवान के मरहूम पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के परिवार से दोस्ती करनी पड़ी और राजद सुप्रीमो लालू यादव को बीमारी की हालत में भी प्रचार करने के लिए बेलागंज जाना पड़ा.

बिहार में हो रहे इस उपचुनाव में पहली दफा चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर घूम-घूमकर अपनी नई नवेली पार्टी जन सुराज के लिए प्रचार कर रहे हैं और राजद नेता सुधाकर सिंह के खिलाफ नोटिस पर नोटिस भेजे जा रहे हैं. 13 नवंबर को चार सीटों पर हो रहे बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य रूप से इंडिया गठबंधन की साख दांव पर लगी है.

इसकी वजह यह है कि इनमें से तीन सीट रामगढ़, तरारी और बेलागंज पर इंडिया गठबंधन का तो कब्जा था ही, चौथी सीट इमामगंज में भी 2024 लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को बढ़त हासिल हुई थी. हालांकि उस पर हम (हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा) पार्टी का कब्जा था और वहां से वर्तमान केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी विधायक थे, जिनके इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई थी. मगर इन चार सीटों में इस बार इंडिया गठबंधन को कितनी सीटें आ पाएंगी, कहना मुश्किल लग रहा है.

आइये सीटों के इस गणित को सीट दर सीट समझते हैं.

रामगढ़ विधानसभा सीट

यह सीट राजद के सुधाकर सिंह द्वारा इस्तीफा दिये जाने के बाद खाली हुई है. सुधाकर जो राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बड़े बेटे हैं, अब बक्सर के सांसद हो गये हैं. पार्टी ने इस बार उनके छोटे भाई अजीत सिंह को प्रत्याशी बनाया है. मगर इस बार विरोधी अजीत सिंह पर परिवारवाद और वंशवाद के आरोप को लेकर हमलावर हैं.

कभी परिवार के बदले पार्टी कार्यकर्ता को तरजीह देने वाले जगदानंद सिंह के तीनों बेटे अब राजद की तरफ से राजनीति कर रहे हैं और टिकट पा चुके हैं. मगर वहां सवाल सिर्फ परिवारवाद का नहीं है, इस चुनाव में उनकी चौतरफा घेराबंदी भी हो गई है. बीजेपी ने जहां उनके स्वजातीय और पूर्व विधायक अशोक सिंह को टिकट दिया है, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट से उनके पूर्व करीबी अंबिका यादव के भतीजे पिंटू यादव को टिकट दिया है.

रामगढ़ में जगदानंद सिंह की परंपरागत सीट दांव पर, अजीत चौतरफा हमले में घिरे
रामगढ़ में जगदानंद सिंह की परंपरागत सीट दांव पर, अजीत चौतरफा हमले में घिरे

अंबिका यादव रामगढ़ से विधायक रह चुके हैं. उनकी राजद के परंपरागत वोटर यादवों पर पकड़ है, वहीं जनसुराज ने सुशील कुमार कुशवाहा को टिकट दिया है. कुशवाहा जाति 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद के करीब आई थी. ऐसे में अजीत सिंह न अपनी जाति के वोटरों को एकजुट रख पा रहे हैं, न पार्टी के परंपरागत वोटरों को. उनके प्रचार में खुद उनके पिता नहीं पहुंच पा रहे. मोर्चा बड़े भाई सुधाकर सिंह को अकेले संभालना पड़ रहा है. ऐसे में राजद अपनी इस परंपरागत सीट को बचा पायेगी या नहीं कहना मुश्किल है.

तरारी विधानसभा सीट

तरारी विधानसभा सीट भोजपुर से सांसद चुने गये भाकपा माले के सुदामा प्रसाद के इस्तीफे के बाद खाली हुई है. वहां से माले ने राजू यादव को टिकट दिया है. बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) ने वहां से बाहुबली विधायक सुनील पांडे के विशाल प्रशांत को टिकट दिया है. भोजपुर में 2024 लोकसभा में जीत की वजह इंडिया गठबंधन के वैश्य और कुशवाहा गठजोड़ को माना जा रहा था. इसके साथ माले का अपना कैडर वोट था ही.

इस बार राजू यादव की जीत इस बात पर निर्भर है कि वैश्य और कुशवाहा एकजुट होकर यादव जाति के उम्मीदवार को वोट देते हैं या नहीं. क्योंकि परंपरागत रूप से ये बीजेपी के वोटर माने जाते हैं. दूसरी तरफ सुनील पांडे की छवि भले ही बाहुबली की है, मगर इस इलाके में उनके नाम पर वोट पड़ते हैं.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले सुनील पांडेय को 63 हजार वोट मिले थे, वे दूसरे स्थान पर थे. सुदामा प्रसाद सिर्फ 11 हजार वोट से ही जीत पाये थे, जबकि बीजेपी के उम्मीदवार को 13 हजार से अधिक वोट मिले थे. इस बार सुनील पांडे के पुत्र विशाल प्रशांत बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार हैं, ऐसे में उनके जीत की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. हालांकि जनसुराज पार्टी की उम्मीदवार किरण कुमारी के बारे में कहा जा रहा है कि वह विशाल प्रशांत को नुकसान पहुंचा सकती है.

बेलागंज विधानसभा सीट

बेलागंज वह तीसरी सीट है जो इंडिया गठबंधन की रही है. वहां से राजद के सुरेंद्र यादव ने इस्तीफा दिया था और जहानाबाद से सांसद चुने गये थे. इस बार वहां से राजद ने सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ प्रसाद को टिकट दिया है. वहीं, जदयू ने उनके खिलाफ यादव जाति की ही मनोरमा देवी को टिकट दे दिया है. जनसुराज ने वहां से मोहम्मद अमजद को उतारा है.

वहां राजद को अपने जमे जमाये MY समीकरण के टूटने का खतरा लग रहा है. क्योंकि मनोरमा देवी जहां एनडीए के पारंपरिक वोटरों समेत यादव जाति के भी कुछ वोटरों का भी समर्थन पाती नजर आ रही है, वहां जनसुराज के अमजद की निगाह मुस्लिम वोटरों पर है.

यह सीट 1990 से ही कमोबेश राजद के कब्जे में रही है. सुरेंद्र यादव उस सीट से आठ बार विधायक चुने गये हैं. ऐसे में अगर राजद वह सीट गंवाती है तो यह उसका सबसे बड़ा नुकसान होगा. इसलिए राजद सुप्रीमो लालू यादव खुद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा के साथ वहां चुनाव प्रचार करने पहुंच गये हैं.

पर जानकारों का कहना है कि अगर बेलागंज में 35 हजार के करीब सवर्ण वोटर मनोरमा देवी के पक्ष में एकजुट हो गये तो वहां से वे चुनाव जीत सकती हैं. इस तरह इंडिया गठबंधन की इन तीन सीटों पर कहीं स्थिति बहुत मजबूत नजर नहीं आ रही, खासकर रामगढ़ और बेलागंज की सीट पर.

ससुर जीतनराम मांझी, पति संतोष कुमार सुमन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ दीपा मांझी
ससुर जीतनराम मांझी, पति संतोष कुमार सुमन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ दीपा मांझी

इमामगंज विधानसभा सीट

यह सीट हम पार्टी के नेता जीतनराम मांझी के इस्तीफे के बाद खाली हुई है. इस बार उनकी बहू दीपा मांझी वहां से चुनाव लड़ रही हैं. एनडीए की तरफ से कहा जा रहा है कि अगर दीपा वहां से जीत जाती हैं तो इमामगंज को दोहरा लाभ होगा, क्योंकि उसके पति संतोष सुमन बिहार सरकार के मंत्री हैं, तो ससुर जीतनराम मांझी केंद्र सरकार के. राजद ने वहां से रौशन मांझी को उतारा है, उनका स्थानीय असर है, वे पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें स्थानीय सांसद अभय कुशवाहा और राजद नेता उदय नारायण चौधरी का भरपूर साथ मिल रहा है.

जनसुराज ने वहां से स्थानीय चर्चित ग्रामीण चिकित्सक जीतेंद्र कुमार को उतारा है, जो पासवान जाति के हैं और मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं. उन्हें भी उनकी व्यक्तिगत छवि के हिसाब से ठीकठाक वोट मिल रहे हैं.

इन चुनावों के बारे में बात करने पर राजनीतिक टिप्पणीकार अरुण अशेष कहते हैं, "निश्चित तौर पर चारो सीटें इंडिया गठबंधन की बढ़त वाली हैं और इन पर अपना दबदबा महागठबंधन तभी बरकरार रख सकता है, जब वह पुराने समीकरण मुस्लिम यादव और नये समीकरण वैश्य-कुशवाहा को साधे रहे. हालांकि अभी यह मुश्किल लग रहा है."

वे आगे कहते हैं, "जहां तक नई पार्टी जनसुराज का सवाल है, यह उसका पहला चुनाव है. वह दोधारी तलवार की तरह दिख रहा है. रामगढ़ और बेलागंज में वह इंडिया गठबंधन को तो तरारी और इमामगंज में एनडीए को नुकसान पहुंचाता नजर आ रहा है. मगर उसे इस बार कोई सीट मिल जायेगी ऐसा लगता नहीं है."

अशेष बताते हैं कि "एक और बात महत्वपूर्ण है. इस चुनाव में तेजस्वी थोड़े निस्तेज नजर आ रहे हैं और फिर से पार्टी को लालू का सहारा लेना पड़ रहा है. यह बात राजद के लिए निराशा भरी हो सकती है."

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