बिहार की उमस भरी जुलाई की गर्मी में, आम लोग अब बिना बिजली बिल की चिंता किए अपने पंखे, फ्रिज और एसी चला सकते हैं. इसकी वजह है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह ऐलान, जिसमें उन्होंने राज्य के 1.87 करोड़ घरों के लिए हर महीने 125 यूनिट तक बिजली माफ करने की घोषणा की है.
नीतीश कुमार की सत्ताधारी पार्टी JDU को उम्मीद है कि इस ऐलान को उसे चुनाव में फायदा होगा. पार्टी को लगता है कि लोग फ्री बिजली की घोषणा से खुश होकर नीतीश कुमार और उनके गठबंधन को वोट करेंगे.
दरअसल, बिहार में इस वक्त शायद ही कोई कल्याणकारी योजना बची है, जिसे राज्य सरकार ने लागू न किया हो. इन योजनाओं की घोषणा करके नीतीश कुमार एक बार फिर से खुद को बिहार की राजनीति के एकलौते सबसे बेहतर नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
चालू वित्त वर्ष में बिहार सरकार ने बिजली सब्सिडी पर 19,792 करोड़ रुपए खर्च करने का फैसला किया है. इसके जरिए हर परिवार जो प्रतिमाह 125 यूनिट या इससे कम बिजली इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अब एक भी रुपया बिल नहीं देना होगा.
RJD नेता तेजस्वी यादव ने भले ही विपक्षी महागठबंधन के सत्ता में आने पर 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया हो, लेकिन नीतीश ने चुनाव से पहले घोषणा कर एक तरह से तेजस्वी के वादे को कमजोर कर दिया है.
नीतीश सरकार के मुफ्त बिजली के ऐलान को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. ऐसे में अगस्त से अब बिजली बिलों में इसका असर दिखाई देगा. इस तरह नीतीश ने अपने विरोधियों की लोकलुभावन नीतियों को तुरंत लागू कर सरकारी नियम बना दिया. इस तरह उन्होंने लोगों से वादे करने के बजाय उन्हें तत्काल राहत दी है.
विधानसभा चुनाव में बमुश्किल कुछ महीने बचे हैं, लेकिन नीतीश ने विपक्ष के प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं के वादे को लागू कर, उसे मुद्दाविहीन करने की कोशिश की है.
बुजुर्गों के पेंशन को बढ़ाया जाना हो या फिर राज्य की महिलाओं के लिए सरकारी नौकरी में कोटा बढ़ाना. इन सभी फैसलों से यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि बिहार में सपने दिखाने वालों की नहीं, बल्कि काम करने वालों की जरूरत है.
केवल राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरी में आरक्षण
8 जुलाई को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, बिहार मंत्रिमंडल ने यह फैसला लिया कि सरकारी नौकरी में महिलाओं के लिए रिजर्व 35 फीसद कोटा अब केवल राज्य की महिलाओं को ही मिलेगा.
सरकार ने पहली बार ऐसा फैसला लिया है, जिससे राज्य के बाहर की महिलाओं के लिए आरक्षण खत्म कर दिए गए. भले ही यह सामान्य प्रशासनिक बदलाव लग सकता है, लेकिन असल में यह एक सुनियोजित चुनावी रणनीति का हिस्सा है.
सरकार का यह फैसला राजनीतिक रूप से यह उस तर्क को मजबूत करता है, जिसके मुताबिक अगर राज्य में सरकार चुनने के लिए सिर्फ बिहारी महिलाएं वोट दे सकती हैं, तो नौकरी में फायदा भी सिर्फ बिहारी महिलाओं को ही मिलेगा. मतलब साफ है कि आगामी चुनाव में बिहार की महिलाएं अहम भूमिका निभाएंगी, जो कुछ समय पहले तक सक्रिय वोटर नहीं मानी जाती थीं.
बुजुर्गों की पेंशन में इजाफा
जून 2025 में नीतीश कैबिनेट ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि को मंजूरी दी, जिसके तहत विधवाओं, बुजुर्ग नागरिकों और विकलांगों के लिए मासिक पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये कर दी गई. इस कदम से 1.1 करोड़ लोगों को तुरंत लाभ हुआ.
11 जुलाई को नीतीश ने एक हस्तांतरण समारोह की अध्यक्षता की, जहां 1,227.27 करोड़ रुपये की पेंशन ऑनलाइन खाते में भेजी गई. तेजस्वी ने भी इसी तरह की बढ़ोतरी का वादा किया था, लेकिन नीतीश ने उसे चुनाव से पहले ही लागू कर दिया. भले ही देखने में यह एक सामान्य फैसला लगता हो, लेकिन इसके जरिए सरकार ने विपक्ष पर बढ़त बनाने की कोशिश की है.
नकलची या सक्षम सरकार?
RJD के नेताओं ने नीतीश के ताजा कदमों को "नकल की राजनीति" कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई है. RJD नेताओं का कहना है कि नीतीश सरकार की हालिया घोषणाएं तेजस्वी के विजन को उधार लेने जैसा है.
हालांकि, यह भी सच्चाई है कि एक ओर तेजस्वी के वादे जहां घोषणापत्रों में ही सिमटे हुए हैं, वहीं नीतीश सरकार ने घोषणा के तुरंत बाद बजट की व्यवस्था कर आम जनता को लाभ पहुंचाए हैं.
नीतीश कुमार की असली उपलब्धि यह है कि उन्होंने घोषणा करने के तुरंत बाद इन्हें लागू कर दिया. पेंशन में बढ़ोतरी की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद बढ़ी हुई पेंशन आम लोगों के खाते में आ गई.
बिहार की महिलाओं के लिए सरकारी नौकरी में 35 फीसद कोटे में बदलाव को कैबिनेट में प्रस्ताव पास करने से लेकर संशोधित भर्ती नियमों तक में सहजता से लागू किया गया.
बिजली सब्सिडी को भी तुरंत लागू किया गया है. इसके अलावा बिहार सरकार ने छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की योजना भी शुरू की है. इस योजना के तहत BPL (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों को पूरी तरह से फ्री और अन्य लोगों को आंशिक रूप से सौर ऊर्जा लगाने में सरकार मदद करेगी.
इन योजनाओं को लेकर चुनावी गणित क्या है?
बिहार में चुनावी सफलता महिला मतदाताओं पर निर्भर करती है, जो अब लगातार अपने पुरुष समकक्षों से ज्यादा वोट दे रही हैं. 1951 से 2005 तक, हर विधानसभा चुनाव में पुरुषों का मतदान फीसद महिलाओं के मतदान फीसद से ज्यादा रहा.
2010 में यह स्थिति बदल गई. इस बार 54.49 फीसद महिलाओं ने मतदान किया, जबकि पुरुषों ने 51.12 फीसद मतदान किया. 2015 में महिलाओं ने फिर बढ़त हासिल की. इस बार 60.54 फीसद महिलाओं ने वोट किए जबकि पुरुषों ने 53.30 फीसद वोट किए.
2020 के चुनावों में भी कुछ इसी तरह का रुझान रहा. 59.68 फीसद महिलाओं ने मतदान किया, जबकि पुरुषों ने 54.45 फीसद. 2024 के लोकसभा चुनावों में भी यह अंतर बरकरार रहा और इस चुनाव में 59.45 फीसद महिलाओं ने वोट किए जबकि पुरुषों ने महज 53 फीसद वोट किए.
ये आंकड़े एक बड़े बदलाव का संकेत देते हैं. बिहार की महिलाएं अब अपने पति या पिता के कहने पर मतदान केंद्र नहीं जाती हैं. वे जल्दी बूथ पर आती हैं और स्वतंत्र रूप से मतदान करती हैं.
शायद हवा का रुख भांपकर विपक्ष अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. कांग्रेस ने हेमंत सोरेन की झारखंड नीति का अनुकरण करते हुए, "मां-बहन मान योजना" का वादा किया है, जिसके तहत कमजोर महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये दिए जाएंगे. RJD ने इस वादे का समर्थन किया है.
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने अपनी ओर से कम से कम 40 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का वादा किया है. यह दिखाता है कि बिहार में राजनीतिक दल अब बयानबाजी से ज्यादा महिलाओं के प्रतिनिधित्व की परवाह करते हैं.
रणनीतिकार की बढ़त
स्थानीय महिलाओं के लिए नौकरियों में आरक्षण, बुजुर्गों को पेंशन व मुफ्त बिजली देकर, नीतीश सिर्फ आमलोगों को फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं. एक तरह से वे यह सबकुछ करके बिहार का राजनीतिक नक्शा ही बदल रहे हैं. महिलाओं के कल्याण को लक्ष्य बनाकर, वे न सिर्फ पिछले चुनावों को ध्यान में रख उनकी वफादारी का इनाम दे रहे हैं, बल्कि भविष्य में समर्थन भी पक्का कर रहे हैं.
मतलब साफ है कि आगामी बिहार चुनाव में घोषणाओं के बजाय उन घोषणाओं को लागू करने की इच्छाशक्ति ही जनादेश की दिशा तय कर सकती है.