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उत्तर प्रदेश : दलित दूल्हों की घुड़चढ़ी रस्म का विरोध क्यों बढ़ रहा है?

उत्तर प्रदेश में बीते कुछ महीनों के दौरान दलित समाज के शादी समारोह में घुड़चढ़ी की रस्म का विरोध बढ़ा, विशेषज्ञ समाज और राजनीति में आ रहे कई तरह के बदलावों को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर (AI फोटो - नीलिमा सचान)
प्रतीकात्मक तस्वीर (AI फोटो - नीलिमा सचान)
अपडेटेड 22 मई , 2025

मथुरा से करीब 60 किलोमीटर दूर नौहझील थाना क्षेत्र के गांव भूरेका निवासी मुनेश देवी जाटव की बेटी की शादी में 20 मई की रात दबंगों ने रंग में भंग डाल दिया. मुनेश देवी जाटव की बेटी की बारात अलीगढ़ के चंडौस थाना क्षेत्र के गांव नगला पदम से आई थी. 

रात नौ बजे के करीब दूल्हे के बग्घी पर चढ़ने के साथ बारात आगे बढ़ी और डीजे पर बरातियों ने नाचना शुरू किया. आरोप है कि इसी बीच गांव के रहने वाले कुछ दबंग लोग पहुंचे और डीजे पर नाचने लगे. बारातियों ने इसका विरोध किया, लेकिन वे नहीं माने. 

कुछ ही देर में दबंगों ने दूल्हे को बग्घी से उतार दिया और जातिसूचक गालियां देते हुए मारपीट करने लगे. जिससे अफरातफरी मच गई. फिर से बग्घी पर चढ़ने पर गोली मार देने की धमकी देते हुए दबंग मौके से भाग निकले. दुलहन पक्ष की सूचना पर सीओ मांट गुंजन सिंह पुलिस बल के साथ पहुंचे, लेकिन आरोपित भाग गए. 

हमले की आशंका जताए जाने पर पुलिस बल की मौजूदगी में फेरे की रस्में पूरी कराई गई. अगले दिन 21 मई की सुबह आठ बजे पुलिस के लौटने के बाद घर पर विदाई की तैयारी चल रही थी. आरोप है कि इसी बीच बाइकों पर सवार होकर एक दर्जन से ज्यादा नकाबपोश पहुंचे और हमला बोल दिया. हमले में दुल्हन पक्ष के कई लोगों को गंभीर चोटें आईं. परिजन घायलों को लेकर नौहझील थाना पहुंचे और घटना की जानकारी पुलिस को दी. घायलों को अस्पताल भेजकर नौहझील थाना प्रभारी सोनू कुमार, पुलिस बल के साथ गांव पहुंचे, लेकिन हमलावरों का पता नहीं चला. कार्रवाई का भरोसा दिलाकर पुलिस ने विदाई की तैयारी शुरू करवाई. 

दोपहर करीब एक बजे बजे दुल्हन और बारात को पुलिस टीम अलीगढ़ बार्डर तक छोड़कर आई. इस प्रकरण में तीन नामजद समेत 25 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. फिलहाल हमलावर फरार है. मथुरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्लोक कुमार बताते हैं, “तेज आवाज में डीजे बजाने को लेकर विवाद हुआ था. पुलिस मौके पर पहुंची और डीजे को बंद करा दिया. सुबह दुल्हन के घर पर हमला करने वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर कार्रवाई की जा रही है.” 

मथुरा के नौहझील के गांव भूरेका में दलित जाति की बारात को रोकने, गाली-गलौज करने और दुल्हन पक्ष के साथ मारपीट करने का मामला नया नहीं है. इससे पहले 21 फरवरी को मथुरा के ही रिफाइनरी क्षेत्र के गांव करनावल में भी पुलिस की लापरवाही के कारण दलित जाति की दुल्हनों और बारातियों के साथ मारपीट हुई थी. बाद में मामले ने तूल पकड़ा तो पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर सभी 15 हमलावरों को गिरफ्तार किया था. 

दलित बेटियों की शादी में दबंगों के हमले की मामले ने राजनीतिक रूप से काफी तूल पकड़ा था. बाद में दलित बेटियों की शादी के लिए खास इंतजाम किए गए. 8 मार्च को दलित बेटियों के शादी समारोह में समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण और बाराबंकी से कांग्रेस सांसद तनुज पूनिया भी शामिल हुए. उन्होंने बतौर कन्यादान बेटियों को एक-एक लाख रुपए दिए थे. अहम बात यह है कि उस समय रिफाइनरी थाने के प्रभारी वहीं हैं जो इस वक्त इस समय नौहझील थाने के प्रभारी हैं. इससे स्थानीय लोग पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं. लोग बताते हैं कि 20 मई को नौहझील थाने के तहत हुई घटना में बड़ी लापरवाही यह रही कि पुलिस की मौजूदगी में दूल्हा दुल्हन के फेरे होने के बाद पुलिस वापस चली गई और इससे दबंगों को मौका मिल गया. 

यह महज कुछ ऐसे मामले नहीं जिसमें दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले लोगों के विवाह में सवर्ण जाति के दबंगों ने विघ्न डाला हो. 

बीते कुछ समय से ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक इन टकराव के पीछे दलितों के बीच सामाजिक समता के भाव का उभार, उनमें बढ़ रही राजनीतिक जागरूकता और सवर्ण तबके में इसको लेकर असहजता को जिम्मेदार मानते हैं. लखनऊ में बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर और यूपी की जातिगत संरचना पर शोध करने वाले सुशील पांडेय बताते हैं, “पहले दलित समाज के लोग विवाह के दौरान दूल्हे को घोड़े पर बिठाकर नहीं ले जाते थे. दलित समाज मानता था कि कि घुड़चढ़ी सवर्णों की रस्म है. लेकिन अब शैक्ष‍ि‍क, सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता बढ़ने पर दलितों के बीच समानता और आत्मसम्मान का भाव आया है. दलित अब किसी भी प्रकार के भेद नहीं मान रहे हैं. दलित दूल्हे भी घोड़ी पर सवार होने लगे हैं.” 

पांडेय के मुताबिक दलितों में हुए इस बदलाव को सवर्ण जातियों के कुछ लोग सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. उनके हिसाब से दूल्हे का घोड़ी पर सवार होना एक सवर्ण विशेषाधिकार है और इसे कोई और नहीं ले सकता. इसलिए वे इस बदलाव को रोकने की तमाम कोशिशें कर रहे हैं. हिंसा उनमें से एक तरीका है और इसके लिए वे गिरफ्तार होने और जेल जाने तक के लिए तैयार हैं. 

आधुनिकता और लोकतंत्र के बावजूद कुछ रूढ़वादी सवर्णों में यह चेतना नहीं आ रही है कि सभी नागरिक समान हैं. इसी का एक रूप वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में देखने को मिला था. वहां के रेहुआ लालगंज गांव के राजू और ब्रजेश सरोज ने जब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी तो गांव के सवर्णों ने उनके घर पर पत्थरबाजी की थी. यह तब हुआ था जबकि इन भाइयों के आईआईटी एंट्रेंस क्लियर करने का देश भर में स्वागत हुआ था और तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री ने इनकी हर तरह की फीस और खर्च माफ करने की घोषणा की थी. 

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि यूपी के पश्च‍िमी इलाके में दलित जातियों में राजनीतिक चेतना का विस्तार अपेक्षाकृत अधि‍क तेजी से हुआ है. इसीलिए ज्यादातर नए दलित नेता पश्च‍िमी यूपी से निकल कर सामने आ रहे हैं. आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद इसी बदलाव की मिसाल पेश कर रहे हैं. दलितों में दूसरी अगड़ी जातियों से बराबरी के चलते कई जगह टकराव की स्थ‍ितियां पैदा हो रही हैं. कड़ुवाहट भरी राजनीति ने इस खाई को और भी बढ़ाया है. 

पिछले कुछ दिनों में दलितों के शादी समारोहों में बवाल की बढ़ती घटनाओं को विपक्षी दल प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. समाजवादी पार्टी के अनुषांगिक संगठन सपा बाबा साहेब आंबेडकर वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती कहते हैं, “दलितों के वैवाहिक समारोहों में लगातार दबंग बवाल कर रहे हैं. पुलिस दलितों को सुरक्षा दिलाने में विफल साबित हो रही है. आंबेडकर वाहिनी ऐसे पीड़ित परिवारों की हर संभव मदद कर रही है.” हालांकि यूपी भाजपा के अनुसूचित मोर्चा के अध्यक्ष रामजी लाल कन्नौजिया स्वीकारते हैं कि कुछ लोग जो दलित समाज को आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहते वही ऐसी घटनाएं कर रहे हैं. कन्नौजिया बताते हैं, “मुख्यमंत्री योगी ने दलितों पर अत्याचार के सभी मामलों को गंभीरता से लेते हुए कड़ी से कड़ी कार्रवाई सुनिश्च‍ित की है. ऐसा करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.”

लगातार आधुनिक होते लोकतंत्र में सामाजिक गोलबंदी का आधार धर्म और जाति बने हुए हैं. संविधान सभा में बाबा साहेब आंबेडकर ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किया था. उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति का एक वोट और हर वोट का एक मूल्य तो है लेकिन हर व्यक्ति समान नहीं है. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि यह स्थिति बदलेगी. लेकिन ऐसी स्थिति के लिए अभी भी लंबा इंतजार है. 

पश्च‍िमी यूपी में निशाने पर दलित 

  • रामपुर जिले के शाहबाद कोतवाली क्षेत्र के रुस्तमपुर गांव निवासी दलित बिरादरी के अर्जुन की बेटी काजल की बारात 31 अप्रैल को धनोरा गोरी थाना सिरौली क्षेत्र से आई थी. रात करीब 11:30 बजे जब दूल्हा सूरज की बरात चढ़ रही थी, तब बाबा साहब आंबेडकर से जुड़े गीत बजाए जा रहे थे. इस पर गांव के अन्य समुदाय के चार-पांच युवकों ने आपत्ति जताई और कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणियां की, जिससे बारातियों में नाराजगी फैल गई. मना करने पर दबंग युवकों ने बारातियों पर हमला कर दिया. चारों तरफ अफरातफरी फैल गई. दूल्हा दुल्हन की जयमाल की रस्म भी संपन्न नहीं हो पायी. अगले दिन सुबह पुलिस की मौजूदगी में दिन निकलने के बाद दूल्हा-दुल्हन की जयमाल रस्म और विवाह संपन्न हुआ. पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा.
  • आगरा में छलेसर के गढ़ी रामी, नगला तल्फी गांव में 16 अप्रैल को दलित जाति के नाथौली की बेटी प्रियंका की बारात वृंदावन (मथुरा) से आई थी. रात करीब 11.30 बजे बारात छलेसर कस्बे से गुजर रही थी. मैरिज होम से कुछ दूरी पर बारात में तेज आवाज पर डीजे बजाने का कुछ सवर्ण जाति के युवकों ने विरोध किया जिसपर उनकी बारातियों से कहासुनी हो गई. आरोप है कि इसके बाद 20-25 दबंगों ने लाठी, डंडों से बारातियों को पीटना शुरू कर दिया. दुल्हन की मां का आरोप था कि दबंगों ने दूल्हे को घोड़ी से उतारकर पीटा. बाद में दूल्हे को पैदल ही मैरिज होम तक जाने को मजबूर किया. सूचना पर एत्मादपुर से पुलिस बल के पहुंचने पर बवाली भाग निकले. पुलिस ने रातभर मैरिज होम में रहकर विवाह की रस्मों को पूरा करवाया. इस घटना से पूरे इलाके में तनाव के हालात पैदा हो गई. पुलिस ने डेढ़ दर्जन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.
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