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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले के बीच मोहम्मद यूनुस के राजदूत से क्यों मिली ममता बनर्जी?

हिंदुओं पर हमले की इस घटना के बाद भारत-बांग्लादेश के संबंधों में सुधार की उम्मीद और धुंधली पड़ गई है

सीएम ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश के उच्चायुक्त मोहम्मद रियाज हमीदुल्ला
सीएम ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश के उच्चायुक्त मोहम्मद रियाज हमीदुल्ला
अपडेटेड 26 जून , 2025

जून की 23 तारीख को हावड़ा शहर के नबन्ना' प्रशासनिक भवन में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की भारत में बांग्लादेश के नवनियुक्त उच्चायुक्त मोहम्मद रियाज हमीदुल्ला से मुलाकात हुई.

सीएम ममता बनर्जी की ओर से दोस्ती का गर्मजोशी भरा हाथ बढ़ाने के ठीक एक दिन पहले उत्तरी बांग्लादेश से भारतीयों को परेशान करने वाली खबर आई. यहां हिंदुओं पर हमले की इस घटना ने एक बार फिर भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक आशावाद पर ग्रहण लगा दिया.

दरअसल, 22 जून को बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन स्थित लालमोनिरहाट सदर उपजिला में ईशनिंदा के आरोप के बाद एक बुजुर्ग हिंदू नाई और उसके बेटे पर भीड़ ने हमला कर दिया था.

69 वर्षीय पीड़ित नाई परेश चंद्र शील और 35 वर्षीय बिष्णु चंद्र शील बांग्लादेश के बालाटारी इलाके के निवासी हैं. कथित तौर पर उन्हें गोशाला बाजार में उनके सैलून से बाहर निकालकर पीटा गया. उनपर आरोप था कि उन्होंने इस्लाम के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.

इस मामले की शुरुआत बालाटारी गांव के रहने वाले 19 वर्षीय मुस्लिम युवक नजमुल इस्लाम के उस आरोप से हुई, जिसमें उसने दावा किया कि बाल कटवाने के दौरान पिता-पुत्र ने उसकी धार्मिक भावनाएं आहत करने वाली बात कही.

नजमुल के इस आरोप पर 17 वर्षीय दूसरे युवक सज्जाद ने कहा कि करीब एक महीने पहले नाई ने उसे भी धार्मिक भावनाएं आहत करने वाली बात कही थी. इस तरह के दावों के बाद सैलून के बाहर उग्र भीड़ जमा हो गई.

इस तरह कुछ लोगों ने नाई को सैलून से बाहर निकालकर पीटना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में देखा जा सकता है कि भीड़ परेश को बुरी तरह पीट रही है.

उसकी बनियान फाड़ दी गई, जबकि बीच-बचाव करने की कोशिश करने पर उसके बेटे पर भी भीड़ ने हमला कर दिया. पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर दोनों लोगों को बचाया और उन्हें हिरासत में ले लिया.

हालांकि, लालमोनिरहाट सदर पुलिस स्टेशन के बाहर जल्द ही बड़ी भीड़ जमा हो गई, जिसके कारण व्यवस्था बहाल करने के लिए सेना के जवानों को तैनात करना पड़ा. प्रभारी अधिकारी मोहम्मद नूरनबी ने इस घटना की पुष्टि की.

पुलिस अधिकारी का कहना है कि दोनों लोगों को धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में हिरासत में लिया गया है और एक केस शुरू किया गया है.

हालांकि, बिष्णु ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है. उसका कहना है कि "न तो मेरे पिता ने और न ही मैंने कुछ आपत्तिजनक कहा है. हमें समझ नहीं आ रहा कि हमारे खिलाफ ऐसे आरोप क्यों लगाए जा रहे हैं. मेरे पिता दशकों से यह दुकान चला रहे हैं."

एक बांग्लादेशी अखबार ने आरोपियों के बयान के हवाले से लिखा कि देश में भीड़ के न्याय को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. बिष्णु की पत्नी दीप्ति रानी रॉय ने बताया कि विवाद तब शुरू हुआ जब परेश ने नजमुल से उसके बाल कटवाने के बदले 10 रुपये मांगे. नजमुल ने कथित तौर पर पैसा देने से मना कर दिया.  

इस घटना का समय इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसके ठीक एक दिन बाद 23 जून को सीएम ममता बनर्जी ने कोलकाता के नबन्ना प्रशासनिक भवन में बांग्लादेश के उच्चायुक्त हमीदुल्लाह से मुलाकात की और पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के लोगों के बीच "पारंपरिक संबंधों को मजबूत करने की दृढ़ आशा" व्यक्त की.

इस मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने कहा, “बहुत गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण माहौल में मुलाकात हुई.” इस मुलाकात के दौरान सीएम ममता बनर्जी ने उच्चायुक्त से अनुरोध किया कि उनका अभिवादन बांग्लादेश सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस तक पहुंचाया जाए. ममता बनर्जी ने मुलाकात के दौरान इस बात की पुष्टि की कि दोनों बंगाल के लोगों के बीच सदियों पुराने भाषाई, सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंध आर्थिक या व्यावसायिक संबंधों से बढ़कर हैं.

इन सबके बीच लालमोनिरहाट की घटना निश्चित तौर पर दोनों देशों के साझा विरासत और आपसी समझ को मजबूत करने के बजाय कमजोर करती हैं. राजनयिक हलकों के सूत्रों ने निजी तौर पर स्वीकार किया कि ऐसी घटनाओं से दोनों देशों के बीच लोगों के बीच संबंधों को पुनर्जीवित करने के चल रहे प्रयासों को नुकसान पहुंचने का जोखिम है.

नई दिल्ली में बांग्लादेशी उच्चायोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर टिप्पणी की कि आधिकारिक चैनलों पर सद्भावना के प्रयास जारी रहते हैं. लेकिन, इस तरह की घटनाएं संवेदनशील समय पर गलत मैसेज देती हैं.

कूटनीतिक स्तर पर चल रही बातचीत से परे हिंसा ने बांग्लादेश के भीतर कानून और प्रशासन व्यवस्था की स्थिति पर बहस को फिर से हवा दे दी है. आलोचकों का तर्क है कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाला प्रशासन राजनीतिक रूप से अनिश्चित संक्रमण काल ​​में देश की देखरेख कर रहा है.

वर्तमान सरकार धार्मिक वजहों से भीड़ की कार्रवाइयों में हो रही वृद्धि को रोकने की कोशिश कर रही है. नाम न बताने की शर्त पर ढाका स्थित एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, "यही कारण है कि बांग्लादेश में जल्द से जल्द चुनाव होना आवश्यक है. ऐसा लगता है कि अंतरिम व्यवस्था में सांप्रदायिक झड़पों को प्रभावी ढंग से रोकने की क्षमता नहीं है."

कानूनी विशेषज्ञों और बांग्लादेश के सिविल सोसाइटी के सदस्यों ने भी अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए तथा भीड़ द्वारा की गई हिंसा की निंदा की जाए. भले ही आरोपी या आरोप लगाने वाले किसी भी धर्म से जुड़े हुए हों.  

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