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उत्तर प्रदेश : क्या बहराइच के गांवों में फिर लौट आए शि‍कारी भेड़िए?

सितंबर के दौरान दो दिन में दो बच्चियों की जान लेने वाली रहस्यमय घटनाओं ने बहराइच में भेड़ियों के आतंक की आशंका गहरी कर दी है

Bahraich
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 15 सितंबर , 2025

सितंबर की 9 तारीख. बहराइच के परागपुरवा गांव की वह शाम भी बाकी शामों जितनी ही साधारण थी. यहां के परिवार अपने-अपने आंगन और बरामदों में बैठकर खाना खा रहे थे. लेकिन रात के करीब आठ बजे अचानक सन्नाटा टूटा. 

चार साल की बच्ची पर एक अज्ञात जानवर ने हमला कर दिया और उसे उठा ले गया. घरवाले और गांव के लोग चीख-पुकार सुनकर दौड़े, मगर तब तक बच्ची गायब हो चुकी थी. रातभर की खोज के बाद उसका क्षत-विक्षत शव अगले दिन खेत में मिला.

यह सदमा अभी कम भी नहीं हुआ था कि दो दिन बाद, 11 सितंबर की सुबह साढ़े तीन बजे के करीब, पड़ोसी गांव सिपाहिया भोरवा में तीन साल की बच्ची भी ऐसे ही रहस्यमय हमले की शिकार हो गई. इस बार बच्ची अपनी मां के साथ बाहर सो रही थी. बिजली गुल थी और अंधेरे का फायदा उठाकर जानवर बच्ची को उठा ले गया. अगली सुबह उसका शव भी पास के खेत में मिला.

48 घंटों के भीतर दो मासूमों की दर्दनाक मौत ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी. महज तीन किलोमीटर की दूरी पर बसे इन दोनों गांवों की त्रासदी ने पिछले साल की भयावह यादें ताजा कर दी हैं, जब बहराइच के जंगलों में भेड़ियों के झुंड ने आठ लोगों की जान ले ली थी और 18 अन्य को घायल किया था. सवाल यह है कि क्या वही आतंक फिर लौट आया है?

जून से शुरू हुआ नया सिलसिला

ग्रामीण बताते हैं कि इन ताजा घटनाओं से पहले भी इलाके में भेड़ियों की सक्रियता देखी गई थी. बहराइच ज़िले के महसी उपखंड के गदामार कला गांव में 3 जून की तड़के एक जानवर ने दो साल के बच्चे को मार डाला, जिससे उस इलाके में फिर से डर का माहौल बन गया था, जहां पिछले साल भेड़ियों के दर्जनों हमले हुए थे. 

भेड़ियों के एक ऐसी हमले में एक बच्चे आयुष की मौत हो गई थी. तब उसकी मां खुशबू ने बताया था कि उसने भेड़िये को अपने बेटे को ले जाते देखा. उस वक्त उसने अधिकारियों के सामने बताया था, "2-3 जून की रात, जब हम अपने घर के बरामदे में लेटे थे, अचानक भेड़िए झपटे और मेरे बच्चे को ले गए. मैंने भेड़िये को देखा. हमने उसका पीछा करने की कोशिश की, लेकिन हम नाकाम रहे. सुबह आयुष का शव एक गन्ने के खेत में मिला." 

इस तरह जून 2025 में बहराइच के जरवल और फखरपुर ब्लॉक के गांवों में पालतू मवेशियों पर हमले होने लगे थे. शुरुआत में लोगों ने सोचा कि यह तेंदुए का काम है, क्योंकि खेतों में कई बकरियां और बछड़े मरे मिले. लेकिन जल्द ही शक गहराने लगा कि भेड़िये लौट आए हैं. 

जून के आखिर तक तीन गांवों से करीब दर्जनभर मवेशियों के मारे जाने की सूचना आई. वन विभाग ने उस वक्त गश्त बढ़ाई थी और कैमरा ट्रैप भी लगाए थे, लेकिन किसी जानवर की स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं आई. ग्रामीणों ने रात में भेड़ियों की आवाजें सुनने की बात कही थी. यही कारण है कि सितंबर की इन ताजा घटनाओं ने डर को और गहरा कर दिया है. ग्रामीणों को अब यकीन हो गया है कि जून से ही जिस शिकारी की आहट मिल रही थी, वही अब बच्चों तक पहुंच गया है.

डर के साये 25 गांव

दो बच्चियों की मौत ने सिर्फ परागपुरवा और सिपाहिया भोरवा ही नहीं, बल्कि आसपास के करीब 25 गांवों को डर के साए में धकेल दिया है. लोग रात होते ही बच्चों को घर के अंदर बंद कर देते हैं. खुले में सोना अब असंभव हो गया है. कई गांवों में ग्रामीणों ने मिलकर चौबीसों घंटे गश्त शुरू कर दी है. गांव के पूर्व प्रधान और 9 सितंबर को मारी गई बच्ची के चाचा सतगुरु प्रसाद बताते हैं, “हमारे सामने से बच्ची को ले गए. जिस तरह से यह हमला हुआ, बिल्कुल वैसा ही पिछले साल के भेड़ियों के हमलों में हुआ था. हमें पूरा यकीन है कि भेड़िये ही लौट आए हैं.” 

स्थानीय लोगों के बीच यह डर और गहरा है कि अगर जानवर जल्द पकड़ा नहीं गया, तो और मासूम शिकार हो सकते हैं. सितंबर 2024 में बहराइच के जंगलों से लगे गांवों में भेड़ियों का खौफ महीनों तक छाया रहा था. एक के बाद एक हमलों में आठ लोगों की मौत हुई थी, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे. 18 लोग घायल हुए थे. 

वन विभाग ने तब ‘ऑपरेशन भेड़िया’ शुरू किया था, जिसके दौरान छह भेड़ियों को पकड़कर पिंजरे में बंद किया गया. स्थानीय लोग कहते हैं कि भेड़ियों का झुंड पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था. उनके मुताबिक, कुछ भेड़िये जंगल में छिपे रह गए थे और अब फिर से आबादी में आकर हमला कर रहे हैं. गांवों में डर इतना गहरा है कि लोग अब हर तरह की अफवाहों पर यकीन करने लगे हैं. कोई कहता है कि यह तेंदुए का काम है, कोई कहता है कि भेड़ियों का नया झुंड आ गया है. कुछ तो यह भी दावा कर रहे हैं कि पिछले साल पकड़े गए भेड़ियों में असली शिकारी शामिल नहीं था. सतगुरु प्रसाद कहते हैं, “हम सरकार की कार्रवाई पर भरोसा करते हैं, लेकिन जब तक असली शिकारी पकड़ा नहीं जाता, तब तक डर तो बना ही रहेगा.”

वन विभाग का बचाव मोर्चा

बहराइच के प्रभागीय वन अधिकारी (DFO) राम सिंह यादव मानते हैं कि दोनों घटनाएं किसी जंगली जानवर की करतूत हैं. उनका कहना है, “पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही हम यह निश्चित कह पाएंगे कि किस जानवर ने हमला किया, लेकिन चोटों की प्रकृति साफ इशारा करती है कि यह जानवर का हमला है. इस इलाके में भेड़िये और तेंदुए दोनों मौजूद हैं.” 

वन विभाग ने घटनाओं के बाद तुरंत बड़ा ऑपरेशन शुरू किया है. इलाके को सेक्टर और ज़ोन में बांटकर सर्च अभियान चलाया जा रहा है. सात टीमें तैनात की गई हैं. तीन पिंजरे लगाए गए हैं. कैमरा ट्रैप और थर्मल ड्रोन की मदद ली जा रही है. इसके अलावा ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है. यादव बताते हैं, “हम लोगों से अपील कर रहे हैं कि बच्चे खुले में न सोएं. गांवों में गश्त बढ़ाई जा रही है. हमारी टीमें दिन-रात इलाके में निगरानी कर रही हैं.”

बिजली कटौती ने बढ़ाई चिंता

दूसरी बच्ची की मौत के समय गांव में बिजली गुल थी. अंधेरे के कारण कई परिवार खुले में सो रहे थे. ग्रामीणों का मानना है कि ये हालात शिकारी के लिए आसान शिकार का मौका बन गए. सिपाहिया भोरवा की मृतक बच्ची की मां रानी कहती हैं, “अगर बिजली होती, तो शायद ऐसा नहीं होता. अंधेरे का फायदा उठाकर जानवर घर तक घुस आया.” यह बात वन अधिकारियों को भी समझ आ रही है. विभाग अब बिजली विभाग से समन्वय कर लगातार बिजली सप्लाई की अपील कर रहा है, ताकि रात में गांव अंधेरे में न डूबे. 

पिछले साल भी जब बहराइच और आसपास के इलाकों में भेडि़ए का आतंक मचा था तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिजली की व्यवस्था सुचारू करने का आदेश दिया था. एक गांव के प्रधान कहते हैं, “एक-दो महीने तो बिजली आई लेकिन उसके बाद फिर वही हालात पैदा हो गए. 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद बिजली व्यवस्था में हुए सुधार की वजह से गांव में रात में बिजली मिलनी शुरू हुई थी. इस कारण से जंगली जानवर गांव का रुख नहीं कर रहे थे लेकिन अब बिजली व्यवस्था बदहाल होने से शाम होते ही गांवों में सन्नाटा हो जाता है, नतीजा जंगली जानवर गुपचुप गांव में आकर शिकार कर रहे हैं.”

सरकार और प्रशासन की चुनौती

प्रशासन के लिए ये घटनाएं नई चुनौती बन गई हैं. एक तरफ ग्रामीणों का डर और गुस्सा है, दूसरी तरफ वन विभाग की सीमित क्षमता. गांवों का फैला हुआ इलाका, घने जंगल और बार-बार बिजली कटौती निगरानी को और मुश्किल बना रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शिकारी किस दिशा से आता है और किस तरफ भाग जाता है, यह तुरंत पता नहीं चलता. कैमरा ट्रैप और ड्रोन की मदद से इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश हो रही है.

विशेषज्ञों का कहना है कि भेड़िये और तेंदुए कमजोर शिकार को निशाना बनाते हैं. बच्चों को उठाना उनके लिए आसान होता है. बहराइच की घटनाओं में यह पैटर्न साफ दिख रहा है. वहीं वन विभाग का दावा है कि वे पूरी ताकत से शिकारी को पकड़ने में जुटे हैं. लेकिन जब तक असली जानवर पकड़ में नहीं आता, तब तक बहराइच के ये 25 गांव भय के साए में जीते रहेंगे. 

भेड़ियों और इंसानों का यह टकराव कोई नया नहीं है, लेकिन बहराइच की घटनाएं एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती हैं कि जंगल और बस्तियों के बीच बढ़ती खाई को कैसे पाटा जाए. जब तक इसका हल नहीं निकलता, तब तक मासूम जिंदगियाँ खतरे में रहेंगी.

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