
असम इन दिनों 'कुरुक्षेत्र' का नया मैदान बना हुआ है. एक तरफ जहां 'हथगोला' लिए राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा खड़े हैं, तो दूसरी तरफ खुद को बचाते और पलटवार करने की कोशिश करते लोकसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर गौरव गोगोई. और असम की राजनीति को फॉलो करने वाले लोग जानते हैं कि इन दोनों के बीच चल रहा 'महाभारत' कोई नई बात नहीं है.
इन दोनों नेताओं के बीच ताजा विवाद 10 फरवरी को शुरू हुआ, जब असम में कुछ सोशल मीडिया हैंडल और कुछ स्थानीय मीडिया ने बिना पुष्टि के ये आरोप लगाए कि गोगोई की ब्रिटिश मूल की पत्नी एलिजाबेथ कोलबर्न के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों और ग्लोबल फाइनेंसर जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से संबंध हैं. इन आरोपों के बाद अटकलों, जवाबी हमलों और राजनीतिक बयानबाजी का दौर शुरू हो गया.

इस मामले ने और आग पकड़ी जब असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने गोगोई पर लगे आरोपों को जोर-शोर से उठाया. 12 फरवरी को उन्होंने एक सीरीज के तहत कई ट्वीट किए और अपने सार्वजनिक बयानों में भी इसकी बात की. सरमा के ट्वीट या फिर उनके बयानों की भाषा बहुत तल्ख थी. उन्होंने कांग्रेस नेता पर लगे आरोपों को और मजबूत करने, गहरे विदेशी हस्तक्षेप का संकेत देने और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति गोगोई की प्रतिबद्धता पर संदेह जताने की कोशिश की.
बहरहाल, सरमा के इस कदम को कई लोग उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी गोगोई को बदनाम करने के उद्देश्य से एक सोची-समझी राजनीतिक चाल के रूप में देख रहे हैं. गोगोई ने कुछ समय पहले ही सीएम सरमा की पत्नी रिनिकी भुयान शर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था.
गोगोई की पत्नी के खिलाफ जो अपुष्ट दावे किए जा रहे हैं और जिन्हें सोशल मीडिया पर जमकर प्रचारित किया जा रहा है, उनमें कहा गया है कि इस्लामाबाद में रहने के दौरान कोलबर्न ने एक एनजीओ के लिए काम किया था, और वह एनजीओ कथित तौर पर पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) से जुड़ा हुआ था. इन दावों ने कोलबर्न की भूमिका, जुड़ाव और उनके पति गौरव गोगोई के राजनीतिक फैसलों पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएं पैदा की हैं.
उन अपुष्ट रिपोर्टों में ये भी कहा गया है कि वहां कोलबर्न के पीएचडी सुपरवाइजर अली तौकीर शेख थे. जो न केवल पाकिस्तान के योजना आयोग के सलाहकार थे, बल्कि एक समय में उनका उन एनजीओ के साथ भी जुड़ाव था, जिनकी भारत विरोधी गतिविधियों के लिए जांच की गई थी.
कोलबर्न ने कथित तौर पर एनजीओ से जुड़े काम के लिए 2010 से 2015 के बीच कई बार पाकिस्तान का दौरा किया. वे वहां जिस संगठन का हिस्सा थीं, उसका कथित तौर पर आईएसआई समर्थित पहलों के साथ कुछ 'ऑपरेशनल ओवरलैप' (एक ही प्रक्रिया के तहत एक समय में दो या अधिक कामों को अंजाम देना) था. ये पहलें कथित तौर पर भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने के लिए डिजाइन की गई थीं.
कोलबर्न के खिलाफ इन दावों से अब कुछ सवाल उठे हैं. मसलन, वहां उनका विदेशी संस्थाओं के साथ जुड़ाव किस हद तक रहा, और क्या गोगोई के राजनीतिक कामों पर उनका कोई असर रहा है? हालांकि, इनमें से किसी भी दावे की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की गई है.
इधर, सीएम सरमा ने इस मुद्दे को गोगोई को घेरने के मौके के रूप में देखा. उन्होंने 12 फरवरी को सबसे पहले एक बहुत ही विचारोत्तेजक ट्वीट पोस्ट किया. इसमें उन्होंने भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के अधिकारियों की विदेशी पत्नियों को नियंत्रित करने वाले कानूनों पर प्रकाश डाला.
सरमा ने बताया कि आईएफएस अधिकारियों को किसी भी विदेशी पुरुष/महिला से शादी करने से पहले सरकार की पूर्वानुमति लेनी जरूरी है. इसके अलावा, नियम ये भी कहता है कि उन अधिकारियों के जीवनसाथी को छह महीने के भीतर भारतीय नागरिकता हासिल करनी चाहिए. फिर सरमा ने इस नियम की तुलना सांसदों से की, जिन पर इस तरह के प्रतिबंध नहीं हैं. इस तरह उन्होंने उस सवाल की ओर इशारा करना चाहा कि आखिर क्यों एक सांसद की विदेशी पत्नी ने दस साल से भी ज्यादा समय तक अपनी मूल नागरिकता बरकरार रखी?
सीएम सरमा की उस सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था, "सिंगापुर में एक IFS अधिकारी के साथ बातचीत के दौरान मुझे पता चला कि भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी भारत सरकार की पूर्वानुमति के बिना किसी विदेशी नागरिक से शादी नहीं कर सकते. इसके अलावा, जब अनुमति दी भी जाती है तो यह शर्त होती है कि पति या पत्नी को छह महीने के भीतर भारतीय नागरिकता हासिल करनी होगी. दिलचस्प बात यह है कि यह नियम हमारे सांसदों पर लागू नहीं होता है. हालांकि, एक सांसद के विदेशी जीवनसाथी को 12 साल तक विदेशी नागरिकता बनाए रखने की अनुमति देना बहुत लंबा समय है. राष्ट्र के प्रति वफादारी को हमेशा अन्य सभी विचारों से ऊपर रखना चाहिए."
हालांकि सरमा ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणियों की टाइमिंग और संदर्भ से इस बात पर कोई संदेह नहीं रह गया कि वे गोगोई को ही निशाना बना रहे थे. जैसे-जैसे सोशल मीडिया पर चर्चा तेज होती गई, सरमा ने अपने हमले को और भी अधिक डायरेक्ट और भड़काऊ बयान के साथ आगे बढ़ाया.
उन्होंने गोगोई के परिवार और विदेशी संस्थाओं के बीच सांठगांठ का आरोप लगाते हुए कहा, "आईएसआई से संबंध, युवाओं को ब्रेनवॉश करने और कट्टरपंथी बनाने के लिए पाकिस्तान दूतावास में ले जाने और पिछले 12 सालों से भारतीय नागरिकता लेने से इनकार करने के आरोपों के बारे में गंभीर सवालों के जवाब दिए जाने की जरूरत है. इसके अलावा, धर्मांतरण कार्टेल में भागीदारी और राष्ट्रीय सुरक्षा को अस्थिर करने के लिए जॉर्ज सोरोस सहित बाहरी स्रोतों से धन हासिल करना गंभीर चिंता का विषय है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है. किसी भी एक बिंदु पर इसकी जवाबदेही जरूरी होगी. केवल जिम्मेदारी से बचना या दूसरों पर फोकस करने का प्रयास करना आसानी से बचने का रास्ता नहीं होगा. राष्ट्र पारदर्शिता और सच्चाई जानने का हकदार है."
सरमा यहीं नहीं रुके. उन्होंने आगे कहा कि बाहरी ताकतों, खासकर सोरोस से जुड़ी ताकतों ने असम की कांग्रेस इकाई के आंतरिक राजनीतिक मामलों को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है, जो एक बड़ी साजिश का संकेत है. असम के सीएम ने कहा, "जल्द ही या बाद में यह पता चल जाएगा कि जॉर्ज सोरोस के ईकोसिस्टम की अगुआई में विदेशी शक्तियों ने 2014 में असम कांग्रेस के एक बड़े फैसले को कैसे प्रभावित किया. उम्मीद है कि सच्चाई समय के साथ सामने आएगी."
बहरहाल, इन आरोपों की गंभीरता के बावजूद गोगोई चुप रहे हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर उन्होंने एक संस्कृत श्लोक पोस्ट किया, जिसमें कहा गया कि यह उन लोगों के लिए है जो उनकी देशभक्ति और ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं. वह श्लोक है - सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।। (यानी सभी सुखी रहें. सभी स्वस्थ रहें. सभी को हर चीज में अच्छाई और शुभता दिखे. किसी को कोई कष्ट न हो.)
असम में इस मामले पर मीडियाकर्मियों को जवाब देते हुए गोगोई ने एक सिनेमाई उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि जिस तरह फिल्म 'एक था टाइगर' में सलमान खान का किरदार एक रॉ (भारतीय खुफिया एजेंसी 'रिसर्च एंड एनालिसिस विंग') एजेंट का था और उनकी पत्नी एक आईएसआई एजेंट थी. अगर गोगोई की पत्नी वास्तव में एक आईएसआई एजेंट है, तो गोगोई खुद एक रॉ एजेंट हैं, और रॉ हमेशा जीतता है.
राजनीति के जानकार इस पूरे विवाद को सरमा और गोगोई के बीच लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता का एक और अध्याय मानते हैं. पिछले कुछ सालों में उनके बीच कई बार दुश्मनी देखने को मिली है, और हाल के चुनावी मुकाबलों में तो यह दुश्मनी और भी तीखी हो गई है.
जून 2024 में, पिछले आम चुनाव के दौरान सरमा और उनके पूरे मंत्रिमंडल ने गोगोई को हराने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया. तब परिसीमन के कारण गोगोई को अपना निर्वाचन क्षेत्र कलियाबोर से जोरहाट स्थानांतरित करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. लेकिन तमाम बाधाओं के बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार पर गोगोई की जोरदार जीत ने सरमा और उनके राजनीतिक तंत्र को आईना देखने पर मजबूर किया.
2024 के नवंबर में उनकी लड़ाई असम से आगे बढ़कर झारखंड तक पहुंच गई. सरमा को यहां बीजेपी के सह-प्रभारी के तौर पर तैनात किया गया. कांग्रेस ने गोगोई को भी इसी पद पर झारखंड भेजा. लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो सरमा को एक और झटका लगा, क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की अगुआई वाली सरकार ने यहां दुबारा सत्ता हासिल किया और जिसमें कांग्रेस एक प्रमुख खिलाड़ी बनी.

लेकिन सरमा और गोगोई के बीच ये भिड़ंत सिर्फ राजनीति के मैदान में ही नहीं, बल्कि डिजिटली भी देखने को मिली है. खास कर 'एक्स' पर ये तीव्र विवाद तब शुरू हुआ जब गोगोई ने सरमा की पत्नी रिनिकी भुयान सरमा पर 10 करोड़ रुपये की सरकारी सब्सिडी गलत तरीके से हासिल करने का आरोप लगाया. यह ऐसा आरोप था जिसने सरमा को एक गहरी निजी प्रतिक्रिया के लिए उकसाया. सरमा ने पलटवार करते हुए गोगोई पर एक "लापरवाह बेटा" होने का आरोप लगाया, जो कोविड-19 महामारी के दौरान अपने पिता तरुण गोगोई के स्वास्थ्य संघर्षों का जिक्र कर रहा था.
प्रतिक्रियास्वरूप गोगोई ने अपने दिवंगत पिता का एक वीडियो शेयर करके जवाबी हमला किया. इसमें गौरव गोगोई के पिता ने सरमा को "पीठ में छुरा घोंपने वाला" करार दिया था. बहरहाल, इन दोनों के बीच यह विवाद तब और बढ़ गया, जब रिनिकी भुयान सरमा ने सब्सिडी मामले में निराधार आरोपों के एवज में गोगोई के खिलाफ 10 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा दायर किया. यह कानूनी लड़ाई अभी भी चल ही रही है.
अपनी पत्नी के खिलाफ सोशल मीडिया पर आरोपों के बाद गौरव ने सोशल मीडिया पर दो और खबरें पोस्ट करके जवाब दिया. इसमें सरमा की पत्नी पर कथित भूमि घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया गया. इससे पता चलता है कि दोनों नेताओं के बीच अपने जीवनसाथी को लेकर लड़ाई अभी खत्म नहीं होने वाली है.
राष्ट्रीय सुरक्षा को सुर्खियों में लाने और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में गोगोई के प्रमुख स्थान पर होने के कारण उनकी चुप्पी से कांग्रेस मुश्किल में पड़ सकती है, खासकर तब जब बीजेपी ने गांधी परिवार पर अमेरिकी डीप-स्टेट ऑपरेटिव जॉर्ज सोरोस के साथ उनके कथित संबंधों के लिए बार-बार हमला किया है. हालांकि गोगोई या उनकी पत्नी के खिलाफ बहुत कम पुख्ता सबूत हैं, लेकिन व्यापक राजनीतिक दृष्टिकोण दंपति के लिए परेशानी का सबब बन सकता है.
अब भले ही गोगोई या कांग्रेस इस मामले को कैसे भी संभालें, लेकिन एक बात तो तय है कि हिमंत बिस्वा सरमा ने अपना बदला ले लिया है, और अपनी पत्नी को पहले निशाना बनाए जाने का बदला भी उसी तरह से चुका लिया है.