
चुनावी नतीजे आने से एक दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चर्चा में हैं. वे तीन जून को दिल्ली गए हैं. पीएम मोदी से मुलाकात की है. उनको लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि नतीजे के बाद वे सीएम कुर्सी छोड़कर दिल्ली जा सकते हैं. वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में दावा किया था कि नीतीश नतीजे के बाद फिर से पलटी मार सकते हैं.
मगर इन कयासबाजियों के बीच गुपचुप तरीके से एक खबर लगातार रिस-रिस कर सामने आ रही है कि नीतीश ने अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है और उनका उत्तराधिकारी न उनकी पार्टी का कोई बड़ा नेता होगा, न उनके परिवार का कोई सदस्य. उनके उत्तराधिकारी के रूप में जिस व्यक्ति का नाम चल रहा है, वे हैं पूर्व आईएएस मनीष कुमार वर्मा.
ओडिशा कैडर के 2000 बैच के आईएएस मनीष कुमार वर्मा नीतीश कुमार के काफी करीबी हैं. वे उनके जिले नालंदा और उनकी ही जाति कुर्मी से ताल्लुक रखते हैं. फिलहाल वे मुख्यमंत्री के अतिरिक्त परामर्शी और बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार के सदस्य हैं. मनीष कुमार बिहार में प्रतिनियुक्ति पर आए थे. यहां पूर्णिया और पटना के डीएम रहे और जब उन्हें वापस ओडिशा भेजा जाने लगा तो उन्होंने वीआरएस ले लिया. पटना का डीएम रहते हुए मनीष के साथ एक विवाद भी जुड़ा. दरअसल 2014 में गांधी मैदान में रावण दहन के दौरान 42 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बावजूद नीतीश कुमार ने उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं की.

2024 के लोकसभा चुनाव में मनीष कुमार वर्मा ने पूरे बिहार में घूमकर जदयू प्रत्याशियों के लिए कैंपेन किया है. सीईओ बिहार नामक फेसबुक पेज लगातार उन्हें प्रोमोट कर रहा है. वे नालंदा से चुनाव भी लड़ना चाहते थे, मगर नीतीश ने कुछ वजहों से उन्हें टिकट नहीं दिया. वे नालंदा की लगभग जीती हुई सीट पर प्रयोग नहीं करना चाहते थे.
मनीष वर्मा को नीतीश का उत्तराधिकारी बनाए जाने की चर्चा को लेकर जब बिहार के मुख्यमंत्री के कुछ करीबी लोगों से पूछा गया था उनमें से एक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "अगर मनीष उनके उत्तराधिकारी नहीं होंगे तो कौन होगा. उनके जिले के हैं, उनकी जाति के हैं और उनके विश्वासपात्र भी हैं."
ऐसी खबरें हैं कि अपने लगातार बिगड़ रहे स्वास्थ्य और पार्टी के भविष्य को देखते हुए नीतीश कुमार ने यह फैसला लिया है. कहा जा रहा है कि इलाज में व्यस्त रहने के कारण उन्हें सीएम की कुर्सी और पार्टी दोनों को देखने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा, इसलिए भी वे एक ऐसे भरोसेमंद व्यक्ति की तलाश में थे, जो इन दोनों मोर्चों को संभालकर उन्हें इलाज की फुरसत दे सके. मनीष इस खांचे में फिट बैठते हैं. यह भी कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी के कोर वोट कुर्मी मनीष कुमार वर्मा को स्वीकार कर चुके हैं.
खबर यह भी है कि नीतीश ने जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद को छोड़ने की भी इच्छा जताई है. इस पद को उन्होंने इसी साल ललन सिंह से ले लिया था. हालांकि आने वाले दिनों में मनीष कुमार वर्मा को नीतीश कौन सी भूमिका दे सकते हैं, यह कहना मुश्किल है. मगर ऐसा कहा जा रहा है कि वे शायद उन्हें सरकार में किसी महत्वपूर्ण पद पर रख सकते हैं जहां से वे उनके बदले चीजें संचालित करते रहें. पार्टी का अध्यक्ष पार्टी का ही कोई वरिष्ठ नेता हो सकता है. ललन सिंह को भी दुबारा जिम्मेदारी दी जा सकती है. मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा नीतीश की इस राय से सहमत होगी. क्या उनके बदले किसी और को सत्ता के शीर्ष के रूप में पार्टी स्वीकार करेगी?
हालांकि इनकार की स्थिति में उनके पास फिर से राजद के साथ जाने का भी विकल्प है. पिछले दिनों तेजस्वी यादव ने भी कहा था, "चार जून को चचा (नीतीश कुमार) कोई बड़ा ऐलान कर सकते हैं." सरकार जाने के बाद भी तेजस्वी ने कभी नीतीश पर कोई हमला नहीं किया और हमेशा सम्मानजनक तरीके से पेश आते रहे. इसलिए भी ये कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर नीतीश वापस राजद की तरफ आते हैं तो तेजस्वी उनका स्वागत ही करेंगे. हालांकि यह सब कैसे होगा और कितना हो पाएगा यह सब आने वाले दिनों में तय होगा.
मगर यह सच है कि नीतीश लंबे अरसे से अपने उत्तराधिकारी की तलाश में हैं. जानकार बताते हैं कि इसके लिए उन्होंने पहले आरसीपी सिंह को चुना था जो मनीष की तरह ही उनके स्वजातीय थे और प्रशासनिक अधिकारी भी थे. मगर वे भरोसेमंद साबित नहीं हुए. फिर उन्होंने चुनावी रणनीतिकार और फिलहाल जनसुराज अभियान चलाने वाले प्रशांत किशोर पर भी दांव खेला. उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर बिहार विकास समिति का उपाध्यक्ष बनाया. मगर कहा जाता है कि प्रशांत किशोर ने बाद के दिनों में नीतीश की बातों पर ध्यान देना बंद कर दिया.
जानकार बताते हैं कि नीतीश चाहते थे प्रशांत किशोर झारखंड में जदयू का इलेक्शन कैंपेन संभाल लें. मगर प्रशांत किशोर की उन दिनों प्राथमिकता आंध्र प्रदेश का कैंपेन था. उन्होंने इस बात को टाल दिया. इस बात से नीतीश दुखी हो गए. प्रशांत किशोर जब छात्र जदयू के लिए प्रशिक्षण अभियान चलाते थे, तो अक्सर कहा करते थे कि मैं तो वह इंसान हूं तो पीएम और सीएम बनाया करता हूं. उनके इस बड़बोलेपन से भी नीतीश उनसे नाराज थे. इसलिए जब आरसीपी सिंह, ललन सिंह और नीरज कुमार जैसे जदयू के नेताओं ने प्रशांत किशोर के खिलाफ अभियान चलाया तो उन्होंने कोई दखल नहीं दिया और प्रशांत किशोर को जदयू छोड़कर जाने दिया.
हालांकि अभी भी पार्टी में संजय कुमार झा और अशोक कुमार चौधरी जैसे नेता हैं जो नीतीश के काफी करीबी हैं. मगर नीतीश इन दोनों पर एक हद तक ही भरोसा करते हैं. इसी वजह से नीतीश के उत्तराधिकारी के लिए मनीष कुमार वर्मा का पलड़ा थोड़ा भारी दिखता है.