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उत्तर प्रदेश : अनुप्र‍िया पटेल की पार्टी में फिर टूट! बीजेपी की साथी 'अपना दल (एस)' में क्यों मची उठा-पटक?

अपना दल (एस) के बागी नेताओं ने अलग होकर बनाया 'अपना मोर्चा' नाम से एक गुट बनाया है, वहीं पार्टी नेता आशीष पटेल ने इशारों-इशारों में यूपी सरकार पर पार्टी की छवि खराब करने का आरोप मढ़ा

Anupriya Patel
अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल (फाइल फोटो)
अपडेटेड 3 जुलाई , 2025

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) इस वक्त एक संकट में घिरती दिख रही है. अपना दल (सोनेलाल) के नेता और कार्यकर्ता 1 जुलाई को जब अगले दिन पार्टी के संस्थापक सोनेलाल पटेल की जयंती के मौके पर लखनऊ के रवींद्रालय में आयोजित होने वाले 'जनस्वाभिमान दिवस' की तैयारियों में व्यस्त थे उसी दौरान पार्टी के बागी नेता लखनऊ के प्रेस क्लब में एक नए संगठन की नींव डाल रहे थे. 

'अपना मोर्चा' नाम से बनाए गए इस नए संगठन को ही बागी नेताओं ने अपना दल (सोनेलाल) की असली आवाज बताया. मोर्चा के संयोजक चौधरी ब्रजेंद्र प्रताप पटेल ने दावा किया है कि यह मोर्चा भी एनडीए के साथ है. जल्द ही इसके नेता केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और संघ की तरफ से बीजेपी के साथ समन्वय का काम देखने वाले अरुण कुमार से मिलेंगे. ब्रजेंद्र प्रताप पटेल बताते हैं, “अपना मोर्चा में पूर्व सांसद पकौड़ीलाल कोल, दो बार के विधायक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आरके वर्मा, पूर्व राष्ट्रीय महासचिव धर्मराज पटेल समेत कई पूर्व विधायक और पदाधिकारी शामिल हैं.” 

मोर्चा के नेता अपना दल (एस) के शीर्ष नेतृत्व पर पार्टी के संस्थापक सदस्यों से बुरा व्यवहार करने का आरोप लगा रहे हैं. 'अपना मोर्चा' के गठन के कुछ देर बाद ही अपना दल (एस) के प्रदेश अध्यक्ष जाटव आरपी गौतम ने बयान दिया कि पार्टी से पांच साल पहले निष्कासित लोग अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल के जयंती समारोह में 'विघ्न' डालने की साजिश कर रहे हैं. 

सोनेलाल पटेल की जयंती से एक दिन पहले अपना दल (एस) की एकजुटता विवादों पड़ गई थी. इसका असर 2 जून को रवींद्रालय में 'जनस्वाभिमान दिवस' के आयोजन में स्पष्ट दिखा. पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में मंत्री है. उनके पति आशीष पटेल योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. दोनों मंच पर मौजूद थे. पार्टी के बागी नेताओं के दावों के बीच कार्यक्रम में अनुप्रिया पटेल ने जहां पार्टी में फूट डालने वालों को कड़ी चेतावनी दी वहीं, आशीष पटेल ने इशारों में ही इसे षड्यंत्र करार दिया.

आशीष पटेल ने यूपी सरकार पर उनकी छवि खराब करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि अगर पीठ में छुरा घोंपा गया तो फिर वे चुप नहीं बैठेंगे. कार्यक्रम के दौरान आशीष पटेल ने एक बार फिर बिना नाम लिए उत्तर प्रदेश सरकार और सूचना विभाग पर निशाना साधा. आशीष पटेल ने कहा, “1700 करोड़ के बजट पर चलने वाली मीडिया में हमारी कोई खबर नहीं दिखती और इसी बजट से हमारे खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाया जाता है.” 

हालांकि कार्यक्रम में अपना दल (एस) के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के कामकाज की तो तारीफ की लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार का जिक्र ही नहीं किया. इससे इन अटकलों को एक बार फिर बल मिला कि अपना दल (एस) भले ही प्रदेश में सरकार की सहयोगी हो लेकिन मुख्यमंत्री योगी से उसके रिश्त सहज नहीं हैं. इसीलिए अशीष पटेल ने मुख्यमंत्री योगी के तहत आने वाले सूचना विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए.

योगी सरकार से अपना दल (एस) के नेताओं के रिश्तों की बानगी उस पत्र से भी समझी जा सकती है जिसे 2 जुलाई की सुबह अपना दल (एस) के प्रदेश अध्यक्ष आर. पी. गौतम ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा था. पत्र के जरिए गौतम ने मुख्यमंत्री योगी से अपना दल के बागी नेताओं और उनके रिश्तेदारों को मनोनीत सरकारी पदों से तत्काल हटाने की मांग की. उन्होंने दावा किया कि अपना दल (एस) को विश्वास में लिए बिना हाल ही में उन्हें फिर से नियुक्त किया गया. 

इस पत्र के अनुसार, ब्रजेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी मोनिका आर्य राज्य सरकार की अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता हैं, जबकि एक अन्य बागी नेता अरविंद बौद्ध पूर्वांचल विकास बोर्ड के सदस्य हैं. गौतम ने सीएम से 'आपसी विश्वास' कायम करने और अपनी पार्टी के हितों की रक्षा के लिए उन्हें उनके पदों से हटाने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा, यह 'गरिमा बनाए रखने' और 'अपना दल (एस) के कार्यकर्ताओं के बीच एनडीए गठबंधन के प्रति विश्वास और पारदर्शिता की भावना को मजबूत करने' के लिए आवश्यक है. 

अपना दल में टूट-फूट का इतिहास

2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने पर अपना दल (एस) इसमें बतौर सहयोगी पार्टी शामिल हुई थी. यूपी में बीजेपी की इस सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी में बीते आठ वर्षों में आधा दर्जन बार टूट हो चुकी है. सबसे पहली टूट टिकट वितरण में खामियों का आरोप लगाते हुए वरिष्ठ नेता धर्मराज पटेल के नेतृत्व हुई थी. पटेल ने 'अपना दल बलिहारी' नाम से नया दल गठित किया था. इसके बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे पूर्व विधायक आर. के. वर्मा ने 'फैंस एसोसिएशन' बनाया था. 

इसी तरह वाराणसी के सेवापुरी से विधायक रहे नील रतन ने 2019 लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी से अलग होकर 'सोनेलाल पटेल किसान संगठन' नाम से नया दल बना लिया. फिर पार्टी के अनुसूचित जनजाति के नेता रहे सोनभद्र के हरीराम चेरो ने अपनादल का साथ छोड़ 'ऑल इंडिया चेरो समाज' नाम से अलग संगठन बना लिया. 6 मई को अपना दल (एस) के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाल ने को पद व पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. उनके साथ प्रदेश सचिव कमलेश विश्वकर्मा, अल्पसंख्यक मंच के प्रदेश सचिव मो. फहीम और महासचिव बीएल सरोज ने भी पार्टी छोड़ दी थी. 

वहीं अब 'अपना मोर्चा' नाम से नया संगठन सामने आया है. हालांकि अपना दल (एस) के नेता मानते हैं कि बागी जमीनी स्तर पर इसके नेता कोई खतरा नहीं होंगे क्योंकि इनका कोई राजनीतिक आधार नहीं है. हालांकि कुछ नेता इस टूट एक बड़ी साजिश का हिस्सा मानते हैं. उनके मुताबिक यह साजिश तब सामने आती है जब अपना दल में संगठनात्मक रूप से कुछ बड़ा करने की योजना बनती है. 

इस बीच मई में, अपना दल (एस) ने कुछ महत्वपूर्ण नियुक्तियां कीं और अपने संगठन में फेरबदल किया. पार्टी ने मई के अंतिम हफ्ते में जाटव बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले नेता आर. पी. गौतम को अपना दल (एस) का प्रदेश अध्यक्ष बनाया. यह पार्टी के परांपरागत कुर्मी वोट बैंक में दलित वोट जोड़ने का एक प्रयास माना जा रहा है. 

संगठन में यह बदलाव पंचायत चुनाव में पार्टी की जमीनी पकड़ का अंदाजा लगाने की रणनीति भी है. अपना दल (एस) ने 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, जब उसने 12 सीटें जीतीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में, इसने दो सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें अनुप्रिया ने अपनी मिर्जापुर लोकसभा सीट 37,000 से अधिक मतों से बरकरार रखी. हालांकि, पार्टी रॉबर्ट्सगंज से हार गई. 

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना दल (एस) के जनाधार में खासी गिरावट दर्ज हुई थी. इसकी भरपाई करने के लिए अनुप्रिया पटेल ने संगठन में बदलाव के साथ कई दूसरी रणनीतियों पर भी काम करना शुरू किया है. केंद्रीय राज्य मंत्री ने ओबीसी के लिए एक अलग केंद्रीय मंत्रालय के लिए भी जोर देना शुरू कर दिया है, जो विभिन्न ओबीसी समुदायों तक पहुंचने और एक व्यापक वोट बैंक बनाने की पार्टी की रणनीति को दर्शाता है. हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में अपना दल (एस) को मिले झटके से उबरने की रणनीति में बागी कितनी चुनौती पेश करते हैं इसका अंदाता अगले विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले पंचायत चुनाव में ही हो जाएगा.

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