scorecardresearch

पंजाब : विधायक अनमोल मान के इस्तीफे ने बजाई 'आप' के लिए खतरे की घंटी

'आप' को अपने कामकाज में आमूलचूल बदलाव लाना होगा, इसी से न केवल पंजाब में उसका भविष्य बल्कि राज्य के बाहर उसकी साख भी तय होगी

अनमोल गगन मान
अपडेटेड 22 जुलाई , 2025

बहुत तेजी से आए राजनैतिक मोड़ में पंजाब की विधायक अनमोल गगन मान ने 19 जुलाई को विधानसभा और सक्रिय राजनीति दोनों से इस्तीफा दे दिया- हालांकि आम आदमी पार्टी (आप) के बड़े नेताओं के आनन-फानन दखल देने के एक दिन बाद वापस भी ले लिया. 

आप के राज्य प्रमुख अमन अरोड़ा को मान के घर जाते और उनकी शिकायतें सुनते देखा गया. भावनात्मक विदाई की शक्ल में शुरू हुआ यह मामला देखते ही देखते नुक्सान पर नियंत्रण का आदर्श उदाहरण बन गया. मगर सतह के नीचे इस प्रसंग ने पंजाब में आप की सरकार के भीतर सक्रिय ताकतों और पार्टी की व्यापक नेतृत्व शैली के बारे में असहज सच्चाइयों को उजागर कर दिया.

पहली नजर में यह निजी तकलीफ में उठाए गए कदम की तरह लगता था. खरड़ से पहली बार विधायक बनीं और भगवंत मान की सरकार में मंत्री रही मान ने अपना इस्तीफा विधानसभा के अध्यक्ष कुलतार सिंह को सौंपा और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया कि वे “बहुत भारी मन से” राजनीति छोड़ रही हैं. स्वर भावुक था, लेकिन मायने अचूक ढंग से राजनैतिक थे.

मान को 2024 के मध्य में हुए फेरबदल में मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था. तभी से वे सार्वजनिक चकाचौंध से बनिस्बतन दूर ही रहीं. विधायकी से अब उनका इस्तीफा अचानक भले दिया गया हो, लेकिन सतह के नीचे शायद महीनों से खदबदा रहा था.

आप के आला नेता कुछ ही घंटों के भीतर इसके नतीजों को रोकने की कवायद में जुट गए, यह अपने आप में बहुत कुछ कहता है. आप के पंजाब प्रमुख अरोड़ा निजी तौर पर मान से मिले, और उसके फौरन बाद ऐलान कर दिया गया कि सारी “गलतफहमियां” सुलझा ली गई हैं. उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया. पार्टी ने एकता और स्थिरता की तस्वीर पेश की, लेकिन राजनैतिक जानकार यह सवाल पूछने से अपने को रोक नहीं पाए : वह क्या था जिसने मान सरीखी युवा और जानी-मानी नेता को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया? 

पंजाब में आप की उम्मीदें और खंदक-खाइयां दोनों मान के राजनैतिक सफर में नुमायां हैं. राजनीति में आने से पहले पंजाबी की जानमानी लोक गायिका मान उन नए चेहरों में से एक थीं जिन्हें पार्टी ने युवा, दमखम से भरी और सत्ता के पारंपरिक ढांचों को तोड़ने की छवि पेश करने के लिए चुना था.

साल 2022 में जब आप 117 सदस्यीय विधानसभा की 92 जितनी भारी-भरकम सीटें जीतकर सत्ता में आई, लैंगिक प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक प्रासंगिकता दोनों के प्रतीक के तौर पर मान को मंत्री पद के इनाम से नवाजा गया. मगर दो साल से भी कम वक्त में जब उन्हें कोई साफ सार्वजनिक वजह बताए बिना हटा दिया गया, तो उनका मोहभंग हो गया. मान को लगा कि उन्हें दरकिनार कर दिया गया है, जब हटाए जाने के बाद पार्टी के मामलों में उनकी कोई सार्थक भूमिका या भागीदारी भी नहीं रह गई.

मान का मोहभंग और मायूसी अलग-थलग मामला नहीं है. पहली बार चुनकर आए कई विधायक और खासकर गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए विधायक आप की पंजाब इकाई और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच बढ़ते अलगाव को लेकर धीरे-धीरे अपनी निराशा और कुंठा जाहिर करने लगे हैं. माना जाता है कि मंत्रिमंडल के पदों और विभागों, विधायी रणनीति और यहां तक कि निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर धन के आवंटन सहित तमाम बड़े फैसलों पर दिल्ली के आलाकमान का सख्त नियंत्रण है. आप ने जिसके कभी विकेंद्रीकृत और जन-प्रथम पार्टी मॉडल होने का दावा किया था, उसमें अब ठेठ ऊपर से नीचे की बिल्कुल वही प्रवृत्तियां दिखाई देती हैं जिनकी वह प्रतिद्वंद्वियों में आलोचना किया करती थी.

इस परिप्रेक्ष्य में मान का इस्तीफा और ज्यादा अहमियत अख्तियार कर लेता है. इससे न केवल निजी शिकायत बल्कि ढांचागत गड़बड़ी का संकेत मिलता है. आंतरिक माध्यमों को दरकिनार करके उनका अपने इस्तीफे को सीधे सार्वजनिक कर देना बताता है कि असहमति को सुनने की पार्टी की क्षमता में उनका यकीन नहीं रह गया था. उन्हें फटाफट इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लेने से संकेत मिलता है कि पार्टी अपनी अकेली पूर्ण राज्य सरकार में अस्थिरता की झलक भर को लेकर कितनी संवेदनशील है. तिस पर भी आप ने कहीं ज्यादा गहरे मसलों- चाहे वह फैसले लेने की आंतरिक प्रक्रिया में पारदर्शिता हो या ज्यादा लोकतांत्रिक फीडबैक की संस्कृति-को हल करने के लिए इस मौके का इस्तेमाल करने के बजाय नियंत्रण और सामान्य स्थिति के दिखावे का रास्ता चुना. 

ठीक यहीं इस पूरे अफसाने के ज्यादा बड़े मायने साफ हो जाते हैं. अब जब विधानसभा चुनाव होने में दो साल से भी कम वक्त बचा है, पंजाब में आप के भीतर तनाव के संकेत दिखने लगे हैं. 2022 का उछाह फीका पड़ चुका है. जमीन पर नशे से जुड़ी हिंसा में बढ़ोतरी से लेकर किसानों की बेचैनी तक राजकाज की चुनौतियों ने पार्टी की सुघड़ता के आभामंडल को धूमिल कर दिया है.

लंबे वक्त से बिखरा हुआ विपक्ष धीरे-धीरे एकजुट हो रहा है. अमरिंदर सिंह राजा वडिंग की अगुआई में कांग्रेस अपना जमीनी आधार फिर खड़ा कर रही है. अंतरिक उथल-पुथल के बावजूद शिरोमणि अकाली दल (SAD) कुछ हलकों में ताकतवर बना हुआ है. ग्रामीण पंजाब में अब भी हाशिये पर होते हुए भी बीजेपी शहरी और दलित मतदाताओं के बीच लगातार पैठ बना रही है. आप के भीतर आंतरिक फूट का जरा-सा इशारा भी उसके विरोधियों के हाथों में गोला-बारूद थमा देता है.

असल जोखिम अस्थिरता की धारणा में है. मान ने अपना इस्तीफा भले वापस ले लिया हो, लेकिन इस प्रसंग ने आप की आंतरिक एकजुटता को लेकर पर्यवेक्षकों और मतदाताओं के मन में संदेह के बीज बो दिए हैं. उनका सार्वजनिक विद्रोह कम वक्त के लिए होते हुए भी पार्टी के भीतर इसी तरह दरकिनार महसूस कर रहे लोगों की हिम्मत बंधा सकता है. अगर इनका जवाब ढांचागत उपायों से नहीं दिया जाता है, तो राजनैतिक तौर पर कम अनुभवी पहली बार के विधायकों से भरी पार्टी में इस तरह के भावनात्मक इस्तीफे तेजी से बढ़ सकते हैं.

जो बात इस प्रसंग को खास तौर पर चौंकाने वाला बना देती है, वह आप की तरफ से इसे पेश किए जाने का अंदाज है. मान की शिकायतों की कोई स्वीकारोक्ति नहीं थी. इस बात को लेकर कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं कि वे अलग-थलग क्यों महसूस कर रही थीं. अपने भीतर झांकने का कोई संकेत नहीं. इसके बजाय पार्टी का रुख यह था कि वे भावुक महसूस कर रही थीं और अब फिर से सब ठीक है. यह जानी-पहचानी पटकथा है, जिसका कई पार्टियां दशकों से इस्तेमाल करती आई हैं, लेकिन यह उस पारदर्शिता और आंतरिक लोकतंत्र से कोसों दूर है जिसे संस्थागत शक्ल देने का आप ने कभी वादा किया था.

मान के लिए यह शायद फिर से जुड़ने का दूसरा मौका है. आप के लिए यह अपने गिरेबान में झांकने का मौका है. अगर वह अपनी जमात में और खासकर कभी उसकी ताकत रहीं महिलाओं, सांस्कृतिक हस्तियों और जमीन से जुड़े नेताओं में बढ़ते असंतोष का जायजा नहीं लेती, तो पंजाब में अपनी कामयाबी की नींव को ही कमजोर करने का जोखिम उठाएगी. 2020 की चमक अब 2027 में पार्टी की नैया पार लगाने के लिए काफी नहीं रह गई है.

आखिर में मान के प्रसंग का वास्ता महज एक विधायक से कम और सत्ता में पार्टी के चरित्र से ज्यादा है. क्या आप सच्चे सहभागी राजनैतिक मंच के तौर पर विकसित होगी? या यह आलाकमान के हाथों संचालित एक और संगठन के रूप में और सख्त होती जाएगी जो नेतृत्व के बजाय वफादारी को और संवाद के बजाय नियंत्रण को पुरस्कृत करता है. इस सवाल का जवाब न केवल पंजाब में आप का भविष्य बल्कि पूरे देश में उसकी साख और विश्वसनीयता भी तय करेगा.

Advertisement
Advertisement