जनवरी की पांच तारीख को आंध्र प्रदेश में आरएसएस के एक अहम सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने 'हैंदव शंखारावं' अभियान की शुरुआत की. इसका उद्देश्य है जाति के बजाय धर्म के आधार पर हिंदुओं को एकजुट करना. इस पहल को कांग्रेस और अन्य बीजेपी विरोधियों की उस तीखी मांग के जवाब के रूप में देखा जा रहा है जो आगामी जनगणना में जातिवार सर्वे को शामिल कराना चाहती हैं.
जाति सर्वे की मांग को लेकर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) हमेशा बैकफुट पर नजर आता है. ऐसे में एनडीए को बचाने के लिए विहिप तब सामने आया है जब जातिगत सर्वेक्षण की मांग को लेकर विपक्षी दलों का नैरेटिव कई राज्यों में विभिन्न जाति या समुदायों और राजनीतिक दलों के बीच अपनी पकड़ बनाता जा रहा है. लेकिन यहां एक सवाल है कि विहिप ने आखिर अपने 'हिंदू फर्स्ट, कास्ट नेक्स्ट' कैंपेन के लिए आंध्र को ही क्यों चुना?
विश्लेषकों का कहना है कि आंध्र को चुनने के पीछे कई वजहें हैं. पहली तो यही कि राज्य के सीएम और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के मुखिया एन. चंद्रबाबू नायडू ने पिछले साल तिरुमला मंदिर के प्रसाद (लड्डू) की शुद्धता को लेकर जिस तरीके से राजनीति की, तब सिर्फ प्रसाद लड्डू बनाने के लिए आपूर्ति किए जाने वाले घी की गुणवत्ता पर ही सवाल नहीं उठे, बल्कि मंदिर की स्वायत्तता बहाल करने और हिंदू मंदिरों को राजनीतिक दखल से बचाने की मांग भी तेज हो गई.
उस घटना की तत्काल प्रतिक्रिया में, राज्य के उप मुख्यमंत्री और जन सेना पार्टी (जेएसपी) के प्रमुख पवन कल्याण ने सनातन धर्म रक्षण बोर्ड की स्थापना की मांग की. उन्होंने तिरुमाला मंदिर का दौरा किया और उन आरोपों पर भी लोगों का ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की कि युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के पूर्ववर्ती शासन के दौरान लड्डू बनाने के लिए पशु वसा युक्त घी का इस्तेमाल किया गया था.
इसके बाद पिछले साल सितंबर से ही विहिप और कई हिंदू संगठनों ने कई राज्यों के राज्यपालों से गुहार लगाई है कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाए और हिंदुओं को उनका प्रबंधन करने दिया जाए. 'हैंदव शंखारावं' के बैनर तले विहिप की कुछ खास मांगें इस प्रकार थीं:
- मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करें और उन्हें वास्तविक स्वायत्त संस्थाओं के रूप में विकसित करें.
- मंदिरों में काम करने वाले सभी गैर-हिंदुओं को बर्खास्त किया जाए.
- आउटसोर्स्ड काम के लिए भी केवल हिंदुओं को ही नियुक्त किया जाए.
- मंदिरों के पास दुकानें केवल हिंदुओं को आवंटित की जाएं.
- मंदिरों की सभी अतिक्रमित संपत्तियों को पुनः प्राप्ति की जाए.
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12, 25 और 26 के अनुसरण में सभी मंदिरों की अभिरक्षा हिंदू संगठनों को हस्तांतरित की जाए.
- मंदिर की संपत्तियों के प्रबंधन और उनकी आय में सरकारी हस्तक्षेप पर रोक लगाई जाए.
- धर्मनिरपेक्षता की आड़ में राजनीतिक दलों को मंदिर के मामलों में हस्तक्षेप करने से रोकें.
- मंदिरों से प्राप्त आय का उपयोग हिंदू धर्म के प्रचार और सेवा कार्यों के लिए किया जाए.
- मंदिरों पर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई करें.
- मंदिर ट्रस्ट बोर्ड में गैर-राजनीतिक हिंदुओं की नियुक्ति की जाए.
खास बात यह है कि यह अभियान हिंदुओं के सभी संप्रदायों से जातिगत विचारों से मुक्त होने और एकता की भावना को बढ़ावा देने का आह्वान कर रहा है. विहिप का 'हिंदू फर्स्ट, कास्ट नेक्स्ट' कैंपेन जाति जनगणना के लिए कांग्रेस के अभियान का मुकाबला करने में भी मदद कर सकता है, जिसके बारे में परिषद का मानना है कि इस तरह का सर्वे हिंदुओं को सिर्फ जाति के आधार पर बांटने का काम करता है.
आंध्र में बीजेपी के उभार के लिए यह लॉन्चिंग पैड की तरह काम कर सकता है, खासकर तब जब भगवा दल मजबूत टीडीपी और जेएसपी के साथ गठबंधन में हैं. इन दो क्षत्रपों की मदद से बीजेपी ने पिछले साल चुनावों में 175 विधानसभा सीटों में से आठ और आम चुनावों में 25 लोकसभा सीटों में से चार सीटें जीती थीं.
श्री वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी, तिरुपति में राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन विभाग में प्रोफेसर बीवी मुरलीधर कहते हैं, "यह अभियान बीजेपी और जेएसपी की संयुक्त रणनीति मालूम होती है. पवन कल्याण ने भगवा पार्टी का समर्थन किया है इसलिए उन्हें यहां हिंदू मुद्दों के अगुवा के रूप में देखा जा रहा है. यह जाति जनगणना की मांग को रोकने के लिए केंद्र सरकार की चाल भी है."
विहिप का मानना है कि जब मंदिरों का प्रबंधन हिंदुओं द्वारा किया जाएगा, तभी सनातन धर्म की परंपराओं का पालन किया जा सकेगा. इस तरह मंदिरों की पवित्रता अक्षुण्ण रहेगी. मंदिरों को राज्य के नियंत्रण से मुक्त करने से मंदिर प्रशासन में गैर-हिंदुओं को नियुक्त करने की प्रथा बंद हो जाएगी और हिंदू धर्म की अखंडता सुरक्षित रहेगी. विहिप के संगठन महासचिव मिलिंद परांडे दावा करते हैं कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद सरकारें मंदिरों पर नियंत्रण जारी रखे हुए हैं और उनकी संपत्तियों को जब्त भी करती रही हैं.
इस तरह के अभियान का कितना असर होगा, यह कोई नहीं जानता. आंध्र प्रदेश में अन्य सभी दक्षिणी राज्यों की तरह मजबूत हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग हैं जो मंदिरों के प्रबंधन को संचालित करते हैं. इनमें से कुछ बड़े मंदिरों जैसे तिरुमला में विशेष प्रबंधन बोर्ड हैं. लेकिन जैसा कि विश्लेषकों का मानना है, पवन कल्याण की मदद से विहिप का ये अभियान राज्य में बीजेपी के विकास के लिए एक मददगार कारक हो सकता है.
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि धर्म के नाम पर लोगों को एकजुट करने के विचार से कई लोग इत्तेफाक नहीं रखेंगे. राजनीतिक टिप्पणीकार डी. सुब्रमण्यम रेड्डी कहते हैं, "राज्य में लोग मुख्य रूप से कांग्रेस और वाईएसआरसीपी के बीच बंटे हुए हैं. बीजेपी और जेएसपी दोनों ही टीडीपी के समर्थन पर टिके हुए हैं, क्योंकि उनके पास बड़ा वोट बैंक नहीं है. और भविष्य में टीडीपी के साथ मतभेद होने पर दोनों एक साथ आ सकते हैं." वे विहिप के हालिया अभियान के जरिए बीजेपी के समर्थन आधार में बढ़ोत्तरी की संभावना को भी खारिज करते हैं.
मुरलीधर के मुताबिक, यह टीडीपी के लिए भी द्वंद्व का मसला है. वे बताते हैं, "कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों के बीच पार्टी का एक ठोस आधार है, जिसे चंद्रबाबू नायडू खोने का जोखिम नहीं उठा सकते. विपक्ष नहीं बल्कि उनके सहयोगी दल ही इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं, इसका मतलब है कि उन्हें कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों को बहुत कुछ जवाब देना है. इस मामले पर वाईएसआरसीपी को मुख्यमंत्री को घेरने का मौका मिलेगा और वो इसका फायदा उठाएगी."