हमारे यहां साधु-संतों के अपराध में शामिल होने के मामले नए नहीं हैं, लेकिन ऐसी हर एक घटना के बाद पूरे संत समाज की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है. ऐसा ही कुछ अलीगढ़ में सामने आए हत्याकांड के बाद हुआ है. 26 सितंबर की शाम खेरेश्वर चौराहा, अलीगढ़ पर बाइक शोरूम संचालक अभिषेक गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई. पुलिस जांच में सामने आया कि हत्या की साजिश किसी साधारण अपराधी ने नहीं बल्कि निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर अन्नपूर्णा भारती उर्फ पूजा शकुन पांडेय ने रची थी.
यह वही पूजा शकुन है जिसने कुछ साल पहले महात्मा गांधी के पुतले पर गोली चलाकर चर्चा बटोरी थी. तब उसे कट्टर हिंदुत्व की निर्भीक आवाज कहा गया, लेकिन अब वही चेहरा हत्या की साजिश की मुख्य आरोपी बन चुकी है. अलीगढ़ पुलिस के अनुसार, 26 सितंबर की रात खेरेश्वर चौराहे पर अभिषेक गुप्ता की हत्या के बाद जांच कई दिशाओं में गई. CCTV और मोबाइल सर्विलांस से पता चला कि हत्या के पीछे पूजा शकुन का हाथ है.
पुलिस ने दो शूटरों और पूजा के पति अशोक पांडेय को गिरफ्तार किया. दोनों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि अभिषेक गुप्ता से आर्थिक और व्यक्तिगत विवाद था और उसी रंजिश में हत्या की साजिश रची गई. एसएसपी अलीगढ़ कलानिधि नैथानी ने बताया कि हत्या पूरी तरह साजिश रचकर की गई थी. यह कोई आवेश में किया गया अपराध नहीं था. इसमें पैसे, राजनीतिक संबंध और व्यक्तिगत स्वार्थ तीनों की भूमिका रही. पूजा शकुन के खिलाफ ठोस सबूत मिले हैं. उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया गया है और इनाम घोषित है. पूजा शकुन अब फरार है लेकिन घटना का असर उसके धार्मिक और सामाजिक जीवन पर पड़ा है.
अलीगढ़ कांड की खबर जब हरिद्वार स्थित निरंजनी अखाड़े तक पहुंची तो अखाड़ा परिषद ने तत्काल आपात बैठक बुलाई. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और श्री निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने घोषणा की “अन्नपूर्णा भारती के कृत्य ने संत समाज को शर्मसार किया है. जिस व्यक्ति पर हत्या की साजिश का आरोप हो, उसे अखाड़े में रहने का कोई हक नहीं. हमने उसे महामंडलेश्वर पद से निष्कासित कर दिया है और परिषद से भी अलग कर दिया है.”
निरंजनी अखाड़े से जुड़े संत स्वीकार करते हैं कि पूजा शकुन को महामंडलेश्वर बनाने में पारंपरिक प्रक्रिया का पालन किया गया था, लेकिन उस वक्त उसके राजनीतिक संबंधों और विवादास्पद बयानों पर गंभीरता से विचार नहीं हुआ. रवींद्र पुरी बताते हैं “धर्म की रक्षा के लिए हमें आत्मशुद्धि करनी होगी और जो अखाड़े के नियमों और मर्यादा का पालन नहीं करेगा, वह चाहे कितना बड़ा नाम क्यों न हो, बाहर किया जाएगा.”
संत समाज के जानकार मानते हैं कि बीते एक दशक में अखाड़ों और मठों में ऐसे लोगों की घुसपैठ बढ़ी है जो धार्मिक सेवा से ज्यादा प्रचार, प्रभाव और राजनीति के लिए संन्यास का चोला पहनते हैं. हरिद्वार के वरिष्ठ संत स्वामी कैलाशानंद गिरी कहते हैं कि पहले संन्यास लेने से पहले व्यक्ति की वर्षों तक परीक्षा होती थी. उसे गुरुओं की सेवा, साधना और अध्ययन से गुजरना पड़ता था, लेकिन अब सोशल मीडिया और राजनीतिक संपर्कों से सीधे बाबा या महामंडलेश्वर बनने की राह आसान हो गई है. यह धर्म के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. संतों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और अनुशासनहीनता भी समस्या को बढ़ा रही है. एक वरिष्ठ अखाड़ा प्रतिनिधि के मुताबिक आज कई अखाड़ों में महामंडलेश्वर का पद प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है. कुछ लोग पैसा और प्रचार देकर यह पद हासिल करते हैं. ऐसे लोग अपराध की मानसिकता भी साथ लाते हैं. प्रयागराज महाकुंभ के दौरान विवादित बॉलीवुड अभिनेत्री रहीं ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनने पर काफी विवाद हुआ था.
अन्नपूर्णा भारती का मामला कोई अपवाद नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें साधु-संत आपराधिक कृत्यों में शामिल पाए गए. मथुरा में कथित बाबा प्रेमानंद को नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया, प्रयागराज में एक साधु पर जमीन कब्जे और शिष्य की हत्या की साजिश का आरोप लगा, वाराणसी में मंदिर ट्रस्ट की जमीन बेचने के मामले में दो संतों पर एफआईआर हुई, गोरखपुर में फर्जी डिग्री के सहारे महामंडलेश्वर बने व्यक्ति पर ठगी का केस दर्ज हुआ और ललितपुर में महिला आश्रम संचालिका पर करोड़ों की मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगा. सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी राम चंद्र सिंह कहते हैं, “धर्म के नाम पर कानून से ऊपर उठने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. जब कोई व्यक्ति खुद को धार्मिक नेता घोषित करता है, तो समाज और पुलिस दोनों उसके प्रति नरम पड़ जाते हैं. इस सॉफ्ट जोन का फायदा आपराधिकत मानसिकता वाले लोग उठाते हैं.”
विश्लेषक मानते हैं कि धर्म और राजनीति के गठजोड़ ने संत समाज की पारदर्शिता कम कर दी है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र और अखाड़ा व संतों के व्यवहार पर शोध करने वाले विनय तिवारी का कहना है, “जिन अखाड़ों का उद्देश्य आध्यात्मिक मार्गदर्शन था, वे अब राजनीतिक विमर्श के केंद्र बन गए हैं. कई संत पार्टियों के प्रचारक बन गए हैं, तो कुछ सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर. ऐसे में जब सत्ता और धन का आकर्षण बढ़ता है, तो अपराध भी पीछे-पीछे आता है.”
विश्लेषक मानते हैं कि राजनीतिक संगठनों के मंचों पर संतों की मौजूदगी बढ़ने से धर्म की मर्यादा और अखाड़ों की अनुशासन प्रणाली कमजोर हुई है. पूजा शकुन जैसी महिलाएं, जो पहले हिंदू महासभा में सक्रिय थीं, इसी गठजोड़ की उपज मानी जा रही हैं. अलीगढ़ कांड ने आम श्रद्धालुओं के मन में सवाल छोड़े हैं कि क्या अब धर्म भी पब्लिक रिलेशन और पावर गेम बन चुका है. समाजशास्त्री डॉ. राजेश्वर कुमार कहते हैं, “संत समाज कभी नैतिकता का प्रतीक था. आज वही समाज अपराधियों के लिए ढाल बनता दिख रहा है. अगर धर्म संस्थाएं आत्मनियंत्रण नहीं दिखाएंगी, तो जनता का विश्वास टूटेगा और जब जनता का विश्वास जाता है तो धर्म संस्थाएं खाली ढांचे बन जाती हैं.”
राज्य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि धार्मिक संस्थानों से जुड़े लोगों की पृष्ठभूमि जांचना मुश्किल है. प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान तैनात रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बताते हैं, “अखाड़े या आश्रमों में प्रवेश की कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं होती. कोई व्यक्ति भगवा वस्त्र पहनकर खुद को बाबा घोषित कर देता है और अनुयायी बना लेता है. जब तक अपराध सामने न आए, पुलिस के पास कोई डेटा नहीं होता. धर्म संस्थाओं को अपने आंतरिक सिस्टम में सत्यापन की व्यवस्था करनी चाहिए.”
प्रयागराज कुंभ में संतों की बैठक में ऐसी मांग उठी थी और संतों के सत्यापन की प्रक्रिया शुरू करने पर सहमति भी बनी थी लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं दिखाई पड़ा है. अब महामंडलेश्वर के अपराध में शामिल होने की घटना के बाद निरंजनी अखाड़े ने अपने अंदर सुधार की प्रक्रिया शुरू की है. अखाड़े के पंचों ने सभी संतों और महामंडलेश्वरों की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की है. समिति का काम होगा संतों के आचरण, वित्तीय लेनदेन, सामाजिक गतिविधियों और पृष्ठभूमि की जांच करना. अखाड़े के प्रवक्ता महंत देवेंद्रानंद बताते हैं, “वर्ष 2027 में हरिद्वार में अर्धकुंभ और नासिक में कुंभ मेला है. उससे पहले हम अपने अखाड़े को पूरी तरह पारदर्शी और अनुशासित बनाना चाहते हैं. कोई भी व्यक्ति, चाहे कितना बड़ा नाम क्यों न हो, अगर अखाड़े की गरिमा पर सवाल खड़ा करेगा तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा.
अखाड़ा परिषद अब एक नई प्रणाली पर विचार कर रही है जिसमें किसी व्यक्ति को महामंडलेश्वर या संत का दर्जा देने से पहले उसकी पुलिस व प्रशासनिक जांच की जाए. अखाड़े के वित्तीय लेनदेन का वार्षिक ऑडिट हो, सोशल मीडिया पर उग्र राजनीतिक बयान देने वाले संतों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो और नए संन्यासियों के लिए कम से कम तीन साल की परिचय अवधि रखी जाए जिसमें उनका आचरण परखा जाए. रविंद्रपुरी महाराज का कहना है, "हम अखाड़ों को फिर से तप, त्याग और सेवा के केंद्र बनाना चाहते हैं. जो लोग धर्म की आड़ में स्वार्थ साधना कर रहे हैं, उन्हें जगह नहीं दी जाएगी.”
अलीगढ़ की घटना ने यह साफ कर दिया है कि धर्म के मंच पर भी जवाबदेही का दौर आना चाहिए. कभी समाज के नैतिक मार्गदर्शक रहे संत आज खुद नैतिक प्रश्नों के घेरे में हैं. यह सिर्फ एक अखाड़े की समस्या नहीं बल्कि उस आस्था की परीक्षा है जो करोड़ों लोगों के दिल में बसती है.