जून की 24 तारीख को जब जूलियन असांजे ब्रिटेन की एक जेल से रिहा हुए तो यह खबर देश-दुनिया में हर जगह चली. अमेरिकी सरकार के साथ एक समझौते के तहत उनको रिहाई मिली है. 2010 से चल रहे इस मामले के 14 साल बाद आखिरकार जूलियन अपने वतन लौट सकेंगे. लेकिन उन्होंने किया क्या था?
इन सब की जड़ में ओबामा से लेकर ट्रम्प की कहानी है और है एक मीडिया वेबसाइट - विकीलीक्स. 1971 में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड राज्य के टाउन्सविले में पैदा हुए असांजे ने कच्ची उम्र में ही कंप्यूटर से दोस्ती कर ली थी और 90 का दशक आते-आते वे ऑस्ट्रेलिया के सबसे कुशल हैकरों में शामिल हो गए थे.
जूलियन ने 2006 में विकीलीक्स नाम की एक मीडिया वेबसाइट की स्थापना की, जो खुफिया तरीके से लीक सरकारी जानकारियों सार्वजनिक करती थी. 2010 तक असांजे ने अमेरिकी सेना की एक पूर्व सैनिक चेल्सी मैनिंग की ओर से लीक जानकारियों की एक श्रृंखला छापने के बाद एक व्हिसल ब्लोअर के रूप में दुनियाभर में प्रसिद्धि हासिल कर ली थी. इन फ़ाइलों में बगदाद में अमेरिकी सेना की ओर से 2007 में अपाचे हेलीकॉप्टर पर किए गए हमले का एक वीडियो भी था जिसमें 11 लोग मारे गए थे. मारे गए लोगों में रॉयटर्स के दो पत्रकार भी शामिल थे.
इसी साल विकीलीक्स ने एक और धमाका किया. जूलियन असांजे ने अमेरिकी दूतावासों से 250,000 से अधिक गुप्त जानकारियों को द गार्जियन और द न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे प्रमुख मीडिया आउटलेट्स के हवाले कर दिया. इसके बाद विदेशी अख़बारों ने एक-एक कर जानकारियां छापनी जब शुरू कीं तो अमेरिकी सरकार हिल गई. प्रेस की ताकत का ऐसा उदाहरण शायद ही कभी दुनिया ने देखा था.
इसके बाद 2016 में असांजे ने फिर से सुर्खियां बटोरीं, जब विकीलीक्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले डेमोक्रेटिक पार्टी के कार्यकर्ताओं के ईमेल सार्वजनिक कर दिए. अमेरिकी प्रशासन की ओर से कहा गया कि ईमेल रूसी खुफिया एजेंसियों ने चुराए थे और डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से निष्पक्ष चुनाव में दखल देने के लिए एक ऑपरेशन का हिस्सा थे.
असांजे को दुनिया भर के कई लोगों ने एक हीरो माना जिसने इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की बर्बरता को उजागर किया. लेकिन फिर वे जेल कैसे पहुंच गए जहां 24 में से 23 घंटे उन्हें दो फीट चौड़ी और तीन फीट लंबी एक सेल में सालों रहना पड़ा.
2010 में अमेरिकी सैन्य लीक के दौरान असांजे स्वीडन में थे. यहां विकीलीक्स से जुड़ी दो महिलाओं ने उन पर यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ का आरोप लगाया. असांजे ने आरोपों से इनकार किया और दावा किया कि ये अमेरिका की प्रत्यर्पण की कोशिश का हिस्सा है. गिरफ़्तारी से बचने के लिए, वे लंदन भाग गए. इसी बीच स्वीडिश पुलिस ने उनके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. असांजे ने ब्रिटेन में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा, लेकिन बाद में उन्हें जमानत दे दी गई. इसी दौरान यूके की एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने स्वीडन में उनके प्रत्यर्पण के हक में फैसला दे दिया.
2012 में असांजे ने गिरफ्तारी के डर से इक्वाडोर के दूतावास में शरण मांगी, जिसे दक्षिण अमेरिकी देश की सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार ने स्वीकार किया. अगले कुछ सालों तक असांजे दूतावास में ही हाउस अरेस्ट जैसी स्थिति में रहे और स्वीडन प्रत्यर्पण मामले के खिलाफ अपील करने का प्रयास किया.
समय के साथ, इक्वाडोर सरकार के साथ भी उनके झगड़े शुरू हो गए, जिस कारण उन्हें दूतावास से निकाल दिया गया. इक्वाडोर सरकार के इस फैसले के तुरंत बाद लंदन पुलिस 2012 में जारी हुए वारंट पर 'अदालत के सामने आत्मसमर्पण करने में विफल रहने' के लिए असांजे को गिरफ्तार करने पहुंच गई. 2019 के अंत तक, उनके खिलाफ चल रहे स्वीडिश मामलों को हटा दिया गया था क्योंकि उस केस के सबूत काफी पुराने हो गए थे.
गिरफ्तारी के बाद ब्रिटेन में असांजे को 50 हफ़्तों की जेल की सजा सुनाई गई थी. 2019 से उन्हें लंदन के पास एक हाई सिक्योरिटी जेल में रखा गया. इसी बीच अमेरिका ने भी असांजे पर केस करते हुए ब्रिटेन की सरकार के साथ प्रत्यर्पण की कार्यवाही शुरू कर दी.
असांजे ने प्रत्यर्पण के खिलाफ अपील की लेकिन अमेरिकी सरकार ने उनका विरोध किया. असांजे के वकीलों ने कहा कि उन्हें अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन के तहत सुरक्षा की जरूरत है, जो 'फ्री स्पीच' की रक्षा करता है, क्योंकि विकीलीक्स और उसका काम पत्रकारिता के अंतर्गत आता है.
अमेरिकी सरकार की इसके खिलाफ मुख्य दलील थी, "असांजे की हरकतें सूचना एकत्र करने वाले पत्रकार से कहीं आगे निकल गईं, जो खुफिया सरकारी दस्तावेजों को मांगने, चोरी करने और अंधाधुंध प्रकाशित करने के प्रयास के बराबर थीं." यानी अमेरिकी सरकार उन्हें अपराधी मानती थी. ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने असांजे को 2022 में अपने प्रत्यर्पण के खिलाफ अपील करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रत्यर्पण का आदेश जारी किया.
इस पूरे मामले में अमेरिकी सरकार के दखल की बात करें तो जासूसी अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद अमेरिकी सैन्य विश्लेषक चेल्सी मैनिंग (जिन्होंने असांजे को खुफिया दस्तावेज सौंपे थे) को 35 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी. हालांकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनकी सज़ा कम कर दी थी और उनको 2017 में रिहा कर दिया गया था. लेकिन जूलियन असांजे की रिहाई की कोई बात नहीं हुई. इसके बाद जहां ट्रम्प सरकार के न्याय विभाग ने 2019 में असांजे पर 18 मामलों में अभियोग लगाया तो वहीं बाइडेन प्रशासन ने भी उनके प्रत्यर्पण के लिए दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
2023 में ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीस ने अमेरिका से मामले को समाप्त करने का आग्रह किया, और ऑस्ट्रेलियाई सांसदों ने 2024 में एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें असांजे को स्वदेश लौटने की अनुमति देने का आह्वान किया गया था.
उधर पांच साल तक असांजे को जेल में रहने के बाद आखिरकार जून 2024 में अमेरिका ने एक समझौता कर उन्हें रिहा कर दिया. इस समझौते के तहत 52 वर्षीय असांजे को एक अमेरिकी संघीय न्यायाधीश के सामने जासूसी मामले में दोषी होने की बात क़ुबूल करनी थी. इस जुर्म में असांजे को लगभग पांच साल की सजा सुनाई गई, जो कि वे पहले ही ब्रिटेन में काट चुके हैं. इसके बाद असांजे अपने मूल देश ऑस्ट्रेलिया लौट पाएंगे.
जूलियन असांजे ने क्या खुलासे किए थे?
जूलियन असांजे ने विकीलीक्स के जरिए कई बड़े खुलासे किए जिनमें अफगानिस्तान और इराक युद्ध से जुड़े दस्तावेजों के साथ ही अमेरिकी संस्था राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) की ओर से विदेशी अधिकारियों की जासूसी और कुख्यात केबलगेट मामला शामिल है. अफगानिस्तान युद्ध की बात करें तो अक्टूबर, 2010 में विकीलीक्स ने 90,000 से ज़्यादा गोपनीय दस्तावेज़ अपलोड किए जिससे पता चला कि युद्ध में अमेरिकी नागरिकों की मौतों की वास्तविक संख्या को बहुत कम करके बताया गया था. इसके साथ ही यह भी दावा किया गया कि अफगानिस्तान में तालिबान को पाकिस्तान की तरफ से गुप्त समर्थन मिल रहा था और अमेरिकी विशेष बलों की एक इकाई को कुछ वरिष्ठ तालिबानी नेताओं को पकड़ने या मारने का काम सौंपा गया और वह भी बिना किसी मुकदमे के.
अक्टूबर, 2010 में ही विकीलीक्स ने अमेरिका-इराक युद्ध के बारे में भी चार लाख गोपनीय दस्तावेज सार्वजानिक कर दिए जिससे पता चला कि अफगानिस्तान और इराक युद्धों में निर्दोष नागरिकों की मौतें बताई गई संख्या से कहीं ज़्यादा थीं. ये लीक अमेरिकी सैन्य इतिहास में अपनी तरह का सबसे बड़ा सुरक्षा उल्लंघन था. इससे पहले अप्रैल, 2010 में ही विकीलीक्स की तरफ से ही एक अमेरिकी हेलीकॉप्टर हमले का वीडियो जारी किया गया था जिसमें बगदाद में दो रॉयटर्स पत्रकारों, नमीर नूर एल्डीन और सईद चमाघ सहित एक दर्जन निर्दोष लोग मारे गए थे.
इसके अलावा 2015 में विकीलीक्स ने अमेरिकी जासूसी संगठन, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के बारे में खुलासा करते हुए कहा कि अमेरिका, एनएसए का उपयोग करके, जापान, यूरोपीय संघ, इज़राइल, जर्मनी और ब्राज़ील के विदेशी अधिकारियों की भी नियमित रूप से जासूसी कर रहा था. इसके अलावा जूलियन असांजे की वेबसाइट की तरफ से यह भी दावा किया गया कि एनएसए न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनेताओं बल्कि नागरिकों पर भी जासूसी कर रहा था. 2017 के अपने एक ट्वीट में विकीलीक्स ने बताया कि एनएसए पाकिस्तान के मोबाइल नेटवर्क को हैक कर सकता है.
विकीलीक्स के सबसे मशहूर केबलगेट कांड की बात करें तो 2010 में जूलियन असांजे की कंपनी ने करीब ढाई लाख केबल बड़े-बड़े विदेशी मीडिया संस्थानों को सौंप दिए. इन्हीं केबल से खुलासा हुआ कि अमेरिकी राजनयिक अपने कुछ विदेशी समकक्षों के बारे में क्या सोचते हैं. विकीलीक्स ने राजनयिकों की बातचीत के कुछ अंश भी साझा किए जिनमें विदेशी अधिकारियों ने, जिनमें आज उच्च पदों पर बैठे कई लोग भी शामिल हैं, अपनी सरकारों के प्रति निराशा व्यक्त की थी.
भारत के बारे में विकीलीक्स के खुलासे जिन पर मचा था हंगामा
जूलियन असांजे की कंपनी विकीलीक्स ने भारत के बारे में भी कुछ खुलासे किए थे. इनमें भारत पर कश्मीर में सुनियोजित तरीके से टार्चर करने का आरोप लगा था. विकीलीक्स से प्राप्त दस्तावेजों से पता चला कि 2005 में दिल्ली में अमेरिकी राजनयिकों को अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (आईसीआरसी) की ओर से सैकड़ों कैदियों के खिलाफ बिजली के झटके देने, मारपीट और यौन-हिंसा के प्रयोग के बारे में जानकारी दी गई थी. इसके अलावा भारत पर बायोलॉजिकल आतंकी हमला होने की आशंका के साथ ही अमेरिका की ओर से पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत को बैठक से अलग रखने और भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े खुलासे किए थे.
विकीलीक्स की ओर से जारी केबलों में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी स्वीडिश कंपनी साब-स्कैनिया के लिए 'बिचौलिया' होने का आरोप लगाया गया था. यह खुलासा 1970 के दशक में भारत की ओर से लड़ाकू विमान की खरीद के संबंध में था. वहीं भोपाल गैस त्रासदी के सिलसिले में विकीलीक्स ने भारत सरकार पर भोपाल में यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल के फायदे के लिए अमेरिकी सरकार के दबाव के आगे झुकने का आरोप लगाया था.