हर बार आपदा में अवसर ही नहीं होते, कभी-कभी अवसर भी आपदा बन जाते हैं. उत्तर प्रदेश पुलिस ने खुद को मिले मौके को जिस तरह बरता है, वो फिलहाल तो उनकी मुसीबत बढ़ा रहा है. आई.पी.सी के जाने और बी.एन.एस (भारतीय न्याय संहिता) के आने से पुलिस को एक मौका मिला. वो ये कि अब कोर्ट में पुलिस बतौर सुबूत वीडियो भी पेश कर सकती है.
बस फिर क्या था, हाथ कंगन को आरसी (शीशा) क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या. उत्तर प्रदेश पुलिस ने लपक के मौका लिया और वीडियो बनाने शुरू किए गिरफ्तारी के. किसी के पास से देसी तमंचा बरामद करने जैसे मामलों में पहले पुलिस और आरोपी के अलावा तीसरा गवाह लाना पड़ता था. और क्योंकि ज्यादातर बार अपराधी बीच बाजार पकड़ा नहीं जाता था तो अपनी फेवरेट सुनसान जगहों पर गवाह उपजाना पुलिस के लिए बड़ी सिरदर्दी का मसला बना गया था.
इधर पुलिस ने गिरफ्तारी के वीडियो बनाने शुरू किए और उधर सोशल मीडिया पर लोगों ने उत्तर प्रदेश पुलिस को धर दबोचा.
पहले आप ये कुछ वीडियो देख लें –
देखिए ऐसे पकड़ लेती है यूपी पुलिस अपराधियों को !! #viralvideo @Uppolice pic.twitter.com/cAsS7W6J7T
— MANOJ SHARMA LUCKNOW UP🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@ManojSh28986262) July 9, 2024
तो नॉट सो डियर यूपी पुलिस, समाज कैसे बनता है? एक दूसरे की मदद से. इसलिए बतौर सामाजिक प्राणी आपको कुछ सलाह देने की इच्छा है, इसमें आपका ही फायदा है.
पहली बात, आपके दारोगा जो वीडियो बना रहे हैं, उनका हाथ वीडियो प्रोडक्शन में बहुत तंग दिखाई दे रहा है. स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले की बुनियादी गलतियों से लेकर सिनेमेटोग्राफ़ी और डायरेक्शन की भारी कमी दिखाई दे रही है. इसलिए अब क्योंकि ये प्रोडक्शन तो आपको बरसों बरस करने हैं इसलिए आप बाक़ायदा एक UPPP (उत्तर प्रदेश पुलिस प्रोडक्शन) बना लीजिए जिसके बैनर तले बने आपके वीडियो कालांतर में अच्छे सिनेमा की मिसाल के तौर पर दर्ज किए जाएंगे. देखिए, हुआ न दो तीर से एक शिकार.
दूसरा, अब क्योंकि आपने कंपनी बना ही ली है तो सिनेमा की बेसिक ट्रेनिंग के लिए आपको कुछ पुलिसवालों को पुणे के फिल्म स्कूल भेजना चाहिए. छै महीने की ट्रेनिंग में सिनेमाई पाएं तंदुरुस्ती. अब आपका सवाल होगा कि पहले ही फ़ोर्स की इतनी कमी है, किसे भेजें. सवाल में ही जवाब है. अपने थानों में देखिए, दीवार पर चढ़कर रजिस्टर लिए बैठा एक मुंशी नाम का जीव मिलेगा. इस जीव को आप भी शायद भूल चुके होंगे. लेकिन अभी ये है, और आपका सबसे बड़ा NPA (नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट) है. क्योंकि इसका काम है फरियादी की शिकायत दर्ज करना जो ये करता नहीं है. बस इन्हीं मुंशियों को भेजिए फिल्म स्कूल.
तीसरा, एक अच्छी स्क्रिप्ट में हर कैरेक्टर को अपना सौ प्रतिशत देना होता है. आपके ये जो वीडियो हैं इनमें पुलिस तो एक्टिंग नहीं ही कर पा रही है, आरोपी (आपके हिसाब से अपराधी) भी सपाट चेहरे के साथ वीडियो खराब कर रहा है. अवैध देसी तमंचा लेकर निकला अपराधी ज़ाहिर है किसी मंशा से ही निकला होगा. अब अगर उसे सड़क चलते पुलिस धर ले तो वो हक्का बक्का नहीं होगा? उसे भी हैरान रह जाने की एक्टिंग सिखानी होगी. लेकिन चिंता ये बड़ी नहीं है, आपको इसके लिए उसे धर दबोचने से पहले फिल्म इंस्टीट्यूट नहीं भेजना पड़ेगा. आपके मुंशी जब ट्रेनिंग लेकर लौटेंगे तो इन्हें वीडियो बनाने से पहले भरतमुनी का नाट्य शास्त्र ज़रूर ही पढ़ा देंगे.
चौथा, जब तक आपके मुंशी ट्रेनिंग लेकर नहीं आ रहे तब तक साहित्य के कुछ लेखकों की सेवा लीजिए जो पुलिस को संवाद लिख कर दे देंगे. जैसे, पीसीआर में मौजूद चारों पुलिस वाले वीडियो की शुरुआत में आपस में सलाह मशविरा करें कि सुनसान रास्ते पर टहल रहा ये आदमी क्या तमंचा लिए होगा? इस पर कोई सिपाही अपने ‘मन की बात’ बताए कि उसका मन कह रहा है कि तमंचा है इसके पास. इस तरह के संवाद जनता के उस यक्ष प्रश्न का जवाब भी देंगे कि ‘पुलिया पर बैठकर तीन लोगों को चोरी की योजना बनाते हुए पुलिस (रंगे बात?) कैसे धर लेती है’. लोग अभी शायद नहीं जानते कि मनबढ़ों का मन पढ़ लेती है पुलिस.
पांचवा और आख़िरी, थोड़ी भागदौड़ दिखे. तमंचा लिया आदमी पुलिस देखते ही भगे, और सिपाही पीछे से उसे धरें. इससे आप कोर्ट में ये साबित कर सकेंगे कि पुलिस को देखकर जब ये आदमी भागा तभी हमें शक हो गया था कि इसके पास ज़रूर कुछ अवैध मामला होगा. इसके लिए आदमी और पुलिस वालों की रिहर्सल करके लॉन्ग फ्रेम सेट कर दीजिए और एक मार्क बना दीजिए कि फलां झाड़ी के पास काम होना है.
उम्मीद है कि ये कुछ पॉइंट आपके वीडियो प्रोडक्शन को नेक्स्ट लेवल पर ले जाएंगे. आखिरकार सरकार हर बार ऑस्कर में भेजने के लिए प्राइवेट लोगों की फिल्मों का इंतेज़ार क्यों करे. वो दिन भी आए जब यूपी पुलिस प्रोडक्शन के बनाए वीडियो को भारत सरकार ऑस्कर अवार्ड के लिए भेजे. गुड लक (आपको नहीं, जो इन वीडियोज़ में आने वाले हैं उनको) !!
जय हिन्द (अगर ऐसे ही जय होती हो तो) !!