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हेनरी किसिंजर : युद्ध भड़काने वाला डिप्लोमैट या नोबेल जीतने वाला शांति का दूत?

एक प्रोफेसर का सेलिब्रिटी स्टेटस हासिल करने की ये कहानी बड़ी दिलचस्प है. हेनरी किसिंजर की इस कहानी में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन जैसे दुनिया के बड़े नेता जहां अपना किरदार निभाते नजर आते हैं तो वियतनाम युद्ध से लेकर चिली में दक्षिणपंथी तानाशाह की करतूतें भी कहीं न कहीं इस व्यक्ति के बारे में अपनी गवाही दर्ज करती नजर आती हैं

Henry Kissinger
हेनरी किसिंजर, जिन्हें डिप्लोमेट, नोबेल विजेता, युद्ध भड़काने वाले राजनयिक और ना जाने क्या-क्या उपमाएं दी जाती हैं, इनकी कहानी शुरू होती है जर्मनी से.
अपडेटेड 30 नवंबर , 2023

'राजनीति की सबसे बुनियादी समस्या दुष्टता पर नियंत्रण नहीं बल्कि नैतिक रूप से सही होने को सीमित करना है' ये बयान है पूर्व अमेरिकी राजनयिक हेनरी किसिंजर का, जिनका 29 नवंबर 2023, बुधवार को उनके कनेक्टिकट स्थित आवास पर निधन हो गया. एक प्रोफेसर का सेलिब्रिटी स्टेटस हासिल करने की ये कहानी बड़ी दिलचस्प है. इसमें हिंसा है, राजनीति है और एक सफल राजनयिक करियर भी है. 

साथ ही हैं दुनियाभर की आलोचनाएं. इस कहानी में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन जैसे दुनिया के बड़े नेता जहां अपना किरदार निभाते नजर आते हैं तो वियतनाम युद्ध से लेकर चिली में दक्षिणपंथी तानाशाह की करतूतें भी कहीं न कहीं इस व्यक्ति के बारे में अपनी गवाही दर्ज करती नजर आती हैं. 

जर्मनी से अमेरिका कैसे पहुंचे किसिंजर?

हेनरी किसिंजर, जिन्हें डिप्लोमेट, नोबेल विजेता, युद्ध भड़काने वाले राजनयिक और ना जाने क्या-क्या उपमाएं दी जाती हैं, इनकी कहानी शुरू होती है जर्मनी से. 27 मई 1923 को जर्मनी के फोर्थ शहर के एक यहूदी परिवार में हाइंट्ज़ अल्फ्रेड किसिंजर का जन्म हुआ जो आगे चलकर हेनरी किसिंजर के नाम से जाना गए. जहां एक तरफ जर्मनी पहले विश्वयुद्ध का हर्जाना भरने में तंग था तो वहीं हिटलर नाजी पार्टी की जड़ें मजबूत करने में लगा था. इसके बाद से यहूदियों के खिलाफ हिंसा बढ़ती ही गई और कई परिवारों की तरह हेनरी किसिंजर का परिवार भी 1938 में जर्मनी छोड़कर भागने में सफल रहा. 

किसिंजर परिवार का नया आशियाना बना न्यूयॉर्क शहर. 1943 में हेनरी किसिंजर को अमेरिकी नागरिकता भी मिल गई. अब दौर दूसरे विश्वयुद्ध का था. ब्रिटेन अब दुनिया का इकलौता सुपरपावर नहीं रह गया था. पूरब और पश्चिम में दो धड़े तैयार हो रहे थे. अपने हथियारों की ताबड़तोड़ बिक्री कर अमेरिका आर्थिक सम्पन्नता की सीढ़ियां चढ़ चुका था. इधर त्रासद रूप से जर्मनी से निकलने के बाद हेनरी किसिंजर को दोबारा अपने वतन जाने का मौका लगा. मगर इस बार सताए जा रहे यहूदी की तरह नहीं, बल्कि अमेरिकी सैनिक के रूप में. हेनरी किसिंजर यूएस आर्मी के 84वें इन्फेंट्री डिवीजन के सदस्य थे और अमेरिकी इंटेलिजेंस के लिए बतौर अनुवादक काम कर रहे थे. अमेरिकी इंटेलिजेंस में उनके इनपुट के बदौलत अमेरिकी सेना जर्मनी की खुफिया पुलिस (जिन्हें गेस्टापो भी कहा जाता था) के सदस्यों को पकड़ने में मदद मिली. किसिंजर के काम के लिए उन्हें ब्रॉन्ज स्टार से नवाजा गया. 

किसिंजर ने विश्वयुद्ध के इस अनुभव के बारे लिखा जिसे नियाल फर्ग्यूसन ने उनकी बायोग्राफी किसिंजर: दी आइडियलिस्ट में भी प्रकाशित किया. पूर्व अमेरिकी राजनयिक ने लिखा था,

'मैं झोपड़ियां देखता हूं, खाली चेहरे, मृत आंखें देखता हूं. अब आप स्वतंत्र हैं. मैं अपनी इस्त्री की हुई वर्दी के साथ गंदगी में रहा हूं. मुझे पीटा या लात नहीं मारी गई. मैं किस प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान कर सकता हूं? मैंने देखा कि मेरा दोस्त एक झोपड़ी में प्रवेश कर रहा है और बाहर आ रहा है तो आंखों में आंसू लेकर जो मुझे कहता है - वहां मत जाओ. हमें लात मारकर देखना पड़ा कि वो जिंदा हैं या नहीं रहे'.

हार्वर्ड में पढ़ाते-पढ़ाते किया सुरक्षा सलाहकार का रुख

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका लौटकर किसिंजर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशन्स पढ़ाने लगे. इसके साथ ही उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपतियों जॉन एफ. केनेडी और लिंडन जॉनसन के रहते वाइट हाउस में पार्ट टाइम सलाहकार का भी काम किया. वाइट हाउस में काम करने के दौरान ही किसिंजर ने अमेरिकी सरकार के लिए काम करने का मन बना लिया था और 1969 में उस वक्त के अमेरिकी प्रेजिडेंट रिचर्ड निक्सन ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार घोषित कर दिया. इतना ही नहीं, हेनरी किसिंजर अकेले ऐसे व्यक्ति हुए जो एक ही वक्त पर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री दोनों रहे. 


जब इंदिरा गांधी को दी थी गाली 

1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में जंग छिड़ चुकी थी. अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा था कि भारत सरकार पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल ना दे. तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब अमेरिकी प्रेजिडेंट से मिलने वाशिंगटन पहुंचीं तो पहले निक्सन और किसिंजर दोनों ने ही भारतीय प्रधानमंत्री को इंतजार करवाया और उसके बाद हुई मीटिंग में भी बड़े बेरुखी से पाकिस्तान पर हमला ना करने का दबाव बनाया. मगर इंदिरा गांधी ने कब किसकी सुनी थी, आते ही भारतीय सेना को जंग में कूदने का आदेश दिया और बांग्लादेश को अस्तित्व में लेकर आ गईं. 

वाशिंगटन में हुई मीटिंग के खत्म होने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने न सिर्फ इंदिरा गांधी बल्कि भारतीयों के लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया था. इस बात का खुलासा तब हुआ जब निक्सन और किसिंजर के बातचीत के टेप सार्वजनिक हुए. इसके बाद 2005 में जब भारत और अमेरिका के बीच दस वर्षीय रक्षा करार हुआ, तब हेनरी किसिंजर ने इंदिरा गांधी के बारे में अभद्र भाषा इस्तेमाल करने के लिए माफी मांगी थी. अंग्रेजी अखबार द गार्जियन के अनुसार, पूर्व अमेरिकी राजनयिक ने कहा था कि उनके मन में श्रीमती गांधी के प्रति 'बहुत आदर' है. कड़ी टिप्पणियां 'एक बार की घटना' थीं. किसिंजर ने कहा कि वे भारत और अमेरिका के बीच गहरे संबंधों के 'मजबूत समर्थक और प्रवर्तक' रहे हैं. 

वियतनाम युद्ध और किसिंजर के विवाद 

अमेरिकी राष्ट्रपतियों के मैकियावेलियन सलाहकार माने जाने वाले हेनरी किसिंजर के सिर इतने विवाद आए कि आज भी एक बड़ा तबका उन्हें एक 'वॉरमोंगर' यानी युद्ध भड़काने वाले कह कर ही संबोधित करता है. वियतनाम युद्ध के दौरान कंबोडिया में बमबारी से लेकर चिली में दक्षिणपंथी तानाशाह ऑगस्टो पिनोशे की मदद करने तक के आरोप उनपर लगे. कंबोडिया में हुई बमबारी में हजारों लोगों की जानें गई थी. 1969 तक वियतनाम युद्ध में अमेरिका बुरी तरह फंस गया था. पैसा हो चाहे सैनिक संसाधन, हर तरफ से उसे नुकसान झेलना पड़ रहा था. अमेरिका के शहरों में लोग इस युद्ध के विरोध में सड़कों पर उतर रहे थे. इसी वजह से किसिंजर ने एक तरफ जहां उत्तर वियतनाम से बातचीत कर समस्या का हल निकालने की वकालत की तो दूसरी तरफ कंबोडिया में बम गिराकर अपना पलड़ा भारी रखा. 

वियतनाम में सीजफायर की वजह से 1973 में जब किसिंजर को उत्तरी वियतनाम के ले डूक थो के साथ को संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की बात हुई तो डूक थो ने पुरस्कार लेने तक से इनकार कर दिया. सिर्फ इतना ही नहीं, किसिंजर को पुरस्कार दिए जाने के बाद नोबेल पुरस्कार समिति के दो सदस्यों ने भी इस्तीफा दे दिया. 

इस हवाले से संगीतकार टॉम लेहरर ने तो यहां तक कहा था,

'राजनीतिक व्यंग्य तभी अप्रासंगिक हो गया था जब हेनरी किसिंजर को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया'.

सोवियत रूस और चीन के साथ समझौते

किसिंजर ने मास्को और वाशिंगटन के बीच हथियारों को लेकर हुए सॉल्ट समझौते, यानी स्ट्रेटेजिक आर्म्स लिमिटेशंस टॉक्स, में अहम भूमिका निभाई. इसके तहत दोनों ही देशों ने ऐसे मिसाइल के निर्माण पर रोकथाम को लेकर सहमति जताई जो परमाणु हथियार लेकर उड़ान भरने में सक्षम थे. इसके अलावा किसिंजर की नीतियों के ही वजह से अमेरिका ने चीन की तरफ हाथ बढ़ाया और वो भी तब जब वहां कम्युनिस्ट शासन अपने पूरे शबाब पर था. 

किसिंजर का सेलिब्रिटी स्टेटस और उनके 'प्लेबॉय' होने के चर्चे

वियतनाम युद्ध को लेकर हुए पेरिस शांति समझौते के बाद हेनरी किसिंजर का चेहरा मीडिया वाले हर तरफ तलाशते. यहां तक कि उस दौर की कई खूबसूरत मॉडल्स, अभिनेत्रियों, टीवी एंकर्स और यहां तक कि वाइट हाउस की स्टाफ के साथ भी उनका नाम मीडिया ने जोड़ा और हेनरी किसिंजर को 'प्लेबॉय' तक कह दिया गया. हालांकि उनके करीबियों ने इस बात का खंडन करते हुए उस वक्त कहा था कि ये मीडिया द्वारा उछाला हुआ एक इल्जाम है और इसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है. 

रिटायरमेंट के बाद बुश के साथ रिश्ते 

1977 तक अमेरिकी राष्ट्रपतियों रिचर्ड निक्सन और जेराल्ड फोर्ड को अपनी सेवाएं देने के बाद हेनरी किसिंजर ने अपने रिटायरमेंट की घोषणा की. इसके बाद हेनरी किसिंजर ने एक बिजनेस कंसल्टिंग फर्म किसिंजर एसोसिएट्स की स्थापना की. हालांकि औपचारिक रूप से भले ही किसिंजर रिटायर हो चुके थे मगर इसके बाद भी उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपतियों को सलाह देना बंद नहीं किया. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू. बुश के साथ किसिंजर के बड़े अच्छे सम्बन्ध थे. 

अमेरिका में हुए 9/11 हमलों के बाद हेनरी किसिंजर को जांच आयोग की अध्यक्षता करने को कहा गया मगर अपने बिजनेस क्लाइंट्स का खुलासा न करने की वजह से उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. 

युद्ध भड़काने वाला वॉरमोंगर या नोबेल शांति पुरस्कार का विजेता?

हेनरी किसिंजर की मौत के बाद अमेरिका में फिलिस्तीन के समर्थन में चल रहे प्रदर्शनों में जश्न मनाया गया. आज भी कंबोडिया, वियतनाम, अर्जेंटीना, चिली और कई देशों में हुई हिंसा और मौतों के लिए लोग हेनरी किसिंजर को जिम्मेदार ठहराते हैं. वहीं दूसरा धड़ा हेनरी को अमेरिकी इमिग्रेशन की सफलता का बेहतरीन उदाहरण बताते हुए उन्हें हीरो मानता है. इन दोनों पक्षों में किसे सही माना जाए? शायद यह कि इसे किसी बाइनरी में फिट नहीं किया जा सकता, आखिरकार सच्चाई के सबके अपने-अपने रूप होते हैं. तीसरे विश्व के देश, जहां किसिंजर के कार्यकाल में हुई हिंसा के लिए उन्हें अपराधी बताते हैं तो वहीं अमेरिकी मिट्टी की सौगंध खाने वाले कहते हैं कि उन्होंने जो भी किया देश के लिए किया. हेनरी किसिंजर किसी के लिए अच्छा है तो किसी के लिए बुरा, और बाकियों के लिए - कहीं बीच में. 

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