8 दिसंबर को लोकसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर चर्चा हो रही है. इस चर्चा के लिए सदन में 10 घंटे का समय तय किया गया है. सबसे खास बात यह है कि पीएम मोदी ने खुद इस चर्चा की शुरुआत की है.
पीएम ने कहा, हम वंदे मातरम कहते हैं तो ये वेद काल की याद दिलाता है. आजादी के वक्त महात्मा गांधी जैसे नेताओं के लिए यह गीत की ताकत बड़ी थी. पिछली सदी में इसके साथ इतना अन्याय क्यों हुआ, वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों हुआ, वो कौन सी ताकत थी, जिसकी इच्छा पुज्य बापू की भावनाओं पर भी भारी पड़ी.
साथ ही पीएम ने कहा, मोहम्मद अली जिन्ना ने अक्टूबर 1936 में वंदे मातरम का विरोध किया. नेहरू मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को करारा जबाब देते, उसकी निंदा करते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने इसके उलट वंदे मातरम की पड़ताल शुरू कर दी.
कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे पर सवाल पूछते हुए कहा, "ये गीत 150 साल से देश की आत्मा का हिस्सा है. 75 सालों से लोगों के दिल में बसा है. फिर आज इस पर बहस क्यों हो रही है? ऐसा इसलिए क्योंकि बंगाल का चुनाव आ रहा."
इसके साथ ही प्रियंका ने कहा कि जहां तक नेहरू जी की बात है, तो बता दूं कि जितने साल मोदी PM रहे, उतने साल नेहरू जेल में रहे थे.
पीएम मोदी के अलावा सरकार की ओर से राजनाथ सिंह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने इस विषय पर अपनी बात रखी. वहीं, विपक्ष की ओर से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के अलावा लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई समेत 8 सांसदों ने अपनी बात रखी.
ऐसे में जानते हैं कि इस गीत को किसने और कब लिखा था और आखिर 150 साल बाद अचानक वंदे मातरम गीत पर संसद में 10 घंटे चर्चा की क्या वजह है?
वंदे मातरम गीत को कब और किसने लिखा?
यह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 में लिखा था, जो बाद में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से भारत को मुक्त कराने की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक नारा बन गया था. इस गीत को सबसे पहले 1882 में चटर्जी ने उनकी पत्रिका बंगदर्शन में छापा था.
इस गीत को उनके उपन्यास आनंदमठ में भी शामिल किया गया था. इस गीत को लिखे जाने के करीब 21 साल बाद 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने मंच पर वंदे मातरम गाया था. यह पहला मौका था, जब इस गीत को राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले किसी कार्यक्रम के मंच से गाया गया था.
अभी संसद में वंदे मातरम पर चर्चा की क्या वजह है?
अभी संसद में इस मुद्दे पर चर्चा की तीन अहम वजह हो सकती हैं-
1. राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के मौके पर भारत सरकार की ओर से सालभर का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. 2 दिसंबर को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सभी दलों के प्रतिनिधियों की मीटिंग बुलाई थी. इस बैठक में ही तय किया गया था कि वंदे मातरम् को लेकर 8 दिसंबर को लोकसभा और 9 दिसंबर को राज्यसभा में चर्चा होगी.
2. आजादी से पहले 1937 में इसके दूसरे हिस्से को धार्मिक कारणों से उपयोग से हटाया गया था. सरकार चाहती है कि उस ऐतिहासिक विवाद पर चर्चा हो और इसके पीछे नेहरू के समय में जो तुष्टिकरण की राजनीति हुई उसे सामने लाया जा सके
3. वंदे मातरम का इतिहास बंगाल से जुड़ा हुआ है. अगले साल होने वाले बंगाल चुनाव को देखते हुए सरकार इस मुद्दे को सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से सामने लाना चाहती है. इससे सरकार को लगता है कि वह राज्य में BJP के लिए सकारात्मक और राजनीतिक माहौल बना सकेगी.
'वंदे मातरम' विवाद की असल वजह क्या है?
वंदे मातरम के पहले दो छंदों के बाद की पंक्तियों में, खासकर आखिरी की दो पंक्तियों में चटर्जी ने हिंदू देवियों दुर्गा, कमला (या लक्ष्मी) और सरस्वती का जिक्र किया है. 1937 में तत्कालीन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने राष्ट्रीय सभाओं के लिए केवल पहले दो छंदों का उपयोग करने का निर्णय लिया था.
इसके पीछे कांग्रेस का तर्क यह था कि हिंदू देवी-देवताओं का इस गीत में जिक्र किया गया है, जो मुस्लिम समुदाय के कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया. तब इस गीत को लेकर कांग्रेस के प्रस्ताव में कहा गया था, "सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, समिति सिफारिश करती है कि जब भी राष्ट्रीय समारोहों में 'वंदे मातरम' गाया जाए, तो केवल पहले दो पद ही गाए जाने चाहिए."
अब BJP का कहना है कि तब कांग्रेस ने किसी भी व्यक्ति को वंदे मातरम की जगह पर किसी अन्य गीत गाने की स्वतंत्रता को भी स्वीकार किया था. BJP ने तर्क दिया है कि तब इन पंक्तियों को हटाना कांग्रेस की 'विभाजनकारी' योजनाओं को दर्शाता है. प्रधानमंत्री मोदी ने विभाजन का हवाला देते हुए कहा कि इन पंक्तियों को हटाने से देश के विभाजन के बीज बोए गए.
पिछले महीने BJP प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने सितंबर और अक्टूबर 1937 में नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष बोस को लिखे गए पत्रों को एक्स पर पोस्ट करके इस विवाद को नए सिरे से शुरू कर दिया था.
केसवन के मुताबिक, 1937 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वंदे मातरम से देवी दुर्गा की स्तुति वाले छंद हटा दिए गए. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने ये फैसला कुछ सांप्रदायिक समूहों को खुश करने के लिए लिया.
केसवन का कहना था कि कांग्रेस पार्टी ने वंदे मातरम के केवल पहले दो छंदों को स्वीकार किया. कथित सांप्रदायिक कारणों से देवी दुर्गा का आह्वान करने वाले बाद के छंदों को छोड़ दिया गया था.
कांग्रेस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि BJP और उसके वैचारिक मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नियमित रूप से इस गीत से बचते हैं. मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, "यह बहुत ही विडंबनापूर्ण है कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के संरक्षक होने का दावा करते हैं (RSS और BJP) उन्होंने कभी 'वंदे मातरम' नहीं गाया."

