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पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री ने पाक कलाकारों के साथ कोलैब पर क्यों कहा, "बस बहुत हुआ, अब और नहीं"!

पाकिस्तानी कलाकार इस रोक का साफ असर महसूस कर रहे हैं. हानिया आमिर, जिन्हें कभी दिलजीत दोसांझ के साथ सरदार जी 3 में मुख्य भूमिका के लिए चुना गया था, उनकी बॉलीवुड में आने की ख्वाहिशें खत्म हो सकती हैं

पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में कई पाकिस्तानी कलाकार काम करते रहे हैं
पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में कई पाकिस्तानी कलाकार काम करते रहे हैं
अपडेटेड 17 जून , 2025

वो हंसी, जो कभी सरहदों को जोड़ने का काम करती थी, अब आक्रोश में बदल गई है. पहलगाम आतंकी हमले और भारत के जवाबी ऑपरेशन सिंदूर के कुछ ही दिनों बाद, पाकिस्तानी अभिनेता इफ्तिखार ठाकुर ने एक पाकिस्तानी टीवी शो पर भारत के बारे में एक जहरीली टिप्पणी की.

इफ्तिखार भारत में 'चल मेरा पुत्त' फ्रैंचाइज में अपनी हास्य भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं. बहरहाल, टीवी शो पर उनका कमेंट कहीं से भी व्यंग्य नहीं था. यह भड़काऊ था और इसने पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री से असामान्य रूप से तेज और एकजुट प्रतिक्रिया को जन्म दिया - "बस बहुत हुआ."

राष्ट्रीय संकट के समय में तटस्थ रहने के लिए अक्सर आलोचना झेलने वाली इस इंडस्ट्री के लिए यह पल एक बड़ा बदलाव दिखाता है. रिदम बॉयज एंटरटेनमेंट और हम्बल मोशन पिक्चर्स जैसे प्रमुख प्रोडक्शन हाउस, जो पहले सीमा पार सांस्कृतिक सहयोग के समर्थक थे, अब अपनी स्क्रिप्ट्स की समीक्षा कर रहे हैं, एक्टर्स को बदल रहे हैं और विदेशी वितरण रणनीतियों पर फिर से विचार कर रहे हैं, खासकर कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया उन बाजारों में जहां भारतीय, खासकर पंजाबी प्रवासी बड़ी संख्या में रहते हैं.

यह बात सिर्फ एक अभिनेता के भड़काऊ बयानों से कहीं आगे की है. यह उस गहरी नाराजगी को बताता है, जो भारतीय खुफिया एजेंसियों के मुताबिक सीमा पार से लंबे समय से चल रहे कल्चरल प्रोपेगेंडा के पैटर्न की वजह से है, जिसे पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने बढ़ावा दिया है.

एक सीनियर भारतीय खुफिया अधिकारी कहते हैं, "ISPR सिर्फ प्रेस नोट जारी नहीं करता. यह कल्चरल नैरेटिव को आकार देता है, प्रोडक्शन को फंड करता है और मनोरंजन को हथियार बनाता है. देखने में भले वो गैर-नुकसानदायक कॉमेडी या गाना लग सकता है, लेकिन उसे अक्सर भारतीय संस्थाओं को कमजोर करने और विभाजनकारी विचारधाराओं को मजबूत करने के लिए तैयार किया जाता है."

पिछले कुछ सालों में ISPR समर्थित कंटेंट - जैसे टीवी ड्रामा, म्यूजिक वीडियो, फिल्में, यहां तक कि स्टैंड-अप कॉमेडी - चुपके से खास संदेशों को बढ़ावा दे रही है. पहले इसे सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर सोचा गया माना जाता था, लेकिन ठाकुर और उनके सह-अभिनेता नासिर चिन्योटी के उत्तेजक बयानों के बाद अब इस पर भरोसा होने लगा है.

चिन्योटी ने एक विवादास्पद फेसबुक पोस्ट को हंगामे के बाद हटा दिया था, और खबर थी कि वे दो पंजाबी फिल्मों के लिए बातचीत में थे, जो अब अनिश्चित काल के लिए रद्द हो गई हैं.

अब तक, पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री ने वैश्विक पंजाबी भाषी दर्शकों को अपनी ओर खींचने के प्रयास में पाकिस्तानी कलाकारों को अपनाया था. चल मेरा पुत्त और आण्ही दा मजाक ऐ जैसी फिल्मों ने राजनीतिक विवादों से बचते हुए भाषा, हास्य और साझा यादों जैसे सांस्कृतिक समानताओं का फायदा उठाया. हाल ही में, कई पंजाबी सितारे अपने काम को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान गए थे और दुनिया भर में संयुक्त शो किए थे.

अंदरूनी सूत्रों ने माना कि इन कोलैबरेशन में कुछ अनकही सीमाएं भी थीं, जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषयों से बचना, कश्मीर से दूर रहना और तटस्थ, गैर-राजनीतिक विषय-वस्तु पर ध्यान देना. एक प्रमुख पटकथा लेखक कहते हैं, "हम सेफ तरीके से खेल रहे थे. हालांकि, समय के साथ, यह सेफ्टी सेल्फ-सेंसरशिप जैसी लगने लगी."

अब जो चिंता बढ़ा रहा है, वह यह कि सीमा पार के कुछ सहयोग एक अनौपचारिक, छिपे हुए प्रभाव के रास्ते को फायदा पहुंचा रहे थे. हालांकि पाकिस्तान ने 2016 में भारतीय फिल्मों पर आधिकारिक प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन पंजाबी-भाषा की फिल्में चुपके से लाहौर, फैसलाबाद और रावलपिंडी जैसे शहरों में "अनौपचारिक" स्क्रीनिंग के जरिए दिखाई जा रही थीं.

हाल की कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि प्रतिबंध के बावजूद, भारतीय पंजाबी फिल्में सीमा पार के सिनेमाघरों में दर्शकों से भरे हुए हॉल में दिखाई जा रही थीं, हालांकि गुप्त रूप से. इन्हें अक्सर जांच से बचने के लिए तटस्थ श्रेणी कोड के तहत बुक किया जाता था, और पाकिस्तानी एजेंसियां जानबूझकर अनदेखी कर रही थीं. इन स्क्रीनिंग्स ने पंजाबी निर्माताओं को पाकिस्तान के बड़े पंजाबी-भाषी बाजार तक पहुंच दी, बिना कंटेंट कंट्रोल या राजस्व प्रवाह के बारे में किसी जवाबदेही के.

भारतीय सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि यह खामी ISPR के सांस्कृतिक हेरफेर के लिए उपजाऊ जमीन रही है. इन अनौपचारिक स्क्रीनिंग के लिए कथित तौर पर फंडिंग, वितरण की अनुमति और बैकस्टेज सुविधा के साथ-साथ कई शर्तें जुड़ी हुई थीं, जिनमें कंटेंट सैनिटाइजेशन से लेकर हल्के-फुल्के वैचारिक समायोजन शामिल थे.

भारतीय खुफिया एजेंसियों ने कथित तौर पर 2024 के गृह मंत्रालय के डोजियर में इस चुपचाप घुसपैठ को चिह्नित किया है, जिसमें अनियमित ओटीटी चैनलों और प्रवासी-जुड़े प्रोडक्शन हाउस द्वारा अलगाववादी विषयों को बढ़ावा देने के बारे में भी चिंता जताई गई है.

कनाडा के सहयोगी, खासकर टोरंटो और वैंकूवर में रहने वाले, जहां कल्चरल प्रोडक्शन अक्सर प्रवासी सक्रियता से जुड़े होते हैं, अब पाकिस्तानी कलाकारों को कास्ट करने के फैसलों पर फिर से विचार कर रहे हैं. हाल की खुफिया ब्रीफिंग्स और बढ़ती सुरक्षा चिंताओं ने सह-निर्माण पर गहरी छाया डाल दी है.

यहां तक ​​कि राजनीतिक विवादों से दूर रहने वाले पाकिस्तानी कलाकार भी इसका असर महसूस कर रहे हैं. इमरान अशरफ, जो एहना नू रहना सेहना नई आंदा में जस्सी गिल के साथ काम करने वाले थे, खुद को दरकिनार पाते हैं. हनिया आमिर, जिन्हें कभी दिलजीत दोसांझ के साथ सरदार जी 3 में मुख्य भूमिका के लिए चुना गया था, उनकी बॉलीवुड में आने की ख्वाहिशें खत्म हो सकती हैं.

यह रुकावट ऐसे समय में आई है जब पंजाबी सिनेमा रचनात्मक और व्यावसायिक रूप से उन्नति कर रहा है. 'मस्ताने' और 'कैरी ऑन जट्टा 3' जैसी बड़े बजट की फिल्मों ने बॉक्स-ऑफिस पर सफलता, आलोचकों की तारीफ और अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा हासिल की है. लेकिन अब राजनीति के बुरे असर की छाया बड़ी हो रही है, जिससे निर्माताओं को मास अपील के फायदों और सांस्कृतिक संप्रभुता से समझौता करने के जोखिमों के बीच तुलना करनी पड़ रही है.

विडंबना यह है कि यह टूटने का पल कला में नया जोश ला सकता है. कम खुद पर लगाए (सेल्फ इम्पोज्ड) प्रतिबंधों के साथ, फिल्म निर्माताओं को बिना कूटनीतिक संवेदनशीलताओं का ध्यान रखे पहचान, न्याय और संघर्ष जैसे गंभीर विषयों को खुलकर तलाशने की आजादी है. एक निर्देशक का कहना है, "शायद अब समय है कि हम दूसरों से मजाक उधार लेना बंद करें और अपनी आवाज को अपनाएं."

जैसे-जैसे पंजाब के सांस्कृतिक नेता नया रास्ता तय कर रहे हैं, एक शांत लेकिन मजबूत सहमति बन रही है: कला को पुल बनाना चाहिए, न कि गोलियां ढोने वाला रास्ता; हास्य लोगों को जोड़े, न कि अपमान का जरिया बने. और अगर इसका मतलब सीमा पार के पुराने सहयोगियों से अलग होना है, तो यही सही.

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