
इस साल जबरदस्त गर्मी झेलने के बाद अब देशवासियों को भयानक सर्दी का भी सामना करना पड़ सकता है. इस गर्मी देश में 40 हजार से अधिक संदिग्ध हीटस्ट्रोक के मामले दर्ज किए गए थे, जबकि इससे पूरे देश में कई लोगों की मौत भी हुई थी. अब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बीते दो सितंबर को जारी अपनी भविष्यवाणी में कहा कि इस बार लोगों को कड़ाके की सर्दी भी झेलनी पड़ सकती है. IMD ने इसके पीछे मौसम संबंधी 'ला नीना' पैटर्न को जिम्मेदार बताया है.
दरअसल, IMD सहित कई वैश्विक मौसम एजेंसियों ने ला नीना को लेकर भविष्यवाणी की थी कि ये जुलाई-अगस्त से शुरू होती दिखाई पड़ सकती है. लेकिन ये सभी पूर्वानुमान गलत साबित हुए हैं. ला नीना में देरी की वजह से ही आईएमडी ने ये अनुमान लगाया है कि देश में जबरदस्त सर्दी देखने को मिल सकती है. ऐसे में आइए समझते हैं कि कड़ाके की सर्दी के पीछे ला नीना की घटना कैसे कारक का काम कर सकती है, और उन तमाम एजेंसियों की भविष्यवाणियां आखिर क्यों गलत साबित हुईं?
सबसे पहले, ला नीना क्या होता है?
ला नीना एक जलवायु पैटर्न है, जो एल नीनो सादर्न ओसिलेशन (ENSO) के तीन चरणों का एक हिस्सा है. अन्य दूसरे हैं एल नीनो और न्यूट्रल फेज. एल नीनो और ला नीना दो एक दूसरे के विरोधी जलवायु पैटर्न हैं, जबकि न्यूट्रल फेज में न एल नीनो होता है और न ही ला नीना.
ENSO के तहत सेंट्रल और ईस्टर्न उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के तापमान में बदलाव के साथ-साथ वायुमंडल में इसके ऊपर के वायुदाब में भी परिवर्तन होता है. यह पैटर्न गर्म और ठंडे चरणों के बीच बदलता रहता है जिसे एल नीनो और ला नीना के नाम से जाना जाता है और यह चक्र अनियमित रूप से हर दो से सात साल में होता है.
गर्म चरण को एल नीनो या स्पेनिश में 'द लिटिल बॉय' कहा जाता है, जबकि ठंडे चरण को ला नीना (स्पेनिश में लिटिल गर्ल) कहा जाता है.
ला नीना एक ऐसी घटना है जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन में अहम भूमिका निभाती है. इसे आसान भाषा में समझें तो हमारी धरती 'वेस्ट टू ईस्ट' (पश्चिम से पूर्व की ओर) रोटेट करती है और इसी वजह से जो ट्रॉपिकल विंड यानी उष्णकटिबंधीय हवाएं हैं, वे 'ईस्ट टू वेस्ट' ट्रैवल करती हैं. इसे ऐसे समझें कि जब कोई गाड़ी में बैठकर यात्रा करता है तो उसे महसूस होता है कि हवा विपरीत दिशा से चल रही है.
बहरहाल, इन हवाओं को ट्रेड विंड या व्यापारिक हवाएं कहा जाता है. एल नीनो और ला नीना जैसी जलवायु घटनाओं में इन्हीं हवाओं की अहम भूमिका है.

दरअसल, प्रशांत महासागर में ये ट्रेड विंड पेरू (एक लैटिन अमेरिकी देश) के तट पर मौजूद गर्म जल धाराओं को ऑस्ट्रेलिया की ओर धकेलती हैं. अब यहां एक सवाल उठता है कि ये हवाएं गर्म जल धाराओं को ही क्यों धकेलती हैं. चूंकि गर्म जल धाराओं का आयतन ठंडे पानी के मुकाबले कम होता है इस वजह से ये सतह के ऊपर रहता है. जब ट्रेड विंड गर्म पानी को आगे की ओर धकेलती है तो नीचे से ठंडा पानी आकर उसका स्थान ले लेता है. इसे 'अपवेलिंग' कहते हैं.
अब जब ये गर्म पानी समुद्र से नमी लेते हुए ऑस्ट्रेलिया के पास पहुंचता है तो वाष्पीकृत होकर ऊपर की ओर उठना शुरू कर देता है, और इस वजह से वहां लो प्रेशर का क्षेत्र बनता है. ज्योग्राफी में एक नियम है कि हवाएं 'हाई प्रेशर टू लो प्रेशर' की ओर ट्रैवल करती हैं. जब ऑस्ट्रेलिया में लो प्रेशर बनना शुरू होता है तो चारों तरफ से हवाएं आकर उस स्थान को भरने की कोशिश करती हैं. इसी क्रम में हिंद महासागर में भी ट्रेड विंड समुद्र की नमी लेते हुए आगे बढ़ती हैं और भारत सहित एशिया के अन्य देशों में अच्छी बारिश होती है. इस स्थिति में मॉनसून जबरदस्त माना जाता है.
बहरहाल, ये हुई ला नीना की स्थिति. लेकिन जब इसका विपरीत होता है तो उसे एल नीनो कहा जाता है. इसमें ट्रेड विंड उतनी मजबूत नहीं रहतीं कि वे गर्म जल धारा को आगे की ओर धकेल पाएं. इस वजह से पेरू के तट पर और उसके आस-पास ही लो प्रेशर का क्षेत्र बनता है. इसके नतीजे में वहीं पेरू और उसके आस-पास ही जबरदस्त बारिश होती है और ऑस्ट्रेलिया व एशिया सहित महाद्वीपों में खराब मॉनसून की स्थिति पैदा होती है. इस वजह से ऑस्ट्रेलिया में जहां जंगल की आग जैसी घटनाएं देखने को मिलती हैं तो भारत जैसे देशों में सूखे की स्थिति पैदा होती है.
ग्लोबल एजेंसियों ने क्या भविष्यवाणी की?
इस साल जून में जब अब तक की सबसे शक्तिशाली एल नीनो घटनाओं में से एक खत्म हो गई, तो उसके बाद ENSO तटस्थ चरण में प्रवेश कर गया. इसके बाद कई प्रमुख ग्लोबल मौसम एजेंसियों ने शुरुआती अनुमान लगाया कि ला नीना की स्थिति जुलाई के आसपास शुरू होगी. लेकिन जुलाई के बीच तक आते-आते यह स्पष्ट हो गया कि ला नीना में देरी होगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, तब अमेरिका स्थित राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) ने कहा था कि ENSO का उदासीन से ला नीना फेज में ट्रांजिशन अगस्त और अक्टूबर के बीच होगा.
इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञान ब्यूरो (बीओएम) ने भी कमोबेश यही अनुमान कायम रखा, और ला नीना घटना के लिए जुलाई के बाद के समय की भविष्यवाणी की. भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने भी अप्रैल के मध्य में जारी किए गए पहले चरण के दीर्घावधि पूर्वानुमान (लांग रेंज फोरकास्ट) में ये माना था कि मॉनसून (जून-सितंबर) के उत्तरार्ध में ला नीना की स्थिति पैदा होगी. उसमें एक और सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि ला नीना की वजह से अगस्त और सितंबर के महीनों में और ज्यादा बारिश होने की संभावना जताई गई थी.
क्यों गलत साबित हुए शुरुआती अनुमान?
इसके बारे में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में साइंस कम्युनिकेटर अंजलि मरार इंडियन एक्सप्रेस में लिखती हैं कि भविष्यवाणियों के सही न होने के पीछे कोई एक वजह नहीं है. इसके अलावा जबकि करीब सभी भविष्यवाणियों में ला नीना की शुरुआत का समय गलत अनुमान लगाया गया, लेकिन वे इसके तुलनात्मक रूप से कमजोर होने के बारे में काफी हद तक सटीक थे.
वास्तव में, मौसम मॉडलर और मौसम विज्ञानियों ने ला नीना को लेकर अपने गलत अनुमानों के लिए जो एक प्रमुख वजह बताई है वो इसकी गंभीरता (severity) है. मौसम मॉडल कमजोर ला नीना (या अल नीनो) फेज के बजाय मजबूत ला नीना (या अल नीनो) फेज के मामलों में संकेतों को बेहतर ढंग से पकड़ सकते हैं. इसके अलावा, ऐसे अन्य कारक भी हैं जो प्रशांत महासागर में सतह और उपसतह स्थितियों को प्रभावित करते हैं.
खासतौर पर, इनमें वायुमंडल, हवा और दबाव में इंटर सीजनल (अंतर-मौसमी) परिवर्तनशीलता शामिल है, जो सीधे मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (MJO) की गति से जुड़ी है. MJO एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है. यह बारिश लाने वाली हवाओं और बादलों की एक पूर्व दिशा में चलती पट्टी है. विभिन्न मौसम प्रणालियों के परस्पर क्रिया से कई बार पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो जाता है.
अमेरिकी मौसम रेगुलेटरी संस्था नेशनल ओशन एंड एटमोसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के मुताबिक, मौजूदा समय में प्रशांत महासागर में ENSO-उदासीन स्थितियां बनी हुई हैं. लेटेस्ट पूर्वानुमानों से पता चलता है कि ला नीना की शुरुआत के प्रारंभिक संकेत सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में सामने आएंगे. ला नीना नवंबर में चरम पर होगा, और उत्तरी गोलार्ध में पूरे सर्दियों तक इसके मौजूद रहने की उम्मीद है.
इस साल पड़ सकती है जबरदस्त सर्दी!
ला नीना के देर (सितंबर) से शुरू होने की ओर इशारा करते हुए IMD ने पूर्वानुमान लगाया गया है कि इस साल देश में जबरदस्त सर्दी पड़ सकती है. 2 सितंबर 2024 को IMD की एक घोषणा के मुताबिक, ला नीना के कारण कड़ाके की सर्दी पड़ने की संभावना है. भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में सर्दी की तीव्रता अलग-अलग रहने की उम्मीद है. खास तौर पर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी राज्यों में विशेष रूप से ठंड की स्थिति देखने को मिल सकती है, जहां तापमान संभवतः 3 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है.
इसके अलावा, जबरदस्त ठंड के मौसम और बढ़ी हुई बारिश का संयोजन कृषि को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन इलाकों में जो सर्दियों की फसलों पर निर्भर हैं. आईएमडी ने नागरिकों से आने वाली सर्दियों के लिए पर्याप्त हीटिंग, जरूरी आपूर्ति का स्टॉक करके और मौसम की रिपोर्ट पर अपडेट रहकर तैयारी करने का अनुरोध किया है. आईएमडी स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है और अपडेट और सलाह जारी करना जारी रखेगा.