प्रयागराज की हल्की सर्द सुबह में जब बैरहना दुर्गा पूजा पार्क में ढोल-नगाड़े गूंजे, तो माहौल कुछ और ही था. यह किसी उत्सव का नहीं, बल्कि एक नए अध्याय के जन्म का संकेत था, सनातनी किन्नर अखाड़े के गठन का.
4 नवंबर को कौशल्यानंद गिरि उर्फ टीना मां को इस नए अखाड़े का आचार्य महामंडलेश्वर घोषित किया गया. पर यह नई शुरुआत दरअसल एक पुराने विवाद की परिणति थी, जो पिछले एक दशक से किन्नर अखाड़े की पहचान पर सवाल खड़े कर रहा है.
वर्ष 2015 में नासिक के सिंहस्थ कुंभ से शुरू हुई यह यात्रा उस समय ऐतिहासिक कही गई थी. पहली बार ट्रांसजेंडर (किन्नर) साधुओं को अखाड़ा परिषद की परंपरा में जगह मिली थी. आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में बना किन्नर अखाड़ा न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक रूप से भी ट्रांसजेंडर अधिकारों की आवाज़ बनकर उभरा. लेकिन अब वही अखाड़ा अपने अस्तित्व और उद्देश्य दोनों को लेकर बंट चुका है.
किन्नर अखाड़े का मकसद साफ़ था, ट्रांसजेंडर साधुओं को धार्मिक पहचान और सम्मान दिलाना. समाज में जो लोग हाशिये पर थे, उन्हें आध्यात्मिक मंच देकर मुख्यधारा में लाना. शुरुआत में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इसे समाज सुधार के आंदोलन के रूप में पेश किया. वर्ष 2019 के प्रयागराज कुंभ में अखाड़े की शाही स्नान यात्रा ने इतिहास रचा. पहली बार ‘किन्नर साधु-संतों’ ने शाही स्नान में हिस्सा लिया.
उन्हें जूना अखाड़े का छत्र-चंवर भी प्राप्त हुआ. लेकिन समय के साथ अखाड़ा, जो आध्यात्मिक समावेशिता का प्रतीक बन सकता था, सत्ता संघर्ष, व्यक्तित्व पूजन और बाहरी हस्तक्षेपों का अखाड़ा बन गया. धीरे-धीरे इसका केंद्रबिंदु सामाजिक सरोकारों से हटकर व्यक्तिगत वर्चस्व की राजनीति की ओर खिसक गया. इस साल 2025 की शुरुआत में हुए महाकुंभ के दौरान जब चर्चित फिल्म अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को अखाड़े की महामंडलेश्वर बनाया गया, तो यह फैसला कई वरिष्ठ साधुओं को रास नहीं आया. उनका कहना था कि बिना संन्यास दीक्षा के किसी को भी इतना बड़ा धार्मिक पद देना अखाड़े की मर्यादा के खिलाफ है.
यह विवाद तब और भड़क गया जब ममता कुलकर्णी ने 30 अक्टूबर को गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान बयान दिया कि “दाऊद इब्राहिम आतंकवादी नहीं है, उसने मुंबई ब्लास्ट नहीं किए.” उनके इस बयान ने न केवल समाज में नाराज़गी फैलाई, बल्कि अखाड़े के भीतर भी गहरी दरार डाल दी. टीना मां, जो उत्तर प्रदेश किन्नर कल्याण बोर्ड की सदस्य भी हैं, ने इसे “देशविरोधी सोच” बताते हुए 3 नवंबर को अखाड़ा छोड़ दिया और नया संगठन “सनातनी किन्नर अखाड़ा” बनाने की घोषणा कर दी. उनका कहना था कि “एक देशद्रोही को क्लीन चिट देना हमारी विचारधारा नहीं है. हम अपने धर्म और देश के लिए हैं.”
टीना मां और अन्य साधुओं का आरोप है कि लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी अखाड़े के फैसले थोपती हैं और अपने नज़दीकियों को प्रमुख पदों पर बिठाती हैं. टीना मां ने कहा, “बिना संन्यास दीक्षा आतंकवादियों या उनके करीबियों को अखाड़े में लाना धर्म का अपमान है. हमारे विरोध को दबा दिया गया.”
यह पहली बार नहीं है जब अखाड़े में अंदरूनी असंतोष फूटा हो. इंदौर में 16 अक्टूबर को गद्दी और संपत्ति को लेकर हुए विवाद ने पहले ही यह संकेत दे दिया था कि अखाड़े के भीतर एक गहरी खाई बन चुकी है. उस विवाद में कई किन्नरों ने ज़हर पीने या आत्मदाह की कोशिश की थी. आरोप लगा कि त्रिपाठी ने “एक समुदाय विशेष” का पक्ष लिया. गौरी मां, जिनके जीवन पर वेब सीरीज़ ‘ताली’ बनी थी, ने भी आरोप लगाया कि “लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किन्नर समुदाय को धोखा दिया और एक समुदाय विशेष के साथ खड़ी हो गईं.” हालांकि लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इंकार किया है लेकिन इनके करीबी किन्नर अखाड़ा का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं.
4 नवंबर को प्रयागराज में हुए समारोह में टीना मां को आचार्य महामंडलेश्वर घोषित किया गया. इस मौके पर मुंबई की सोशल वर्कर और एक्ट्रेस श्री गौरी सामंत, अयोध्या, कानपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, मिर्जापुर और वाराणसी के कई वरिष्ठ साधु मौजूद थे. टीना मां ने कहा, “हमारा मकसद सनातन धर्म को मज़बूत करना और उसे राजनीति से दूर रखना है. जो लोग किन्नर अखाड़े को अपनी निजी महत्वाकांक्षा का मंच बना रहे हैं, हम उनसे अलग हैं.” उनके साथ पूर्व में अखाड़े से अलग हो चुकीं भवानी मां, गौरी मां और डॉली मां जैसी जानी-मानी साधु भी जुड़ी हैं. इससे यह साफ़ है कि टूट अब व्यक्तिगत मतभेद से बढ़कर विचारधारात्मक विभाजन में बदल चुकी है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर और अखाड़ों के स्वरूप का अध्ययन करने वाले विनम्र वीर सिंह बताते हैं “ किन्नर अखाड़ा कभी ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आत्मसम्मान की पहचान था. यह पहली बार था जब धार्मिक मंच ने इस समुदाय को समान दर्जा देने की कोशिश की थी लेकिन अब इन विवादों ने उसकी विश्वसनीयता पर असर डाला है.” वर्ष 2015 से 2019 के बीच अखाड़े ने शिक्षा, स्वास्थ्य और पुनर्वास के क्षेत्र में कई प्रयास किए थे. कई राज्यों में ट्रांसजेंडर अधिकारों पर अभियान चलाए गए लेकिन अब ऊर्जा का बड़ा हिस्सा आंतरिक राजनीति में खप रहा है. विनम्र वीर सिंह मानते हैं कि अखाड़े के भीतर के ये विवाद न केवल उसकी छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि उस समुदाय के आत्मविश्वास को भी कमजोर कर रहे हैं, जिसके लिए यह मंच बना था.
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और टीना मां दोनों का दावा है कि वे “धर्म और समाज की सेवा” कर रही हैं. लेकिन उनके रास्ते अलग हैं. त्रिपाठी जहां आधुनिकता और ग्लोबल मंचों पर किन्नर पहचान को स्थापित करने की कोशिश करती हैं, वहीं टीना मां पारंपरिक धार्मिक सीमाओं में रहकर सनातन परंपरा की रक्षा की बात करती हैं.
दरअसल, यह संघर्ष सिर्फ़ दो व्यक्तित्वों का नहीं, बल्कि दो दृष्टिकोणों का है, एक ओर समावेशिता का आधुनिक विचार, और दूसरी ओर शुद्धता व धार्मिक अनुशासन की परंपरागत सोच. किन्नर अखाड़े के भीतर के विवादों ने भले ही उसकी छवि को झटका दिया हो, लेकिन एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि अब इस समुदाय के भीतर भी आत्म-आलोचना और नेतृत्व पर विमर्श शुरू हुआ है. यह संकेत देता है कि किन्नर समाज अब अपनी दिशा तय करने की क्षमता रखता है, भले ही वह दिशा एक से अधिक धाराओं में बंटी हो.

