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कैसे भारत को ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से फायदा भी हो सकता है?

अमेरिका ने सभी भारत से आने वाले सभी सामानों पर 26 फीसद टैरिफ लगाने का फैसला किया है, हालांकि इसमें दवा उद्योग को रियायत दी गई है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)
अपडेटेड 7 अप्रैल , 2025

अप्रैल की 2 तारीख को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ट्रेड पार्टनर देशों पर 'पारस्परिक टैरिफ' लगाने की घोषणा की, जो 6 अप्रैल से प्रभावी हो जाएगा.

अमेरिका ने सभी भारत से आने वाले सभी सामानों पर 26 फीसद टैरिफ लगाने का फैसला किया है, हालांकि, दवा, तांबा, सेमीकंडक्टर, लकड़ी के सामानों के साथ-साथ ऊर्जा और कुछ खनिज को इसमें शामिल नहीं किया है.

ये वो सामान हैं, जिनकी अमेरिका में पर्याप्त उपलब्धता नहीं है. अमेरिका इन सामानों का आयात भारत जैसे देशों से करता है. ऐसे में सवाल है कि अमेरिकी टैरिफ से भारत के बाकी उद्योगों पर क्या असर होगा?

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. अमेरिका उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जिनके साथ हमारे देश का ट्रेड सरप्लस है. यानी अमेरिका से हम जितने पैसे का सामान मंगवाते हैं, उससे कहीं ज्यादा मूल्यों का सामान उनको बेचते हैं.  

पिछले साल यानी वित्त वर्ष 2024 में अमेरिका को भारत का निर्यात उसके कुल निर्यात का 17.7 फीसद था. जबकि अमेरिका से आयात कुल आयात का केवल 6.2 फीसद था.

वित्त वर्ष 2024 में भारत और अमेरिका के बीच कुल व्यापार (सर्विस सेक्टर को छोड़कर) 119.7 बिलियन डॉलर यानी 11.90 हजार करोड़ डॉलर रहा. इसमें से भारत से निर्यात 77.5 बिलियन डॉलर यानी 7.75 हजार करोड़ डॉलर का था जबकि अमेरिका से आयात 42.2 बिलियन डॉलर यानी 4.22 हजार करोड़ डॉलर का था.

पहली नजर में इन आंकड़ों को देखकर लगता है कि अमेरिकी टैरिफ से भारत जिन सामानों को अमेरिका में निर्यात करता था, उसमें भारी नुकसान होने की संभावना है. इनमें स्टील, एल्युमीनियम और ऑटो पार्ट्स शामिल हैं, जिनपर अमेरिका ने 25 फीसद टैरिफ लगाया है.

टैरिफ पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. कुछ लोगों का कहना है कि भारत पर इसका बाकी देशों की तुलना में कम प्रभाव होगा, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 0.2 फीसद होगा. वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि भारत में अमेरिका के इस फैसले का असर यहां के जीडीपी का करीब 1 फीसद हो सकता है.

कुछ एक्सपर्ट्स ये भी मानते हैं कि चूंकि टैरिफ कई देशों पर लागू हैं, इसलिए न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दूसरे देश भी प्रभावित होंगे. इसका फायदा ये हो सकता है कि चीन, वियतनाम, बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में भारतीय उत्पाद अभी भी अमेरिकी बाजार में प्रासंगिक और अपेक्षाकृत सस्ते बने रह सकते हैं.

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, "हमारे ज्यादातर प्रतिस्पर्धी देश, जैसे वियतनाम पर 46 फीसद और चीन पर 34 फीसद बढ़ाकर कुल 54 फीसद टैरिफ लगाया गया है. जबकि भारत पर अमेरिका ने उन देशों से काफी कम 26 फीसद टैरिफ ही लगाया है. अगर चीन और वियतनाम जैसे देशों से आने वाले सामानों का उत्पादन करने में अमेरिका खुद सक्षम नहीं हुआ, तो वहां महंगाई बढ़ेगी, डॉलर को मजबूत रखने के लिए फेडरल रिजर्व बैंक को ब्याज दरों बदलाव करना पड़ सकता है."

सबनवीस आगे कहते हैं, “भारत पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि हम घरेलू अर्थव्यवस्था पर आधारित हैं. हमारा अनुमान है कि इसका असर जीडीपी का 0.2 फीसद ही होगा. आखिरकार अमेरिका को कहीं से तो सामान खरीदना ही होगा. ये भारत के लिए अच्छा मौका हो सकता है. अमेरिका के फैसले से सबसे ज्यादा समस्या उद्योग स्तर पर होगी, जिसका असर रेडीमेड गारमेंट, मोती और कीमती पत्थरों जैसे उद्योगों पर पड़ेगा. इनमें से ज्यादातर एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र में आते हैं."

सबनवीस कहते हैं कि दूसरा मुद्दा ये है कि अमेरिका के साथ अब तक व्यापार कर रहे हर देश को अब नया बाजार खोजना होगा. चूंकि अमेरिका को निर्यात करने वाला हर देश अपने उत्पादों को कहीं बेचना चाहेगा. इन देशों के लिए नया बाजार ढूंढ़ना आसान नहीं होगा. अंततः, इन सभी देशों की कंपनियों के मुनाफे पर नकारात्मक असर पड़ना तय है.

क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक गौतम शाही के अनुसार, नए माहौल में भारत के लिए और अधिक अवसर होंगे. भारत से होम टेक्सटाइल और रेडीमेड गारमेंट यानी कपड़े पर लगाया गया टैरिफ चीन के 54 फीसद, वियतनाम के 46 फीसद, बांग्लादेश के 37 फीसद और पाकिस्तान के 30 फीसद से कम है. ऐसे में यह फैसला अमेरिकी बाजार में उन देशों के सामानों के साथ भारतीय सामानों की सापेक्ष प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकता है. यही वजह है कि भारत के लिए अमेरिकी बाजार में कपड़ा निर्यात करने में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का यह सबसे अच्छा मौका है."

क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक गौतम शाही ने आगे कहा, “उच्च टैरिफ का बोझ कुछ हद तक उपभोक्ताओं यानी अमेरिकी लोगों पर पड़ने की संभावना है. उनके लिए कीमतें बढ़ सकती हैं. इससे कुछ वक्त के लिए चीजों की मांग में कमी आ सकती है. इस वक्त भारत और प्रतिस्पर्धी देशों पर लगाए गए टैरिफ में संभावित उलटफेर पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है.”

एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज के एक अध्ययन में कहा गया है कि 26 फीसद टैरिफ पर भारत का अमेरिका को निर्यात 30-33 बिलियन डॉलर यानी 3 हजार करोड़ डॉलर से 3.3 हजार करोड़ डॉलर तक घट सकता है, जो GDP का 0.8-0.9 फीसद है.

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