पिछले महीने 6-7 मई की दरम्यानी रात भारत और पाकिस्तान के बीच एक जबरदस्त हवाई टकराव हुआ. यह एक गैर-पारंपरिक संघर्ष था जिसमें दोनों देशों ने बिना एक दूसरे के हवाई इलाकों में प्रवेश किए ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए.
यह टकराव 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद बढ़ते तनाव के कारण शुरू हुआ. इस झड़प में दोनों देशों ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए एडवांस्ड लड़ाकू विमानों और मिसाइलों की तैनाती की.
'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत भारत ने अपनी वायुसेना के चार से अधिक स्क्वाड्रनों को तैनात किया था, जिनमें राफेल, एसयू-30 एमकेआई, मिग-29 और मिराज-2000 जेट शामिल थे. ये सभी लड़ाकू विमान ब्रह्मोस और स्कैल्प-ईजी क्रूज मिसाइलों, जमीनी हमलों के लिए एएएसएम हैमर गाइडेड बमों और हवा से हवा में मार करने के लिए मेटियोर मिसाइलों से लैस थे.
पाकिस्तान ने जवाब में 40 से अधिक फाइटर जेट से हमला किया, जिनमें अमेरिका में बने हुए एफ-16 वाइपर और चीन निर्मित जे-10सी और जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान शामिल थे. इसके अलावा पाक ने चीन से हासिल पीएल-15ई हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और भारतीय प्रतिष्ठानों पर फतह-II रॉकेट दागे.
अब जबकि यह साफ हो गया है कि भारत-पाक के बीच इस संघर्ष में चीन का काफी अहम रोल रहा. भारतीय सैन्य अधिकारियों ने चीन पर आरोप लगाया है कि उसने पाकिस्तान को एयर डिफेंस और सैटेलाइट सिस्टम के साथ समर्थन दिया, जो जाहिर तौर पर भारतीय हवाई हमले के सामने कमजोर साबित हुए.
बहरहाल, भारत-पाक के बीच इस तीन दिनी संघर्ष में दोनों तरफ से जबरदस्त मिसाइल और ड्रोन चले. इन सबके बीच अब पंजाब के होशियारपुर जिले के कमाही देवी गांव के पास पाकिस्तानी वायुसेना के जे-10सी या जेएफ-17 जेट द्वारा दागी गई चीनी पीएल-15ई मिसाइल का मलबा मिला है.
मिसाइल के अहम हिस्से, जैसे इसका प्रोपल्शन, डेटा-लिंक, इनर्शियल यूनिट और एडवांस्ड एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन ऐरे (AESA) सीकर, जस के तस पाए गए. इस मलबे की खोज ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है, जिनमें फाइव आईज गठबंधन (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड), जापान और दक्षिण कोरिया ने इसकी दोहरे-पल्स मोटर और AESA तकनीक का अध्ययन करने के लिए 'एक्सेस' का अनुरोध किया है. यह चीन की एडवांस्ड सैन्य तकनीक के बारे में वैश्विक चिंताओं को बताता है.
भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों के पास अब यह मलबा है, जिससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि वे इसे 'रिवर्स-इंजीनियरिंग' के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि भारत के अपने बियॉन्ड-विजुअल-रेंज मिसाइल कार्यक्रमों, जैसे एडवांस्ड अस्त्र मिसाइल को मजबूत किया जा सके और इसके विकास में तकनीकी खामियों को शायद दूर किया जा सके.
रिवर्स-इंजीनियरिंग का मतलब है किसी मौजूदा प्रोडक्ट, उपकरण, या तकनीक को विघटित (disassemble) करके उसकी संरचना, कार्यप्रणाली और डिजाइन को समझना, ताकि उसे दोबारा बनाया जा सके, उसमें सुधार किया जा सके, या उसकी तकनीक को अन्य प्रोडक्ट में इस्तेमाल किया जा सके.
उदाहरण के लिए, अगर किसी मिसाइल का मलबा मिलता है, तो रिवर्स-इंजीनियरिंग के जरिए वैज्ञानिक उसकी तकनीक, जैसे प्रोपल्शन सिस्टम का अध्ययन कर सकते हैं ताकि अपनी खुद की मिसाइलों को बेहतर बना सकें या नई तकनीक विकसित कर सकें. यह प्रक्रिया अक्सर सैन्य, इलेक्ट्रॉनिक्स, सॉफ्टवेयर या मशीनरी के क्षेत्र में उपयोग की जाती है.
29 मई को एक ब्रीफिंग के दौरान चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग शियाओगांग ने इन प्रणालियों की प्रभावशीलता पर सवालों को टाल दिया और इसके बजाय भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने का आग्रह किया. उन्होंने कहा था, "भारत और पाकिस्तान पड़ोसी हैं जो बदले नहीं जा सकते. हम आशा करते हैं कि दोनों पक्ष शांत रहेंगे ताकि स्थिति को और जटिल होने से बचाया जा सके." उन्होंने कहा कि चीन क्षेत्रीय स्थिरता में रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है.
झांग ने माना कि भारत-पाक संघर्ष में पहली बार पीएल-15ई का इस्तेमाल हुआ. हालांकि, उन्होंने इसे एक निर्यातित हथियार बताया, जिसे नवंबर 2024 में झुहाई एयर शो सहित कई रक्षा प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किया गया था. एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ चाइना (एवीआईसी) द्वारा विकसित, पीएल-15ई एक लंबी दूरी की रडार-गाइडेड हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है. भारत में इसके मलबे की बरामदगी ने चीन में ‘टेक्नोलॉजिकल लीक’ को लेकर चिंताएं पैदा की हैं.
पाकिस्तान के हथियार भंडार में सबसे ज्यादा चीनी हथियार हैं. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-24 में उसके हथियारों के आयात का 81 फीसद चीन से आया, जबकि 2015-19 में यह 74 फीसद था. इनमें पाकिस्तान के 400 से अधिक लड़ाकू विमानों का आधा से अधिक हिस्सा शामिल है, खासकर जेएफ-17 और जे-10सी, साथ ही एचक्यू-9 एयर डिफेंस और पीएल-15ई मिसाइल जैसे सिस्टम.
कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स ने 2019-23 के लिए इस आंकड़े को 82 फीसद तक बताया है, जो पाकिस्तान की चीनी हथियारों पर निर्भरता को बताता है. इनमें JF-17 भी शामिल है जिसे पाकिस्तान के साथ मिलकर विकसित किया गया है. रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि भारत के साथ तनाव के चरम पर चीन ने पाकिस्तान को अतिरिक्त पीएल-15ई मिसाइल डिलीवरी की थी.