scorecardresearch

एक्सपर्ट क्यों कर रहे हैं भारत के जीन-एडिटिड चावल का विरोध?

जीनोम-एडिटिड चावल की डीआरआर राइस 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 किस्मों से किसानों को कई तरह से फायदा मिलने का दावा. लेकिन सवाल है किस कीमत पर?

basmati rice export
केंद्र सरकार चावल की दो जीनोम-एडिटिड किस्में जारी करने को तैयार है
अपडेटेड 21 अगस्त , 2025

केंद्र सरकार ने हाल में घोषणा की है कि वह चावल की दो जीनोम-एडिटिड (जीनों के समूह में कुछ जोड़ना या घटाना) किस्में- डीआरआर राइस 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1- जारी करने के लिए तैयार है. ये किस्में सूखा और खारेपन के प्रति रिएक्ट करने वाले जीनों को जीन-एडिटिड तकनीक का उपयोग करके बदला गया है.

नतीजतन इनकी जल दक्षता बढ़ी है, पौधे नमक को बेहतर तरीके से सहन कर सकते हैं. इससे खारी और क्षार वाली मिट्टी में प्रति हेक्टेयर 2.4 से 3.7 टन उपज हासिल हुई है. अधिकारियों के अनुसार इस तकनीक का इस्तेमाल करके लगभग 40 और फसलें विकसित की जा रही हैं.

हालांकि विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि जीन एडिटिंग भी जीन मोडिफिकेशन से कोई अलग नहीं है. बॉयोटेक्नोलॉजी वैज्ञानिक डॉ. कृतिका यज्ञ इसे केवल शब्दों का खेल बताती हैं.

डॉ. यज्ञ कहती हैं, "जीनोम में मोडिफिकेशन के बिना जीन एडिटिंग संभव नहीं है. जीनोम में कोई भी बदलाव आखिरकार मोडिफिकेशन ही है." वे कहती हैं कि कुछ वैज्ञानिकों का यह दावा कि यह विधि अचूक है, इस पर सवाल उठाया जा सकता है. ऐसे वैज्ञानिक शोध हैं जो बताते हैं कि फसलों में किए गए किसी भी जीन मोडिफिकेशन के मानव जीनोम में शामिल होने का जोखिम हो सकता है. शोधकर्ताओं को धीरे-धीरे यह बात समझ आने लगी है. डॉ. यज्ञ कहती हैं, "वक्त का तकाजा है कि रेगूलेशन हो और जागरूकता पैदा की जाए."

स्वतंत्र शोधकर्ता और कृषि-पारिस्थितिकी के विशेषज्ञ सौमिक बनर्जी जीन में दखल की व्याख्या करते हैं. बनर्जी कहते हैं, "हम डीएनए में दखल दे रहे हैं. हम डीएनए के उन तत्वों को हटा रहे हैं जिनके काम के बारे में हमें पता ही नहीं. हम केवल सकारात्मक परिणामों की बात करते हैं, लेकिन हमें नकारात्मक नतीजों की जानकारी नहीं है. प्रकृति ने वे जीन वहां रखे हैं और हम उन्हें यह कहते हुए हटा रहे हैं कि इसका केवल सकारात्मक प्रभाव ही है. ऐसा संभव नहीं है."

उनका तर्क है कि तकनीक पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है और शोध पत्रों में लक्ष्य से इतर कई प्रभावों की पुष्टि की गई है. इस प्रक्रिया के दौरान लक्षित जीनोम सीक्वेंस के अलावा अन्य जीनोम सीक्वेंस में बदलाव हो सकता है और ऐसा कोई भी बदलाव होता है तो उसे वापस बहाल नहीं किया जा सकता. बनर्जी कहते हैं, "इससे पौधे के दिखने वाले भौतिक गुण काफी हद तक बदल जाते हैं. जेनेटिकली मोडिफाइड पौधा एक नया पौधा बन जाता है." वे कहते हैं कि भारत में कई स्ट्रेस टॉलरेंट (तनाव-सहिष्णु) और ज्यादा उत्पादकता वाली चावल की किस्में हैं, जिन्हें ऐसी जोखिम भरी तकनीकों को अपनाने के बजाय उगाया जाना चाहिए. 

किसान कार्यकर्ता भी इससे चिंतित हैं. किसान अधिकार कार्यकर्ता और जीएम-मुक्त भारत गठबंधन की संयोजक कविता कुरुगंती कहती हैं: "हमारी खाद्य प्रणालियों में कोई भी जीन तकनीक एक जीवंत तकनीक है. एक बार जब आप इसे पर्यावरण में छोड़ देते हैं तो बीज अंकुरित होते हैं, फूल खिलते हैं और परागण फैलते हैं. यह परागण बेकाबू तरीके से फैल सकते हैं और इन्हें फिर से पुराने रूप में नहीं लाया जा सकता."

डॉ. यज्ञ उचित सरकारी निगरानी पर जोर देती हैं. "पहली बात तो यह है कि रेगूलेशन सिस्टम बनना जरूरी है- यह जांचने-देखने के लिए कि किस तरह का संशोधन किया जा रहा है, क्यों किया जा रहा है और क्या जेनेटिक मोडिफिकेशन किए बगैर वैसे ही नतीजे पाने का कोई प्राकृतिक विकल्प मौजूद है." वे बताती हैं कि पारंपरिक प्रजनन विधियों से भी ऐसे गुणों में सुधार किया जा सकता है जैसे मक्के के भुट्टों का आकार, हालांकि उतने नाटकीय तरीके से नहीं. 

कुरुगंती बताती हैं कि जीन एडिटिंग और इसके सभी अनुप्रयोगों का रेगूलेशन किया जाना चाहिए. वह एसडीएन1 और एसडीएन2 (साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लिऐज जीनोम एडिटिंग के तहत श्रेणियां) को नियमन-मुक्त करने के सरकार के कदम की आलोचना करती हैं. "जीनोम एडिटिंग जेनेटिक इंजीनियरिंग है. इसका नियमन भारत के शीर्ष जैव प्रौद्योगिकी नियामक, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) के जरिए किया जाना चाहिए था. इसके बजाय उन्होंने एसडीएन1 और एसडीएन2 को नियमन से मुक्त कर दिया और फिर चावल की इन दो किस्मों की घोषणा की. हमने कोई व्यापक, स्वतंत्र या लंबी अवधि में परीक्षण नहीं देखे हैं. यहां तक कि जीएम सरसों के मामले में भी बड़ी कंपनियों पर परीक्षणों में धांधली के आरोप लगे थे. यही कहानी यहां भी दोहराई जा सकती है" वे आगाह करती हैं. 

एक और चिंता पेटेंट की है. इस तकनीक का पेटेंट और लाइसेंस खासतौर पर कॉर्टेवा और मोनसेंटो जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मिला हुआ है. कुरुगंती पूछती हैं कि भारत सरकार को पेटेंट वाली बीज सामग्री को क्यों बढ़ावा देना चाहिए? 

वैश्विक मंचों पर भारत कहता है कि वह बीजों और पौध सामग्री पर पेटेंट के खिलाफ है. चावल की इन पेटेंट वाली किस्मों को बढ़ावा देना उसके इस रुख के उलट है. कुरुगंती कहते हैं, "भारत में किसान हमेशा से बीजों को खुला स्रोत मानते आए हैं, जिन्हें पीढ़ियों से साझा किया जाता रहा है. पेटेंट तकनीकें आजीविका की रक्षा और खाद्य सुरक्षा दोनों को कमजोर करती हैं."

ये विचार जीएम-मुक्त भारत गठबंधन की ओर से आयोजित वेबिनार 'जीन-एडिटिड राइस और उसके प्रभावों को समझना' में सामने आए. विशेषज्ञ इस बात पर सहमत थे कि जीन एडिटिड को जैव सुरक्षा नियमों के दायरे में लाया जाना चाहिए. इसके साथ ही कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल भी उठते हैं. आखिरकार, ऐसी तकनीक की जरूरत ही क्या है? क्या इसके कोई विकल्प हैं? और क्या सरकारें बिना किसी बहस या वैज्ञानिक जांच के नागरिकों पर बिना परीक्षण के कोई भी तकनीकें थोप सकती हैं?

Advertisement
Advertisement