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मोदी सरकार एलन मस्क की कंपनी के खिलाफ जांच क्यों कर रही है?

भारत सरकार की यह जांच एलन मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट सेवा स्टारलिंक को लेकर हो रही है

एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की सॅटॅलाइट इंटरनेट सेवा का नाम है स्टारलिंक
एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की सॅटॅलाइट इंटरनेट सेवा का नाम है स्टारलिंक
अपडेटेड 8 जनवरी , 2025

मई 2023 से ही मणिपुर में चल रही हिंसा में दिसंबर 2024 में एक नया मोड़ तब आया जब सेना और असम राइफल्स ने राज्य के कैराओ खुनो इलाके में संयुक्त रूप से छापामारी की. इसमें हथियार और असलहा के अलावा एक इंटरनेट डिवाइस भी बरामद हुई जिसपर स्टारलिंक का लोगो लगा था. एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की मुफ्त इंटरनेट सेवा स्टारलिंक दूरदराज के इलाकों में भी बेहतरीन इंटरनेट सेवा के प्रसार के लिए जानी जाती है.

सरकार ने अभी तक भारत में स्टारलिंक को मंजूरी नहीं दी है. मणिपुर में कुकी और मेइती के बीच छिड़ी हिंसा के बीच सरकार ने इंटरनेट सेवाओं को रोक रखा था मगर स्टारलिंक की यह इंटरनेट डिवाइस बरामद होने के बाद सवाल उठने लगे कि क्या एलन मस्क की कंपनी की इस सुविधा का मणिपुर में अवैध इस्तेमाल हो रहा है. मणिपुर के अलावा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी इसकी मदद से ड्रग रैकेट चलाने की बात सामने आई है.

जब एलन मस्क ने सैटेलाइट इंटरनेट सेवा स्टारलिंक लॉन्च की तो इसे एक बड़ी तकनीकी सफलता के रूप में सराहा गया. हालांकि, इसी तकनीक को अब भारत में अतिवादियों और तस्करों से जोड़कर देखा जा रहा है. केंद्र सरकार ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए स्टारलिंक को भारत में काम करने के लिए मंज़ूरी पर रोक लगा रखी है. हालांकि इससे जुड़े उपकरणों के आपराधिक गतिविधियों की जांच में बरामदगी के बाद सरकार ने एक उच्च स्तरीय जांच शुरू कर दी है.

इंडिया टुडे की अपनी रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार कौशिक डेका अधिकारियों के हवाले से लिखते हैं कि मणिपुर में इंटरनेट बंद किए जाने के दौरान अतिवादियों ने इंटरनेट एक्सेस बनाए रखने के लिए स्टारलिंक डिवाइस का इस्तेमाल किया था. सरकार इंटरनेट पर यह पाबंदी अतिवादी और आतंकवादी समूहों के बीच के संचार को तोड़ने के लिए लगाई थी मगर स्टारलिंक डिवाइस की मौजूदगी ने कुछ क्षेत्रों में सरकार की इन कोशिशों पर पानी फेर दिया और अतिवादियों को ऐसी कनेक्टिविटी मुहैया कराई जो हिंसा के दौर से पहले भी मौजूद नहीं थी.

स्टारलिंक डिवाइस के बारे में सबसे अहम बात यह है कि यह म्यांमार की सीमा के पास बरामद हुआ है. म्यांमार में स्टारलिंक को कानूनी मान्यता प्राप्त है और यह पूरे वैध तरीके से पड़ोसी देश में काम करता है. ऐसे में स्टारलिंक डिवाइस की मौजूदगी सीमा पार के तस्करी नेटवर्क के बारे में भी सवाल उठाती है. अधिकारियों को संदेह है कि अतिवादियों ने सीमा पार से डिवाइस हासिल की होगी. अगर वाकई ऐसा है तो भारत की पूर्वोत्तर सीमा की निगरानी और सुरक्षा पर सवालिया निशान लगना लाजमी है.

मणिपुर से बरामद स्टारलिंक की इंटरनेट डिवाइस
मणिपुर से बरामद स्टारलिंक की इंटरनेट डिवाइस

जब्त की गई स्टारलिंक डिवाइस की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं, जिसमें लोगों ने एलन मस्क को टैग कर सवाल खड़े किए. मस्क ने ट्विटर पर जवाब देते हुए कहा, "यह गलत है. भारत के ऊपर स्टारलिंक सैटेलाइट बीम ऑन ही नहीं हैं." उनके दावों के बावजूद, स्थानीय अधिकारियों ने पुष्टि की कि उपकरण क्षेत्र में प्रभावी ढंग से काम कर रहा था और ऐसा शायद म्यांमार के नजदीक होने की वजह से था.

मणिपुर में मौजूदगी के अलावा पिछले साल नवंबर में, अंडमान में अधिकारियों ने अब तक की सबसे बड़ी ड्रग जब्ती की. करीब 6,000 किलो मेथमफेटामाइन जिसकी कीमत लगभग 36,000 करोड़ रुपये है, द्वीप समूह से बरामद की गई. तटरक्षक और स्थानीय पुलिस के इस संयुक्त ऑपरेशन में भी म्यांमार का कनेक्शन दिखा. म्यांमार में पंजीकृत मछली पकड़ने वाले एक जहाज से यह ड्रग्स बरामद हुआ. जब्त की गई चीजों में ड्रग्स के अलावा एक पोर्टेबल सैटेलाइट इंटरनेट डिवाइस, स्टारलिंक मिनी भी शामिल थी.

दरअसल तस्करों ने पारंपरिक संचार प्रणालियों को दरकिनार करते हुए समुद्र में नेविगेट करने के लिए स्टारलिंक डिवाइस का इस्तेमाल किया क्योंकि इसकी निगरानी नहीं की जा सकती थी और इसे इसे बाधित नहीं किया जा सकता था. सेलुलर कवरेज के बिना क्षेत्रों में वाई-फाई हॉटस्पॉट बनाने की इस डिवाइस की क्षमता ने इसे तस्करों के लिए एक जरूरी डिवाइस बना दिया, जिन्होंने कथित तौर पर म्यांमार और उसके बाहर के सहयोगियों के साथ समन्वय बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया.

अधिकारियों ने पाया कि तस्करी के इस अभियान में डिवाइस की उन्नत क्षमताओं का फायदा उठाया गया, जिसमें इसकी सहज कनेक्टिविटी और कॉम्पैक्ट डिज़ाइन शामिल है. अंडमान के एक शीर्ष पुलिस अधिकारी हरगोबिंदर सिंह धालीवाल ने इंडिया टुडे को बताया, "यह (स्टारलिंक) अलग है क्योंकि यह सभी कानूनी संचार चैनलों को बायपास करता है." अधिकारी अब आपराधिक गतिविधियों में इस्तेमाल किए जा रहे सैटेलाइट इंटरनेट की जांच कर रहे हैं और इस क्षेत्र में सक्रिय अपराधियों के सिंडिकेट के साथ संबंधों की जांच कर रहे हैं.

कैसे काम करता है स्टारलिंक?

स्टारलिंक एक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा है जो दुनिया भर में तेज़ इंटरनेट मुहैया कराने लिए के लिए 7,000 से ज़्यादा लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट का इस्तेमाल करती है. मोबाइल इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाओं से उलट, यह सीधे अंतरिक्ष से संचालित होती है जो इसे दूरदराज के क्षेत्रों तक अपनी सेवाएं पहुंचाने  में सक्षम बनाती है.

स्टारलिंक की विश्वसनीयता और तेज गति इसकी खासियत है और इसका इस्तेमाल आपदाग्रस्त क्षेत्र में राहत पहुंचाने और सैन्य अभियानों जैसी स्थितियों में बहुत मुफीद साबित होता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी जब यूक्रेन में स्थानीय नेटवर्क बाधित हो गए थे तब स्टारलिंक ने यूक्रेन का साथ देने के लिए वहां अपनी सेवाएं शुरू की थीं.

मगर कहते हैं ना कि 'विद ग्रेट पावर कम्स ग्रेट रेस्पॉन्सिबिलिटी' यानी जितनी ज्यादा ताकत, उतनी बड़ी जिम्मेदारी, तो ऐसा ही कुछ स्टारलिंक के साथ भी है. स्थानीय नेटवर्क को बायपास करने की इसकी क्षमता ही सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा करती है. भारत में, जहां स्टारलिंक बिना लाइसेंस के है, इसके जोखिमों के बारे में बहस चल रही है. ऐसा तब हो रहा है जब तस्करों के हाथ इसकी डिवाइस लग गई हैं. भारतीय अधिकारी कंपनी से और ज़्यादा पारदर्शिता चाहते हैं, लेकिन स्टारलिंक ने गोपनीयता कानूनों का हवाला देते हुए यूजर्स के विवरण साझा करने से मना कर दिया है.

स्टारलिंक भारत के बड़े बाज़ार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा है और लाइसेंस प्राप्त करने के लिए रेगुलेटरी संस्थाओं के साथ बातचीत में है. हालांकि, सरकार का कहना है कि कंपनी को पहले सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने की जरूरत है. अगर मंजूरी मिल जाती है तो स्टारलिंक ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुंच को बेहतर बना सकता है. लेकिन अगर यह भारत आ गया तो इससे रिलायंस जियो और भारती एयरटेल जैसी स्थानीय टेलीकॉम कंपनियों को भी खतरा हो सकता है.

स्टारलिंक के बिना लाइसेंस के इस्तेमाल से अतिवादियों और अपराधियों द्वारा इसके दुरुपयोग की चिंता बढ़ जाती है, खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में. अधिकारियों को चिंता है कि स्टारलिंक की ओर से पारदर्शिता की कमी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है. वे निगरानी क्षमताओं सहित सख्त नियमों की मांग कर रहे हैं.

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