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ED ने अब रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ चार्जशीट दायर क्यों की?

दस साल पुराने लैंड डील मामले में रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ पहली चार्जशीट ऐसे वक्त आई है जब उनकी पत्नी प्रियंका गांधी की सियासी हैसियत तेजी से बढ़ रही है. संसद सत्र से पहले बीजेपी को एक नया राजनीतिक हथियार मिल गया है

Robert Vadra
रॉबर्ट वॉड्रा (फोटो : अरुण कुमार)
अपडेटेड 21 जुलाई , 2025

रॉबर्ट वाड्रा हमेशा से चर्चा में रहने वाली शख्सियत रहे हैं. न तो वे पूरी तरह से राजनेता हैं और न ही खुद को राजनीति से दूर रखने वाले. वे कभी एक फैमिली मैन तो कभी कांग्रेस के लिए राजनीतिक बोझ माने गए. शादी के जरिए वे देश के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार का हिस्सा बने.

अब वाड्रा की जांच एजेंसियों के साथ चली आ रही लंबी लड़ाई एक नए मोड़ पर आ गई है. 17 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके खिलाफ शिकोहपुर लैंड डील केस में चार्जशीट दायर कर दी. यह पहली बार है जब किसी केंद्रीय एजेंसी ने रॉबर्ट वाड्रा पर आपराधिक मुकदमे के तहत औपचारिक रूप से आरोप लगाए हैं.

रॉबर्ट वाड्रा के नाम पर सुर्खियां कोई नई बात नहीं. यूपीए सरकार (2004-2014) के दौर से ही उनकी रियल एस्टेट डील्स सवालों के घेरे में रही हैं. लेकिन चार्जशीट का मतलब अब केवल राजनीतिक शोर नहीं, कानूनी कार्रवाई का रास्ता है.
 
मामला क्या है और अब क्यों आया सामने?

इस केस के केंद्र में हरियाणा के गुरुग्राम के सेक्टर 83 के शिकोहपुर गांव की 3.53 एकड़ जमीन है. फरवरी 2008 में जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, वाड्रा की कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी (जिसे बने हुए तब सिर्फ एक साल हुआ था) ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से ये जमीन 7.5 करोड़ रुपये में खरीदी थी.
 
ईडी की चार्जशीट के मुताबिक, उस वक्त स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के खाते में सिर्फ 1 लाख रुपये थे. खरीदी का चेक वाड्रा की ही एक और कंपनी स्काईलाइट रियल्टी से जारी किया गया, लेकिन वो चेक कभी बैंक में जमा ही नहीं कराया गया.

दिलचस्प बात ये कि अगली ही सुबह जमीन का म्यूटेशन वाड्रा की कंपनी के नाम हो गया, जबकि यह प्रक्रिया आम तौर पर तीन महीने लेती है. सिर्फ चार दिन में कमर्शियल लाइसेंस के लिए मंजूरी भी मिल गई. जून 2008 तक डीएलएफ इस जमीन को 58 करोड़ रुपये में खरीदने के लिए तैयार हो गया. यानी महज चार महीने में जमीन की कीमत करीब 700 फीसदी बढ़ गई.
 
अशोक खेमका की एंट्री

2012 में हरियाणा के सख्त और ईमानदार अफसर माने जाने वाले आईएएस अशोक खेमका ने इस जमीन का म्यूटेशन रद्द कर दिया. उन्होंने इस डील को स्टेट कंसॉलिडेशन एक्ट और अन्य नियमों के उल्लंघन का मामला बताया. खेमका के इस कदम से एक रियल एस्टेट डील राजनीतिक घमासान में बदल गई. 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने इसे कांग्रेस के कथित भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण बना दिया.

2018 में, यानी डील के 10 साल बाद, इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई. इसमें सिर्फ वाड्रा ही नहीं, बल्कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ और अन्य लोगों के नाम भी शामिल हैं. ईडी का मनी लॉन्ड्रिंग केस इसी एफआईआर पर आधारित है. ईडी का आरोप है कि यह मामला क्लासिक मनी लॉन्ड्रिंग का है - जमीन का कम दाम दिखाना, फर्जी दस्तावेज बनाना, राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल और ऐसी कमाई जिसे वाजिब तरीके से साबित नहीं किया जा सकता.

उदाहरण के तौर पर, ईडी का कहना है कि वाड्रा की कंपनियों के पास जमीन खरीदने की आर्थिक क्षमता ही नहीं थी. वहीं, जमीन बेचने वाली कंपनी ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज ने 45 लाख रुपये की स्टांप ड्यूटी खुद भरी. 6 महीने बाद स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को 15.38 करोड़ रुपये, यानी सेल डीड के दोगुना से भी ज्यादा रकम दी, जिससे ईडी इसे 'कम मूल्य दिखाकर स्टांप ड्यूटी बचाने' की साजिश मान रही है.
 
वाड्रा का बचाव

रॉबर्ट वाड्रा का कहना है कि ये सब राजनीतिक साजिश है. उनके दफ्तर की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि वे एक कानून का पालन करने वाले भारतीय नागरिक हैं और कोर्ट में सभी आरोपों से बरी हो जाएंगे. वे इसे बीजेपी की गांधी परिवार के खिलाफ साजिश बता रहे हैं. उनका कहना है कि जब भी वे या राहुल गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं, ये केस दोबारा उछाल दिए जाते हैं.

वाड्रा की बात में दम हो या न हो, लेकिन उनकी बात एक राजनीतिक हथियार जरूर बनती है. बीजेपी लंबे समय से वाड्रा का नाम अपने हर चुनावी भाषण और टीवी डिबेट में कांग्रेस के 'विशेषाधिकार' और 'भ्रष्टाचार' के प्रतीक के तौर पर उछालती रही है. वाड्रा खुद भी कई बार कह चुके हैं कि बीजेपी उनके जरिए प्रियंका गांधी को निशाना बनाना चाहती है.

प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए एक बड़ी ताकत हैं- आक्रामक, मुखर और कई बार राहुल गांधी से भी ज्यादा सख्त तेवर में दिखने वाली. कांग्रेस ने हमेशा वाड्रा के कानूनी मामलों से दूरी बनाए रखी. 2012 में जब स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी का मामला सामने आया था, पार्टी का समर्थन भी बहुत सीमित था. वजह साफ थी- वाड्रा का बचाव करना मतलब उनके पुराने मामलों का बोझ उठाना, और तब कांग्रेस पहले ही भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसी थी.
 
हालांकि, प्रियंका हमेशा अपने पति के साथ खड़ी रहीं. वे ईडी दफ्तर तक साथ गईं, रैलियों में उनके साथ नजर आईं. लेकिन जितनी बार वाड्रा रायबरेली में प्रचार करते दिखे या राहुल गांधी के नामांकन के वक्त साथ रहे, कांग्रेस संगठन ने कभी उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं किया. और अब चार्जशीट के बाद वाड्रा कांग्रेस के लिए वही कमजोरी बने हुए हैं, जो वे सालों से थे- बस अब ज्यादा उजागर होकर.
 
इसके सियासी मायने

सोनिया गांधी और राहुल गांधी पहले से नेशनल हेराल्ड केस में फंसे हैं. ऐसे में वाड्रा के खिलाफ चार्जशीट से गांधी परिवार पर सवालों की एक और फेहरिस्त जुड़ गई है. जब भी प्रियंका सरकार पर तीखे हमले करती हैं, बीजेपी उनके जवाब में वाड्रा का नाम सामने रख देती है. और राजनीति में कई बार इतना ही काफी होता है.
 
ये वक्त भी यूं ही नहीं चुना गया है. आज 21 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू हो चुका है. विपक्ष सरकार को ऑपरेशन सिंदूर से लेकर भारत की वैश्विक छवि तक कई मुद्दों पर घेरने की तैयारी में है. ऐसे में वाड्रा के खिलाफ चार्जशीट बीजेपी के पास एक तैयार राजनीतिक हथियार बनकर आ गई है. कांग्रेस आक्रामक तेवर दिखाने को तैयार है और बीजेपी के पास अब नया तीर- वाड्रा का मामला- मौजूद है.

जब प्रियंका संसद में ज्यादा मजबूती और आक्रामकता से दिखने की तैयारी कर रही हैं, ईडी ने उनके पति के खिलाफ आधिकारिक आरोप तय कर दिए हैं. यह विडंबना ही है कि जिन डील्स ने कांग्रेस राज में वाड्रा को फायदा पहुंचाया, वही डील्स अब प्रियंका के सियासी सफर में रोड़ा बन रही हैं. अदालत ने अभी इस चार्जशीट पर संज्ञान नहीं लिया है. वहीं वाड्रा के खिलाफ ईडी के पास दो और जांचें भी लंबित हैं — एक बीकानेर की विवादित जमीन डील और दूसरी लंदन की कथित बेनामी संपत्ति, जो आर्म्स डीलर संजय भंडारी से जुड़ी बताई जाती है.

कानूनी तौर पर यह एक नया अध्याय है. राजनीतिक तौर पर वही पुरानी कहानी. बड़ा सवाल बस इतना है- क्या ये केस भी बाकी हाई-प्रोफाइल मामलों की तरह शोर के बाद लंबी खामोशी में गुम हो जाएगा या किसी नतीजे तक पहुंचेगा?

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