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मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्यों दी कांग्रेस नेताओं को रिटायरमेंट की सलाह?

अहमदाबाद में 8 और 9 अप्रैल को कांग्रेस का 84वां अधिवेशन आयोजित हुआ जिसमें पार्टी ने अपने भविष्य से जुड़े कई अहम फैसलों पर चर्चा की

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटो)
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (फाइल फोटो)
अपडेटेड 10 अप्रैल , 2025

अप्रैल की 8-9 तारीख को कांग्रेस ने अहमदाबाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का 84वां राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया. पिछले 64 सालों में यह कांग्रेस का गुजरात में इस तरह का पहला सम्मेलन था.

इस जगह का चुनाव कई मायनों में अहम था. गुजरात न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का होम स्टेट है, बल्कि एक ऐसा राज्य भी है जहां कांग्रेस बीते तीन दशकों में कोई चुनावी जीत हासिल नहीं कर पाई है.

इस लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक सूखे को देखते हुए कांग्रेस ने एक प्रस्ताव भी पेश किया, जिसका टाइटल था - "गुजरात में कांग्रेस की जरूरत क्यों है". इसमें राज्य में खोई प्रासंगिकता हासिल करने के लिए पार्टी ने अपनी नई प्रतिबद्धता पर जोर दिया. "न्यायपथ: संकल्प, समर्पण और संघर्ष" थीम के तहत कांग्रेस ने अपनी संगठनात्मक ताकत, ऐतिहासिक विरासत और पॉलिटिकल नैरेटिव को दोबारा हासिल करने पर जोर दिया.

यह सम्मेलन कांग्रेस के लिए एक अहम मोड़ पर आया है. पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था और उसे और बेहतर करने की कोशिश कर रही है. हालांकि पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में पार्टी को असफलताओं का भी सामना करना पड़ा. हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को हार मिली है.

इन लगातार हारों को देखते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे खुश नहीं हैं. यही वजह है कि अहमदाबाद में दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान खड़गे ने पार्टी के निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, "जो लोग काम नहीं करना चाहते, उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए या रेस्ट करना चाहिए." यह साफ संदेश पार्टी के भीतर इस बढ़ती हुई समझ को बताता है कि इसी संगठनात्मक सुस्ती के चलते पार्टी को कई चुनावों में मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

सम्मेलन में जिला कांग्रेस समितियों (DCCs) को मजबूत बनाने की दिशा में अहम बदलाव की घोषणा की गई. उन्हें पार्टी के रिवाइवल (पुनरुद्धार) के लिए नींव करार दिया गया. कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने एलान किया, "हम बड़े पैमाने पर संगठनात्मक फेरबदल करने जा रहे हैं, और इसके लिए दिशा-निर्देश भी होंगे. हमारे महासचिव और प्रभारी इस पर काम कर रहे हैं."

एक प्रमुख सुधार के तहत जिला अध्यक्ष को उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में सार्थक भागीदारी देने की बात कही गई है. यह कदम पार्टी को स्थानीय परिस्थितियों के लिहाज से अधिक जवाबदेह बनाने के लिए उठाया गया है. साथ ही, इसका मकसद इस धारणा को भी कमजोर करना है कि कांग्रेस के उम्मीदवारों के चयन में सारे फैसले दिल्ली से लिए जाते हैं. यह केंद्रीकृत उम्मीदवार चयन के बजाय एक अहम बदलाव को बताता है जो दशकों से कांग्रेस में हावी रहा है.

84वें सम्मेलन में जवाबदेही एक और अहम विषय के रूप में उभरी. फरवरी में खड़गे ने चेतावनी दी थी कि अब महासचिवों और राज्य प्रभारियों को अपने-अपने राज्यों में चुनावी प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा. अहमदाबाद अधिवेशन में भी यही बात दोहराई गई.

इस सम्मेलन का उद्देश्य कांग्रेस की ऐतिहासिक विरासत को दोबारा हासिल करना था, खास तौर पर स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रीय प्रतीकों से इसके जुड़ाव को. यही वजह है कि सरदार वल्लभभाई पटेल स्मारक पर विस्तारित कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक आयोजित करने का फैसला जानबूझकर किया गया है, जो पटेल की 150वीं जयंती के साथ-साथ महात्मा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद बनने के 100 साल पूरे होने के कुछ समय बाद हो रहा है.

खड़गे ने सीधे तौर पर चुनौती देते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच संबंधों को बिगाड़ने के लिए बीजेपी और आरएसएस ने 'सुनियोजित साजिश' रची है. खड़गे ने कहा, "वे सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच संबंधों को इस तरह दिखाने की साजिश कर रहे हैं जैसे कि दोनों नायक एक-दूसरे के विरोधी थे. जबकि सच्चाई यह है कि वे एक ही सिक्के के दो पहलू थे."

गुजरात विद्यापीठ में पटेल द्वारा 1937 में दिए गए भाषण का हवाला देते हुए खड़गे ने कहा कि जब नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष थे और गुजरात के युवा लोग चाहते थे कि वे कैंपेन करें, तो पटेल ने कहा था, "जिस दिन गुजरात इस चुनाव आंदोलन में विजयी होकर कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी साबित कर देगा, हम कांग्रेस अध्यक्ष नेहरूजी का फूलों से स्वागत करेंगे और खुले दिल से उनका स्वागत करेंगे."

AICC सम्मेलन और इसका व्यापक 'न्याय-पथ' प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा खुद को संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के गार्डियन के रूप में पेश करने का प्रयास है. साथ ही, यह विभिन्न मोर्चों पर बीजेपी सरकार की आलोचना भी करता है. प्रस्ताव में कांग्रेस के "एकजुट राष्ट्रवाद" और बीजेपी-आरएसएस के "छद्म राष्ट्रवाद" के बीच अंतर किया गया.

प्रस्ताव में कहा गया है कि कांग्रेस के लिए राष्ट्रवाद का विचार लोगों को एक साथ बांधने वाला है, जबकि बीजेपी-आरएसएस मॉडल देश को धार्मिक, जातिगत, क्षेत्रीय और भाषाई आधार पर बांटना चाहता है.

इस दस्तावेज में खास तौर पर अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए आरक्षण के मामले में सामाजिक न्याय के प्रति बीजेपी के रवैए की तीखी आलोचना की गई है. कांग्रेस आरक्षण को मजबूत करने, देश भर में जाति जनगणना कराने और आबादी के अनुपात में गारंटीकृत बजटीय आवंटन के साथ एससी/एसटी उपयोजनाओं के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने का वादा करती है.

प्रस्ताव में जाति जनगणना पर तेलंगाना की कांग्रेस सरकार की पहल पर प्रकाश डाला गया है, जबकि 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा आयोजित "सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना" के नतीजों को प्रकाशित नहीं करने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार की आलोचना की गई है.

प्रस्ताव में आरक्षण लागू करने में कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डाला गया और कहा गया कि "जब 1951 में सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण को रद्द कर दिया, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने ही संविधान में पहला संशोधन किया और मौलिक अधिकारों के अध्याय में अनुच्छेद 15(4) जोड़ा."

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कथित तौर पर CWC की बैठक के दौरान पार्टी से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तक अपनी पहुंच बढ़ाने और उनके हितों की वकालत करने से पीछे न हटने का आग्रह किया. सूत्रों के अनुसार, उन्होंने वंचित वर्गों के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण की वकालत की और सुझाव दिया कि पिछड़े, अत्यंत पिछड़े और सबसे पिछड़े समुदायों तक पहुंचकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चुनावी वापसी भी कर सकती है.

जहां तक सांप्रदायिक सद्भाव का मामला है, न्याय-पथ प्रस्ताव धर्मनिरपेक्षता के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. इसके बारे में कांग्रेस का दावा है कि यह "भारत की सदियों पुरानी परंपराओं से प्रेरित है." प्रस्ताव में बीजेपी और उसके सहयोगियों पर "धार्मिक टकराव और अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों और ईसाइयों पर हमलों" को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है.

कथित तौर पर राहुल ने पार्टी से मुस्लिम, ईसाई या सिख जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से न डरने का आग्रह किया, और तर्क दिया कि ये "हमले के शिकार अल्पसंख्यक" हैं. हालांकि, कुछ सदस्यों ने चेताया कि इससे हिंदू वोटर अलग-थलग पड़ सकते हैं.

महिला अधिकारों के मामले में, कांग्रेस ने अपनी महिला नेताओं की विरासत और राजीव गांधी के 1993 के संशोधन को याद किया, जिसने 15 लाख से अधिक महिलाओं को स्थानीय निकायों में प्रवेश करने में सक्षम बनाया. पार्टी ने 2023 महिला आरक्षण कानून का स्वागत किया, हालांकि इसके कार्यान्वयन में हो रही देरी की आलोचना भी की और मांग की कि दलित, आदिवासी और पिछड़ी महिलाओं के लिए कोटा तय हो. इसने महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बढ़ोत्तरी को भी इंगित किया.

आर्थिक रूप से, यह अपने अधिकार-आधारित नजरिए की तुलना बीजेपी की "त्रुटिपूर्ण नीतियों" से करता है, जिसमें कीमतों में बढ़ोत्तरी और बाजार के मोनोपॉली को आम आदमी को नुकसान पहुंचाने और एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) को दिवालियापन की ओर धकेलने का दोषी ठहराया गया है, जो सब्सिडी वाले चीनी सामानों के आयातों से और भी बदतर हो गया है.

प्रस्ताव में कृषि कानूनों को रद्द करने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का वादा करने के बावजूद कानून बनाने में सरकार की विफलता की निंदा की गई है. कांग्रेस ने लागत से 50 फीसदी अधिक एमएसपी तय करने और किसानों के लिए ऋण-मुक्त भविष्य सुनिश्चित करने का संकल्प लिया है.

विदेश नीति के मामले में, कांग्रेस के प्रस्ताव में चीन, अमेरिका और फिलिस्तीन के मामले में सरकार के "कमजोर" रुख पर निशाना साधा गया. साथ ही, इसमें पूर्वी लद्दाख पर चीन के कब्जे, अमेरिकी टैरिफ का हवाला देते हुए इसकी आलोचना की गई.

इसके अलावा प्रस्ताव में फिलिस्तीनी देश के लिए समर्थन की पुष्टि की गई है. यह बांग्लादेश में बढ़ते कट्टरपंथ को भी इंगित करता है जो धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए ख़तरा है. प्रस्ताव संगठनात्मक मजबूती के लिए एक रैली के आह्वान के साथ खत्म होता है, जिसमें 2025 को "संगठनात्मक मजबूती का वर्ष" घोषित किया गया है और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से प्रत्येक भारतीय के लिए न्याय की लड़ाई के लिए "अटूट संकल्प" के साथ एकजुट होने का आह्वान किया गया है.

अहमदाबाद से आए प्रस्ताव और संकल्प व्यापक मालूम होते हैं, लेकिन वे पिछली बैठकों में किए गए ऐसे ही वादों को दोहराते हैं, जो काफी हद तक अधूरे रह गए. उदयपुर चिंतन शिविर (2022) ने संगठनात्मक सुधारों का वादा किया था, जिसमें डीसीसी का पुनरुद्धार, "एक व्यक्ति-एक पद" नियम और अधिकारियों के लिए तय कार्यकाल शामिल थे. रायपुर प्लेनरी (2023) ने इन प्रतिबद्धताओं की पुष्टि की और जाति जनगणना की मांग को जोड़ा. फिर भी, कुछ ठोस बदलाव नहीं हुए.

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