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कू : फलक नापने से पहले ही क्यों थम गई पीली चिड़िया की उड़ान?

स्वदेशी सोशल मीडिया एप कू को 2020 में ट्विटर (अब एक्स) के जवाब के तौर पर लॉन्च किया गया था लेकिन अब इसके संस्थापकों ने इसे बंद करने की बात कही है

ट्विटर (एक्स) के देशी प्रतिद्वन्द्वी 'कू' के मालिकों ने इसे बंद करने का फैसला किया है
ट्विटर (एक्स) के देशी प्रतिद्वन्द्वी 'कू' के मालिकों ने इसे बंद करने का फैसला किया है
अपडेटेड 8 जुलाई , 2024

ये 2020 की बात है जब ट्विटर की नीली चिड़िया को टक्कर देने के लिए स्वदेशी पीली चिड़िया (कू एप) सोशल मीडिया के बाजार में उतरी थी. लेकिन फलक नापने से पहले ही इस पीली चिड़िया की उड़ान थम गई है. 3 जून को कू के संस्थापक अप्रमेय राधाकृष्ण ने लिंक्डइन पर इस एप के बंद होने की जानकारी दी.

मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि संस्थापकों ने यह फैसला डेलीहंट सहित कई कंपनियों के साथ संभावित बिक्री या विलय के लिए कई दौर की बातचीत विफल होने के बाद लिया. इसके अलावा फंड की कमी और ऊंची टेक्निकल लागत भी इस सोशल मीडिया एप के बंद होने की बड़ी वजहों में रही.

3 जून को राधाकृष्ण ने मयंक बिदावतका के साथ लिंक्डइन पर एक संयुक्त पोस्ट में लिखा, "धैर्य और दीर्घकालिक पूंजी वे जरूरी चीजें हैं जिनकी बदौलत भारत एक महत्वाकांक्षी और विश्व-स्तरीय उत्पाद बना सकता है, फिर चाहे वह सोशल मीडिया का क्षेत्र हो, एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता हो, अंतरिक्ष, ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) या फिर अन्य भविष्योन्मुखी चीजें. और जब इन क्षेत्रों में पहले से ही कोई वैश्विक दिग्गज मौजूद हो, तो इसके लिए और ज्यादा पूंजी की जरूरत होगी."

उन्होंने अपनी पोस्ट में आगे लिखा, "जब इनमें से कोई कंपनी आगे बढ़ती है, तो उसे बाजार की मर्जी पर नहीं छोड़ा जा सकता जो ऊपर-नीचे होता रहता है. इसे फलने-फूलने और सुरक्षित बनाए रखने के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण की जरूरत होती है. इनके लॉन्च होने के दो साल बाद ही इन्हें मुनाफा कमाने वाली मशीनों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. बल्कि इन्हें लंबी रेस का घोड़ा बनाने के लिए लंबे समय तक देखभाल करने की जरूरत है. हम भारत से बड़े खिलाड़ियों के लिए उस दीर्घकालिक दृष्टिकोण को देखना पसंद करेंगे."

कू को 2021 में तब प्रसिद्धि मिली जब ट्विटर (अब एक्स) कुछ कॉन्टेंट हटाने के मसले पर भारत सरकार से उलझ गया था. सरकार ने ट्विटर से उन करीब 1200 खातों को "निलंबित या ब्लॉक" करने के लिए कहा था जो कथित तौर पर किसान आंदोलन से जुड़ी "गलत सूचना और भड़काऊ सामग्री" का प्रचार-प्रसार कर रहे थे. हालांकि ट्विटर भी इन सामग्रियों को न हटाने को लेकर तन गया और उसके शीर्ष अधिकारियों की तत्कालीन सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद से औपचारिक बातचीत की नौबत पहुंच गई थी.

सरकार के ट्विटर से इस टकराव के बाद कई केंद्रीय मंत्रियों और विभागों ने कू पर अपना नया ठिकाना बनाया. पीयूष गोयल, रविशंकर प्रसाद, लेखक अमीश त्रिपाठी, क्रिकेटर अनिल कुंबले और जवागल श्रीनाथ ये कुछ प्रमुख हस्तियां थीं जिन्होंने सबसे पहले कू पर साइन-अप किया.

कू एप की बात करें तो यह मार्च 2020 में सामने आया था. अप्रमेय राधाकृष्ण संस्थापक जबकि मयंक बिदावतका इसके सह-संस्थापक थे. लॉन्च के समय से ही इस प्लेटफॉर्म की तुलना ट्विटर से की जाने लगी थी. हालांकि यह कभी ट्विटर को टक्कर नहीं दे पाया.

इस प्लेटफॉर्म ने भारत सरकार की "मेक इन इंडिया" पहल के हिस्से के तहत 'आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज' जीता था, जिसके बाद टाइगर ग्लोबल और एक्सेल जैसे जाने-माने निवेशकों से इसे 6 करोड़ डॉलर (करीब पांच अरब रुपये) की फंडिंग हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी. लेकिन कू पिछले एक साल से नई पूंजी जुटाने के लिए संघर्ष कर रहा था. इसने कई कंपनियों के साथ विलय के लिए बातचीत भी की, लेकिन बात नहीं बन पाई.

लिंक्डइन पर लिखी पोस्ट में मयंक बिदावतका ने कहा कि, "वे कई बड़ी इंटरनेट कंपनियों, समूहों और मीडिया घरानों के साथ साझेदारी की संभावना तलाश रहे थे, लेकिन इन बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकला और उनमें से कुछ ने हस्ताक्षर करने के करीब आते-आते अपनी प्राथमिकताएं बदल लीं." कू ने डेलीहंट से डील करने की कोशिश की थी लेकिन यह भी विफल हो गई.

कू और ट्विटर के इंटरफेस में काफी समानताएं थीं. ट्विटर की तरह इस ऐप में भी यूजर हैशटैग के साथ अपनी पोस्ट को वर्गीकृत कर सकते थे. मेंशन या रिप्लाई में दूसरे यूजरों को टैग कर सकते थे. लेकिन कू, ट्विटर से इस मामले में अलग था कि इसके यूजर स्थानीय भाषा में संवाद कर सकते थे. हिंदी, तेलुगु, तमिल, बंगाली, गुजराती, मराठी, असमिया और पंजाबी जैसी कई भारतीय भाषाओं के इस्तेमाल की इसमें सुविधा थी. साथ ही, इसमें एक "टॉक टू टाइप" जैसी नई सुविधा भी जोड़ी गई थी.

इसके अलावा साल 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार की सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और निर्यात संवर्धन विभाग ने अपनी "एक जिला, एक उत्पाद" पहल को बढ़ावा देने के लिए कू के साथ एक समझौता ज्ञापन पर दस्तखत भी किया था. कू सोशल मीडिया की कई परियोजनाओं पर भारत सरकार के साथ काम कर रहा था. यही नहीं, कू ने ब्राजील में भी अपनी मौजूदगी दर्ज की थी और लॉन्च के सिर्फ 48 घंटों में ही दस लाख से ज्यादा लोगों ने इसे डाउनलोड किया था.

लेकिन कू को खुद स्वदेशी बाजार में अपनी पकड़ बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. नई पूंजी जुट नहीं रही थी, इस बीच पिछले साल अप्रैल में कंपनी ने करीब 30 फीसदी कर्मचारियों (करीब 300 लोगों) की छंटनी कर दी. कंपनी ने अपनी दलील में कहा कि घाटे में वृद्धि, सक्रिय यूजर्स की संख्या में गिरावट और कमजोर पड़ता वैश्विक सेंटीमेंट इसके पीछे प्रमुख वजहें रहीं.

संस्थापकों के मुताबिक,  जब कंपनी अपने शीर्ष पर थी तब कू के करीब 21 लाख दैनिक सक्रिय यूजर्स और एक करोड़ मासिक यूजर्स थे, जिनमें 9000 से अधिक VIP लोग शामिल थे. लेकिन इस सफलता के बावजूद वित्तीय चुनौतियों और लंबे समय तक फंडिंग की कमी ने उन्हें पीली चिड़िया को विदाई देने के लिए मजबूर किया.

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