1930 में शुरू हुए दांडी मार्च के अलावा बात चाहे 1917 के चंपारण सत्याग्रह की हो, अहमदाबाद मिल हड़ताल या खेड़ा सत्याग्रह (दोनों 1918) की हो या खिलाफत आंदोलन (1919) या फिर असहयोग आंदोलन (1920) की हो, गांधी ने जहां रहते हुए इन आंदोलनों की अगुवाई की,उस जगह का नाम था- साबरमती आश्रम.
गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे स्थित इस आश्रम को गांधी ने 1917 में बसाया था. तब यह आश्रम 120 एकड़ में फैला हुआ था. इसमें 63 भवन हुआ करते थे. आज इस आश्रम की हालत देखें तो इसका परिसर महज 5 एकड़ में सिमट गया है. कई इमारतें जर्जर हो चुकी हैं.
यही वजह है कि 12 मार्च को दांडी यात्रा की 94वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1200 करोड़ रुपये की लागत से साबरमती आश्रम स्मारक विकास परियोजना के मास्टरप्लान का अनावरण किया. इसके अलावा उन्होंने पुनर्विकसित हो चुके कोचरब आश्रम का भी शुभारंभ किया.
वैसे तो इस प्रोजेक्ट का एलान 2021 में हुआ था. तब ये सवाल उठे थे कि साबरमती आश्रम को 'गांधी थीम पार्क' में बदल दिया जाएगा. यानी अब सरकार इसका संचालन करेगी. लेकिन गुजरात सरकार ने तब आश्रम के ट्रस्टियों को आश्वस्त किया था कि इसका 'सरकारीकरण' जैसा कुछ नहीं होगा. ट्रस्टियों की बात करें तो फिलहाल इस आश्रम की देखभाल 'साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरियल ट्रस्ट' (SAPMT) करता है.
बहरहाल, अब 1200 करोड़ की लागत वाले उस मास्टरप्लान पर आते हैं. इसकी जिम्मेदारी जिस संस्था को सौंपी गई है उसका नाम एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्रा. लि. है. अहमदाबाद स्थित इस संस्था के मालिक बिमल पटेल हैं. मास्टर प्लान का उद्देश्य यह है कि मूल साबरमती आश्रम के 63 भवनों में से 36 का जीर्णोद्धार किया जाए, उन्हें संरक्षित किया जाए और उनकी पुनर्स्थापना की जाए. इसके अलावा आश्रम का जो परिसर 5 एकड़ में सिमट गया है, उसे 55 एकड़ तक बढ़ाया जाए और संपूर्ण आश्रम का क्षेत्र 322 एकड़ में फैला हो.
इस मास्टरप्लान के मुताबिक, 36 में से जिन 20 भवनों को संरक्षित किया जाएगा, उनमें हृदय कुंज (जहां गांधी और कस्तूरबा रहते थे), चार्ल्स कोरिया द्वारा डिजाइन गांधी मेमोरियल म्यूजियम (यह 1963 में शुरू हुआ), विनोबा-मीरा कुटीर (जहां विनोबा भावे रहते थे) जैसे भवन शामिल हैं. वहीं, जिन 13 भवनों का जीर्णोद्धार करने की योजना है, उनमें दो गौशाला सहित सरदार वल्लभ भाई पटेल का दफ्तर शामिल है. इसके अलावा तीन भवनों के पुनर्विकास की बात भी कही गई है.
मास्टरप्लान के हवाले से ही, इस स्मारक विकास परियोजना के तहत एक नया व्याख्यान केंद्र (ओरिएंटेशन सेंटर), अध्येताओं की रहने की जगह (स्कॉलर रेजीडेंसी), एक पार्किंग एरिया, दो प्रदर्शनी स्थल, एक कैफेटेरिया, एक वर्कशॉप एरिया और एक विशाल प्रवेश द्वार की स्थापना की जाएगी. यही नहीं, आश्रम की दीवारें इस तरह से बनाई जाएंगी कि उनमें गांधी से जुड़ी कहानियां, उनके जीवन की प्रमुख घटनाएं, आंदोलन और यात्रा की जानकारी, उनकी रोजमर्रा के जीवन की सूचनाएं दर्ज रहेंगी.
साबरमती आश्रम से हटकर अब जरा गांधी पर आते हैं. 1893 से 1914 के बीच गांधी जब दक्षिण अफ्रीका में निवास कर रहे थे, तो वहां उन्होंने दो आश्रम बनाए. पहला, 1904 में डरबन के नेटाल में, नाम था-फीनिक्स आश्रम. दूसरा टॉल्सटॉय फार्म था, जो उन्होंने 1910 में जोहान्सबर्ग में बनाया. यह आश्रम 1913 तक चला. गांधी को नेटाल के आश्रम की प्रेरणा जॉन रस्किन की किताब 'अनटू दिस लास्ट' से मिली थी, जिसे उन्होंने एक ही बैठक में पढ़ डाला था.
खैर, गांधी जब जनवरी 1915 में भारत पहुंचे, तो यहां भी उन्होंने आश्रम बनाए. 1915 में ही उन्होंने पहला आश्रम अहमदाबाद के कोचरब में बनाया. इस आश्रम के बारे में सीईपीटी के पूर्व प्रोफेसर नीलकंठ छाया अपनी किताब 'गांधीज प्लेसेज: एन आर्किटेक्चरल डॉक्यूमेंटेशन में लिखते हैं, "यह एक पहले से बनी-बनाई जगह थी, जिसे आश्रम के इस्तेमाल के लिए किराए पर लिया गया था. लेकिन यह गांधी के अपने डिजाइन, अपनी सोच के अनुरूप नहीं था." इस तरह, 1917 में गांधी द्वारा साबरमती आश्रम की नींव रखी गई.
साबरमती आश्रम की खास बात ये थी कि गांधी ने इसे खुद डिजाइन किया था. इसके अलावा इस आश्रम के निर्माण में स्थानीय मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया था. गांधी ने अपना अधिकांश समय इस आश्रम में बिताया. लेकिन 1930 में जब गांधी साबरमती से दांडी यात्रा पर निकले, तो निकलने से पहले उन्होंने प्रण लिया कि जब तक आजादी नहीं मिलेगी तब तक मैं साबरमती आश्रम नहीं आऊंगा. दांडी यात्रा के दौरान ही ब्रिटिश हुकूमत ने गांधी को गिरफ्तार करके यरवदा जेल में कैद कर दिया.
यरवदा जेल से निकलने के बाद गांधी हरिजन यात्रा पर निकल गए. क्योंकि आजादी नहीं मिली थी इसलिए वे साबरमती आश्रम नहीं जा सके. 31 जुलाई, 1933 को उन्होंने साबरमती आश्रम हमेशा के लिए छोड़ दिया. 1934 में देश के जाने-माने व्यवसायी जमनालाल बजाज ने गांधी को वर्धा आने का प्रस्ताव दिया. गांधी वर्धा आ गए. 1936 में यहां उन्होंने सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की. यह गांधी का भारत में तीसरा आश्रम था. स्थापना के समय यहां केवल एक कुटी थी जिसे आदि निवास के नाम से जाना जाता था लेकिन जरूरत के मुताबिक इस आश्रम में कुटियों की संख्या बढ़ती चली गयी.
अब दुबारा साबरमती आश्रम पर लौटते हैं. यह आश्रम 1963 से ही आगंतुक सूची (विजिटर्स बुक) मेंटेन कर रहा है. इस सूची के मुताबिक, कई बड़ी हस्तियों का यहां आगमन हो चुका है. 1961 में यहां महारानी एलिजाबेथ आई थीं. 1984-85 के बीच यहां दलाई लामा का आगमन हुआ. 1995 में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति और गांधी के अनुयायी नेल्सन मंडेला भी यहां आ चुके हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन यहां 2001 में यहां आए थे.