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दिलजीत दोसांझ के बॉयकॉट की मांग के बीच बीजेपी उनके बचाव में क्यों आ गई?

पाक एक्ट्रेस हानिया आमिर के साथ काम करने को लेकर जब दिलजीत दोसांझ के खिलाफ सोशल मीडिया पर बॉयकॉट की मांग उठने लगी, तो किसी ने नहीं सोचा था कि बीजेपी उनके बचाव में आएगी

दिलजीत दोसांझ, सिंगर और एक्टर
दिलजीत दोसांझ, सिंगर और एक्टर
अपडेटेड 1 जुलाई , 2025

जब गायक और अभिनेता दिलजीत दोसांझ के खिलाफ सोशल मीडिया पर बॉयकॉट की मांग उठने लगी, तो किसी ने नहीं सोचा था कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उनके बचाव में आएगी. आखिरकार, दिलजीत पर हमला विपक्षी दलों या उदारवादियों द्वारा नहीं हो रहा था, बल्कि उन्हीं की इंडस्ट्री के लोग उन्हें निशाने पर ले रहे थे.

एक तरफ फिल्म इंडस्ट्री के प्रमुख संगठन FWICE (फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉईज) ने दिलजीत दोसांझ की आलोचना की, तो दूसरी तरफ कुछ प्रमुख सिंगर भी उनके खिलाफ थे. सिंगर मीका सिंह ने उन्हें "फेक सिंगर" कहा, जबकि एक और सिंगर बी प्राक ने इशारों में कहा कि दिलजीत ने अपना जमीर बेच दिया है.

लेकिन सबसे साफ नाराजगी तब दिखी जब उनकी फिल्म सरदार जी 3 की को-स्टार, कनाडा की पंजाबी एक्ट्रेस नीरू बाजवा ने पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर को सोशल मीडिया पर अनफॉलो कर दिया और फिल्म से जुड़े सभी प्रमोशनल पोस्ट हटा दिए.

ऐसे सांस्कृतिक दबाव और निगरानी के माहौल में, बीजेपी की पंजाब यूनिट द्वारा चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के दिलजीत दोसांझ का बचाव करना कई लोगों के लिए हैरानी की बात थी. और इस कदम से जितना दिखा, उससे कहीं ज्यादा छिपा हुआ सामने आया.

इस पूरे विवाद की शुरुआत फिल्म सरदार जी 3 से हुई, जिसकी शूटिंग ज्यादातर यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) में हुई थी. यह शूटिंग 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से पहले की गई थी. उस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त सैन्य और कूटनीतिक कदम उठाए थे.

इस फिल्म में दिलजीत दोसांझ के साथ हानिया आमिर थीं, जो अपनी पहली पंजाबी फिल्म कर रही थीं. फिल्म को विदेशों में रिलीज किया गया, लेकिन भारत में रोक दिया गया. हालांकि, यह कदम भी लोगों के गुस्से को शांत नहीं कर सका.

देश की जनता के एक बड़े वर्ग को यह बात बहुत बुरी लगी कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य और राजनीतिक तनाव अपने चरम पर था, तब दोसांझ पाकिस्तानी एक्ट्रेस के साथ काम कर रहे थे. इस नाराजगी ने जल्द ही इतना तूल पकड़ लिया कि दिलजीत दोसांझ की नागरिकता रद्द करने की मांग तक उठने लगी.

आग में घी डालने वाली बात यह हुई कि हानिया आमिर ने भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान दे डाले. इसके बाद हानिया, माहिरा खान, इकरा अजीज, आयजा खान और कई अन्य पाकिस्तानी सेलिब्रिटीज के इंस्टाग्राम अकाउंट्स भारत में ब्लॉक कर दिए गए. फिल्म के निर्माताओं को भी आलोचना का सामना करना पड़ा.

इसके बाद जो हुआ, वो भारतीय सांस्कृतिक राजनीति में एक दुर्लभ पल था. जहां आमतौर पर ऐसे विवादों को बढ़ने दिया जाता है या आलोचना की भीड़ में शामिल हो जाते हैं, वहीं दिल्ली के बीजेपी सिख नेताओं जैसे आरपी सिंह और अन्य, साथ ही दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी (DSGMC) के पूर्व अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके दिलजीत दोसांझ के बचाव में आगे आए.

दिल्ली में बीजेपी के सीनियर लीडर और पार्टी प्रवक्ता आर पी सिंह ने कहा, "दिलजीत भारतीय संस्कृति के ग्लोबल एंबेसेडर हैं. 'सरदार जी 3' की शूटिंग पहलगाम हमले से पहले हुई थी. उनकी नागरिकता रद्द करने की मांग बिलकुल गैरवाजिब है और राजनीतिक मंशा से प्रेरित है."

मंजीत सिंह जीके ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए इसे एक सफल पंजाबी कलाकार को बदनाम करने की साजिश बताया. उन्होंने कहा, "सिर्फ इसलिए कि कुछ पाकिस्तानी कलाकार इस फिल्म को प्रमोट कर रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि दिलजीत उनका या उनकी विचारधारा का समर्थन करते हैं."

इस अप्रत्याशित दखल के पीछे कारण क्या है? पहला तो यही कि दिलजीत दोसांझ भारतीय सांस्कृतिक दुनिया में एक खास मुकाम रखते हैं. वे सिख समुदाय के एक लोकप्रिय आइकन हैं, जिनका किसी भी अलगाववादी विचारधारा से कोई संबंध नहीं है. वे एक ग्लोबल स्टार हैं जिनकी पहुंच चंडीगढ़ से लेकर कैलिफोर्निया तक है, और उन्होंने सावधानीपूर्वक एक्टिविज्म और पॉलिटिक्स के बीच हमेशा संतुलन बनाए रखा है.

इसके अलावा बीजेपी किसान आंदोलन के बाद पंजाब में अपनी जमीन तलाशने की दोबारा कोशिश कर रही है. उसके लिए दिलजीत जैसे इंसान पर हमला करना राज्य के शहरी और मध्यमवर्गीय सिखों से और दूरी बढ़ाने का खतरा बन सकता था.

दूसरी वजह ये कि बीजेपी को यह महसूस हुआ कि यह विरोध जनता की तरफ से स्वतः नहीं उठ रहा था, बल्कि यह सब मनोरंजन जगत के अंदर के कुछ लोगों द्वारा जानबूझकर फैलाया गया था, जिसके पीछे पेशेवर प्रतिस्पर्धा, प्रासंगिकता की राजनीति और राष्ट्रवाद की भावनाएं काम कर रही थीं.

चूंकि यह हमले मीका सिंह और बी प्राक जैसे जाने-माने पंजाबी कलाकारों की ओर से आए थे, इसलिए इस विवाद को भावनात्मक बल तो मिला, लेकिन साथ ही बीजेपी के लिए स्थिति को संभालना भी आसान हो गया.

भारत विरोधी बयान देने वाली पाकिस्तानी एक्ट्रेस पर निशाना साधने के बजाय सोशल मीडिया का हमला दिलजीत दोसांझ की तरफ मुड़ गया. लेकिन बीजेपी ने खुद को इस झगड़े से ऊपर रखकर ऐसा रूप दिया जैसे वह कमरे में सबसे समझदार और परिपक्व पक्ष है - संयमित, संतुलित और सिर्फ दिखावे के लिए किसी भारतीय कलाकार को बलि का बकरा बनाने को तैयार नहीं.

यह रणनीति इसलिए भी खास थी क्योंकि यह फिल्म विदेशों में राजनीतिक विवाद का मुद्दा बन गई थी. पाकिस्तानी अभिनेता से लेकर यूट्यूबर और कनाडा व यूके में बसी पंजाबी आबादी द्वारा चलाए जाने वाले मीडिया पोर्टल खुलकर सरदार जी 3 का प्रचार कर रहे थे, भले ही यह फिल्म भारत के सिनेमाघरों में नहीं दिखाई गई.

पाकिस्तानी अधिकारियों ने फिल्म को वहां रिलीज करने की इजाजत दी. खबरों के मुताबिक, फिल्म ने वहां $500,000 (लगभग 4.28 करोड़ रुपये) का कारोबार किया. भारत में कुछ लोगों को इससे यह शक और भी गहरा हो गया कि यह फिल्म सॉफ्ट प्रोपेगेंडा का एक जरिया बन चुकी है.

हालांकि पाकिस्तान ने 2016 में भारतीय फिल्मों पर आधिकारिक प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन पंजाबी भाषा की फिल्में चुपके से वहां जगह बना रही थीं, खासकर लाहौर, फैसलाबाद और रावलपिंडी जैसे शहरों में "गैर-आधिकारिक" प्रदर्शनों के जरिए. हाल की कुछ रिपोर्टों में खुलासा हुआ है कि प्रतिबंध के बावजूद, भारतीय पंजाबी फिल्में अब भी पाकिस्तान के सिनेमाघरों में चोरी-छिपे दिखाई जाती हैं, और वहां पूरा हॉल भरा रहता है.

अक्सर इन फिल्मों को जांच से बचाने के लिए तटस्थ श्रेणियों (न्यूट्रल कैटेगरी कोड्स) में बुक किया जाता था, और पाकिस्तानी एजेंसियां जानबूझकर इसे नजरअंदाज करती थीं. इस तरह की स्क्रीनिंग से पंजाबी फिल्म निर्माताओं को पाकिस्तान के बड़े पंजाबी भाषी बाजार तक पहुंच मिल गई, वो भी बिना किसी जवाबदेही के, न कंटेंट कंट्रोल का हिसाब, न ही कमाई के प्रवाह का.

गौर करने वाली बात यह है कि 2016 के उरी हमले के बाद जब पूरे भारत में फिल्म निर्माता पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करना बंद कर चुके थे, तब भी पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री ने ऐसा नहीं किया, और आखिरकार इस विवाद में फंस गई.

भारत के लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए 'सरदार जी 3' के सह-निर्माता गुनीर सिंह सिद्धू ने घोषणा की है कि वे भविष्य में किसी पाकिस्तानी कलाकार के साथ काम नहीं करेंगे. साथ ही, उन्होंने भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर हानिया आमिर की टिप्पणी की आलोचना भी की.

हालांकि, बीजेपी नेताओं ने यह ध्यान रखा है कि फिल्म के प्रमोशन को कलाकार की मंशा से जोड़कर न देखा जाए. पंजाब में बीजेपी नेता और पंजाबी अभिनेता हॉबी धालीवाल जो दोसांझ का समर्थन कर रहे हैं, ने कहा, "हम सभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का विरोध करते हैं, लेकिन सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी कलाकार की मंशा को निशाना नहीं बनाया जा सकता. परिस्थितियों को समझना जरूरी होता है."

अगर व्यापक रूप से देखा जाए, तो इस पूरे मामले को संभालने के तरीके से यह साफ झलकता है कि बीजेपी अब सांस्कृतिक क्षेत्र में राष्ट्रवाद की परिभाषा को नए सिरे से गढ़ रही है. 2016 के उरी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर जो कट्टर और जीरो-टॉलरेंस वाला रुख अपनाया गया था, उसके मुकाबले इस बार की प्रतिक्रिया कहीं ज्यादा संतुलित और सूझबूझ भरी थी.

इस बार न तो पाकिस्तान का बचाव किया गया, न ही हाल के आतंकी हमलों में उसकी भूमिका को कम करके बताया गया. लेकिन साथ ही यह कोशिश भी नहीं की गई कि एक भारतीय कलाकार को उस फिल्म के लिए सजा दी जाए, जिसकी शूटिंग मौजूदा हालात से पहले के भिन्न राजनीतिक माहौल में हुई थी. संदेश साफ था: सरकार का गुस्सा पाकिस्तान की सरकार और उसके आतंकी नेटवर्क पर है, न कि उन हर सीमापार संपर्कों पर जो अब के तनाव से पहले हुए थे.

एक ऐसे समय में जब पंजाब का राजनीतिक माहौल बेहद नाजुक बना हुआ है, और जहां आर्थिक परेशानियां, पहचान को लेकर दुविधा और प्रवासी समुदाय द्वारा बढ़ती ध्रुवीकरण की स्थिति है, बीजेपी ने जानबूझकर एक ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने का फैसला किया, जो सांस्कृतिक मुख्यधारा का हिस्सा माना जाता है.

दिलजीत दोसांझ की लोकप्रियता वर्ग और पीढ़ी के बंधनों से परे है - वे लुधियाना के ग्रामीण मेले में उतनी ही सहजता से परफॉर्म करते हैं, जितनी कोचेला जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर. बीजेपी के लिए, ऐसे इंसान को अपनाना एक मौका है जिससे वो सांस्कृतिक खुलेपन का संदेश दे सकती है, बिना अपने राष्ट्रवादी मूलभाव को छोड़े.

बीजेपी नेताओं का कहना है कि दिलजीत दोसांझ का बचाव करना सिर्फ एक कलाकार की रक्षा करने का मामला नहीं था. असल में यह कदम अत्यधिक राष्ट्रवाद की जुनून भरी सोच और फिल्म इंडस्ट्री की आत्मघाती राजनीति से विवाद की दिशा वापस लेने की कोशिश थी.

बीजेपी के इस फैसले से यह संकेत मिलता है कि राष्ट्रवाद का मतलब हर बार 'कैंसिल कल्चर' अपनाना नहीं होता. एक जटिल और विविध समाज में, वैश्विक पहचान रखने वाले ऐसे कलाकार जो कभी-कभी सीमापार कलाकारों के साथ काम करते हैं, उन्हें भी परिस्थिति और संदर्भ का फायदा मिलना चाहिए.

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