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कांग्रेस BJP से सरदार पटेल की विरासत छीनने पर अब इतना जोर क्यों दे रही है?

कांग्रेस ने अहमदाबाद में दो दिवसीय AICC अधिवेशन के दौरान सरदार पटेल की विरासत पर चर्चा के लिए ‘हमारा सरदार’ के नाम से एक प्रस्ताव पारित किया

अहमदाबाद में AICC सम्मेलन आयोजित हुआ
अहमदाबाद में AICC सम्मेलन आयोजित हुआ
अपडेटेड 10 अप्रैल , 2025

अप्रैल की 8 और 9 तारीख को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अहमदाबाद में दो दिवसीय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी यानी AICC सम्मेलन का आयोजन किया. पिछले 6 दशक में कांग्रेस ने पहली बार गुजरात में इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया.

इस सम्मेलन की थीम थी- 'न्यायपथ: संकल्प, समर्पण और संघर्ष'. साबरमती रिवरफ्रंट की पृष्ठभूमि में इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जो साबरमती और कोचरब आश्रम के बीच स्थित है.

कोचरब आश्रम को सत्याग्रह आश्रम के नाम से भी जानते हैं, जहां अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी ने पहली बार अपना आश्रम स्थापित किया था. यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़े स्थलों में काफी अहमियत रखता है.

1,700 से अधिक निर्वाचित और सह-चयनित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य लोगों के बीच पार्टी के विचार को एक बार फिर से मजबूती पूर्वक स्थापित करना था. विशेष रूप से गुजरात में, जहां लंबे समय से BJP सत्ता में है. इस कार्यक्रम में कांग्रेस ने एक बार फिर से गुजरात में सरकार बनाने के लिए अपना रोडमैप बनाया है.

शाहीबाग में सरदार वल्लभभाई पटेल के राष्ट्रीय स्मारक को कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की इस बैठक के लिए जानबूझकर चुना गया था. इस दौरान “हमारा सरदार” के नाम से एक विशेष प्रस्ताव पेश किया गया, जिसपर गहन चर्चा हुई.  इस तरह सम्मेलन में पटेल की प्रतीकात्मकता पूरी तरह से हावी रही.

प्रस्ताव में पटेल की 150वीं जयंती मनाई गई और उन्हें आजीवन कांग्रेसी के रूप में दर्शाया गया, जिनके मूल्य पार्टी के मूल्यों से मेल खाते थे, न कि भाजपा के मूल्यों से. इस दौरान कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा, "सरदार पटेल 1920 में गुजरात कांग्रेस की स्थापना के बाद से ही इसके अध्यक्ष बने और अगले 25 वर्षों तक इस पद पर रहे; इसमें कोई चाहकर भी बदलाव नहीं कर सकता.

कांग्रेस नेताओं ने इस मंच का इस्तेमाल भाजपा पर तीखे आरोप लगाने के लिए किया. इसमें मुख्य आरोप यही था कि भाजपा राजनीतिक फायदे के लिए पटेल की विरासत को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा किया कि BJP और उसके वैचारिक अभिभावक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS ने पटेल के योगदान को हड़पने के लिए एक “सुनियोजित साजिश” रची थी, जबकि वे RSS के कट्टर वैचारिक विरोधी थे. यही वजह थी कि महात्मा की हत्या के बाद 1948 में उन्होंने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था.

कांग्रेस ने तर्क दिया कि BJP पटेल की एकता, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की सच्ची विरासत को संरक्षित करने में विफल रही है. पार्टी ने पटेल की विरासत को विभाजनकारी राष्ट्रवाद के आख्यान में बदल दिया है जो उनके सिद्धांतों के विपरीत है.

कांग्रेस ने किसानों के साथ BJP सरकार के व्यवहार और नीतियों की तुलना ब्रिटिश औपनिवेशिक रणनीति से की और जोर देकर कहा कि नरेंद्र मोदी के शासन में पटेल के न्याय के दृष्टिकोण के साथ विश्वासघात किया गया है.

सरदार पटेल की विरासत फिर हासिल करने की भाजपा की कोशिशें मोदी के कार्यकाल में शुरू हुईं, खास तौर पर 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान.

नरेंद्र मोदी ने पटेल को इस तरह से पेश किया, जैसे वे नेहरू-गांधी परिवार के हाथों अन्याय के शिकार हुए हों. उन्होंने इस तरह दिखाने की कोशिश की है कि नेहरू का स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री बनना सरदार पटेल के साथ अन्याय और छलावा था. इस तरह मोदी ने पटेल के जरिए गुजरात की अस्मिता (पहचान का गौरव) को एक बार फिर से वापस लाने की कोशिश की. इसका परिणाम ये हुआ कि गुजरात में तीन दशकों से बीजेपी सत्ता में है. यही वजह है कि गुजरात में कांग्रेस पार्टी 1998 से ही सरकार बनाने में विफल रही है.

मोदी और भाजपा ने पटेल की छवि को अपने पक्ष में करने के लिए उनके प्रति गर्व, आक्रोश और पहचान जैसी शक्तिशाली भावनाओं का इस्तेमाल किया. मोदी ने अक्सर पटेल और नेहरू के बीच कथित तनाव को उजागर किया. एक ऐसा दावा जिसे कांग्रेस ने बार-बार झूठ करार देते हुए खारिज करने की कोशिश की है. ऐसा लगता है कि बीजेपी गांधी-नेहरू-पटेल की तिकड़ी से मिली विरासत को खत्म करने के लिए ऐसा कर रही है.

हालांकि, मतदाताओं के लिए गुजरात में मोदी के नेतृत्व में पटेल की विरासत को अपना बताने की कोशिश कांग्रेस के ऐतिहासिक दावे को दबाती रही है. 2022 के चुनावों में 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के 17 सीटों पर सिमट जाने के बाद और कुछ विधायकों के भाजपा में चले जाने के कारण कांग्रेस विधायकों की संख्या 12 पर सिमट गई है. इसके बाद से ही पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा और दिशाहीनता का माहौल है.

2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और सहयोगी दलों पर निर्भर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि उनकी पार्टी 2027 में गुजरात में विधानसभा चुनाव जीतेगी, जो बेहद मुश्किल लगता है. खासकर तब जब जमीनी स्तर पर कमजोर संगठन से लेकर 26 लोकसभा सीटों में से 25 पर BJP को जीत मिली है.

अहमदाबाद में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन का इस्तेमाल पार्टी कार्यकर्ताओं को संगठित करने और राज्य में स्थिति बदलने के लिए राजनीतिक रणनीति पर विचार-विमर्श करने के लिए किया जा रहा है. ऐसा लगता है कि 'अस्मिता' भाजपा के लिए भावनात्मक चुनावी एजेंडे के रूप में कारगर साबित हुई है और अब कांग्रेस भी पटेल का नाम लेकर उसी का स्वाद चखना चाहती है.

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