
दिसंबर की 17 तारीख, शाम 7.45 बजे. संसद में संविधान पर चर्चा के लिए गृहमंत्री अमित शाह खड़े हुए. उन्होंने अपने भाषण में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के संबंध में एक बयान दिया, जिसके बाद विपक्ष ने सदन में हंगामा शुरू कर दिया. इस बयान के 24 घंटे के भीतर पीएम मोदी ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर और देर शाम अमित शाह ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर इस मुद्दे पर सफाई दी.
इसके बाद से ही ये कहा जाने लगा कि BJP आंबेडकर के मुद्दे पर बैकफुट पर आ गई है, लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ है? आखिर BJP की ऐसी क्या मजबूरी रही होगी और देश की राजनीति में आंबेडकर का मुद्दा कितना अहम है? इस स्टोरी में एक-एक कर इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं....
आंबेडकर मामले में अभी विवाद क्यों?
17 दिसंबर की शाम को अमित शाह ने संविधान पर हो रही चर्चा के दौरान कहा, "मान्यवर अभी एक फैशन हो गया है. आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर...इतना नाम अगर भगवान का लेते, तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता."
उनके बयान के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शाह के बयान की क्लिप X पर शेयर करते हुए लिखा, "मनुस्मृति को मानने वालों को आंबेडकर जी से बेशक तकलीफ होगी." अगले दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा, "हम शाह के इस्तीफे की मांग करते हैं, उन्हें देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए."
इसके बाद ही इस मामले ने तूल पकड़ लिया. अगले दिन संसद के बाहर BJP और विपक्षी दलों के सांसदों ने प्रदर्शन किया. इस दौरान दोनों ओर से धक्का-मुक्की की घटना भी सामने आई. BJP के सांसद प्रताप सारंगी घायल हो गए. उन्होंने आरोप लगाया कि धक्का राहुल गांधी ने दिया था और फिर कांग्रेस नेता के खिलाफ 6 धाराओं में केस दर्ज किया गया.
क्या शाह के बयान के बाद वाकई बैकफुट पर है BJP?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक दो वजहों से BJP आंबेडकर के बयान पर बैकफुट पर नजर आ रही है…
1. पीएम मोदी के 6 ट्वीट: आंबेडकर पर अमित शाह के बयान देने के 24 घंटे के भीतर ही एक के बाद एक 6 ट्वीट करके पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर सफाई दी. पीएम मोदी ने लिखा, "कांग्रेस अब आंबेडकर पर नाटक कर रही है. पंडित नेहरू ने चुनाव में आंबेडकर के खिलाफ प्रचार किया था. उन्हें भारत रत्न देने से कांग्रेस ने इनकार किया. SC-ST पर सबसे ज्यादा नरसंहार कांग्रेस के शासन काल में हुए हैं."
2. अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस: राज्यसभा में बयान देने के बाद अगले दिन विवाद बढ़ा तो देर शाम खुद प्रेस कांफ्रेंस करके अमित शाह ने कहा कि उनका बयान तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है. सपने में भी मैं आंबेडकर जी का अपमान नहीं कर सकता हूं.
इस साल ये दूसरा मौका था, जब खुद अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस करके मोर्चा संभाला था. इससे पहले मई में केजरीवाल ने कहा था, "मोदी जी अगले साल 17 सितंबर को 75 साल के हो रहे हैं. उन्होंने नियम बनाया था कि 75 साल की उम्र वाले लोग रिटायर हो जाएंगे. वे अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं. क्या शाह मोदीजी की गारंटी पूरी करेंगे?"
इस बयान के ठीक बाद सफाई देने के लिए अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस की थी.
अब एक-एक कर समझते हैं किन 5 प्रमुख राज्यों में कौन से चुनाव हैं और वहां दलित समुदाय के वोटर्स कितनी अहमियत रखते हैं…
सबसे पहले बात बिहार की…

क्या बिहार के दलित मतदाताओं पर आंबेडकर मुद्दे का असर होगा?
हां, पॉलिटिकल एक्सपर्ट अमिताभ तिवारी के मुताबिक बिहार चुनाव होने में अभी 6 महीने से ज्यादा का समय है. ऐसे में इस मुद्दे का कितना असर होगा ये कहना मुश्किल है. हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि आंबेडकर को दलित समुदाय अपना आदर्श मानते हैं और तब तक अगर ये मुद्दा जिंदा रहा तो BJP को इसका नुकसान होगा.
बिहार में दलितों की कुल 17% आबादी है. यहां की राजनीति में दलित समुदाय के अंदर एक नया महादलित समुदाय बनाया गया है. करीब 10% महादलित हैं और 6.5% से 7% दलित हैं. नीतीश कुमार महादलितों के नेता हैं. BJP को नीतिश कुमार का साथ है. इसके अलावा इसी समुदाय से आने वाले राम विलास पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टी भी उनके साथ हैं.
यही वजह है कि बिहार में यादव-मुस्लिमों के गठजोड़ पर भी BJP भारी पड़ती है. 2020 में भी दलितों में महागठबंधन की पकड़ मजबूत हुई थी. हाल में हुए उपचुनाव में यहां इमामगंज की सीट पर जनसुराज तीसरे नंबर पर रही. इस सीट पर दलितों की आबादी ज्यादा है. ऐसे में अगर इस मुद्दे ने जोर पकड़ा तो लगता है कि BJP को इससे फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अमिताभ तिवारी के मुताबिक 2024 लोकसभा चुनाव से पहले BJP ने 400 पार का नारा दिया था. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने चुनावी मंचों से BJP के 400 पार के लक्ष्य के पीछे संविधान खत्म करने की बात कही. साथ ही विपक्ष ने संविधान को अपने लोकसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बना दिया. नतीजतन, BJP 240 सीटों पर सिमट गई और उसे 63 सीटों का नुकसान हुआ.
दिल्ली में क्या है दलित समीकरण

दिल्ली में आंबेडकर मुद्दे से BJP को कितना नुकसान हो सकता है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अमिताभ तिवारी बताते हैं कि दिल्ली देश की राजधानी है और इस बार BJP हर हाल में यहां जीतना चाहती है. दिल्ली में 17% के करीब दलित आबादी को साथ लिए BJP के लिए जीतना मुश्किल नहीं नामुमकिन होगा. खासकर सुल्तानपुरी, करोल बाग जैसी विधानसभा सीटें जहां 40% से ज्यादा वोटर्स दलित हैं.
गोकुलपुरी, सीमापुरी, मंगोलपुरी, त्रिलोकपुरी, आंबेडकर नगर जैसी विधानसभा सीट पर 30% से ज्यादा दलित वोटर्स हैं.
अमिताभ तिवारी के मुताबिक दिल्ली में दलित वोट कांग्रेस के पास रहा, लेकिन वो अब आम आदमी पार्टी (AAP) की तरफ शिफ्ट हो गया है. पिछले चुनाव की बात करें तो जाटव समुदाय का 65% वोट आप को जाता है. वाल्मीकि समुदाय का 66% मत केजरीवाल को पड़ता है.
दिल्ली में जाति और सोशियो-इकॉनोमिक क्लास दोनों का एक इंटरप्ले है. यहां जाति उतना मायने नहीं रखती है जितना कि सोशियो-इकॉनोमिक क्लास. यही वजह है कि यहां दलित समुदाय में बेनेफिशयरी पॉलिटिक्स ज्यादा प्रभावी रहेगी.
बीजेपी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है कि कांग्रेस पार्टी एंटी-आंबेडकर है, इससे सबसे ज्यादा फायदा AAP को होगा. इसलिए दिल्ली में BJP नहीं चाहेगी कि ये मुद्दा तुल पकड़े.
कांग्रेस अगर इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाती है कि अमित शाह का बयान एंटी-आंबेडकर है, तो इससे फायदा बीजेपी को ही होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस को जो भी दलित वोट मिलेगा, वो केजरीवाल की पार्टी से ही छिटककर मिलेगा.
बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) समेत 15 राज्यों के 150 से ज्यादा शहरों में लोकल बॉडी इलेक्शन 2025 में होना है. हालांकि, हम यहां उन 3 प्रमुख राज्यों के 42 शहरों में होने वाले चुनाव की बात करेंगे जहां दलित राजनीति बेहद अहम भूमिका निभाती हैं…

इन तीन राज्यों में होने वाले लोकल बॉडी इलेक्शन में आंबेडकर मुद्दा कितना असरदार रहेगा, इसपर दो पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है…
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई का कहना है कि इन राज्यों में दलित पॉलिटिक्स काफी एक्टिव है. आंबेडकर को यहां के दलित अपना आदर्श मानते हैं और उन पर गर्व करते हैं. ऐसे में ये मुद्दा अगर जोर पकड़े रखता है तो BJP को नुकसान तय है.
वहीं, अमिताभ तिवारी इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि दिल्ली चुनाव के बाद ये मुद्दा खत्म हो जाएगा. इसका ज्यादा असर तीनों राज्यों के चुनाव में नहीं होगा. हालांकि, इसके साथ ही अमिताभ ये भी कहते हैं कि दिल्ली से सटे हरियाणा में जाट और गैर जाट पॉलिटिक्स चलती है. इस बार गैर जाट में दलितों को साधकर ही BJP सत्ता में आई है. ऐसे में अगर दलितों को ये लगता है कि उनके आदर्श का कोई मजाक उड़ा रहा है तो नुकसान तय है.