हाल के सालों में देश भर में जितने केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित हुए हैं, उनमें गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. देश भर के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में इसने अपनी रैंकिंग लगातार सुधारी है. लेकिन चौंकाने वाली बात है कि यह विश्वविद्यालय अपने खुद के प्रशासनिक प्रदर्शन में पिछड़ता दिख रहा है क्योंकि यहां महीनों से वाइस चांसलर यानी कुलपति नहीं हैं.
अभी गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति रमाशंकर दुबे हैं. इस पद पर उनकी नियुक्ति 2019 में पांच साल के लिए हुई थी. उनका कार्यकाल 21 नवंबर, 2024 को ही समाप्त हो रहा था. नए कुलपति की नियुक्ति के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने विज्ञापन भी निकाल दिया था. आवेदन की आखिरी तारीख 7 जुलाई, 2024 थी.
लेकिन नवंबर, 2024 तक नए कुलपति की तलाश पूरी नहीं हुई. नतीजतन केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने दुबे का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया. जिस आदेश में शिक्षा मंत्रालय ने कार्यकाल विस्तार की बात कही है, उसमें लिखा है कि जब तक नए कुलपति की नियुक्ति नहीं हो जाती तब तक दुबे अपने पद पर रहेंगे और उनका नया कार्यकाल अधिकतम एक वर्ष का होगा. इस आदेश से साफ था कि नए कुलपति की नियुक्ति एक वर्ष के पहले हो सकती है. लेकिन तब से अब तक नए कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई है.
अरुणाचल प्रदेश के राजीव गांधी विश्वविद्यालय की भी यही कहानी है. अक्टूबर, 2024 में साकेत कुशवाहा का बतौर कुलपति कार्यकाल पूरा हुआ. इसके बाद संस्थान में ही अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर सुशांता कुमार नायक को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने अंतरिम कुलपति नियुक्त किया. अभी तीन दिन पहले यानी 6 जून, 2025 को इस विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने फिर से एक नोटिस जारी किया है.
इसके मुताबिक कुलपति पद पर आवेदन के लिए आखिरी तारीख 11 जून, 2025 है. इसका मतलब यह हुआ कि इस विश्वविद्यालय को अपने फुल टाइम कुलपति के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा.
सिक्किम विश्वविद्यालय के लिए अपने फुल टाइम कुलपति का इंतजार करते हुए तकरीबन दो वर्ष पूरा होने वाला है. इस केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर अविनाश खरे का कार्यकाल जुलाई, 2023 में ही पूरा हो गया था. लेकिन कार्यकाल पूरा होने के पहले ही उन्हें एक साल का कार्यकाल विस्तार दिया गया. जब इस बीच भी नए कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई तो ज्योति प्रकाश तमांग को कार्यकारी कुलपति की जिम्मेदारी दी गई.
लेकिन इस पद पर रहते हुए तमांग का निधन होने के बाद अभी सिक्किम विश्वविद्यालय के कार्यकारी कुलपति की जिम्मेदारी अभिजित दत्ता के पास है और संस्थान के छात्र और शिक्षक इस बात के इंतजार में हैं कि कब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय संस्थान के नए फुल टाइम कुलपति की नियुक्ति करता है.
सिंधु सेंट्रल यूनिवर्सिटी की शुरुआत लद्दाख में 2021 में की गई थी. लंबे समय से लद्दाख क्षेत्र में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की मांग उठ रही थी. इस केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी कुलपति का पद खाली है.
केरल के तिरुअनंतपुरम स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन ऐंड रिसर्च (आईआईएसईआर) के निदेशक के तौर पर जेएम मूर्ति काम कर रहे हैं. मूर्ति का कार्यकाल 2024 के अप्रैल में ही समाप्त हो गया था लेकिन नए निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पाने की वजह से उन्हें कार्यकाल विस्तार दिया गया.
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज भी अपने फुल टाइम निदेशक का इंतजार कर रहा है. संस्थान के निदेशक रहे नागेश्वर राव का कार्यकाल 2024 के मध्य में ही समाप्त हो गया था. इसके बाद जुलाई, 2024 के अंत में पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति राघवेंद्र पी तिवारी को इस संस्थान के निदेशक पद का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. तब से अब तक 10 महीने से अधिक का वक्त गुजर गया है लेकिन संस्थान के फुलटाइम निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पाई है.
इन उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए शीर्ष नेतृत्व की नियुक्ति में देरी के बारे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी अलग-अलग बात कहते हैं.
यूजीसी के अधिकारी इस देरी के लिए शिक्षा मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराते हैं. वहीं शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी ये बताते हैं कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू करने की जो प्रक्रिया चल रही है, उस वजह से काम का बोझ बहुत अधिक है और इस कारण कई बार कुलपति की नियुक्ति जैसे काम में अधिक वक्त लग जाता है. शिक्षा मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने देरी की एक वजह यह भी बताई कि कुलपति की नियुक्ति से पहले सरकार और अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ लंबा कंसल्टेशन चलता है और इस पूरी प्रक्रिया में देरी होने की वजह से नियुक्ति में देरी हो जाती है.
उच्च शिक्षण संस्थानों के कामकाज पर कुलपति या निदेशक नहीं होने की वजह से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में वरिष्ठ प्रशासनिक पद पर काम कर रहे एक प्रोफेसर कहते हैं, "सबसे बड़ी दिक्कत तो यही होती है कि कोई बड़ा निर्णय नहीं हो पाता. अस्थाई कुलपति आम तौर पर निर्णय को टालते रहते हैं. फिर नीतिगत निर्णय भी नहीं हो पाता. कुलपति संस्थान का कामकाज देखने के अलावा शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी के साथ संस्थान के लिए अतिरिक्त फंड और सुविधाएं लाने के लिए भी काम करते हैं. लेकिन अस्थाई कुलपति की इनमें कोई खास रुचि नहीं होती. देखा जाए तो कामकाज बहुत प्रभावित हो जाता है."
समाधान की राह सुझाते हुए वे कहते हैं, "भारत सरकार में हम लोग देखते हैं कि सचिव की नियुक्ति मौजूदा सचिव का कार्यकाल रहते हुए हो जाता है और नए सचिव कार्यभार संभालने से पहले तीन महीने तक पुराने सचिव के साथ ओएसडी के तौर पर काम करते हैं. यही व्यवस्था उच्च शिक्षण संस्थानों में भी विकसित की जानी चाहिए. इससे कामकाज में बहुत सुधार होगा."