आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की फ्लैगशिप योजना है लेकिन लेकिन पार्टी के ही शासन वाले हरियाणा के प्राइवेट अस्पतालों ने इससे खुद को अलग कर लिया है.
7 अगस्त से पांच लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज की इस योजना से इन अस्पतालों ने आयुष्मान कार्ड के आधार पर मरीजों को एडमिट करना बंद कर दिया है. वजह है इन अस्पतालों का सरकार के पास भारी बकाया. यह फैसला करने वालों में हरियाणा के करीब 650 प्राइवेट अस्पताल शामिल हैं.
आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना के रूप में जाना जाता है. इसकी शुरुआत 23 सितंबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड की राजधानी रांची से की थी. लेकिन अपनी शुरुआत से अब तक के तकरीबन पांच साल के सफर में इस योजना में क्रियान्वयन संबंधित कई समस्याएं आई हैं. ऐसी ही एक वजह है प्राइवेट अस्पतालों का बकाया भुगतान.
यह समस्या केवल हरियाणा तक सीमित नहीं है बल्कि कई अन्य राज्यों में भी बकाया भुगतान के कारण योजना के क्रियान्वयन में बाधाएं आ रही हैं. यह स्थिति आयुष्मान भारत की विश्वसनीयता और इसके भविष्य पर गंभीर सवाल तो उठाती ही है लेकिन साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार के आपसी समन्वय को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. यह स्थिति उन राज्यों के लिए एक चेतावनी है जहां केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी पहले से ही एक समस्या है.
हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग की मंत्री आरती सिंह राव ने इस मुद्दे पर कहा है, "हम निजी अस्पतालों के साथ बातचीत कर रहे हैं और बकाया भुगतान को जल्द से जल्द निपटाने के लिए कदम उठा रहे हैं." हालांकि, निजी अस्पतालों का कहना है कि ऐसी घोषणाएं पहले भी की गई हैं लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ.
इस योजना के लाभार्थियों की पहचान सामाजिक-आर्थिक जनगणना (एसईसीसी) 2011 के आधार पर की जाती है. इसके तहत तकरीबन 12.37 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों (लगभग 55 करोड़ लाभार्थियों) को प्रति वर्ष प्रति परिवार को 5 लाख रुपये तक के मुफ्त स्वास्थ्य बीमा की सुविधा मिली हुई है. यह योजना सेकेंडरी और टर्शरी (बड़ी बीमारियों से जुड़ी) देखभाल के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले खर्चों को कवर करती है. इसके तहत चिकित्सा जांच, दवाएं, सर्जरी, और अस्पताल में भर्ती से पहले और बाद के 15 दिनों तक का खर्च भी कवर किया जाता है.
30 नवंबर 2024 तक के भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि इस योजना के तहत 36 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके हैं. साथ ही 8.39 करोड़ अस्पताल में भर्ती के मामलों को मंजूरी दी गई है. सरकार का अनुमान है कि इन मरीजों के तकरीबन 1.16 लाख करोड़ रुपये बचाए गए.
हरियाणा के प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि सरकार ने उनके बकाया भुगतान में काफी देरी की है और इस वजह से वे इस योजना को जारी रखने में असमर्थ हैं. गुड़गांव के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल के संचालक बताते हैं, "पिछले कई महीनों से निजी अस्पतालों को उनके बकाया रकम का का भुगतान नहीं किया गया है. प्राइवेट अस्पतालों की तरफ से बार—बार सरकार को लिखा गया लेकिन इस समस्या के समाधान की दिशा में अपेक्षित पहल नहीं हुई. मेरे और मेरे जैसे कई अस्तालों का बकाया करोड़ों रुपये में है. ऐसे में हमारा कामकाज प्रभावित हो रहा है और दूसरे मरीजों को अच्छी सेवा देने की हमारी क्षमता भी प्रभावित हो रही है." उन्होंने यह भी कहा कि बिना समयबद्ध भुगतान के निजी अस्पतालों के लिए इस योजना में बने रहना आर्थिक रूप से संभव नहीं है.
हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल 1,200 से अधिक अस्पताल आयुष्मान भारत योजना के तहत पंजीकृत हैं, जिनमें से लगभग 50 फीसदी निजी अस्पताल हैं. इन निजी अस्पतालों का बहिष्कार उन लाखों लाभार्थियों के लिए एक बड़ा झटका है, जो मुफ्त इलाज के लिए इन सुविधाओं पर निर्भर हैं. विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों के लिए जिनके आसपास अच्छे सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं सीमित हैं.
आयुष्मान भारत योजना के तहत बकाये को भुगतान को लेकर विवाद का सामना करने वाला हरियाणा कोई पहला राज्य नहीं है. देश के कई अन्य राज्यों जैसे पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु के प्राइवेट अस्पतालों की तरफ से यह मुद्दा बीच-बीच में उठता रहता है. पंजाब के कई निजी अस्पतालों ने दावा किया है कि उनके 6-12 महीने पुराने बकाये का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है. उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार है. लेकिन यहां के भी कुछ अस्पतालों ने योजना से बाहर निकलने की धमकी दी है. इनका भी यही कहना है कि बकाये राशि की वजह से उनके लिए काम करते रहना मुश्किल होता जा रहा है.
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के संचालन की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) को दी गई है. इन विवादों को देखते हुए एनएचए ने दावा किया है कि दावों के निपटान की प्रक्रिया को तेज करने के लिए उसने कई कदम उठाए हैं. इनमें हॉस्पिटल एंगेजमेंट मॉड्यूल (एचईएम 2.0) का एक बेहतर संस्करण लॉन्च करना शामिल है. इसके बावजूद निजी अस्पतालों का दावा है कि भुगतान में देरी की समस्या अभी भी बनी हुई है.