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कौन थे रजाकार, जिन्होंने खड़गे की मां और बहन को मार डाला! योगी क्यों इस घटना का जिक्र कर रहे हैं?

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच इन दिनों जुबानी जंग चल रही है. इस बीच योगी ने खड़गे पर राजनीतिक स्वार्थ के लिए दर्दनाक निजी यादों को दबाने का आरोप लगाया

(बाएं) कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और (दाएं) यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ
(बाएं) कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और (दाएं) यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ
अपडेटेड 14 नवंबर , 2024

सियासी शोलों से घिरे महाराष्ट्र में दो केंद्रीय किरदारों के बीच जुबानी जंग इसे और भड़काने की कोशिश कर रही है. राज्य के चुनाव प्रचार अभियान में जहां यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारे के साथ भगवा खेमे के लिए एजेंडा सेट कर रहे हैं, वहीं इसकी आलोचना में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने योगी की तुलना परोक्ष रूप से आतंकवादियों से कर डाली.

10 नवंबर को मुंबई में संविधान बचाओ सम्मेलन में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, "योगी गेरुआ वस्त्र पहनते हैं लेकिन बात कटने-मरने की करते हैं. ऐसी भाषा तो आतंकवादी ही बोलते हैं." फिर क्या था! योगी ने दो दिन बाद एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए खड़गे को 1948 में हुई उस हिंसा की याद दिलाई, जिसमें रजाकारों ने उनके घर में आग लगा दी थी और जिसमें उनकी मां, बहन और चाची की जलकर मौत हो गई थी.

खड़गे की इस टिप्पणी पर कि गेरुआ वस्त्र पहनने वालों और सिर मुंडा लेने वालों को राजनीति छोड़ देनी चाहिए, योगी ने कांग्रेस अध्यक्ष पर निशाना साधते हुए कहा, "कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मुझ पर बेवजह गुस्सा कर रहे हैं, लाल-पीले हो रहे हैं. मुझ पर गुस्सा मत कीजिए. अगर गुस्सा करना है तो हैदराबाद निजाम पर गुस्सा कीजिए. हैदराबाद निजाम के रजाकारों ने आपका गांव जलाया, हिंदुओं की बर्बर हत्या की, आपकी पूज्य माता जी, बहन और परिवार के सदस्यों को जलाया."

खड़गे को संबोधित करते हुए योगी ने आगे कहा, "देश के सामने यह सच्चाई रखिए कि जब भी बंटेंगे तो निर्ममता से इसी तरह कटेंगे. लेकिन खड़गे जी इस सच्चाई को स्वीकार करने में हिचकिचा रहे हैं क्योंकि उन्हें मुस्लिम वोटबैंक का डर है."

बहरहाल, इन दोनों के बीच चल रही जुबानी जंग से इतर कुछ सवाल यहां मौजूं होते हैं कि ये रजाकार कौन थे, और क्या योगी के दावों में कोई सच्चाई है? आइए समझते हैं.

कौन थे रजाकार?

दरअसल, फारसी और उर्दू में रजाकार का मतलब 'स्वयंसेवक' या 'सहायक' होता है. आजादी के समय देश में साढ़े पांच सौ से अधिक रजवाड़े या रियासतें थीं. इन सबसे बड़े रजवाड़ों में से एक हैदराबाद भी था, जहां निजाम का शासन था. इन्हीं निजाम की सेवा में एक निजी अर्धसैनिक बल तैनात था जिन्हें रजाकार कहा जाता था. यह निजाम की मिलिशिया मजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लिमीन की सशस्त्र शाखा थी.

रजाकारों का पहला मकसद हैदराबाद के मुस्लिम निजामों के शासन को बनाए रखना और हैदराबाद रियासत के भारत में विलय को रोकना था.

सितंबर 1948 में ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद में प्रवेश करते भारतीय सेना के टैंक/विकीमीडिया कॉमन्स
सितंबर 1948 में ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद में प्रवेश करते भारतीय सेना के टैंक/विकीमीडिया कॉमन्स

आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को ब्रिटिश शासन के तहत स्वायत्तता मिली हुई थी. भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल बाद भी हैदराबाद रियासत ने भारत का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था. तब इस रियासत का दायरा मौजूदा तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के इलाकों तक फैला हुआ था. सबसे अहम बात यह कि जिस हैदराबाद पर निजाम का शासन था, उसकी बहुसंख्यक जनता हिंदू थी, जबकि सत्ता की बागडोर मुस्लिम निजाम और उनके लोगों के हाथों में थी.

हैदराबाद की हिंदू बहुसंख्यक आबादी भारत के साथ विलय के पक्ष में थी, लेकिन निजाम ने इनकार कर दिया. इन रजाकारों को तब भारत में विलय के इच्छुक लोगों को कुचलने का काम सौंपा गया. ये रजाकार खून-खराबे पर उतारू हो गए. उन्होंने लोगों का कत्लेआम करना शुरू कर दिया. इन्होंने व्यापक स्तर पर हिंसा भड़काई.

शुरू में जवाहरलाल नेहरू की अगुआई वाली भारत सरकार ने हैदराबाद के मामलों में दखल ने देने का वादा किया था, लेकिन आखिरकार 17 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना द्वारा तीन दिवसीय कार्रवाई "ऑपरेशन पोलो" के बाद हैदराबाद को भारत में शामिल कर लिया गया. रजाकारों ने इस दौरान जो खूनखराबा किया, उसमें सैकड़ों लोग मारे गए. सीएम योगी इसी हिंसा के संदर्भ में मल्लिकार्जुन खड़गे पर आरोप लगा रहे हैं.

क्या योगी आदित्यनाथ के दावों में कोई सच्चाई है?

मल्लिकार्जुन खड़गे का जन्म 21 जुलाई 1942 को कर्नाटक के बीदर जिले के भालकी तालुका में पड़ने वाले वरबट्टी गांव में हुआ था. उनके पिता मपन्ना खड़गे थे और मां साईबववा थीं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब हैदराबाद रियासत में अशांति फैली हुई थी तब रजाकारों ने खड़गे के गांव को भी निशाना बनाया था. 8 मई 1948 को रजाकारों ने बीदर के एक गांव गोर्ता में 200 से अधिक लोगों को मार दिया. फिर वहां की लक्ष्मी मंदिर में इन शवों को जलाया गया. इसके साथ ही पूरे इलाके में भी व्यापक स्तर पर कत्लेआम किया गया.

अक्तूबर 2022 में जब खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए तब उनके बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में 1948 में हुई इस दुखद घटना के बारे में बताया था. सीएनएन-न्यूज18 के साथ एक इंटरव्यू में प्रियांक ने कहा था कि एक पड़ोसी उनके दादा को यह बताने के लिए दौड़ा कि रजाकारों ने उनके टिन के घर में आग लगा दी है, तब वे खेतों में काम कर रहे थे.

प्रियांक खड़गे, कर्नाटक सरकार में मंत्री
प्रियांक खड़गे, कर्नाटक सरकार में मंत्री

प्रियांक ने बताया, "मेरे दादा खेतों में काम कर रहे थे, तभी एक पड़ोसी ने उन्हें बताया कि रजाकारों ने उनके टिन की छत वाले घर में आग लगा दी है. रजाकार हर गांव पर हमला कर रहे थे. उनकी सेना में चार लाख लोग थे और वे सब अकेले (स्वयंसेवक की तरह) काम कर रहे थे. उनका कोई नेता नहीं था. मेरे दादा घर की ओर भागे, लेकिन वे केवल मेरे पिता को बचा पाए, जो उनकी पहुंच के भीतर थे. मेरी दादी और चाची को बचाने के लिए बहुत देर हो चुकी थी, जिनकी इस घटना में जान चली गई."

घटना के बाद वे और उनके पिता परिवार में अकेले रह गए और रजाकारों के डर से आस-पास के गांवों में उन्हें शरण देने के लिए कोई आगे नहीं आया. फिर वे गुलबर्गा में शरण लेने चले गए, क्योंकि उनके चाचा गुलबर्गा में सिपाही के तौर पर काम कर रहे थे. लेकिन उन्हें अपने चाचा का पता नहीं मिल पाया. उसके बाद वे गुलबर्गा में ही बस गए और उनके पिता एक फैक्ट्री में काम करने लगे.

इसके अलावा अपने पिछले साक्षात्कारों में मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी बताया था कि कैसे उनके पिता खेतों में काम कर रहे थे और वे अपने घर के बाहर खेल रहे थे, जब रजाकारों ने उनके घर पर हमला किया और आग लगा दी, जिसमें उनकी मां, बहन और परिवार के अन्य सदस्य मारे गए.

योगी के बयान पर खड़गे परिवार की प्रतिक्रिया

योगी के रजाकार हिंसा मामले को अपने बयान का केंद्रबिंदु बनाए जाने के बाद प्रियांक ने सोशल मीडिया पर आदित्यनाथ की आलोचना की. उन्होंने लिखा कि हालांकि उनके पिता इस हमले से बाल बाल बच गए, लेकिन वे नौ बार विधायक, दो बार राज्यसभा और लोकसभा सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता बने. प्रियांक ने यह भी कहा कि हर समुदाय में बुरे लोग और गलत काम करने वाले लोग होते हैं, लेकिन इससे पूरा समुदाय बुरा नहीं हो जाता.

प्रियांक ने 13 नवंबर को एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "इस त्रासदी के बावजूद उन्होंने (मल्लिकार्जुन खड़गे ने) कभी भी राजनीतिक लाभ के लिए इसका फायदा नहीं उठाया, कभी भी पीड़ित कार्ड नहीं खेला और कभी भी नफरत को खुद को परिभाषित नहीं करने दिया. यह रजाकार थे जिन्होंने यह कृत्य किया था - पूरे मुस्लिम समुदाय ने नहीं. 82 साल की उम्र में खड़गे जी बुद्ध-बसवन्ना-आंबेडकर के मूल्यों को बनाए रखने और संविधान की रक्षा के लिए अथक संघर्ष कर रहे हैं. इसलिए योगी जी, अपनी नफरत कहीं और ले जाएं. आप उनके सिद्धांतों या उनकी विचारधारा को कुचल नहीं सकते."

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