प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड में एक बड़ी कार्रवाई करते हुए 6 मई को राज्य सरकार के मंत्री आलमगीर आलम के पर्सनल सेक्रेटरी संजीव लाल के नौकर जहांगीर आलम के घर से 35 करोड़ रुपये जब्त किए थे. अब ईडी ने 7 मई को संजीव लाल और उनके नौकर को गिरफ्तार भी कर लिया है. यह पूरा मामला झारखंड ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है.
साथ ही इसमें मनीलॉन्ड्रिंग की बात भी सामने आई है. इसी मामले में पिछले साल ग्रामीण विकास विभाग के चीफ इंजीनियर वीरेंद्र के राम को अरेस्ट किया गया था. झारखंड से पहले 4 मई को ईडी ने महाराष्ट्र में छापेमारी की थी. यह छापेमारी 100 करोड़ रुपये के पोंजी घोटाले के मामले में की गई थी. अपनी इस छापेमारी के दौरान ईडी ने 5 करोड़ रुपए की नकदी के अलावा कीमती गहनों और सामानों को जब्त किया.
महाराष्ट्र से पहले ईडी ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कई शहरों में भी मार्च में छापेमारी अभियान चलाया था. यह छापेमारी मेसर्स सम्प्राश फूड्स लिमिटेड के निदेशक चंद नारायण कुचरू और उनके सहयोगी मेसर्स अनमोल रतन कंस्ट्रक्शन एंड बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड के ठिकानों पर हुई थी. यूपी के अलीगढ़ और हरियाणा के गुरुग्राम और फरीदाबाद के अलग-अलग ठिकानों पर हुई छापेमारी में ईडी ने 50 करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी जब्त की गई थी.
इसके अलावा इस साल हुई तमाम इस तरह की छापेमारियों में ईडी ने करोड़ों रुपयों की नकदी और अचल संपत्तियों को जब्त किया था. कानून के मुताबिक ईडी को पैसों या संपत्ति को केवल जब्त करने का अधिकार है, लेकिन वह बरामद किए गए पैसों या संपत्ति को अपने पास नहीं रख सकती. प्रोटोकॉल के मुताबिक जब एजेंसी नकदी बरामद करती है तो आरोपी को यह बताने का मौका भी दिया जाता है कि उसने वह नकदी कहां से और कैसे इकट्ठा की थी.
उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति की पांच लाख रुपये तक की संपत्ति जब्त की गई, और व्यक्ति के दावे के मुताबिक उसने वह पैसा बैंक चेक के जरिए निकाला था तो उसे इस बात का सुबूत भी देना होगा. जब भी ईडी किसी पैसे को जब्त करती है तो शुरुआती तौर पर उसे आपराधिक या काला धन माना जाता है और इसकी जब्ती पीएमएलए कानून के तहत की जाती है.
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अधिकारियों को नोट गिनने वाली मशीन के साथ बरामद पैसे की गिनती करने के लिए बुलाया जाता है. गिनती पूरी होने के बाद ईडी अधिकारी बैंक अधिकारियों की मौजूदगी में जब्ती सूची तैयार करते हैं. इस जब्ती सूची में बरामद नकदी की कुल राशि को 2000, 500 और 100 जैसे नोटों की गिनती के हिसाब से दर्ज किया जाता है.
फिर जब्त की गई पूरी रकम को गवाहों के सामने बक्से में सील कर दिया जाता है और संबंधित राज्य में एक बैंक शाखा में ले जाया जाता है, जहां इसे एजेंसी के एक निजी बैंक अकाउंट में जमा कर दिया जाता है. ED के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर सत्येंद्र सिंह इंडिया टुडे समूह की वेबसाइट 'द लल्लनटॉप' से बात करते हुए जानकारी देते हैं कि जब्त पैसों को बैंक में जमा करने के बाद पैसों को केंद्र सरकार के खजाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है. दोषी पाए जाने पर व्यक्ति की नकदी पर 'सार्वजनिक धन' के तौर पर केंद्र सरकार का अधिकार हो जाता है. अगर आरोपी बरी हो जाता है तो उसके पैसे को वापस कर दिया जाता है. कई बार पीड़ित पार्टी को भी जब्त किए गए पैसे से भरपाई की जाती है.
इसे एक उदाहरण से ऐसे समझ सकते हैं कि, अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी या बैंक के साथ फ्रॉड करके विदेश भाग गया. ऐसे में ईडी उसकी संपत्ति को जब्त करेगी और उसी से कंपनी या बैंक को हुए नुकसान की भरपाई की जाएगी. ये तो रही नकदी या पैसों की बात, लेकिन ईडी अपने छापे में अचल संपत्ति भी अटैच करती है.
अचल संपत्ति पर होने वाली कार्रवाई की प्रक्रिया के बारे में समझाते हुए सिंह कहते हैं, "जब भी ईडी किसी मकान को जब्त करती है तो पहले उसे खाली करवाने का नोटिस जारी किया जाता है. इस नोटिस में मकान खाली करने के लिए एक तारीख भी बताई जाती है. इस तारीख के खत्म होने बाद ईडी उस मकान को अपने कब्जे में ले लेती है. वहीं फैक्ट्री के मामले में जब तक केस चलता है तब तक फैक्ट्री से होने वाले मुनाफे पर ईडी का अधिकार होता है."
अपनी बात में इससे आगे समझाते हुए सिंह कहते हैं कि जब अचल संपत्ति को ईडी जब्त करती है तो यह मामला दिल्ली की एडजुकेटिंग अथॉरिटी के पास भेजा जाता है. इसके बाद मामले से जुड़ी अलग-अलग पार्टियों को नोटिस जारी किया जाता है. इस अथॉरिटी को 180 दिनों में कब्जे में ली गई संपत्ति को प्रमाणित करना होता है.
बेनामी संपत्ति के मामले में अचल संपत्तियों की नीलामी कराई जाती है और उससे मिले पैसों को वित्त मंत्रालय को सौंप दिया जाता है. हालांकि चाहे नकदी हो या अचल संपत्ति, कोर्ट के फैसले के बाद ही ये सभी प्रक्रियाएं लागू होती हैं.