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क्या है सरकार की फैक्ट चेक यूनिट, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के फैक्ट चेक यूनिट की आधिसूचना पर रोक लगा दी है

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैक्ट चेक यूनिट की आधिसूचना पर रोक लगा दी है
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैक्ट चेक यूनिट की आधिसूचना पर रोक लगा दी है
अपडेटेड 21 मार्च , 2024

केंद्र सरकार ने 20 मार्च 2024 को पत्र सूचना कार्यालय (PIB) के तहत एक फैक्ट चेक यूनिट बनाने की अधिसूचना जारी की थी. इस कदम का यह कह कर विरोध किया जा रहा था कि इससे लोगों के बोलने की आजादी पर खतरा पैदा होगा. 

इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. अब कोर्ट ने सरकार की फैक्ट चेक यूनिट की आधिसूचना पर रोक लगा दी है. हालांकि यह रोक अस्थाई है और तभी तक जारी रहेगी जब तक कि बॉम्बे हाई कोर्ट इसी मामले पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई ना कर ले. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, यह अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा मामला है. 

फैक्ट चेक यूनिट के पास सरकारी संस्थाओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर फैल रही फेक न्यूज को हाईलाइट करने और उन पर लगाम लगाने की शक्ति होगी. यह यूनिट किसी शिकायत के आधार पर या खुद से भी ऐसी किसी घटना पर ऐक्शन लेने के लिए स्वतंत्र होगी. सरकार के इसी कदम का विपक्षी पार्टियां और आलोचक विरोध कर रहे हैं. 

जैसा कि नाम से ही साफ है यह यूनिट खबरों की 'सच्चाई' का पता लगाने यानी फैक्ट चेक का काम करेगी. यह अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे, फेसबुक, एक्स या इंस्टाग्राम पर फैल रही खबरों या जानकारी की पड़ताल करके उनको गलत बता सकती है. ऐसी खबरों या जानकारियों को प्लेटफॉर्म से हटाने की कानूनी बाध्यता होगी. इसके अलावा इंटरनेट से ऐसी खबरों, जानकारियों, कॉन्टेंट या वीडियो के यूआरएल को ब्लॉक भी करना होगा. 

यह प्रावधान साल 2019 में सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन के बाद लाया गया था. हालांकि यह मामला पहले ही बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने उठाया जा चुका है. दरअसल आईटी नियमों में संशोधन के खिलाफ कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अपनी याचिका में इन सभी ने कहा कि ये संशोधन मौलिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं. हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने 31 जनवरी 2024 को सुनाए अपने फैसले में आईटी नियमों के संशोधन पर किसी भी तरह की रोक लगाने से मना कर दिया था. 

इस यूनिट की वैधानिकता की याचिका अभी भी बॉम्बे हाई कोर्ट में है. याचिकाकर्ताओं की दलील है कि इस मामले में अंतिम फैसला आने तक इस नियम पर रोक लगाई जाए. हालांकि सरकार ने भी ऐसा हलफनामा दायर किया था कि वो फैक्ट चेक यूनिट का गठन नहीं करेगी. 

अगर नियमों में बदलावों की बात करें तो इसके तहत, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को यह तय करना होगा कि वे कोई भी गलत जानकारी अपलोड या प्रदर्शित ना होने दें. अगर ऐसा कोई मामला सामने आता भी है कि तो उसे 36 घंटों के भीतर ही हटाना भी होगा. ऐसा ना करने पर सरकार उस प्लेटफॉर्म पर कार्रवाई कर सकती है. 

भले ही सरकार के इस कदम का काफी विरोध हुआ हो या हो रहा हो पर सरकार ने इस कानून को जरूरी भी बताया है. सरकार का कहना है कि फेक न्यूज जैसी समस्याएं सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं. और ये नियम किसी के भी बोलने की आजादी पर पाबंदी नहीं लगाते. 

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