पिछले एक महीने से बिहार के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर की 'मुक्ति' के लिए आंदोलन हो रहे हैं. इसकी मुख्य वजह है बौद्ध समुदाय की ओर से महाबोधि मंदिर के प्रबंधन में पूर्ण नियंत्रण की मांग. 12 फरवरी, 2025 को इन्हीं मांगों को लेकर बोधगया में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल और देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ.
यह आंदोलन अब महाराष्ट्र समेत राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु तक फ़ैल गया है. इसके अलावा मंगोलिया, वियतनाम, जापान और कंबोडिया जैसे देशों से भी 'फ्री महाबोधि टेंपल मूवमेंट' को समर्थन मिल रहा है.
बौद्ध भिक्षुओं और अनुयायियों का आरोप है कि वर्तमान प्रबंधन व्यवस्था से मंदिर का 'ब्राह्मणीकरण' हो रहा है और बौद्धों के धार्मिक अधिकारों का हनन हो रहा है. वे मांग कर रहे हैं कि 1949 के अधिनियम को रद्द कर मंदिर का पूरा प्रबंधन बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए.
बोधगया में शुरू हुआ आंदोलन अन्य राज्यों में प्रदर्शन, रैलियां और जेल भरो आंदोलन की शक्ल अख्तियार कर रहा है. बीते 16 मार्च को मुंबई में सैकड़ों बौद्ध अनुयायियों ने एक रैली निकाली और बुद्ध की मूर्तियों के साथ शांतिपूर्ण मार्च किया. इसी तरह, दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना दिया गया, जहां प्रदर्शनकारियों ने सरकार को अपनी मांगों का एक ज्ञापन सौंपा.
📍पुणे
— Vanchit Bahujan Aaghadi (@VBAforIndia) March 12, 2025
बुद्धगया महाबोधी महाविहार मुक्ती आंदोलनाला पाठिंबा देणारा वंचित बहुजन आघाडी एकमेव पक्ष आहे
भारतीय बौद्ध महासभा आणि वंचित बहुजन आघाडीचे राज्यव्यापी आंदोलन#MahaBodhiMuktiAndolan #महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन #Repeal_BTact1949 #VBAForIndia pic.twitter.com/p9HiXyjVlP
17 मार्च को बोधगया में जेल भरो आंदोलन के दौरान पुलिस ने 50 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.
प्रदर्शनकारी भिक्षु भदंत सुजातो ने मीडिया से कहा, "महाबोधि मंदिर हमारा सबसे पवित्र स्थल है. इसे हिंदू बहुल समिति के हवाले रखना हमारे धार्मिक अधिकारों का अपमान है. हम चाहते हैं कि यह मंदिर पूरी तरह बौद्धों को सौंपा जाए, जैसा कि अन्य धर्मों के तीर्थस्थलों के साथ होता है."
क्या है विवाद की जड़?
महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति (BTMC) करती है, जो 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम के तहत संचालित होती है. इसमें नौ सदस्य हैं—चार बौद्ध और पांच हिंदू. समिति का अध्यक्ष जिला मजिस्ट्रेट होता है, जो अधिनियम के अनुसार हिंदू होना चाहिए. बौद्ध समुदाय का आरोप है कि इससे मंदिर का 'ब्राह्मणीकरण' हो रहा है और उनकी धार्मिक परंपराओं पर अतिक्रमण हो रहा है. वे कहते हैं कि मंदिर में हिंदू पुजारी और रीति-रिवाजों का प्रभाव बढ़ रहा है, जो बौद्ध धर्म की शुद्धता को नुकसान पहुंचा रहा है.
बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ईसा पूर्व में माना जाता है. कहा जाता है तब तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त धार्मिक कर्म-कांडों और जाति व्यवस्था के विरोध में बौद्ध धर्म का तेजी से विस्तार हुआ. महाबोधि मंदिर गौतम बुद्ध से जुड़े चार तीर्थस्थलों में से एक है. यह उसी जगह पर बनाया गया है जहां सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान मिला था.
महाबोधि मंदिर को 'मुक्त' करने का आंदोलन महाराष्ट्र में फैलना तय था जहां भारत में सबसे बड़ी बौद्ध आबादी (65.3 लाख) रहती है. महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म को तब बढ़ावा मिला जब 1956 में भीमराव अंबेडकर ने दलित बौद्ध आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन ने हिंदू धर्म को चुनौती देते हुए जाति व्यवस्था को खारिज कर दिया और ब्राह्मणों द्वारा अछूत माने जाने वाले कई दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया.
राज्य में मंदिर पर बौद्ध नियंत्रण की मांग के समर्थन में कम से कम 62 रैलियां आयोजित की गई हैं. वंचित बहुजन अघाड़ी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया जैसे राजनीतिक दलों, जिनके समर्थक दलित बौद्ध समुदायों से हैं, ने भी इसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया.
संसद तक पहुंची बात
कांग्रेस सांसद प्रो. वर्षा गायकवाड़ ने संसद में महाबोधि मुद्दे पर बोलते हुए कहा, "महाबोधि मंदिर का प्रबंधन एक ट्रस्ट करती है. अगर इसकी तुलना अन्य धर्मों के तीर्थस्थलों से की जाए तो यह काफी अनुचित और बौद्ध समाज के प्रति अन्यायपूर्ण प्रतीत होती है. देश के सभी मस्जिदों के प्रबंधक मुस्लिम समाज के होते हैं, चर्च के प्रबंधक ईसाई समाज के होते हैं, गुरुद्वारा के प्रबंधक सिख और मंदिर के हिन्दू होते हैं तो बौद्ध मंदिरों के बुद्ध क्यों नहीं?"
महाबोधि महाविहार बौद्धों को सौप दो ; कांग्रेस सांसद प्रो. वर्षा गायकवाड़ ने संसद में आवाज बुलंद की #MahaBodhiMuktiAndolan #Bodhgaya @VarshaEGaikwad pic.twitter.com/69GU0p0kZ3
— AWAAZ INDIA (@awaaz_india) March 17, 2025
वंचित बहुजन अघाड़ी से जुड़े प्रकाश आंबेडकर का कहना है, "मैं बिहार के बोधगया में महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन पर बहुत करीब से नजर रख रहा हूं. लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने बौद्धों के विशाल आंदोलन को अनदेखा और अनसुना कर दिया है! शायद उन्हें यह नहीं पता कि बौद्धों की मांगों को नजरअंदाज करने के कूटनीतिक प्रभाव क्या हो सकते हैं. मोदी न केवल भारत में बौद्धों के विरोध को नजरअंदाज कर रहे हैं, बल्कि जापान, मंगोलिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, कंबोडिया जैसे देशों के साथ भारत की बौद्ध धर्म-केंद्रित कूटनीति और रणनीतिक साझेदारियों को भी खतरे में डाल रहे हैं."
I have been very closely following the Mahabodhi Mahavihara Mukti Andolan in Bodh Gaya, Bihar.
— Prakash Ambedkar (@Prksh_Ambedkar) March 4, 2025
Support has been pouring in from the Buddhists for the #MahaBodhiMuktiAndolan. Both the VBA and Buddhist Society of India have lent their complete support to the Andolan and have… pic.twitter.com/IOkMKszui3
प्रदर्शनकारियों का दावा है कि उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को पत्र भेजकर अपनी मांगों पर चर्चा के लिए बैठक बुलाने का अनुरोध किया है. इसके अलावा, उन्होंने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के साथ तीन बार चर्चा की है. 27 फरवरी को बिहार के गृह मंत्रालय ने प्रदर्शनकारियों को चर्चा के लिए आमंत्रित किया. बैठक में मौजूद अखिल भारतीय बौद्ध मंच के महासचिव आकाश लामा ने मीडिया से कहा, "गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अनिमेष पांडे ने हमारी मांगों पर जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. उन्होंने हमसे भूख हड़ताल खत्म करने और चर्चा में शामिल होने का भी आग्रह किया. हालांकि, जब तक हमें लिखित आश्वासन नहीं मिलता, हम अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त नहीं करेंगे."
इन बैठकों के बावजूद, प्रदर्शनकारी अपने रुख पर अड़े हुए हैं. वे तब तक अपना आंदोलन जारी रखने की योजना बना रहे हैं जब तक सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती. बौद्ध संगठन अखिल भारतीय भिक्षु संघ के अध्यक्ष भदंत राहुल बोधि ने चेतावनी दी, "अगर सरकार ने जल्द हमारी बात नहीं मानी, तो हम मंदिर के बाहर सत्याग्रह शुरू करेंगे. यह हमारी आस्था और सम्मान की लड़ाई है."
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
बढ़ते तनाव को देखते हुए बोधगया में भारी पुलिस बल तैनात किया गया है. मंदिर परिसर के आसपास बैरिकेडिंग की गई है और आने-जाने वालों पर कड़ी नजर रखी जा रही है. जिला प्रशासन ने शांति बनाए रखने की अपील की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान का प्रस्ताव सामने नहीं आया है.