नई लोकसभा (18वीं) का पहला सत्र 24 जून से शुरू हो चुका है लेकिन लोकसभा अध्यक्ष कौन होगा, यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है. जो साफ हुआ है वो ये कि लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव 26 जून को होने की पूरी संभावना है. उम्मीद की जा रही है कि 25 जून को केंद्र के सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा हो जाएगी.
इस बार लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर सुगबुगाहट इसलिए बढ़ गई है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने बूते बहुमत का आंकड़ा हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास इस बार स्पष्ट बहुमत नहीं है. लोकसभा में 272 का जादुई आंकड़ा पार करने के लिए वह अपने सहयोगी दलों पर निर्भर है.
ऐसे में एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है बीजेपी की प्रमुख सहयोगी और आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) बीजेपी पर यह दबाव बना रही है. टीडीपी की तरफ से इस मांग के पक्ष में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में वह पहले एनडीए सरकार का हिस्सा थी, तब पार्टी के जीएमसी बालयोगी लोकसभा अध्यक्ष हुआ करते थे.
बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से बातचीत से यह भी साफ होता है कि टीडीपी की तरफ से लोकसभा अध्यक्ष पद में दिलचस्पी दिखाई गई है लेकिन दबाव नहीं बनाया गया है. इनका दावा है कि टीडीपी ने जो रुख सार्वजनिक तौर पर अपना रखा है, उसका वही रुख बीजेपी और टीडीपी की आंतरिक बैठकों में भी है. टीडीपी ने सार्वजनिक तौर पर बार-बार यह दोहराया है कि लोकसभा स्पीकर एनडीए का होना चाहिए और सभी घटक दलों को बैठकर नए स्पीकर का नाम तय करना चाहिए.
बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि टीडीपी लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए बहुत ज्यादा दबाव न बना पाए इसके लिए दो रणनीतियां अपनाई गई हैं. पहली यह कि टीडीपी के बाद एनडीए में दूसरी सबसे बड़ी साझेदार जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को इस बात के लिए तैयार कर लिया गया है कि वह लोकसभा अध्यक्ष के पद पर अपना दावा न जताए और सार्वजनिक तौर पर यह कहे कि जेडीयू बीजेपी के उम्मीदवार का समर्थन करेगी. जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने सार्वजनिक बयान देकर यह कहा भी कि लोकसभा अध्यक्ष पद पर दावा सबसे बड़ी पार्टी का होता है और इस नाते उनकी पार्टी बीजेपी उम्मीदवार का समर्थन करेगी. हालांकि, त्यागी इस बात से इनकार करते हैं कि जेडीयू की तरफ से यह बयान बीजेपी के कहने पर दिया गया है.
बीजेपी की दूसरी रणनीति है कि कांग्रेस से बातचीत की जाए. नए संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू की कांग्रेस अध्यक्ष मल्ल्किार्जुन खड़गे से हुई मुलाकात को इससे जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि, रिजिजू ने इसे संसद के नए सत्र के पहले हुई औपचारिक मुलाकात कहा लेकिन कांग्रेसी खेमे के लोग यह कह रहे हैं कि बीजेपी चाहती है कि लोकसभा का नया अध्यक्ष सर्वसम्मति से चुना जाए और इस पद के लिए चुनाव न हो. पार्टी को लगता है कि अगर आम सहमति के उम्मीदवार के पक्ष में कांग्रेस भी आ जाए तो फिर टीडीपी उस पर दबाव नहीं बना पाएगी.
कांग्रेस के अंदर से भी यह बात निकलकर सामने आ रही है कि बीजेपी के इस प्रस्ताव पर कांग्रेस ने लोकसभा उपाध्यक्ष पद को लेकर अपनी शर्त रख दी है. दरअसल, कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं होने के बावजूद यह भारत की संसदीय परंपरा रही है कि लोकसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष से चुना जाता है और लोकसभा उपाध्यक्ष विपक्षी खेमे से होता है. लेकिन 2014 में भाजपा ने यह पद कांग्रेसी खेमे में नहीं जाने दिया और एआईएडीएमके के एम थंबिदुरई को इस पद पर बैठाने में मदद की. 2019 से 2024 यानी 17वीं लोकसभा के दौरान लोकसभा उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव ही नहीं कराया गया और यह पद खाली रहा.
कांग्रेस के नेताओं से बातचीत करने पर पता चलता है कि अगर बीजेपी ने लोकसभा स्पीकर पद के लिए सहमति नहीं बनाई तो 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव आम सहमति से नहीं हो पाएगा और इस पद के लिए एनडीए उम्मीदवार को इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार का सामना करना होगा.