scorecardresearch

स्वामीनाथन आयोग की किन सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं किसान?

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने 18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर स्वामीनाथन के नेतृत्व में किसानों पर एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था.

अपनी मांगों के लिए आंदोलनरत किसान
अपनी मांगों के लिए आंदोलनरत किसान
अपडेटेड 19 फ़रवरी , 2024

हरियाणा की दिल्ली से लगती सीमा पर फिलहाल शांति है. 18 फरवरी को पीयूष गोयल सहित तीन केंद्रीय मंत्रियों, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और किसान नेताओं के बीच देर रात एक बैठक हुई थी. सरकार ने किसानों को प्रस्ताव दिया है कि नाफेड जैसी सरकारी एजेंसियां किसानों से पांच साल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनकी फसलें खरीदेगी. हालांकि किसानों ने इस प्रस्ताव पर तुरंत हामी नहीं भरी है. उन्होंने दो दिन, 19-20 तारीख का समय आपसी चर्चा के लिए मांगा है.

इस बीच किसानों ने अपनी ‘दिल्ली चलो’ मार्च स्थगित कर दिया है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि अगर सरकारी प्रस्ताव सभी संगठनों ने स्वीकार नहीं किया तो यह मार्च फिर शुरू कर दिया जाएगा.

दरअसल किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस या न्यूनतम समर्थन मूल्य) और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें मांगने को लेकर हैं. इनमें से पहली मांग को लेकर तो किसान अभी चर्चा कर रहे हैं जबकि दूसरी मांग पर कुछ नहीं हुआ है. इन सब के बीच ये समझना अहम है कि स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को लेकर क्या सुझाव दिए थे और एमएसपी को लेकर उनकी क्या सिफारिश थी.

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने 18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर स्वामीनाथन के नेतृत्व में किसानों पर एक राष्ट्रीय आयोग (एनसीएफ/नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स) का गठन किया था. इस आयोग में दो पूर्णकालिक सदस्य - डॉ. रामबदन सिंह और वाई सी नंदा, चार अंशकालिक सदस्य - डॉ आर एल पितले,  जगदीश प्रधान,  चंदा निंबकर और अतुल कुमार अंजन  और एक सदस्य सचिव - अतुल सिन्हा शामिल थे.

दिसंबर 2004 और अक्टूबर 2006 के बीच स्वामीनाथन आयोग ने कुल 1,946 पन्नों की पांच रिपोर्ट सरकार को सौंपीं जिनमें किसानों को लेकर गहरी सहानुभूति जताई गई थी. इस रिपोर्ट में आयोग ने कई सिफारिशें की थीं जिनमें एमएसपी पर कम से कम दो सिफारिशें शामिल थीं. भूमि सुधार, खाद्य सुरक्षा और सिंचाई से लेकर किसानों की आत्महत्या तक पर इस आयोग ने अपने सुझाव भारत सरकार को सौंपे थे.

बात करें एमएसपी की तो स्वामीनाथन आयोग का कहना था कि फसल की औसत लागत से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य एमएसपी के रूप में किसानों के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए. एमएसपी को कानूनी रूप देने की मांग ही किसान कर रहे हैं. फिलहाल हर फसल के दौरान, सरकार 23 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है. सैद्धांतिक तौर पर इसका मतलब है कि अगर किसी फसल का बाजार मूल्य नीचे गिर गया तो सरकार एमएसपी पर वह फसल खरीदेगी. हालांकि ऐसा होता नहीं है इसलिए किसान इसकी गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में किसानों से नए कृषि कानूनों को लेकर बात करने के लिए 4 सदस्यों की कमिटी गठित की थी. इसी कमिटी में शामिल एग्रीकल्चरल-इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी ने इंडिया टुडे से एमएसपी पर कानून बनाने को लेकर बात की है. उनका कहना है, "यह (एमएसपी कानून) किसान विरोधी हो सकता है. आम तौर पर, कीमतें मांग और आपूर्ति से तय होती हैं. यदि एमएसपी को कानूनी बना दिया जाता है, तो मान लीजिए - एक विशेष वस्तु की संख्या 100 है लेकिन मांग महज 70 की है, तो क्या होगा? बाकी बचे इन 30 को कोई हाथ भी नहीं लगाएगा और यह किसानों के ही पास रहे जाएगा. इसमें कोई कुछ भी नहीं कर पाएगा क्योंकि अगर मैं एमएसपी से कम कीमत पर खरीदूंगा, तो मुझे जेल में डाला जा सकता है.

बात सीधी सी है - जब कीमतें कम होती हैं, तो मांग अधिक होती है; जब कीमतें अधिक होती हैं, तो मांग कम होती है और बाजार खाली हो जाता है. 23 वस्तुओं के लिए पूरे देश में कानूनी मांग करना और उसे लागू करना. मेरे लिए, यह असंभव है."

स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक भूमि सुधार में अधूरा एजेंडा, सिंचाई में पानी की मात्रा और गुणवत्ता की कमी, किसानों का तकनीकी रूप से समृद्ध ना होना, संस्थागत ऋण तक उनकी पहुंच न होना, कृषि संकट के प्रमुख कारण हैं. इन सब के अलावा मौसम आग में घी डालने का काम करता है. इन्हीं सब वजहों को लेकर आयोग ने कृषि (जो फिलहाल राज्य सूची में है) को समवर्ती सूची में डालने का सुझाव दिया था.

भूमि सुधार को लेकर भी आयोग ने अपर लिमिट से अधिक या सरप्लस और बंजर जमीनों को वितरित करने, और कृषि भूमि की बिक्री को नियंत्रण में रखने के लिए सरकारी तंत्र बनाने जैसे सुझाव दिए थे. किसानों की आत्महत्या सरकार और समाज के लिए एक बड़ी चुनौती रही है. इसको लेकर भी एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स ने अपने सुझाव दिए.

किसानों की आत्महत्या को रोकने के संबंध में एनसीएफ ने सुझावों की एक पूरी सूची साझा की. इसमें सबसे पहले किसानों के लिए स्वास्थ्य बीमा को किफायती बनाने और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को दुरुस्त करने की बात की गई थी. किसानों की समस्याओं पर जल्द से जल्द सरकारी प्रतिक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए किसानों के प्रतिनिधित्व के साथ राज्य स्तरीय किसान आयोग की स्थापना करने की बात भी आयोग की रिपोर्ट में कही गई. इसके अलावा फसल बीमा, अच्छी गुणवत्ता वाली बीजों को उपलब्ध कराने, और लोगों को आत्मघाती व्यवहार के शुरुआती लक्षणों की पहचान कराने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने जैसे सुझाव स्वामीनाथन आयोग ने दिए थे.

सुझावों के अलावा, किसानों की 'शुद्ध घरेलू आय' को सिविल सेवकों की आय के बराबर करने जैसी बातें भी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में शामिल की थीं. जाहिर है, ऐसा हुआ तो नहीं और किसान अपनी मांगों को लेकर इसीलिए फिर से धरना प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं. लगभग दो साल पहले जिस दिन सरकार तीन कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा की, किसान वापस अपने-अपने खेत लौट गए थे. कानूनों के वापस लेने के अलावा पिछली बार किसान इसी शर्त पर वापस लौटे थे कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाएगी. किसानों और सरकार के बीच 4 राउंड की बातचीत बेनतीजा साबित हो चुकी है. अब देखना है कि चुनावों के ठीक पहले हो रहे इस प्रदर्शन के आगे सरकार क्या रुख अपनाती है.

Advertisement
Advertisement