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क्या अब खेल संघों का कामकाज सुधारने में कामयाब हो पाएगी केंद्र सरकार?

खेल संघों के कामकाज में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने 23 जुलाई नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल संसद में पेश किया है

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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (Photo: Getty)
अपडेटेड 24 जुलाई , 2025

खेल संघों के कामकाज में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने 23 जुलाई नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल संसद में पेश किया है. क्या इस बार खेल संघों का कामकाज सुधारने में कामयाब हो पाएगी केंद्र सरकार?

जब 2011 में उस समय के केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्री अजय माकन ने खेल संघों के कामकाज में पारदर्शिता लाते हुए उन्हें सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने की कोशिश की थी, लेकिन वे नाकाम रहे थे. उस समय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की मनमोहन सिंह सरकार केंद्र की सत्ता में थी. 

इसके बाद जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बनी तो स्पोर्ट्स कोड के जरिए सुधार लाने की कोशिश की गई. लेकिन उसमें भी कामयाबी नहीं मिली. अब मोदी सरकार नया कानून लाना चाहती है. इसके लिए नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल- 2025 23 जुलाई को संसद में केंद्रीय युवा मामले और खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने पेश किया. इस विधेयक में भी कई ऐसे प्रावधान हैं, जो पहले की कोशिशों में थे. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस बार सरकार अपनी कोशिश में कामयाब हो पाएगी?

दरअसल, खेलों के मामले में भारत एक वैश्विक शक्ति के तौर पर उभरे और 2036 के ओलंपिक की मेजबानी भारत को मिले, इन्हीं लक्ष्यों के साथ केंद्र सरकार इसी महीने की शुरुआत में राष्ट्रीय खेल नीति लेकर आई थी. अब जो राष्ट्रीय स्पोर्ट्स गवर्नेंस विधेयक- 2025 केंद्र सरकार इस मॉनसून सत्र में संसद में लेकर आई है, उसके प्रावधान भी इन्हीं लक्ष्यों के आसपास केंद्रित हैं. 

इस विधेयक में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे भारत के खेलों और खेल संगठनों के कामकाज में व्यापक बदलाव आ सकता है. लेकिन इनमें से कई प्रावधान ऐसे भी हैं जो आने वाले दिनों में खेल मंत्रालय और खेल संघों के बीच टकराव की वजह बन सकते हैं.

नए बिल में सभी राष्ट्रीय खेल संघों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने का प्रस्ताव है. इस प्रस्ताव पर ही 2011 में सबसे अधिक विवाद हुआ था. बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल इन इंडिया यानी बीसीसीआई ने इस प्रावधान पर सबसे ज्यादा आपत्ति जताई थी. इस बार संसद में बिल पेश होने के पहले बीसीसीआई के सचिव देवजीत सैकिया ने सिर्फ इतना कहा कि एक बार संसद में बिल पेश हो जाए उसके बाद इसके प्रभावों का अध्ययन करके बीसीसीआई तय करेगा कि कैसे आगे बढ़ना है.

नए विधेयक में सभी खेल संघों को भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) के ऑडिट के दायरे में लाने का प्रस्ताव है. यह भी एक ऐसा विषय है जिस पर खेल संघों और सरकार में ठन सकती है. एक राष्ट्रीय खेल संघ के अध्यक्ष कहते हैं, ''सरकार खुद जो फंड देती है, उसकी ऑडिट कराए. लेकिन अधिकांश मौकों पर तो सरकार हमें अपने हाल पर छोड़ देती है. खुद हमें अपने खिलाड़ियों को विदेश भेजने के लिए फंड की व्यवस्था करनी पड़ती है. ऑडिट कराना है तो कराएं लेकिन फिर सरकार को पूरी फंडिंग की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.''

खेल संघों के नियमन के लिए नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड के गठन का प्रस्ताव विधेयक में किया गया है. राष्ट्रीय खेल फेडरेशन के तौर पर मान्यता देने की जिम्मेदारी इस बोर्ड के पास होगी. खेल संघों में नियमों के पालन, फंडिंग और गवर्नेंस सुनिश्चित कराने का काम भी इस बोर्ड के पास होगा. इस स्वायत्त बोर्ड का गठन करके सरकार खेल मंत्रालय की भूमिका को कम करने की बात कह रही है. अगर किसी फेडरेशन की मान्यता रद्द की जाती है या उसे निलंबित किया जाता है तो उस स्थिति में यह बोर्ड एक अस्थाई एडमिनिस्ट्रेटिव बॉडी का गठन करेगा. इसमें अनुभवी खेल प्रशासक होंगे. 

दुनिया की बेस्ट प्रैक्टिसेज को स्पोर्टस गवर्नेंस में अपनाते हुए कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की बात भी नए विधेयक में कही गई है ताकि 2036 ओलंपिक मेजबानी के लिए भारत की दावेदारी मजबूत हो. स्पोर्टस गवर्नेंस को लेकर भारत में अभी जो स्थिति है, उसे लेकर अंतरराष्ट्रीय खेल संगठनों से कई बार भारत के विभिन्न खेल संघों को नसीहत मिलती रही है.

खेलों के प्रशासन को खिलाड़ी केंद्रित करते हुए इसमें खिलाड़ियों की भूमिका बढ़ाना. हर खेल संगठन के लिए खिलाड़ियों की एक समिति का गठन अनिवार्य होगा. ये संबंधित खेल से संबंधित नीति निर्धारण में अपने इनपुट्स देंगे. साथ ही हर फेडरेशन की कार्यकारी समिति में दो प्रतिष्ठित खिलाड़ी जरूर होंगे. खेलों के गवर्नेंस में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित करते हुए हर फेडरेशन की कार्यकारी समिति में कम से कम चार महिलाओं का होना अनिवार्य.

फेडरेशनों के आंतरिक विवादों की वजह से बढ़ते अदालती मामलों से निपटने के लिए विधेयक में नेशनल स्पोर्ट्स ट्राइब्यूनल का प्रावधान किया गया है. इसके फैसलों को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. इस तीन सदस्यीय ट्राइब्यूनल के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या किसी हाई कोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश ही हो सकते हैं. सभी खेल संगठनों में एथिक्स समिति और विवाद समाधान समिति का गठन अनिवार्य करने का प्रस्ताव.

अधिकांश खेल संघों का विवाद आंतरिक चुनावों से संबंधित होता है. इसके लिए नए विधेयक में नेशनल स्पोर्ट्स इलेक्शन पैनल बनाने का प्रावधान किया गया है. इसमें पूर्व चुनाव आयुक्त या चुनाव आयोग के पूर्व अधिकारी शामिल होंगे. इनकी जिम्मेदारी होगी कि सभी राष्ट्रीय खेल संघों और उनसे संबद्ध ईकाइयों में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराएं.

हर संगठन की कार्यकारी समिति के सदस्यों की अधिकतम संख्या 15 करने का प्रस्ताव भी विधेयक में है. इसके तहत कोई भी सदस्य 25 साल से कम उम्र का नहीं होना चाहिए. खेल संघों के शीर्ष पदों जैसे अध्यक्ष या महासचिव का चुनाव लड़ने वाले या तो खिलाड़ी रहे हों या जिनका खेल प्रशासन में अनुभव रहा हो. अधिकांश पदों पर रहने के लिए अधिकतम आयु सीमा 70 साल तय करने का प्रस्ताव है. कुछ मामलों में इसे बढ़ाकर 75 करने का प्रावधान है. ये मामले ऐसे हैं कि अगर कानून लागू होने के वक्त अगर कोई व्यक्ति ऐसे पद पर है और उसकी उम्र 70 वर्ष से अधिक है तो उसे अधिकतम 75 वर्ष तक अपने पद पर बने रहने की अनुमति दी जा सकती है. बिल में यह प्रावधान भी किया गया है कि 12 वर्ष से अधिक का कुल कार्यकाल नहीं हो सकता.

सिर्फ मान्यता प्राप्त खेल संगठन ही भारत के राष्ट्रीय चिन्हों, राष्ट्रीय झंडे और अपनी टीम के नाम में 'भारत या इंडिया' शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए इन संगठनों को बाकायदा स्पोर्ट्स बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होगा.

विवादास्पद प्रावधानों के बावजूद आखिर इस बार केंद्र सरकार को क्यों उम्मीद है कि यह विधेयक संसद से पारित होकर कानून का रूप ले पाएगा? इस सवाल के जवाब में मांडविया कहते हैं, ''मैंने राष्ट्रीय खेल फेडरेशंस, खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों से व्यापक विचार—विमर्श किया. बिल के ड्राफ्ट पर हमें आम लोगों के तकरीबन 600 सुझाव मिले. स्पोर्ट्स लॉयर्स के साथ भी मैंने तीन घंटे की बैठक करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की. आईओसी के अलावा अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स फेडरेशंस से भी हमने बात की. फीफा से बातचीत के लिए भी हमने एक अधिकारी उनके मुख्यालय भेजा. मैंने अजय माकन से भी बातचीत की. उन्होंने इस बिल को पास कराने के लिए अच्छी कोशिश की थी.'

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