संसद के मॉनसून सत्र में 8 अगस्त को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया. इस प्रस्तावित कानून का उद्देश्य मौजूदा वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करना है, जिसे पहले 2013 में संशोधित किया जा चुका है.
विधेयक में वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करने वाले मौजूदा कानूनी ढांचे में लगभग 40 बदलावों का सुझाव दिया गया है. संसद में इस विधेयक को पेश करते ही विपक्षी पार्टियों ने जोरदार हंगामा करना शुरू कर दिया और इस विधेयक को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताया.
वक्फ क्या है और अभी कैसे चलता है?
वक्फ मुसलमानों की ओर से किसी खास उद्देश्य के लिए दान की गई निजी संपत्ति है. ये उद्देश्य धार्मिक, खैराती या निजी हो सकते हैं. इस संपत्ति के लाभार्थी अलग-अलग हो सकते हैं मगर संपत्ति का स्वामित्व ईश्वर के पास माना जाता है. किसी लिखित दस्तावेज के अलावा वक्फ को मौखिक रूप से भी बनाया जा सकता है. इसके साथ ही किसी ऐसी संपत्ति को भी वक्फ माना जा सकता है जिसका लंबे समय तक धार्मिक या खैराती कामों के लिए इस्तेमाल किया गया हो. एक बार जब किसी संपत्ति को वक्फ घोषित कर दिया जाता है, तो फिर इस फैसले को पलटा नहीं जा सकता.
फिलहाल वक्फ अधिनियम, 1995 भारत में वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करता है. 1995 से पहले 1913 के मुस्लिम वक्फ वैधीकरण अधिनियम और 1923 के मुसलमान वक्फ अधिनियम सहित अन्य कानूनों के जिम्मे वक्फ की जिम्मेदारी थी. 1954 का केंद्रीय वक्फ अधिनियम भी इससे पहले आया था. 2013 में एक संशोधन ने वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण करने पर सजा की शुरुआत की और ऐसी संपत्ति की बिक्री, उपहार, कब्जे या ट्रांसफर पर रोक लगा दी.
अभी के कानून के तहत, एक सर्वे कमिश्नर जांच और सरकारी दस्तावेजों की मदद से वक्फ संपत्तियों की सूची तैयार करता है. वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक मुतवल्ली (देखभाल करने वाला) की तरफ से किया जाता है, ठीक उसी तरह जैसे भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के तहत ट्रस्ट संपत्तियों को संभाला जाता है.
वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों का निपटारा राज्य सरकार की ओर से नियुक्त वक्फ ट्रिब्यूनल में होता है. इसमें न्यायिक अनुभव वाला एक अध्यक्ष, एक राज्य सिविल सेवा अधिकारी और मुस्लिम कानून का एक विशेषज्ञ शामिल होता है.
वक्फ कानून वक्फ बोर्ड और परिषदों की भी स्थापना करता है, जिसके बोर्ड में आम तौर पर मुस्लिम सदस्य होते हैं, जिनमें विधायक और एक्सपर्ट्स शामिल होते हैं. ये बोर्ड वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और प्रशासन देखते हैं. वक्फ बोर्डों के पास संपत्ति के लेन-देन को मंजूरी देने का अधिकार है, लेकिन ऐसे फैसलों के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है.
वक्फ (संशोधन) विधेयक के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
भारत सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की मदद से देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और शासन में बदलाव करना चाहा है, जिसमें वक्फ बोर्ड और ट्रिब्यूनल से काम-काज की कमान लेकर राज्य सरकारों के हाथ में सौंपने की बात की गई है. एक-एक कर इस विधेयक के संशोधन देखें -
अधिनियम का नाम बदलना: विधेयक में वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करने का प्रस्ताव दिया गया है.
सेक्शन 3ए: विधेयक की सेक्शन 3ए के तहत अब केवल संपत्ति के वैध मालिक ही वक्फ बना सकते हैं. इसका मकसद किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में नामित करने से रोकना है, अगर ऐसा करने वाले व्यक्ति के पास उसका कानूनी स्वामित्व नहीं है.
सेक्शन 3सी(1): यह बताता है कि अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ के रूप में पहचानी गई सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा.
सेक्शन 3सी(2): इस सेक्शन के मुताबिक, सरकार के पास यह तय करने का अधिकार है कि वक्फ के रूप में नामित संपत्ति असल में सरकारी जमीन है या नहीं. इसका फैसला कलेक्टर करेंगे और जब तक सरकार इस मुद्दे को हल नहीं कर लेती, तब तक संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
ऑडिट और गवर्नेंस: इस विधेयक के मुताबिक केंद्र सरकार किसी भी समय, किसी भी वक्फ संपत्ति का ऑडिट करने का निर्देश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की ओर से नियुक्त ऑडिटर को दे सकती है.
यह 'उपयोग से वक्फ' की अवधारणा को हटाने का भी प्रस्ताव करता है, जिसके तहत धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली संपत्तियों को औपचारिक घोषणा के बिना भी वक्फ माना जाता था.
वक्फ बोर्डों में बदलाव: इस विधेयक में वक्फ बोर्डों की संरचना को बदलने के लिए गैर-मुस्लिमों को सीईओ का पद संभालने और बोर्ड के सदस्य होने की अनुमति देने की बात भी की गई है. इसके पारित होने के बाद राज्य सरकार गैर-मुस्लिम सदस्यों को भी वक्फ बोर्डों में नियुक्त कर सकेंगे.
विपक्ष ने इस विधेयक पर क्या कहा?
इस विधेयक को विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि ये संशोधन 'असंवैधानिक', 'अल्पसंख्यक विरोधी' और 'विभाजनकारी' हैं. उनका दावा है कि संशोधन मुस्लिम समुदाय की अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वायत्तता को कमजोर करते हैं और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
कांग्रेस सांसद नेता वेणुगोपाल ने इस विधेयक के बारे में संसद में कहा, "गैर-मुसलमानों को वक्फ परिषद का हिस्सा बनने की अनुमति देना धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है." वहीं मलप्पुरम से सांसद ई.टी. मोहम्मद बशीर ने चिंता जताई कि वक्फ बोर्ड से कलेक्टरों को अधिकार सौंपना संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है.
वहीं सुदीप बंद्योपाध्याय और असदुद्दीन ओवैसी सहित विपक्षी सदस्यों ने तर्क दिया कि वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रथा है और इसमें बदलाव करना भेदभाव को बढ़ावा देगा और अनुच्छेद 14 और 15 (1) के तहत समानता के अधिकारों का उल्लंघन करेगा.
एनसीपी (शरदचंद्र पवार) नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि इस विधेयक में वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को अपील योग्य बना दिया गया है और सहकारी संघवाद को दरकिनार कर दिया गया है क्योंकि अब केंद्र सरकार वक्फ के नियमन के लिए नियम बना सकती है.
सरकार ने अपने बचाव में क्या कहा?
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 के बचाव में किरेन रिजिजू का कहना था कि प्रस्तावित संशोधन सच्चर समिति की सिफारिशों के अनुरूप ही हैं और 1976 की वक्फ जांच रिपोर्ट में जो मुद्दे निकलकर सामने आए थे, उन्हें सुलझाते हैं. उन्होंने कहा कि इस संशोधन का मकसद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और उसकी दक्षता में सुधार करना है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने बताया कि 1976 की वक्फ जांच रिपोर्ट में वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन का खुलासा हुआ है, जिनमें से कई मुतवल्लियों (देखभाल करने वालों) के कब्जे में हैं, जिन्होंने मुनाफे को सही तरीके से नहीं बांटा. उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में वक्फ ट्रिब्यूनल के पास 19,000 से ज्यादा मामले लंबित हैं जिनमें सुधार की जरूरत है.
धार्मिक स्वतंत्रता की बात पर रिजिजू ने संसद को आश्वासन दिया कि विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 के तहत संरक्षित धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता. उन्होंने इस दावे को खारिज कर दिया कि वक्फ बोर्ड धार्मिक संप्रदाय हैं और कहा कि 'ब्रह्मचारी सिद्धेश्वर भाई और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल सरकार' केस (1995) के फैसले के मुताबिक वक्फ बोर्ड अनुच्छेद 25 और 26 के दायरे में नहीं आता.
इस पूरी बहस के बाद विपक्ष ने विधेयक को आगे की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की बात कही जिस पर किरेन रिजिजू राजी हो गए. अब यह समिति विधेयक की विस्तार से समीक्षा करते हुए आलोचनाओं और सुझावों पर विचार करेगी और आगे इसे किस तरह से सदन में पारित किया जाए, इसके लिए एक व्यापक रिपोर्ट देगी.