उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बड़े पैमाने पर मतदान में धांधली का आरोप लगाया है. इन आरोपों का राम जानकी मठ मंदिर के संतों ने खंडन किया है. संतों का कहना है कि ये दावे धार्मिक परंपरा की गलतफहमी पर आधारित हैं. इंडिया टुडे की एक ग्राउंड रिपोर्ट ने इस सच्चाई को उजागर किया है.
यह विवाद तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर वाराणसी के वार्ड संख्या 51 के कश्मीरीगंज क्षेत्र की एक मतदाता सूची पोस्ट की, जिसमें दावा किया गया कि 50 से ज्यादा लोग एक ही व्यक्ति, रामकमल दास के "पुत्रों" के रूप में पंजीकृत हैं.
यूपी कांग्रेस ने ट्वीट किया, "वाराणसी में चुनाव आयोग का एक और कमाल देखिए! एक ही व्यक्ति 'रामकमल दास' के नाम पर 50 बेटे वोटर लिस्ट में दर्ज हैं! सबसे छोटे बेटे राघवेंद्र - उम्र 28 साल, और सबसे बड़े बेटे बनवारी दास - उम्र 72 साल! क्या चुनाव आयोग इस गड़बड़ी को सिर्फ एक त्रुटि मानकर खारिज करेगा या मानेगा कि खुलेआम धोखाधड़ी चल रही है? वोट चोरी की यह घटना बता रही है कि बनारस की जनता ही नहीं, पूरा लोकतंत्र ठगा गया है। @ECISVEEP, इसका हलफनामा कब दे रहे हो?"
2023 नगर निगम चुनाव रोल से संबंधित सूची में B 24/19 पता पर रहने वाले 50 से ज्यादा मतदाताओं के नाम हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों ने रामकमल दास को अपना पिता बताया है. सूचीबद्ध आयुवर्ग में 37 वर्ष के 13 लोग हैं, 39 वर्ष के 5 लोग हैं, 40 वर्ष के 4 लोग हैं और 2 बेटे की उम्र 72 साल और अन्य 26 बेटे 40 वर्ष की आयु के हैं.
हालांकि, जब इंडिया टुडे की टीम इस पते पर पहुंची, तो पता चला कि यह पता किसी आवासीय घर का नहीं, बल्कि राम जानकी मठ मंदिर का है जिसे आचार्य रामकमल दास ने स्थापित किया था. मंदिर के वर्तमान प्रबंधक रामभरत शास्त्री ने सूची की प्रामाणिकता की पुष्टि की, लेकिन साफ किया कि यह हिंदू मठवासी जीवन की सदियों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा को दर्शाती है.
शास्त्री जी ने बताया, "हमारे आश्रम में सांसारिक जीवन त्याग चुके शिष्य अपने गुरु को अपना पिता मानते हैं. जब कोई व्यक्ति साधु जीवन अपनाता है, तो उसके सांसारिक पारिवारिक संबंध टूट जाते हैं और सभी अभिलेखों में पिता के नाम के स्थान पर गुरु का नाम दर्ज हो जाता है."
वरिष्ठ शिष्य अभिराम ने कहा कि इस प्रथा को कानूनी मान्यता प्राप्त है. उन्होंने कहा, "2016 में भारत सरकार ने साधुओं और संन्यासियों को आधिकारिक दस्तावेजों में अपने जैविक पिता के बजाय अपने गुरु का नाम इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी. यह न तो धोखाधड़ी है और न ही असंवैधानिक." उन्होंने आगे कहा कि चुनावी मौसम में मठों और आश्रमों को अक्सर राजनीतिक बहसों में घसीटा जाता है.
इस आरोप को "गलत बयानी" कहते हुए संतों ने गलत सूचना फैलाने वालों के लिए बुद्धि शुद्धि पूजा (बुद्धि की शुद्धि के लिए अनुष्ठान) का आयोजन किया. अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कांग्रेस के आरोपों की कड़ी आलोचना करते हुए इन्हें "सनातन हिंदू परंपरा और धार्मिक नेताओं को बदनाम करने की साजिश" करार दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि संत समिति उनकी परंपराओं को बदनाम करने की कोशिशों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी.
स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा, "यह सदियों पुरानी परंपरा है. गुरुकुल के छात्रों, ब्रह्मचारियों और साधुओं के आधार और वोटर आईडी में पिता के स्थान पर गुरु का नाम दर्ज होता है. इसे समझे बिना राजनीतिक दल बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं." मंदिर की ओर से आया स्पष्टीकरण इस पते पर मतदाता धोखाधड़ी के उत्तर प्रदेश कांग्रेस के दावे को प्रभावी रूप से कमजोर करता है.