30 अक्तूबर को अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) ने ऑटोमैटिक वर्क परमिट एक्सटेंशन पर रोक लगा दी है. अब वर्क परमिट एक्सटेंशन के लिए एम्प्लॉयमेंट ऑथराइजेशन डॉक्यूमेंट (EAD) जमा करना होगा.
अमेरिकी सरकार के इस फैसले से कम-से-कम 4 लाख भारतीयों पर सीधे-सीधे असर पड़ने की संभावना है. इससे पहले वर्क परमिट (EAD) की समयसीमा खत्म होने के बाद भी आवेदन लंबित रहने तक कानूनी रूप से दूसरे देश के नागरिक अमेरिका में नौकरी कर सकते थे. हालांकि, अब ऐसा नहीं होगा.
अब हर बार वर्क परमिट बढ़ाने से पहले नई सुरक्षा जांच और वेटिंग प्रक्रिया से गुजरना होगा. दरअसल, अमेरिका में एंप्लॉयमेंट ऑथराइजेशन डॉक्यूमेंट (EAD) यानी वर्क परमिट उन प्रवासियों को दिया जाता है, जिन्हें देश में अस्थायी रूप से काम करने की अनुमति दी जाती है. पहले समय-सीमा खत्म होने के बाद EAD का ऑटोमैटिक एक्सटेंशन हो जाता था, जो अब नहीं होगा.
इसमें शामिल हैं- शरण के लिए आवेदन करने वाले प्रवासी, H-1B या ग्रीन कार्ड होल्डर्स के कुछ जीवनसाथी (H4), F-1 वीजा पर पढ़ रहे छात्र, जो OPT के तहत काम करते हैं. वहीं ग्रीन कार्ड होल्डर्स, H-1B, L-1, और O-1 वीजा धारकों को वर्क परमिट की जरूरत नहीं होती है.
यूएससीआईएस (USCIS) के निदेशक जोसेफ एडलो ने कहा कि यह फैसला राष्ट्रपति ट्रंप के आदेश पर लिया गया है, ताकि विदेशी नागरिकों की बेहतर स्क्रीनिंग हो सके. उन्होंने कहा, "यह एक सामान्य कदम है ताकि किसी विदेशी का वर्क परमिट बढ़ाने से पहले उसकी पूरी जांच हो सके. अमेरिका में काम करना एक अधिकार नहीं, बल्कि एक विशेषाधिकार है."
अमेरिका के इस फैसले से भारतीय कामगारों पर ज्यादा असर पड़ने की संभावना है, जो एच-1बी वीजा धारकों और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा हिस्सा हैं.
अमेरिकी आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) की SEVIS रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में अमेरिका के कुल विदेशी छात्रों में भारतीय छात्रों की हिस्सेदारी 27 फीसदी रही, जो 2023 से 11.8 फीसदी अधिक है.

