"नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं." यह कहना है राहुल गांधी का. वे केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती के मामले में सत्तारूढ़ दल को निशाने पर ले रहे थे.
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट कर बताया कि मोदी सरकार के लेटरल एंट्री का प्रावधान संविधान पर हमला क्यों हैं. विपक्ष के आरोपों के बीच यह समझना जरूरी है कि लेटरल एंट्री में आरक्षण के प्रावधान असल में क्या हैं और सरकार इस बारे में क्या कहती है.
क्या है लेटरल एंट्री का मामला और इसपर चल रही राजनीति?
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने हाल ही में 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर 45 पदों के लिए रिक्तियों की घोषणा की है. ये पद राज्य सरकारों, पीएसयू, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र सहित अलग-अलग क्षेत्रों के योग्य व्यक्तियों के लिए खुले हैं. इन पदों की घोषणा के तुरंत बाद विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर हो गया क्योंकि इन लेटरल एंट्री के पदों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण शामिल नहीं है.
इसके बारे में विपक्षी नेताओं का कहना है कि इन समुदायों को जान-बूझकर अवसरों से वंचित रखा गया है. वहीं कुछ लोगों ने इस नीति पर आरक्षण श्रेणियों को दरकिनार करने और कुछ समूहों को लाभ पहुंचाने की रणनीति होने का आरोप लगाया है.
लेटरल एंट्री वाले मुद्दे पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का यह भी कहना है, "केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है. यह यूपीएससी की तैयारी कर रहे प्रतिभाशाली युवाओं के हक़ पर डाका और वंचितों के आरक्षण समेत सामाजिक न्याय की परिकल्पना पर चोट है. ‘चंद कॉरपोरेट्स’ के प्रतिनिधि निर्णायक सरकारी पदों पर बैठ कर क्या कारनामे करेंगे इसका ज्वलंत उदाहरण SEBI है, जहां निजी क्षेत्र से आने वाले को पहली बार चेयरपर्सन बनाया गया. ‘आईएएस का निजीकरण’ आरक्षण खत्म करने की ‘मोदी की गारंटी’ है."
नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के ज़रिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 18, 2024
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।
मैंने हमेशा…
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव उन बीजेपी नेताओं में शामिल थे जिन्होंने तुरंत राहुल गांधी पर पलटवार किया. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "लेटरल एंट्री मामले में कांग्रेस का ढोंग स्पष्ट है. यह यूपीए सरकार थी जिसने लेटरल एंट्री की अवधारणा विकसित की थी. दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) 2005 में यूपीए सरकार के तहत स्थापित किया गया था."
Lateral entry
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) August 18, 2024
INC hypocrisy is evident on lateral entry matter. It was the UPA government which developed the concept of lateral entry.
The second Admin Reforms Commission (ARC) was established in 2005 under UPA government. Shri Veerappa Moily chaired it.
UPA period ARC…
इसपर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सफाई दी कि यूपीए सरकार लेटरल एंट्री गिने-चुने विशेषज्ञों और अनुभवी लोगों को कुछ क्षेत्र विशेष पदों में उनकी उपयोगिता के अनुसार नियुक्त करने के लिए लाई थी. लेकिन मोदी सरकार ने इस प्रावधान का इस्तेमाल सरकार में एक्सपर्ट्स नियुक्त करने के लिए नहीं बल्कि दलित, आदिवासी व पिछड़े वर्गों का अधिकार छीनने के लिए किया है.
मोदी सरकार के Lateral Entry का प्रावधान संविधान पर हमला क्यों है?
— Mallikarjun Kharge (@kharge) August 19, 2024
1. सरकारी महकमों में नौकरियाँ भरने के बजाय, पिछले 10 वर्षों में अकेले PSUs में ही भारत सरकार के हिस्सों को बेच-बेच कर, 5.1 लाख पद भाजपा ने ख़त्म कर दिए है।
Casual व Contract भर्ती में 91% का इज़ाफ़ा हुआ है।…
कब से शुरू हुई लेटरल एंट्री?
2017 में 'लेटरल एंट्री' की नीति शुरू की गई थी, ताकि शुरू से चली आ रही अखिल भारतीय सेवाओं (आईएएस, आईपीएस) के बाहर से अनुभवी पेशेवरों को केंद्र सरकार की भूमिकाओं में लाया जा सके. इसकी शुरुआत संयुक्त सचिव पदों से हुई थी. लेटरल एंट्रीज़ को कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर पांच साल तक के लिए नियुक्त किया जाता है.
2019 में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा को बताया कि "लेटरल भर्ती का उद्देश्य नई प्रतिभाओं को लाने के साथ-साथ जनशक्ति की उपलब्धता को बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करना है." 8 अगस्त, 2024 को, राज्यसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, सिंह ने कहा, "डोमेन क्षेत्र में उनके विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के स्तर पर लेटरल भर्ती, विशिष्ट असाइनमेंट के लिए व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए की गई है."
मूल रूप से, लेटरल एंट्री के पीछे का विचार सरकार के लिए व्यक्तियों की डोमेन विशेषज्ञता और विशेष जानकारी का उपयोग करना है, भले ही वे आईएएस हों या नहीं. इसी के आधार पर पिछले दशक में अलग-अलग केंद्रीय सिविल सेवाओं (जैसे आईआरएस वगैरह) के अधिकारियों को केंद्रीय सचिवालय में काम करने का मौका दिया गया है जिसे हमेशा से आईएएस-प्रधान माना जाता था.
भारत के संसदीय मामलों के मंत्रालय में केंद्रीय कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन के सहायक मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस साल 9 अगस्त को राज्यसभा में बताया कि 2018 से, लेटरल एंट्री के माध्यम से 63 नियुक्तियां की गई हैं जिनमें से 57 व्यक्ति अभी अलग-अलग मंत्रालयों में काम कर हैं.
हालांकि कांग्रेस पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे, बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव सहित विपक्षी पार्टियों के तमाम नेताओं ने लेटरल एंट्री में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नहीं होने के लिए नीति की आलोचना की है.
इस पूरे मामले पर राजद नेता तेजस्वी यादव का कहना है, "मोदी सरकार बहुत ही व्यवस्थित, पद्धतिबद्ध, योजनाबद्ध और शातिराना तरीके से आरक्षण को समाप्त कर रही है. देश की 90 फ़ीसदी आबादी का हक़ खाने वालों को जनता माफ़ नहीं करेगी."
केंद्र की मोदी सरकार बाबा साहेब के लिखे संविधान और आरक्षण के साथ कैसा घिनौना मजाक एवं खिलवाड़ कर रही है, यह विज्ञापन उसकी एक छोटी सी बानगी है।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 17, 2024
𝐔𝐏𝐒𝐂 ने लैटरल एंट्री के ज़रिए सीधे 𝟒𝟓 संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर की नौकरियां निकाली है लेकिन इनमें आरक्षण का प्रावधान… pic.twitter.com/b2h2R0eiJ7
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि यह नीति निचले स्तर के पदों पर काम करने वाले सीधे भर्ती किए गए कर्मचारियों को वंचित करती है, क्योंकि उन्हें पदोन्नति का लाभ नहीं मिलेगा. उन्होंने कोटा की कमी को 'संविधान का सीधा उल्लंघन' भी बताया.
क्या लेटरल एंट्री में नहीं मिलता आरक्षण?
15 मई, 2018 के एक सर्कुलर में, डीओपीटी ने बताया, "केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं में नियुक्तियों (जो 45 दिन या उससे अधिक समय तक चलने वाली हैं) के संबंध में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए अस्थायी नियुक्तियों में आरक्षण होगा." दरअसल यह गृह मंत्रालय की ओर से 24 सितंबर, 1968 को जारी किए गए एक सर्कुलर की पुनरावृत्ति थी जिसमें ओबीसी को भी शामिल किया गया था. इस सर्कुलर के मुताबिक, नौकरशाही में किसी भी नियुक्ति में आरक्षण के प्रावधान होने चाहिए.
हालांकि, 29 नवंबर, 2018 को, जब लेटरल एंट्री का पहला दौर चल रहा था, तब डीओपीटी की एडिशनल सेक्रेटरी सुजाता चतुर्वेदी ने यूपीएससी सचिव राकेश गुप्ता को एक चिट्ठी लिखकर स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों, पीएसयू और अन्य संगठनों के उम्मीदवारों को प्रतिनियुक्ति या अल्पकालिक अनुबंधों पर नियुक्त किया जाएगा, जिसमें एससी/एसटी/ओबीसी समूहों के लिए अनिवार्य आरक्षण नहीं होगा. चिट्ठी में यह भी कहा गया कि भर्ती प्रक्रिया प्रतिनियुक्ति जैसी है, लेकिन इसमें आरक्षण की जरूरत नहीं है. लेकिन अगर योग्य एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवार आवेदन करते हैं, तो उन्हें निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई के तहत डीओपीटी से इन्हीं लेटरल एंट्री की रिक्तियों से सम्बंधित कुछ फाइलें हासिल की हैं. इनके मुताबिक, "एकल पद कैडर में आरक्षण लागू नहीं होता है. चूंकि इस योजना [लेटरल एंट्री] के तहत भरा जाने वाला प्रत्येक पद एकल पद है, इसलिए आरक्षण लागू नहीं है." एकल पद या सिंगल पोस्ट कैडर का मतलब हुआ कि किसी एक ही पद के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए हों.
लेटरल एंट्री के तहत यूपीएससी ने इस बार 45 रिक्तियों का विज्ञापन दिया है. अगर इन्हें एक ही समूह के रूप में माना जाए, तो आरक्षण के नियमों के मुताबिक, छह रिक्तियां एससी उम्मीदवारों के लिए, तीन एसटी उम्मीदवारों के लिए, 12 ओबीसी उम्मीदवारों के लिए और चार ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए आरक्षित होतीं. लेकिन चूंकि ये रिक्तियां प्रत्येक विभाग के लिए अलग-अलग निकाली गई हैं, इसलिए ये सभी प्रभावी रूप से एकल-पद रिक्तियां हैं और इसलिए आरक्षण की नीति को दरकिनार कर देती हैं.