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यूक्रेन ने मुफ्त के 'ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर' से रूस के हजारों करोड़ स्वाहा किए, भारत के लिए क्या है सबक?

रूस के चार एयर बेस पर कई बॉम्बर जेट्स तबाह करने के लिए यूक्रेन ने जिस तकनीक का इस्तेमाल किया वो ना सिर्फ मुफ्त है, बल्कि सबके लिए आसानी से उपलब्ध भी है

रूस के एयर बेस पर यूक्रेन का ड्रोन अटैक (बाएं); ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर ArduPilot की वेबसाइट
अपडेटेड 9 जून , 2025

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध अब तक कई तकनीकी और रणनीतिक मोड़ ले चुका है. लेकिन 1 जून 2025 को यूक्रेन ने जो सैन्य अभियान शुरू किया, उसने न केवल रूस की सैन्य शक्ति को जबरदस्त नुक्सान पहुंचाया, बल्कि ओपन-सोर्स तकनीक के उपयोग को लेकर एक वैश्विक बहस भी छेड़ दी. इस अभियान, जिसे ‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ नाम दिया गया, में यूक्रेन के मुताबिक़ उसने 116 FPV (फर्स्ट पर्सन व्यू) ड्रोन्स का उपयोग करके रूस के 41 सैन्य विमानों को नष्ट कर दिया.

दावा किया जा रहा है कि इन विमानों की अनुमानित कीमत 7 बिलियन डॉलर (लगभग 59,000 करोड़ रुपये) थी, और ये रूस की स्ट्रैटेजिक बॉम्बर फ्लीट का करीबन 34 फीसदी हिस्सा था. लेकिन इस हमले की सबसे हैरान करने वाली बात ये थी कि इन ड्रोन्स को उड़ाने के लिए ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर ‘ArduPilot’ का इस्तेमाल किया गया, जो मूल रूप से ड्रोन का शौक रखने वाले लोगों के लिए बनाया गया था. इसे दुनिया भर के डेवलपर्स ने मिलकर बनाया है.

ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर होता क्या है?

ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर वो सॉफ्टवेयर होता है, जिसका सोर्स कोड पब्लिक डोमेन में मौजूद होता है. इसका मतलब है कि कोई भी इसे डाउनलोड कर सकता है, एडिट कर सकता है, और अपने काम के लिए इस्तेमाल कर सकता है. इस तरह के सॉफ्टवेयर अक्सर एक डिजिटल कम्युनिटी द्वारा डेवलप किया जाता है, जिसमें डेवलपर्स दुनिया भर से कंट्रीब्यूट करते हैं. ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के कुछ मशहूर नमूने हैं, लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम, अपाचे वेब सर्वर, और अब ArduPilot जैसे सॉफ्टवेयर.

कब हुई ArduPilot की शुरुआत ?

ArduPilot की शुरुआत 2007 में हुई थी, जब क्रिस एंडरसन, जो उस समय WIRED पत्रिका के संपादक-प्रमुख थे, ने इसे एक Lego Mindstorms किट का इस्तेमाल करके बनाया. बाद में जॉर्डी मुनोज़ और जेसन शॉर्ट ने इस प्रोजेक्ट में शामिल होकर इसे और बेहतर किया.

यह सॉफ्टवेयर ड्रोन, नावों, और रोवर्स जैसे अनमैन्ड व्हीकल्स को ऑटोमेटिक पायलट करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. इसकी बाकायदा एक वेबसाइट है जहां इसके शांतिपूर्ण उपयोगों के बारे में बताया गया है, जैसे खोज और बचाव कार्य, 3D मैपिंग, और पर्यावरण से जुड़े काम. लेकिन अब इसका इस्तेमाल युद्ध में हथियार के रूप में हो रहा है, जिसने इसके बनाने वालों को भी हैरान कर दिया है.

ArduPilot कैसे बना हथियार?

ArduPilot की सबसे बड़ी खासियत इसका लचीलापन और गाइडिंग सिस्टम है. यह सॉफ्टवेयर ड्रोन को ऑटो मोड की मदद से उड़ने में कारगर बनाता है, जिसमें ड्रोन स्थिरता, "लॉइटरिंग मोड" (अस्थायी ठहराव), और फेलसेफ मोड (सिग्नल खोने पर उड़ान बनाए रखना) जैसी सुविधाएं शामिल हैं. यह हाई लेटेंसी वाले नेटवर्क, जैसे मोबाइल इंटरनेट, पर भी काम कर सकता है, जो इसे लंबी दूरी के मिशनों के लिए परफेक्ट बनाता है.

यूक्रेन ने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने ड्रोन्स को रूस के भीतर 4,500 किलोमीटर की दूरी पर पायलट किया. इन ड्रोन्स को रूसी मोबाइल नेटवर्क पर पायलट करने के लिए बेसिक मॉडम और Raspberry Pi जैसे बोर्ड का इस्तेमाल किया गया, ताकि स्टारलिंक जैसे सैटेलाइट सिस्टम के भरोसे ना रहना पड़े, जो अक्सर दुश्मन की तरफ से जाम कर दिए जाते हैं. ArduPilot ने ड्रोन्स को स्टेबल रखने और उनके फ़्लाइंग पाथ को कंट्रोल करने में मदद की, जिससे वे सटीकता के साथ अपने टार्गेट तक पहुंच पाए.

इस हमले में यूक्रेन ने रूस के चार प्रमुख एयरबेस- बेलाया (इरकुत्स्क क्षेत्र, साइबेरिया), द्यागिलेवो (रियाज़ान, पश्चिमी रूस), ओलेन्या (मरमंस्क क्षेत्र), और इवानोवो- को निशाना बनाया. ड्रोन्स को ट्रकों और लकड़ी के शेड्स में छिपाकर रूस के भीतर ले जाया गया, और सही समय पर इनकी छतों को रिमोट से खोलकर ड्रोन्स को उड़ाया गया.

यह सॉफ्टवेयर बनाने वाले क्या कह रहे हैं?

ArduPilot के शुरुआती कंट्रीब्यूटर इस बात से हैरान और परेशान हैं कि उनके सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल अब युद्ध में हो रहा है. क्रिस एंडरसन ने लिंक्डइन पर लिखा, “ये ArduPilot है, जो 18 साल पहले मेरे बेसमेंट से शुरू हुआ था. लाजवाब”.  जेसन शॉर्ट ने X पर कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि इसका ऐसा नतीजा होगा. मैं तो बस उड़ने वाले रोबोट बनाना चाहता था”  ये रिएक्शन दिखा रहे हैं कि ओपन-सोर्स तकनीक के शुरुआती कंट्रीब्यूटर्स को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उनका काम एक दिन युद्ध के मैदान में तबाही मचाने का हथियार बन जाएगा.

2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ArduPilot यूक्रेन और रूस दोनों में जाना-माना नाम था. लेकिन इसका इस्तेमाल मिलिट्री अटैक के लिए करना, बिना इसके कंट्रीब्यूटर्स के आसान नहीं है. बहुत मुमकिन है कि बाद के डेवलपर्स में से कुछ लोगों ने इसे साधने में किसी तरह से यूक्रेन की मदद की हो. इसीलिए ये स्थिति ओपन-सोर्स कम्युनिटी के लिए एक नैतिक दुविधा पैदा करती है. क्या बाकी ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के डेवलपर्स को अपने प्रोजेक्ट्स के दुरुपयोग को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए? या ये जिम्मेदारी उन सरकारों और संगठनों की है जो इन तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं?

क्या होगा आगे?

‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ ने डिफेंस एक्सपर्ट को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आने वाले युद्ध कैसे लड़े जाएंगे? ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर का उपयोग न केवल सस्ता है, बल्कि यह तेजी से अपग्रेडेशन और एडिटिंग का बेतहाशा स्पेस भी देता है. इसका मतलब है कि देश अब अपनी सैन्य जरूरतों के हिसाब से तकनीक को जल्दी से एडेप्ट कर सकते हैं. लेकिन इसके साथ ही कई जोखिम भी हैं जिन पर नजर रखनी चाहिए.

पहला खतरा है इसका गलत इस्तेमाल. ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर की पब्लिक डोमेन में होने के कारण इसे कोई भी इस्तेमाल कर सकता है, जिसमें आतंकवादी समूह भी शामिल हैं. 2024 में एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ISIS जैसे संगठन पहले से ही ओपन-सोर्स तकनीक का इस्तेमाल करके ड्रोन हमले कर रहे हैं. दूसरा जोखिम है साइबर सिक्योरिटी का. ओपन-सोर्स कोड सबके लिए उपलब्ध होता है सो हैकर्स इसे आसानी से हैक कर सकते हैं. इससे डिफेंस ऑपरेशन को खतरा हो सकता है.

भारत के लिए सबक, ड्रोन युद्ध की तैयारी

भारत जैसे देश, जो अपनी सीमाओं पर ड्रोन हमलों का खतरा झेल रहे हैं, उनके लिए यह हमला एक बेहद जरूरी सबक है. भारत ने हाल के वर्षों में ड्रोन तकनीक पर ध्यान देना शुरू किया है. 2024 में भारतीय सेना ने एंटी ड्रोन तकनीक में निवेश की घोषणा की थी, और स्वदेशी ड्रोन जैसे ‘स्वाति’ और ‘नागास्त्र’ को डेवलप किया गया है.

भारत को न केवल ड्रोन हमलों का जवाब देने के लिए एंटी-ड्रोन तकनीक और विकसित करने की जरूरत है, बल्कि अपनी सैन्य रणनीति में ड्रोन युद्ध को भी एक बड़ा हिस्सा बनाना होगा. इसके साथ ही, ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल को कंट्रोल करने के लिए कारगर नियम और क़ानून बनाने होंगे, ताकि इसका गलत इस्तेमाल रोका जा सके.

ओपन-सोर्स कम्युनिटी के लिए भी बड़ी चुनौती 

यूक्रेन का हमला ओपन-सोर्स कम्युनिटी के लिए भी एक चुनौती है. ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर की मूल भावना सहयोग और साफगोई पर आधारित होती है. लेकिन जब इसका इस्तेमाल युद्ध में होता है, तो यह वाजिब सवाल उठता है कि क्या इसके ओपन नेचर और एक्सेस को लिमिटेड करना चाहिए.

साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट सनी नेहरा का कहना है, “ओपन-सोर्स प्रोजेक्ट्स पर सख्त लाइसेंसिंग और उपयोग की शर्तें लागू करनी चाहिए, ताकि इसका सैन्य उपयोग रोका जा सके. लेकिन हमारी कम्युनिटी ही इसका ये कहते हुए विरोध करेगी कि ये ओपन-सोर्स के बेसिक नेचर के खिलाफ होगा. फिर भी हमें ये ध्यान रखना होगा कि अगर रूस जैसे देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है तो उस स्केल पर भारत कहां आता है और हमें कितना नुक्सान हो सकता है.”

एक नई बहस की शुरुआत

‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ ने ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के युद्ध में इस्तेमाल को लेकर एक नई बहस शुरू कर दी है. ये तकनीक, जो शौकिया इस्तेमाल से शुरू होकर डिजास्टर मैनेजमेंट जैसे कामों के लिए बनाई गई थी अब युद्ध में तबाही मचा रही है. इसे में क्या ओपन सोर्स कम्युनिटी ही कोई ‘सेल्फ़ कंट्रोल बटन’ ईजाद करेगी या ये काम सरकारों को करना होगा, जो ज़ाहिर तौर पर उतना नरम रवैया नहीं अपनाएंगी.

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