पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में देश के पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी की शुरुआत 1951 में हुई थी और यह बात है 1956 की. तब पहले बैच का दीक्षांत समारोह था. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस संस्थान के पहले बैच के दीक्षांत समारोह में गए थे.
इस मौके पर उन्होंने कहा, "यहां हिजली डिटेंशन कैंप के स्थान पर भारत का यह उत्कृष्ट स्मारक खड़ा है. आज की यह तस्वीर मुझे भारत में आने वाले परिवर्तनों का प्रतीक लगती है. अब आप इंजीनियर हैं और आज यह दुनिया... इंजीनियरों के हाथों में सबसे अधिक आकार ले रही है. अब समय आ गया है जब इंजीनियर किसी भी अन्य की तुलना में बहुत बड़ी भूमिका निभाएं."
नेहरू ने इसके बाद इंजीनियरों के लिए यहां तक कह डाला कि प्रशासकों और अन्य किसी पेशेवर से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका किसी देश के विकास में इंजीनियर ही निभाते हैं. बीते सात दशकों को देखें तो भारत के पहले प्रधानमंत्री की बात पर ये संस्थान पूरी तरह खरे उतरे हैं. हालांकि जो आईआईटी पूरे भारत में इंजीनियरिंग कॉलेजों और अपने जैसे दूसरे संस्थानों के लिए अगुवा रहा, आज वही बीते कई महीनों से अपने अगुवा की राह ताक रहा है.
दरअसल बीते दिसंबर में जब आईआईटी खड़गपुर के फुल टाइम निदेशक वीरेंद्र कुमार तिवारी का कार्यकाल खत्म हुआ तो तब तक किसी फुल टाइम निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पाई. ऐसी स्थिति में आईआईटी, खड़गपुर के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार आईआईटी, बीएचयू के निदेशक अमित पात्रा के पास है. अमित पात्रा ने जनवरी की शुरुआत में संस्थान का अतिरिक्त प्रभार लिया था.
तब से अब तक तकरीबन छह महीने का वक्त निकल गया है लेकिन अभी तक देश के सबसे पुरानी आईआईटी को फुल टाइम निदेशक नहीं मिल पाया. जब नए निदेशक की नियुक्ति में लगातार देरी होने लगी कि आईआईटी खड़गपुर के टीचर्स एसोसिएशन ने संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को अप्रैल में बाकायदा एक पत्र लिखकर यह मांग की कि जल्दी से जल्दी फुल टाइम निदेशक की नियुक्ति हो.
इस पत्र में अमित पात्रा के बारे में लिखा गया कि वे संस्थान की कई समस्याओं को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन दो बड़े आईआईटी के निदेशक की जिम्मेदारी होने की वजह से उनके पास समय की दिक्कत रहती है और ऐसे में फुल टाइम निदेशक ही संस्थान पर पूरा ध्यान दे पाएगा. लेकिन अब तक इस बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है.
आईआईटी हैदराबाद भी अपने नए फुल टाइम निदेशक का इंतजार पिछले कई महीनों से कर रहा है. बीएस मूर्ति को 2008 में शुरू हुए आईआईटी हैदराबाद का निदेशक 2019 के अगस्त में नियुक्त किया गया था. उनका कार्यकाल पांच साल का था. यानी अगस्त, 2024 में उनका कार्यकाल पूरा होना था.
आईआईटी हैदराबाद के नए निदेशक की नियुक्ति के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने मार्च, 2024 में विज्ञापन निकाला. आवेदन की आखिरी तारीख 31 मई, 2024 तय की गई थी. लेकिन अगस्त में जब मूर्ति का कार्यकाल पूरा हो रहा था, तब तक नए निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पाई. फिर मूर्ति को ही कार्यकाल विस्तार दिया गया और कहा गया कि जब तक नए निदेशक की नियुक्ति नहीं हो जाती, तब तक वे इस पद पर रहेंगे. कार्यकाल विस्तार मिले भी 10 महीने से अधिक का वक्त हो गया है लेकिन आईआईटी हैदराबाद का नया निदेशक केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय नियुक्त नहीं कर पाया है.
भारत में इंजीनियरिंग की शिक्षा में आईआईटी के बाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) का नाम लिया जाता है. लेकिन देश के तीन एनआईटी भी अपने नए फुल टाइम निदेशक की नियुक्ति का इंतजार पिछले कुछ महीने से कर रहे हैं.
आज यानी 6 जून, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर में कई विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया. लेकिन इसी जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में स्थिति एनआईटी पिछले डेढ़ साल अपने फुल टाइम निदेशक का इंतजार कर रहा है. मार्च, 2023 में सुधाकर येडला को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने संस्थान का निदेशक नियुक्त किया था. लेकिन उन्होंने निजी कारणों से जनवरी, 2024 में यह पद छोड़ दिया. इसके बाद कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ए रविंद्र नाथ को एनआईटी श्रीनगर के निदेशक का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. लेकिन अक्टूबर में फिर बदलाव तो हुआ लेकिन संस्थान को फुल टाइम निदेशक नहीं मिला. एनआईटी जालंधर के निदेशक बिनोद कुमार कनौजिया को एनआईटी श्रीनगर का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया. तब से यह व्यवस्था चल रही है और नए फुल टाइम निदेशक की नियुक्ति कब होगी, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है.
एनआईटी उत्तराखंड भी पिछले एक साल से अधिक समय के बगैर फुलटाइम निदेशक के काम कर रहा है. मई 2024 में उस समय के निदेशक ललित कुमार अवस्थी का कार्यकाल पूरा होने के बाद पहले बी वेंकट रमन्ना रेड्डी को एनआईटी उत्तराखंड का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. रेड्डी उस समय एनआईटी कुरुक्षेत्र के निदेशक का पद भी संभाल रहे थे. उन्हें छह महीने के लिए अतिरिक्त प्रभार दिया गया था. जब इस छह महीने में एनआईटी उत्तराखंड के लिए नए निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पाई तो दिसंबर 2024 में मौलान आजाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भोपाल के निदेशक करुणेश कुमार शुक्ला को एनआईटी उत्तराखंड का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. तब से अब तक छह महीने से अधिक का वक्त निकल गया है लेकिन संस्थान को फुल टाइम निदेशक नहीं मिल पाया.
एनआईटी आंध्र प्रदेश में भी नए निदेशक की नियुक्ति पिछले कुछ महीनों से लंबित है. एनआईटी रायपुर के निदेशक पद पर काम कर रहे एनवी रमन्ना राव के पास 4 नवंबर, 2024 से एनआईटी हैदराबाद का अतिरिक्त प्रभार है. अगस्त, 2024 में संस्थान के नए निदेशक की नियुक्ति के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने विज्ञापन प्रकाशित किया था. लेकिन तब से अब तक तकरीबन 10 महीने का वक्त गुजरने के बावजूद इस संस्थान को कोई फुल टाइम निदेशक नहीं मिल पाया है.
इन संस्थानों के प्रोफेसरों से बात करने पर पता चलता है कि फुल टाइम निदेशक नहीं होने की वजह से कई काम प्रभावित होते हैं. खास तौर पर संस्थान के स्तर पर जो नीतिगत फैसले लेने होते हैं, उसमें कोई निर्णय नहीं हो पाता क्योंकि अतिरिक्त प्रभार वाले निदेशक ऐसे निर्णयों को टालते रहते हैं और कहते हैं कि जो भी फुल टाइम निदेशक आएगा, वो इस बारे में निर्णय लेगा. इसके अलावा रोजमर्रा के प्रशासनिक कार्य भी प्रभावित होते हैं क्योंकि कई फाइलें ऐसी होती हैं, जिन पर निदेशक के दस्तखत की जरूरत होती है. फुल टाइम निदेशक नहीं होने की वजह से पूरी निर्णय प्रक्रिया में होने वाली देरी पूरे संस्थान के कामकाज को प्रभावित करती है.