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ISRO के नए चेयरमैन वी. नारायणन भारत को अंतरिक्ष में किस ऊंचाई पर ले जाने वाले हैं?

बात चाहे PSLV, GSLV या LVM-3 रॉकेट तकनीक विकसित करने की हो, वी. नारायणन का योगदान काफी अहम रहा है. अब वे ISRO के 11वें चेयरमैन बने हैं तो उम्मीदें और बढ़ गई हैं

इसरो के नए अध्यक्ष वी. नारायणन
इसरो के नए अध्यक्ष वी. नारायणन
अपडेटेड 14 जनवरी , 2025

साल 1980 वो साल था जब भारत ने अपने पहले स्वदेशी उपग्रह रोहिणी आरएस-1 को खुद से अंतरिक्ष में भेजने में सफलता पाई थी. इसके लिए ठोस ईंधन आधारित रॉकेट का इस्तेमाल किया गया, जिसका नाम था - सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल 3 या SLV-3. यह रॉकेट यूएस स्काउट लॉन्च व्हीकल की तर्ज पर विकसित किया गया था जिसे अमेरिका ने '60 के दशक में पहली बार इस्तेमाल किया था.

SLV-3 के बाद भारत ने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) विकसित किया, फिर GSLV रॉकेट अस्तित्व में आया. इसके बाद LVM-3 तैयार हुआ, जिसके मोडिफाइड रूप का इस्तेमाल  मिशन गगनयान में होना है. इन चार दशकों में तकनीकें काफी बदली हैं, लेकिन इसके पीछे सूत्रधार के रूप में एक व्यक्ति हमेशा मौजूद रहा. अब वही सूत्रधार इसरो के 11वें अध्यक्ष बने हैं, नाम है - वी. नारायणन.

नारायणन ने 14 जनवरी को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 11वें अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला. उन्होंने इसरो में एक शानदार करियर के साथ विदा हुए एस. सोमनाथ की जगह ली है. नारायणन को क्रायोजेनिक्स तकनीक और रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट प्रोपल्शन की दुनिया का एक्सपर्ट माना जाता है. इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले वे तिरुवनंतपुरम में इस संस्था के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (LPSC) की कमान संभाल रहे थे.

1984 में इसरो में शामिल होने के ठीक 40 साल बाद, नारायणन संगठन को दिशा देने के लिए शीर्ष स्थान पर पहुंच गए हैं. इसरो फिलहाल कई हाई-लेवल और महत्वाकांक्षी मिशनों पर काम कर रहा है. इनमें गगनयान ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम, चंद्रयान-4 लूनर मिशन, पहला शुक्र ग्रह ऑर्बिटर मिशन और मंगल ग्रह पर दूसरा मिशन (मंगलयान-2) तो शामिल है ही. साथ ही रीयूजेबल लांच व्हीकल, अंतरिक्ष में भारत का अपना स्पेस स्टेशन (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) और 2040 तक किसी भारतीय का पहली बार चंद्रमा पर उतरना जैसे अहम मिशन भी शामिल हैं.

हालांकि ये सभी मिशन नारायणन के कार्यकाल में संपन्न नहीं होंगे, लेकिन इसके लिए इसरो जी-जान से जुटा हुआ है. इसके अलावा, नारायणन एक ऐसे अहम मोड़ पर इसरो के चीफ बने हैं जब संस्थान इंडियन स्पेस पॉलिसी-2023 के तहत निजी खिलाड़ियों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र में तेजी से दरवाजे खोल रहा है. नारायणन कहते हैं, "हम उपग्रह विकास, डेटा प्रोसेसिंग और लॉन्चर डेवलपमेंट सहित स्पेस से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में निजी संस्थाओं का समर्थन करेंगे."

नारायणन का इसरो के साथ पहली बार जुड़ाव 1984 में हुआ. उन्हें तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में काम करने का मौका मिला था. चार साल पहले ही देश ने पहली बार खुद से रोहिणी आरएस-1 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा था. वैसे तो भारत ने अपना पहला उपग्रह 1975 में ही बना लिया था, जिसका नाम आर्यभट्ट था. लेकिन इसके प्रक्षेपण के लिए रूसी लांच व्हीकल की मदद लेनी पड़ी थी.

इसके बाद भारत ने यूएस स्काउट लॉन्च व्हीकल से SLV-3 प्रक्षेपण यान विकसित किया, जिसे पहली बार एक प्रयोग के तौर पर 1979 में इस्तेमाल किया गया. हालांकि वह प्रयोग आंशिक रूप से ही सफल रहा. इसके बाद दोबारा इसका इस्तेमाल रोहिणी एस-1 के लिए हुआ, जो पूर्ण रूप से सफल साबित हुआ. SLV-3 एक चार चरणों वाला लॉन्च व्हीकल था, इसके बाद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) विकसित किया गया; इसमें सॉलिड और लिक्विड ईंधन मिश्रण का इस्तेमाल किया गया. पहला PSLV प्रक्षेपण 1993 में हुआ.

अपने करियर की शुरुआत में नारायणन सैटेलाइट की लॉन्चिंग में इस्तेमाल होने वाले प्रक्षेपण यान के लिए सॉलिड प्रोपल्शन सिस्टम पर काम कर रहे थे. लेकिन 1989 में वे LPSC (लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर) आ गए, जहां इसरो के मिशनों के लिए क्रायोजेनिक प्रोपल्शन तकनीक पर काम चल रहा था. इस प्रणाली में रॉकेट इंजन में ईंधन और ऑक्सीडाइजर के रूप में लिक्विड गैसों का इस्तेमाल किया जाता है.

1990 के दशक के दौरान भारत ने लिक्विड ईंधन वाला रॉकेट विकसित किया. इसे जियोसैटेलाइट लांच व्हीकल (GSLV) कहा गया. इस रॉकेट के ऊपरी चरण में क्रायोजेनिक ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. क्रायोजेनिक ईंधन ऐसे ईंधन हैं जिन्हें लिक्विड अवस्था में बनाए रखने के लिए बेहद कम तापमान पर भंडारण की जरूरत होती है. जीएसएलवी को पहली बार 2001 में लॉन्च किया गया. फिर एक और अधिक शक्तिशाली प्रक्षेपण यान LVM-3 अस्तित्व में आया. इसे 2010 के दशक में विकसित किया गया. इसी LVM-3 का मानव रेटेड लॉन्च वाहन (HRLV) वर्जन गगनयान मिशन इस्तेमाल होगा. PSLV, GSLV और LVM-3 ये सभी लांच व्हीकल अभी भी सेवा में बने हुए हैं.

इंडिया टुडे की अपनी रिपोर्ट में अमरनाथ के. मेनन लिखते हैं, "नारायणन ने प्रक्षेपण यानों में इस्तेमाल की जाने वाली प्रमुख तकनीकों को विकसित करने पर काम किया. इनमें PSLV और देश का सबसे भारी लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM-3) शामिल है."

रिपोर्ट के मुताबिक, नारायणन ने इसरो के लिए काम करते हुए 1989 में आईआईटी, खड़गपुर से क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एमटेक की डिग्री हासिल की. इसमें उन्होंने पहला स्थान हासिल किया था. काम के साथ पढ़ाई उनकी यहीं नहीं रुकी. साल 2001 में उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. इसरो को आगे पढ़ाई जारी रखने की अनुमति देने के लिए आभार जताते हुए नारायणन कहते हैं, "कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. और अगर मन को एकाग्र कर काम किया जाए तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है."

इस जबरदस्त प्रतिबद्धता का ही शायद कमाल था कि जब नारायणन LPSC के निदेशक बने तो संस्थान ने अभूतपूर्व काम किया. इसरो के मुताबिक, "जब दुनिया के देशों ने भारत को GSLV मार्क-2 यान के लिए क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी देने से मना कर दिया गया था, तो नारायणन ने इंजन प्रणाली डिजाइन की, जरूरी सॉफ्टवेयर उपकरण विकसित किए, बुनियादी ढांचे और परीक्षण सुविधाओं की स्थापना की, परीक्षण और योग्यता और क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) के विकास को पूरा करने और इसे चालू करने में अहम योगदान दिया."

LVM-3 की पहली सफल उड़ान के अलावा नारायणन ने भारत के चंद्र मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. चंद्रयान-2 और 3 के लिए उन्होंने L110 लिक्विड स्टेज, C25 क्रायोजेनिक स्टेज और प्रोपल्शन सिस्टम के विकास का नेतृत्व किया. इससे स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने और सॉफ्ट लैंडिंग करने में सक्षम हुआ.

LPSC के निदेशक के रूप में नारायणन ने पिछले पांच सालों में 41 प्रक्षेपण यानों और 31 स्पेसक्राफ्ट मिशनों के लिए 164 लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम मुहैया कराया. उन्होंने 2037 तक दो दशकों के लिए इसरो के प्रोपल्शन मैप को भी अंतिम रूप दिया.

नारायणन का अब तक का चार दशक का करियर शानदार रहा है. अब वे दो साल के लिए इसरो के अध्यक्ष बने हैं. उनसे पहले एस. सोमनाथ ने इसरो को नई बुलंदियों पर पहुंचाया. अब नारायणन से भी ऐसी ही उम्मीदें हैं, लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं.

इंडिया टुडे की अपनी रिपोर्ट में मेनन लिखते हैं, "स्पेस ईकोसिस्टम जिस तेजी से विकसित हो रहा है और जिस तरह से इसमें कंपीटिशन बढ़ रहा है, वो इस फील्ड में इनोवेशन तो सुनिश्चित करता ही है, साथ ही चुनौतियों को भी सामने लाता है. क्योंकि इन इनोवेशन को व्यावहारिक बनाना एक मुश्किल काम है. लेकिन नारायणन इस फील्ड के माहिर खिलाड़ी हैं, और चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए तैयार हैं. इसरो में शामिल होने से पहले उन्होंने टीआई साइकिल, एमआरएफ टायर और सरकारी स्वामित्व वाली भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड के साथ काम किया है, यह उनके लिए भारतीय अंतरिक्ष तकनीक स्टार्ट-अप को आगे बढ़ाने और उद्योग की भागीदारी को बढ़ावा देने में एक अहम अनुभव साबित होगा."

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