यूपी के दो ‘लड़कों की जोड़ी’ अब लोकसभा के भीतर अपनी धमक दिखा रही है. 18वीं लोकसभा के उद्घाटन सत्र में कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच बना तालमेल से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कई बार बैकफुट पर दिखी.
सत्तारूढ़ दल के लिए यह चुनौती कांग्रेस और सपा की पिछली बार की तुलना में कहीं अधिक सीटों के साथ मौजूदगी के कारण भी है. लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतकर अपने गठन से अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली सपा ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाई है.
लोकसभा के भीतर संख्याबल के हिसाब से देश की तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी बनी सपा को अखिलेश यादव अब राष्ट्रीय पहचान यानी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. इसके तहत पार्टी प्रमुख ने महाराष्ट्र में नजरें गड़ा दी हैं जहां अगले कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं. अखिलेश यादव 12 जुलाई को मुंबई के जियो वर्ल्ड कन्वेंशन सेंटर में अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी में शामिल हुए थे. इसके अगले दिन 13 जुलाई को उन्होंने मुंबई में सपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया.
इस दौरान अखिलेश यादव ने घोषणा की कि सपा आगामी महाराष्ट्र विधानसभा एवं महानगरपालिका चुनाव गठबंधन के साथ लड़ेगी लेकिन अगर समाजवादी पार्टी को नजरअंदाज किया गया तो पार्टी अकेले ही मैदान में उतरेगी. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दोनों ही सूरतों में पूरे संगठन को बूथ स्तर तक तैयार रहने के आदेश दिए. उन्होंने कार्यकर्ताओं को पूरे जोश के साथ 19 जुलाई को मुंबई में होने वाले सभी सपा सांसदों के स्वागत कार्यक्रम को सफल बनाने का आह्वान किया.
पिछले दो वर्षों से सपा राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए जोर लगा रही है. सितंबर, 2022 में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति में नेताओं ने पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने का संकल्प लिया था. लोकसभा में सीटों के लिहाज से सपा देश की तीसरी राष्ट्रीय पार्टी तो है ही, साथ ही वोट प्रतिशत के लिहाज से उसने भाजपा और कांग्रेस के बाद देशभर में सबसे ज्यादा वोट पाए हैं. इस कामयाबी के बावजूद सपा को इस बात का मलाल है कि वह अभी-भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने की मंजिल से दूर है.
लोकसभा चुनाव में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) की रणनीति से स्वर्णिम प्रदर्शन करने वाली सपा अब अपने लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ना चाहती है. इसके लिए पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव की नजर आगामी महीनों में चार राज्यों – जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में होने वाले चुनावों पर है. जम्मू-कश्मीर को छोड़ दें तो सपा बाकी तीन राज्यों में मजबूती से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है.
महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड में पार्टी ने अपने लिए उन सीटों की तलाश शुरू कर दी है जो पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंरक्षक) समीकरण के लिहाज से अनकूल हों. पार्टी नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव की अगुआई वाली पार्टी हरियाणा में भाजपा के अहीर वोट बैंक में सेंध लगा सकती है. इसकी वजह है कि ज़्यादातर अहीर खुद को यादव समुदाय का हिस्सा मानते हैं.
सपा हरियाणा के छह से आठ विधानसभा क्षेत्रों पर नज़र गड़ाए हुए है, जहां मुसलमानों और अहीरों की अच्छी खासी आबादी है. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष के पूर्व नेता डॉ. संजय लाठर को अखिलेश यादव ने हरियाणा में छह से आठ जीतने लायक सीटों की पहचान करने को कहा है. लाठर के मुताबिक सपा गुरुग्राम, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिलों में जीतने योग्य सीटों की तलाश कर रही है, जहां यादव और मुसलमान अच्छी संख्या में हैं.
दरअसल, किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त करने के लिए कम से कम चार लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा चुनाव में छह प्रतिशत वोट या फिर चार या उससे ज्यादा राज्यों के विधानसभा चुनाव में छह प्रतिशत वोट प्राप्त करना होता है. या फिर कोई पार्टी तीन राज्यों के लोकसभा चुनाव में दो प्रतिशत सीटें हासिल करे. या फिर कोई पार्टी चार या इससे अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता रखती हो. चूंकि सपा के पास अब 37 सांसद हैं, ऐसे में उसकी कोशिश राज्यों के विधानसभा चुनाव में छह प्रतिशत वोट प्राप्त करने की है.
सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समाजवादी विचारधारा का दूसरे राज्यों में विस्तार और सपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने का प्रयास करना समय की मांग है. चौधरी दावा करते हैं, “यूपी के अलावा दूसरे राज्यों में भी समाजवादी विचारधारा से एक बड़ी जमात प्रभावित रही है. आज समाजवादी विचारधारा वैकल्पिक विचारधारा है. देश में जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहा है उसमें अखिलेश यादव एक बड़े नेता और विकल्प के नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं. यूपी का मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव ने जो काम किए हैं वे भी देश के दूसरे राज्यों के सामने उदाहरण हैं. महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल समेत अन्य राज्यों के चुनावों में भी सपा हिस्सा लेगी. राष्ट्रीय अध्यक्ष विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में उम्मीदवारों को लेकर जल्द कोई निर्णय लेंगे.”
लोकसभा के उद्घाटन सत्र में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने फैजाबाद से सांसद और दलित नेता अवधेश प्रसाद को अपने बगल में बिठाकर देशभर के दलितों को एक सकारात्मक संदेश दिया है. इसी रणनीति के तहत सपा ने लोकसभा उपाध्यक्ष पद के लिए अपने सांसद अवधेश प्रसाद का नाम आगे किया तो तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ ही कांग्रेस ने भी इस पर सहमति जता दी. यह सपा की बड़ी कामयाबी मानी जा रही है.
सपा कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन का प्रयोग यूपी के साथ दूसरे राज्यों में भी दोहराना चाहती है. यूपी के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जहां सपा के जरिए छह सीटें जीतने का मौका मिला तो कांग्रेस का साथ मिलने से सपा के लिए पीडीए का दांव ज्यादा कारगर साबित हुआ. लोकसभा चुनाव में यूपी में गठबंधन से सपा व कांग्रेस को दोनों को फायदा हुआ और दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व इसे अगले विधानसभा चुनाव में आजमाना चाहता है.
हालांकि इससे पहले यूपी की दस सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है. यहां कांग्रेस चाहती है कि उसे सपा चार सीटें दे. गाजियाबाद व मीरापुर पर उसका खास जोर है. अवध गर्ल्स कालेज लखनऊ की प्राचार्य और राजनीतिक शास्त्र विभाग की प्रमुख बीना राय बताती हैं, “यूपी के विधानसभा उपचुनाव में अगर सपा और कांग्रेस का गठबंधन जारी रहता है तो दूसरे राज्यों में भी इसके बरकरार रहने की उम्मीद प्रबल हो जाएगी. यह सपा को उसी तरह फायदा पहुंचाएगा जैसे कांग्रेस को यूपी में हुआ है.”
हालांकि अपने दम पर सपा का दूसरे राज्यों के चुनाव में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. वर्ष 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा खाता भी नही खोल पाई थी जबकि यूपी के बाहर यहां पर पार्टी अपनी उपस्थिति दिखाती आई है. बीना राय के मुताबिक अगर सपा इंडिया गठबंधन के साथ दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ती है तो उसे पिछली बार की तुलना में कहीं अधिक अच्छे नतीजे मिल सकते हैं.
दूसरे राज्यों में सपा का प्रदर्शन :
* पिछले तीन दशकों के दौरान मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा के कुल 13 विधायक ही चुनाव जीत सके हैं. अपने गठन के बाद से सपा हर बार मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार उतार रही है.
* मध्य प्रदेश में सपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में रहा. इस चुनाव में 161 उम्मीदवार सपा के टिकट पर मैदान में उतरे. इनमें से 7 प्रत्याशी चुनाव जीते और 140 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी.
* वर्ष 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा ने 74 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. सभी सीटों पर सपा को हार मिली और पार्टी को केवल 0.46 प्रतिशत वोट ही मिला.
* वर्ष 2019 में महाराष्ट् के विधानसभा चुनाव में सपा ने सात सीटों पर लड़कर दो में जीत दर्ज की थी. सपा को केवल 0.7 प्रतिशत मत मिले थे.
* झारखंड में पार्टी 2019 के चुनाव में 17 सीटों पर लड़ी थी, उसे एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी. सभी जगह उसकी जमानत जब्त हुई थी और वोट भी उसे महज 0.49 प्रतिशत ही मिले.
* हरियाणा में भी पार्टी 2019 विधानसभा चुनाव में कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी. वह चार सीटों पर लड़ी थी और सभी में उसकी जमानत जब्त हुई थी. उसे महज 2.15 प्रतिशत वोट मिला था.