
"हम चांद-सितारे नहीं मांग रहे. हम तो वही चीज़ें मांग रहे जो भारतीय संविधान के तहत आता है और जिसका वादा किया गया था." शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लेह में अपने एक भाषण के दौरान यह बात कह रहे थे. ये वही सोनम वांगचुक हैं जिन पर आमिर खान की ‘थ्री इडियट्स’ बनी थी.
आख़िर सोनम वांगचुक क्या मांग रहे हैं? हज़ारों लोगों के बीच भाषण देते हुए अपने इलाके के साथ 'विश्वासघात' की बातें क्यों कह रहे हैं? लद्दाख में रहने वाले लोग 3 फरवरी के दिन से ही सड़कों पर हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए एक वादे को पूरा किए जाने की मांग कर रहे हैं.
हाड़ कंपाती ठंड के बीच सड़कों पर उतरे लद्दाख के लोगों की मोटे तौर पर तीन मांगें हैं- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले, संविधान की छठी अनुसूची (6th Schedule) के तहत लाया जाए, लेह और कारगिल को संसद में अलग-अलग सीटें दी जाएं. इन्हीं मांगों को लेकर लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस ने साझे तौर पर लद्दाख बंद का आह्वान किया था.
लेह में जब लोग इकट्ठा हुए तो सोनम वांगचुक भी पहुंचे. यहां उन्होंने केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनाव में किया गया उसका ही वादा याद दिलाया. वांगचुक ने कहा, "दो बार चुनावी घोषणा पत्रों के जरिए हमें आश्वासन मिला कि लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत संरक्षित किया जाएगा. संसदीय चुनाव-2019 के घोषणा पत्र में लद्दाख को लेकर यह बात कही गई. फिर 2020 में लद्दाख के लेह जिले में जब पर्वतीय काउंसिल का चुनाव हुआ तब भी यह मुद्दा शामिल किया गया था."
भाषण के दौरान सोनम वांगचुक ने बीजेपी का घोषणा पत्र (लोकसभा चुनाव-2019 और LAHDC चुनाव-2020) दिखाया. इसमें लद्दाख को लेकर तीन वादे सिलसिलेवार ढंग से किए गए थे. पहला वादा- लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलेगा, दूसरा वादा- भोती भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा, तीसरा वादा- लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत लाया जाएगा.

लद्दाख की मांग और बीजेपी के घोषणा पत्र में किए गए वादे को समझने के लिए कुछ साल पीछे चलते हैं. 5 अगस्त, 2019 से पहले तक लद्दाख जम्मू-कश्मीर का ही हिस्सा था. इस दिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद के जरिए जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटा दिया. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दोनों को ही केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया. सोनम वांगचुक खुद कहते हैं कि आजादी के बाद से ही लद्दाख के लोगों की मांग थी कि उसे जम्मू-कश्मीर से अलग किया जाए.
5 अगस्त, 2019 को हुए बदलाव के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की स्थिति बदल गई. लद्दाख के लोगों की एक मांग तो इस फैसले के बाद पूरी हो गई, जिसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि छठी अनुसूची में लद्दाख शामिल किया जाएगा. जैसा कि सोनम वांगचुक कहते हैं, "बाद के दिनों में बीजेपी से जुड़े नेताओं, सांसदों और मंत्रियों तक ने हमें आश्वासन दिया. लेकिन इन घोषणाओं के बाद एक सन्नाटा छा गया. पहले कुछ महीनों, फिर साल भर बाद वादों से उलट संकेत मिलने लगे. अब हाल ये है कि लेह में छठी अनुसूची का नाम ले लेने पर भी ज़्यादती होने लगी."
आश्वासन और घोषणा पत्र में वादों के अनुरूप काम नहीं होने के लिए वांगचुक सीधे-सीधे औद्योगिक गुटों को जिम्मेदार ठहराते हैं. "ऐसा नहीं है कि सरकार हमारी मांग पूरी नहीं करना चाहती. लेकिन कुछ उद्योगपतियों को इन वादियों में पैसा दिखता है. ये लोग कल की नहीं बल्कि आज लूट मचाने के बारे में सोच रहे हैं. ऐसा पहले हिमाचल और उत्तराखंड में हुआ, जिसका अंजाम देखने को मिल रहा है. अब ये खतरा लद्दाख के दरवाजे पर दस्तक दे रही है", सोनम वांगचुक ने कहा.
केंद्र सरकार ने लेह एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के प्रतिनिधियों से बातचीत करने के लिए पहले ही 19 फरवरी की तारीख तय की है. इसके बावजूद इन दोनों संगठनों ने लद्दाख बंद का आह्वान किया. इन मांगों पर विचार करने के लिए केंद्र की ओर से गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अगुआई में एक हाई पावर कमेटी का गठन भी किया गया है.
ऐसा लगता है कि 19 फरवरी को होने वाली बातचीत से पहले लेह में हो रहा प्रदर्शन एक तरह से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है ताकि साल दर साल घिसट रहे इस मामले का निपटारा हो सके. दी लल्लनटॉप के गेस्ट इन द न्यूज़रूम में सोनम वांगचुक की एक बात से इस ओर संकेत भी मिलता है, "अभी तो हमने प्रदर्शन शुरू किया है, जिसमें मैं 21 दिनों के अनशन पर हूं. ये अनिश्चितकालीन भी हो सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि आमरण अनशन हो और लोग मुझे आखिरी बार ही देख रहे हों."

इस पूरे प्रदर्शन के केंद्र में है छठी अनुसूची की मांग. आखिर भारतीय संविधान की छठी अनुसूची क्या कहती है? कौन से अधिकार मिलते हैं इस अनुसूची के तहत, जिसके लिए लद्दाख के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं?
छठी अनुसूची के अनुच्छेद-244 (2) और 275 (1) के तहत संविधान में जनजाति क्षेत्रों के लिए विशेष अधिकारों का प्रावधान किया गया है. देश के चार राज्यों - असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन छठी अनुसूची का ही विषय है. इसके तहत इन क्षेत्रों में स्वायत्त (ऑटोनॉमस) जिला बनाने का प्रावधान किया गया है. इन जिलों को कानूनी, न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार प्राप्त हैं. यानी ये जिले अपने लिए खुद ही कायदे-कानून बना सकते हैं.
इस अनुसूची से ये अधिकार भी मिलता है कि अगर किसी जिले में अलग-अलग जनजातियां हैं तो कई ऑटोनॉमस जिले बनाए जा सकते हैं. हर ऑटोनॉमस जिले में एक जिला परिषद बनाने का प्रावधान भी है. परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष होता है जिसमें अधिकतम 30 सदस्य शामिल किए जा सकते हैं. इस परिषद को जिले के लिए नियम-कानून बनाने का अधिकार होता है.
छठी अनुसूची अविभाजित असम के आदिवासी बहुल क्षेत्रों (90 फीसद से अधिक आदिवासी आबादी) के लिए लागू की गई थी. ऐसे क्षेत्रों को ‘भारत सरकार अधिनियम - 1935’ के तहत 'बहिष्कृत क्षेत्रों' के रूप में वर्गीकृत किया गया था. संवैधानिक भाषा से इतर, सपाट लहजे में इसे यूं समझा जा सकता है कि किसी राज्य के जनजाति आबादी के इलाकों को अतिरिक्त संवैधानिक अधिकार या विशेष दर्जा देने के लिए छठी अनुसूची का प्रावधान किया गया था.
लद्दाख में इसकी मांग क्यों हो रही है? लद्दाख में प्रदर्शन करने वालों का कहना है कि छठी अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद वहां खनन जैसी गतिविधियां नहीं होंगी. प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि पहाड़ी इलाकों पर उद्योगपतियों की नज़र गड़ी हुई है. इससे बचाने के लिए लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार मिले. इससे होगा ये कि लद्दाख की स्वायत्त परिषद अपने हक में नियम-कानून बनाकर खनन जैसी गतिविधियां रोक सकती है.