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भारत में बन रहे स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर कैसे बदल सकते हैं दुनियाभर का न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर!

स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर यानी SMR जो छोटे-छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर होते हैं जो किसी खास निर्माण इकाई के लिए स्वच्छ बिजली की सप्लाई कर सकते हैं

न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में तेजी से काम कर रहा है भारत (सांकेतिक तस्वीर)
न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में तेजी से काम कर रहा है भारत (सांकेतिक तस्वीर)
अपडेटेड 16 जून , 2025

बिना किसी शोर-शराबे के भारत उर्जा के क्षेत्र में अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु उर्जा से जुड़े ‘स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर’ पर काम कर रहा है. यह देश में उर्जा को लेकर इससे पहले शुरू की गई बाकी सभी कोशिशों से बेहद अलग है.

‘स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर’ को संक्षेप में SMR भी कहते हैं, जो छोटे-छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर होते हैं. अगर भारत इनके जरिए बिजली निर्माण में सफल हो जाता है तो आखिरकार देश को SMR से परमाणु उर्जा बनाने में सफलता मिल जाएगी. इससे भारत उर्जा के क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो सकता है.

यही वजह है कि दुनिया के कई देशों की नजर भारत के इस कोशिशों की तरफ है क्योंकि अगर इसमें सफलता मिलती है तो इससे न सिर्फ ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा, बल्कि इससे वैश्विक परमाणु व्यवस्था में भी बड़ा बदलाव दिख सकता है.

स्वदेशी टेक्नोलॉजी के जरिए ही इस क्षेत्र में भारत फिलहाल आगे बढ़ रहा है. पिछले महीने भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) ने औद्योगिक क्षेत्रों में दो स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए 220 मेगावॉट के छोटे-छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों को स्थापित करने का फैसला लिया है. इसके लिए NPCIL ने प्रस्ताव भी जारी कर दिए हैं.

यह सिर्फ एक आधिकारिक फैसला नहीं है, बल्कि परमाणु उर्जा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है. निजी कंपनियां अपने पैसे से परमाणु रिएक्टर बनाएंगी, जिनका संचालन NPCIL करेगा.

बाद में इस रिएक्टर का मालिकाना हक सरकार को सिर्फ 1 रुपये में दे दिए जाएंगे. बदले में कंपनियों को लंबे समय तक सस्ती और स्वच्छ बिजली मिलेगी, जिसकी शुरुआती कीमत केवल 60 पैसे प्रति यूनिट होगी. इसके बाद बिजली की कीमत हर साल सिर्फ 1 पैसे बढ़ेगी.

मिल रही जानकारी के मुताबिक NPCIL के प्रस्ताव पर देश की कई बड़ी कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है. ग्रीन हाइड्रोजन और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के क्षेत्र में काफी तेजी से काम करने वाली रिलायंस कंपनी के मालिक मुकेश अंबानी ने भी इसमें रुचि दिखाई है. इसके अलावा बिजली, सीमेंट और बंदरगाह के क्षेत्र में काम करने वाली अदाणी ग्रुप की कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में एंट्री के संकेत दिए हैं.

JSW कंपनी अपनी स्टील उत्पादन प्रक्रिया को कार्बन-मुक्त करना चाहती है. यही वजह है कि इस कंपनी ने छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के लिए अध्ययन शुरू किया है. बिजली की भारी खपत करने वाली एल्यूमीनियम और धातु कंपनियां हिंडाल्को और वेदांता ने भी इसकी व्यावसायिक उपयोगिता को स्वीकार किया है.

टाटा पावर कोयले और रेन्यूएबल ऊर्जा दोनों पर काम करती है. अब टाटा पावर ने भी भविष्य के बिजली ग्रिड के लिए SMR से जुड़े ट्रांसमिशन क्लस्टर की योजना बनाई है.

इन कंपनियों की रुचि ने नई दिल्ली में ऊर्जा से जुड़ी चर्चाओं को पूरी तरह से बदल दिया है. यही वजह है कि शुरुआत में परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) का एक छोटा प्रोजेक्ट अब एक राष्ट्रीय औद्योगिक मिशन बन गया है.

भारत अब अगली पीढ़ी की परमाणु ऊर्जा का निर्माण और संचालन केंद्र बनने की दिशा में बढ़ रहा है. राजनीतिक समय ने इसकी जरूरत को और बढ़ा दिया है. फरवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लंबी अवधि की रणनीतिक परियोजनाओं, जैसे SMR के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा था.

इसके अलावा भारत सरकार 2025-26 के लिए 20,000 करोड़ रुपये के साथ एक अलग परमाणु ऊर्जा मिशन की योजना बना रही है. भारत 2031 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 22 गीगावॉट और 2047 तक 100 गीगावॉट तक बढ़ाना चाहता है. इसमें बड़े रिएक्टर भी शामिल हैं, लेकिन छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) अब नीति निर्माताओं और निवेशकों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं.

अगर SMR बड़े पैमाने पर बनते हैं, तो ये आने वाले समय में भारत में कोयले की जगह ले सकते हैं, जो फिलहाल बिजली का मुख्य स्रोत है. साथ ही सौर और पवन ऊर्जा में ग्रिड में स्थिरता नहीं देती इसे संतुलित करने के लिए SMR को इस्तेमाल किया जा सकता है. ये रिएक्टर छोटे होते हैं, ऐसे में कोयले जैसी स्थिरता देते हैं, लेकिन कार्बन उत्सर्जन नहीं करते.

दुनियाभर में भारत के इस प्रयास को नोटिस किया जा रहा है. अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप के नए कार्यकाल में भारत के SMR प्रोग्राम पर नजर रख रहा है. ट्रंप ने पहले कार्यकाल में अमेरिकी डिजाइन वाले SMR को दुनियाभर में बढ़ावा देने के लिए एक प्रोग्राम शुरू किया था.

अब SMR अमेरिकी ऊर्जा नीति का हिस्सा है, जो चीन और रूस के परमाणु प्रभाव को कम करने के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं. फरवरी में ट्रंप-मोदी के बयान में इसका ज़िक्र हुआ. अमेरिका भारत को SMR के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण स्थल और भविष्य में सहयोगी के रूप में देखता है, जहां अमेरिकी डिजाइन और भारतीय निर्माण क्षमता मिलकर काम कर सकते हैं.

विश्व बैंक भी इसमें रुचि दिखा रहा है. आमतौर पर परमाणु ऊर्जा से दूरी रखने वाला इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (IFC) पिछले एक साल में भारत केंद्रित दो बड़े SMR सम्मेलनों में शामिल हुआ.

इसका कारण साफ है कि अगर SMR दक्षिण एशिया में सस्ती और सुरक्षित बिजली दे सकते हैं, तो वे हरित उद्योगों के लिए रीढ़ बन सकते हैं, खासकर उन देशों में जहां स्वच्छ बिजली की कमी है.

कनाडा, अमेरिका, रूस, चीन और ब्रिटेन जैसे देश पहले से SMR पर काम कर रहे हैं. अर्जेंटीना में 25 मेगावॉट का SMR शुरू होने वाला है. यूएई SMR के जरिए पानी शुद्ध करने में इस्तेमाल होने वाले उर्जा की जरूरतों को पूरा करना चाहता है.  

भारत में फिलहाल 22 परमाणु रिएक्टर हैं, जिससे केवल 3.2 फीसदी बिजली बनाता है. भारत  SMR क्रांति के जरिए विदेशी निर्भरता कम कर सकता है और स्वच्छ उर्जा के तकनीक का निर्यातक बन सकता है. लेकिन, इस उद्देश्य को पूरा करने में कई चुनौतियां भी हैं.

भारत में SMR को व्यावसायिक बनाने के लिए 2010 के ‘सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लीयर डैमेज एक्ट’ में बदलाव करना होगा. यह कानून निजी सप्लायरों को दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदार ठहराता है, जो दुनिया में कहीं नहीं है.

इससे विदेशी कंपनियां इस क्षेत्र में भारत में इन्वेस्ट करने में हिचक रही हैं. वित्त मंत्री सीतारमण ने इस कानून में बदलाव का वादा किया है, लेकिन 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के कारण यह आसान नहीं होगा.

भारत में छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) को लेकर उत्साह है, लेकिन थोड़ा बहुत विरोध भी हो रहा है. कोयले से जुड़ी कुछ बिजली कंपनियां और ट्रेड यूनियन इसके खिलाफ हैं. यूनियन कई छोटे रिएक्टरों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, जबकि कोयला कंपनियां डर रही हैं कि SMR उनकी जगह ले सकते हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय मजदूर संघ अभी तटस्थ हैं. वे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से बात कर रहे हैं, ताकि दो मुख्य चिंताओं- अमेरिका के साथ सहयोग के भू-राजनीतिक प्रभाव और भारत में लंबे समय तक सुरक्षा को लेकर सभी स्थिति स्पष्ट कर सकें. हालांकि, वे स्वदेशी ‘भारत स्मॉल रिएक्टर’ (BSR) प्रोजेक्ट का समर्थन करते हैं, जो पूरी तरह देशी तकनीक से बनेगा.

इससे इतर मोदी सरकार की रणनीति है कि इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए वैश्विक तकनीक लें, लेकिन उत्पादन और नियंत्रण अपने हाथ में रखें. SMR में 51 फीसदी हिस्सा भारतीय होगा. निजी कंपनियां बुनियादी ढांचा बना सकती हैं, लेकिन NPCIL या किसी दूसरे सरकार संस्थान के पास ही नियंत्रण और लाइसेंस देने का अधिकार रहेगा. इससे जनता का भरोसा बना रहेगा.

रणनीतिक रूप से SMR क्रांति के बाद चीन से सौर पैनल और बैटरी आयात पर निर्भरता कम कर सकते हैं. ये रिएक्टर मालवाहक गलियारों, रक्षा चौकियों, बंदरगाहों और शहरी क्षेत्रों में बिजली दे सकते हैं, जहां ग्रिड विस्तार मुश्किल है.

SMR की खासियत यह है कि इन्हें फैक्ट्री में बनाकर किसी भी जगह पर ले जाया जा सकता है. इसका फायदा ये है कि कंपनी में रिएक्टर निर्माण होने से इसको बनाने में लगने वाला समय 10 साल से घटकर 3 साल हो जाता है.

SMR के कुछ डिजाइन बेहद आधुनिक हैं. जैसे न्यूस्केल के VOYGR रिएक्टर. इसमें स्वचालित सुरक्षा प्रणाली है, जो आपात स्थिति में बिना इंसानों के दखल के काम करती है. भारतीय इंजीनियर यहां बन रहे SMR को स्थानीय जलवायु और भूकंपीय परिस्थितियों के हिसाब से भी तैयार कर रहे हैं.

यहां काम करने वाले लोगों को जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन और LIC के जरिए बीमा दिए जाने को लेकर भी बात हो रही है, ताकि दुर्घटना की स्थिति में वित्तीय जोखिम कम हो सके.

भारत 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखता है. वहीं, 2040 तक देश में बिजली की मांग तीन गुना होने की उम्मीद है. ऐसे में SMR काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. कोयला पर्यावरण और वित्तीय कारणों से भी यह काफी अहम है.

सरकार सावधानी से इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही है. उम्मीद है कि इस क्षेत्र में सरकार के पायलट प्रोजेक्ट 2028-29 तक परिणाम देंगे. अगले एक दशक में उर्जा के क्षेत्र में फिर बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

अगर यह सफल हुआ, तो भारत SMR को वैसे ही सस्ता और वैश्विक बना सकता है, जैसे उसने कोरोना महामारी के दौरान जेनेरिक वैक्सीन दुनिया के लिए आसान और सुलभ बना दिया था. 

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